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रूस की गैस यूनियन की निगाहें पाकिस्तान और भारत पर

मध्य एशिया में रूस की "गैस यूनियन" इस बात के संकेत दे रही है कि दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय राष्ट्रों के सामने अब एकता के आशय के माधम से जवाब देने का वक़्त आ गया है।
रूस

पाकिस्तान का बढ़ता तीव्र ऊर्जा संकट वह पृष्ठभूमि है जिसे समझने की जरूरत है, क्योंकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल ज़रदारी रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से बातचीत करने मॉस्को जा रहे हैं। 

 

यह भी सच है कि, लावरोव अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया के एक 'रेनेसां पुरुष' हैं और  उनके द्वारा ज़रदारी के साथ अपना तारतम्य बैठना निश्चित हैं। दोनों देशों के लिए चीजें बदल गई हैं, पुराने दोस्त जा रहे हैं क्योंकि जिंदगी किसी के लिए रुकती नहीं है।

 

ज़रदारी की यात्रा पर रूसी विदेश मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में संक्षेप में कहा गया है कि, “विदेश मंत्री द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करेंगे। बैठक में व्यापार और आर्थिक संबंधों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

 

रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने बाद में खुलासा किया कि रूसी और पाकिस्तानी कंपनियां, पाकिस्तान को रूसी ऊर्जा संसाधनों की आपूर्ति के संबंध में "शेष मुद्दों को हल करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं"। उसने नोट किया कि भुगतान प्रणाली एक मुद्दा है, क्योंकि रूस भुगतान प्रणाली या तो राष्ट्रीय मुद्राओं में "या फिर तीसरे देशों की मुद्राओं में चाहता है जो प्रतिबंधों के जोखिम से सुरक्षित हैं।" 

 

इसके अलावा, ऊर्जा सहयोग की जो बनावट है उसमें पर्याप्त दीर्घकालिक निवेश शामिल है और तथ्य यह है कि, जैसा कि ज़खारोवा ने कहा कि, "अमेरिकी मुद्रा एक बुलबुले की तरह है, जो असुरक्षित करेंसी है और जिसे अमेरिका के ऊपर भारी सार्वजनिक कर्ज़ के बावजूद भी छापा जा रहा है।"

 

ज़खारोवा ने इस बात पर भी प्रकाश डाला और जो महात्व्प्र्न भी है वह यह कि दोनों देशों ने "ऊर्जा सहयोग के मामले में एक व्यापक योजना पर चर्चा करने का भी फैसला किया है, जो बुनियादी ढाँचे के निर्माण और ऊर्जा वाहक की आपूर्ति प्रदान करेगा" जो पाकिस्तान गैस उद्योग का "स्थायी विकास सुनिश्चित करने" की क्षमता रखता हो। पाकिस्तान को आपूर्ति पहुंचाने के लिए एक रूसी गैस पाइपलाइन का निर्माण चल रहा है।

 

रूस, कज़ाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच त्रिपक्षीय गैस सहयोग व्यवस्था के समाचार के  सुर्खियां में आने के तीन सप्ताह के भीतर ही जरदारी की मास्को यात्रा हो रही है। यूरोप और रूस के बीच दशकों पुराने ऊर्जा संबंधों के समाप्त होने से, जिसमें पाइपलाइनों के माध्यम से गैस की आपूर्ति शामिल है, अब मास्को को नए बाजारों की खोज की जरूरत है, इसलिए एशियाई बाजारों को प्राथमिकता दी जा रही है।

 

इस प्रकार, पिछले साल के अंत में, मास्को ने कज़ाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ एक गैस यूनियन बनाने का प्रस्ताव रखा था, जिसमें गैस की कमी से जूझ रहे दो मध्य एशियाई राष्ट्रों की मदद करने की पेशकश की गई थी। इस महीने की शुरुआत में, कज़ाकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने रूसी दिग्गज गजप्रोम के साथ नई साझेदारी को मजबूत करने के लिए दो अलग-अलग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इन दोनों देशों में मौजूदा गैस पाइपलाइनों का इस्तेमाल करने के लिए रूस के लिए एक नया रास्ता/विस्टा खुल रहा है ताकि तत्काल रूप से उनके घरेलू बाजार में गैस का निर्यात किया जा सके।

 

यद्यपि एक द्विपक्षीय प्रारूप में, यह व्यवस्था कज़ाकिस्तान और उज्बेकिस्तान को संभावित रूप से ट्रांज़िट देशों का दर्ज़ा देती है, जो क्षेत्रीय और विश्व बाजार, विशेष रूप से चीन, दक्षिण एशियाई देशों और आसियान इलाके में रूसी गैस की आपूर्ति को सक्षम बनाती है। (रूस ने तुर्की में एक ऊर्जा केंद्र के माध्यम से यूरोपीय बाजार में अपनी गैस को रूट करने के लिए अंकारा को एक समान व्यवस्था का प्रस्ताव दिया है।)

 

सभी ऊर्जा परियोजनाएं "भू-राजनीतिक" हैं, जैसा कि हाल ही में रूस की नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनें जिन्हे अमेरिका ने क्षति पहुंचाकर साबित किया है। लेकिन यह रूस और दो मध्य एशियाई राष्ट्रों दोनों के लिए एक "जीत-जीत" जैसी स्थिति है, क्योंकि कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान को ट्रांज़िट शुल्क से होने वाली आय बहुत अधिक और दीर्घकालिक होगी, जबकि रूस को नए बाजारों तक पहुंच हासिल होगी।

 

अफ़गानिस्तान को देखो। 11-12 जनवरी को, अफ़गानिस्तान में रूस के राष्ट्रपति के दूत, ज़मीर काबुलोव काबुल आए और "काबुल के साथ एक व्यापक संवाद विकसित करने के लिए मास्को की अटूट प्रतिबद्धता" दोहराई, और तालिबान नेतृत्व के साथ गहन चर्चा की गई। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि चर्चा का फोकस "ऊर्जा, कृषि, परिवहन, बुनियादी ढांचे, उद्योग, खनन जैसे क्षेत्रों में पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग पर था, विशेषफ़ रूप से, अफ़गान कंपनियों को रूसी ईंधन और कृषि उत्पादों की नियमित आपूर्ति करना।

 

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि: "जैसे ही अफ़गानिस्तान में स्थिति स्थिर होती है, घरेलू आर्थिक संचालक तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन के निर्माण और संचालन में भाग ले सकते हैं, साथ ही साथ क्षेत्र में निर्मित बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की बहाली में भी शामिल हो सकते हैं जो सोवियत काल के दौरान अफ़गानिस्तान में निर्माण हुई थी।

सबसे महत्वपूर्ण, विदेश मंत्रालय ने कहा है कि "वार्ता के दौरान, मौजूदा अफ़गान सरकार के प्रति रूस सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने राजनीतिक और राजनयिक संभावनाओं पर काफी ध्यान दिया गया था जिसके तहत उसकी राजनयिक मान्यता बहाल की जा सके। यह निष्कर्ष निकाला गया कि "अफ़गानिस्तान का नेतृत्व, एक शांतिपूर्ण, स्वतंत्र और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर राष्ट्र के निर्माण में अफ़गान लोगों की सहायता करने में रूसी संघ के प्रयासों की अत्यधिक सराहना करता है।"

दिलचस्प बात यह है कि मॉस्को लौटने के तुरंत बाद एक टीवी साक्षात्कार में, काबुलोव ने खुले तौर पर आरोप लगाया कि अफ़गानिस्तान में आईएसआईएल इलाके में अस्थिरता पैदा करने के एजेंडे के अलावा एंग्लो-अमेरिकन परियोजना और कुछ नहीं है। दरअसल, क्षेत्रीय सेटिंग नाटकीय रूप से बदल रही है। रूस इतिहास के बोझ के प्रति गहन रूप से सचेत हो गया है और मध्य एशियाई क्षेत्र के लिए सुरक्षा प्रदाता के रूप में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को मजबूत करने की अनिवार्यता को महसूस कर रहा है। मध्य एशिया और उत्तरी काकेशस के लिए पश्चिमी खतरा जारी है।

रूस अफ़गान स्थिति को स्थिर करने और चरमपंथी समूहों का मुकाबला करने के लिए एक क्षेत्रीय प्रयास का नेतृत्व करने की उम्मीद करता है, जो समहू भू-राजनीतिक रूप से वाशिंगटन के लिए काम करते हैं। रूस (और चीन) अफ़गानिस्तान की स्थापित सरकार के रूप में तालिबान शासकों के साथ बेहतर व्यवहार करता है। मूल रूप से आतंकवाद रूस (और चीन) के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है।

मॉस्को का अनुमान है कि तालिबान के पास आईएसआईएस के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है, लेकिन वित्तीय संसाधनों की कमी है। जो बात निश्चित है वह  जरदारी के साथ लावरोव की वार्ता में अफ़गानिस्तान का मुद्दा भी उठेगा। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी अफ़गानिस्तान पर चर्चा के लिए मास्को का दौरा करेंगे। 

भारत के लिए पाकिस्तान के साथ अपने संबंध सुधारने का यह उपयुक्त समय है। सौभाग्य से, एससीओ से संबंधित कार्यक्रम पाकिस्तानी नेताओं को भारत लाएँगे। प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है कि भारत की जी-20 अध्यक्षता "'वसुधैव कुटुम्बकम' या एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' की थीम पर आधारित होगी।" भारत को सितंबर में दिल्ली में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में एक विशेष कार्यक्रम के रूप में पाकिस्तान को अतिथि के रूप में आमंत्रित करना चाहिए। 

व्यावहारिक स्तर पर, टीएपीआई गैस पाइपलाइन परियोजना त्रिपक्षीय गैस यूनियन के साथ जुड़ती है जिसे रूस एक साथ रख रहा है और इसमें कज़ाकिस्तान और उज्बेकिस्तान साथ हैं। रूसी दैनिक नेज़विसीमाया गजेटा ने हाल ही में लिखा था कि मास्को को मध्यम अवधि में मध्य एशियाई गैस ग्रिड को दक्षिण एशियाई क्षेत्र और आसियान क्षेत्र तक विस्तारित करने की बड़ी उम्मीदें हैं।

सीआईएस देशों के संस्थान में मध्य एशिया और कज़ाकिस्तान विभाग के प्रमुख और रूसी एकेडमी ऑफ साइंसेज के ओरिएंटल स्टडीज संस्थान के वरिष्ठ शोधकर्ता आंद्रेई ग्रोज़िन ने रूसी दैनिक को बताया कि “पहले से ही यह रूस की एक नई राज्य नीति रही है," और यह स्पष्ट है कि न तो अस्ताना और न ही ताशकंद इस परियोजना में भाग लेने से इंकार कर पाएंगे।

विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि इस सदी के मध्य तक, दक्षिण पूर्व एशिया मुख्य ऊर्जा खपत वाला क्षेत्र बन जाएगा। अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, चीन तक गैस पाइपलाइन नेटवर्क का विस्तार कितना ही शानदार क्यों न लगे, यह जल्द ही एक वास्तविकता बन जाएगा। इसलिए, आज हमारे कच्चे माल को दक्षिणी बाजारों में बढ़ावा देना आवश्यक है।

बेशक, इस तरह की एक बड़ी परियोजना वाशिंगटन में हिचकी पैदा करेगी। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अमेरिकी विदेश मंत्री विक्टोरिया नूलैंड (जिन्होंने कीव में 2014 के शासन परिवर्तन में दखल दिया था और रूस की नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइन में तोड़फोड़ और विनाश पर खुले तौर पर गर्व महसूस किया था) इस सप्ताह दिल्ली आ रहे हैं।

वाशिंगटन इस बात से परेशान है कि रूसी तेल निर्यात पर पश्चिमी प्रतिबंधों के दबाव के कारण रूस के साथ भारत के ऊर्जा संबंध महत्वपूर्ण रूप से मजबूत हुए हैं। न केवल रूसी कच्चा तेल भारत को विश्व के समकक्षों से दोगुना सस्ता बेच रहा है, बल्कि पेट्रोलियम उत्पादों का रूसी उत्पादन वास्तव में भारत को हस्तांतरित किया जाता है।

5 फरवरी से रूसी तेल उत्पादों पर यूरोपीय प्रतिबंध लागू होने के बाद, भारत अरबों डॉलर के संभावित निर्यात कारोबार के साथ यूरोप में परिष्कृत रूसी तेल का मुख्य आपूर्तिकर्ता बनने को अब तैयार है। भारत से डीजल ईंधन का निर्यात पहले से ही बढ़ रहा है।

तकनीकी रूप से, यह रूस के विरुद्ध यूरोपीयन यूनियन के प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं करता है। लेकिन यह बाइडेन प्रशासन को नाराज़ कर सकता है, जिसने अनुमान लगाया था कि आकर्षक यूरोपीय बाजार में रूसी पेट्रोलियम उत्पादों को बदलने से अमेरिकी निर्यात को बढ़ावा देने की क्षमता होगी।

रूस, पाकिस्तान और भारत के बीच "गैस यूनियन" बनाने से अमेरिका असहज होगा। लेकिन अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुरक्षित और मजबूत बनाने में भारत के महत्वपूर्ण हित शामिल हैं। विश्व व्यवस्था में पश्चिमी दादागिरी/आधिपत्य समाप्त हो रहा है। मध्य एशिया में रूस की "गैस यूनियन" संकेत दे रही है कि दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय राष्ट्रों की एकता के आशय के ज़रिए जवाब देने का समय आ गया है।

एमके भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

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