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शहरी रोज़गार गारंटी का केरल मॉडल

केरल सरकार की यह योजना मनरेगा के ही समान है, अर्थव्यवस्था में पर्याप्त रोज़गार के अभाव के चलते शहरी क्षेत्रों में सबसे ग़रीब तबक़ों के लिए न्यूनतम आजीविका सुरक्षा प्रदान करने के लिए यह रोज़गार का कार्यक्रम अंतिम राहत है।
शहरी रोज़गार गारंटी का केरल मॉडल
केवल प्रतिनिधित्वीय उपयोग के लिए चित्र। सौजन्य: वेलेंचरी.इन

ग्रामीण ग़रीबों के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के साथ-साथ देश में बढ़ती बेरोज़गारी के बीच, केरल की राज्य सरकार के पास शहरी ग़रीबों के लिए एक अंतिम राहत का दिलचस्प रोज़गार कार्यक्रम है – जिसे अय्यंकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना(AUEGS) नाम दिया गया है। मनरेगा (MGNREGS) की तरह, यह भी एक मांग निर्धारित कार्यक्रम है – इस योजना को शहरी मामलों के निदेशालय, केरल सरकार द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
वेबसाइट कहती है कि, अय्यंकाली शहरी रोजगार गारंटी योजना (AUEGS) का लक्ष्य शहरी क्षेत्रों में लोगों की आजीविका की सुरक्षा को बढ़ाना है, जो एक शहरी घर में एक वर्ष में 100 दिनों की मज़दूरी-रोज़गार की गारंटी देता है, जिस घर के वयस्क सदस्य स्वैच्छिक रूप से कार्य करने के लिए काम की मांग करते हैं। इसका उद्देश्य केरल के शहरी क्षेत्रों में लोगों के लिए एक अधिकार-आधारित सामाजिक सुरक्षा के जाल को मज़बूत करना है, यह तब किया जा रहा है जब देश में रोजगार के अन्य विकल्प दुर्लभ या अपर्याप्त हैं।
योजना के डिज़ाइन और कार्यान्वयन की अपने आप में बहुत सी सीमाएँ हैं। हालांकि इस योजना के तहत शहरी क्षेत्रों में सबसे ग़रीब लोगों को अर्थव्यवस्था में रोज़गार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं होने के कारण न्यूनतम आजीविका सुरक्षा प्रदान करने की योजना है। शहरी क्षेत्रों से यहाँ केवल शहर नहीं हैं, बल्कि शहरी क्षेत्रों में सभी नगर पालिका और निगम क्षेत्र भी शामिल होंगे। चूंकि मनरेगा (MGNREGS) को केवल ग्राम पंचायतों के माध्यम से लागू किया जाता है, पंचायत क्षेत्रों के बाहर के सभी क्षेत्र केरल में अय्यंकाली शहरी रोजगार गारंटी योजना (AUEGS) योजना के दायरे में आते हैं।

इस योजना की शुरुआत 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के हिस्से के रूप में अंतिम वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ़) सरकार के दौरान विकसित और शुरू की गई थी। केरल की बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) ने भी अय्यंकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना (AUEGS) के महत्व पर ज़ोर दिया था और उल्लेख किया था कि शहरी क्षेत्रों में ग़रीबी और रोज़गार की समस्याओं को कम करने के लिए इस योजना के प्रभावी कार्यान्वयन को अगले 3 वर्षों में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। योजना के वर्तमान डिज़ाइन के अनुसार, श्रमिकों की न्यूनतम पात्रता निम्नानुसार होगी:
शहरी क्षेत्रों में रहने वाले और अकुशल मैनुअल काम करने के इच्छुक हर घर के वयस्क सदस्य नगरनिगम/नगर पालिका के साथ अपना नाम पंजीकृत कर सकते हैं, जिसके अधिकार क्षेत्र में वे रहते हैं। अय्यंकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना (AUEGS) के तहत प्रक्रिया के बाद, नगरपालिका या निगम सभी श्रमिकों को जॉब कार्ड जारी करेंगे जो पंजीकरण के 15 दिनों के भीतर योजना के तहत पंजीकृत होंगे। एक पंजीकृत घर का हर वयस्क सदस्य जिसका नाम जॉब कार्ड में दिखाई देगा, योजना के तहत अकुशल मैनुअल काम के लिए आवेदन करने का हक़दार होगा क्योंकि आवेदक किसी भी वर्ष में अधिकतम 100 दिन प्रति घर काम का अनुरोध कर सकता है। मनरेगा (MGNREGS) की तरह, आवेदक को आवेदन प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर या जिस तारीख़ को वह अग्रिम आवेदन के मामले में काम करना चाहता है, उसके बाद उसे अकुशल मैनुअल काम उपलब्ध कराया जाएगा। इस तरह से महिलाओं को भी प्राथमिकता दी जाएगी कि लाभार्थी में कम से कम 50 प्रतिशत महिलाएँ हों। काम के लिए आवेदक को एक दिनांकित रसीद दी जाएगी। आवेदक, जिसे काम दिया जाता है, उन्हें लिखित रूप में और शहरी स्थानीय निकाय के कार्यालय द्वारा सार्वजनिक नोटिस द्वारा सूचित किया जाएगा। जहाँ तक ​​संभव हो, आवेदक के निवास के 5 किलोमीटर के दायरे में रोज़गार उपलब्ध कराया जाएगा। यदि ऐसे दायरे के बाहर रोज़गार उपलब्ध कराया जाता है, तो श्रमिकों को अतिरिक्त मज़दूरी के रूप में मज़दूरी दर का 10 प्रतिशत भुगतान किया जाएगा।


अब तक, मनरेगा (MGNREGS) योजना में मज़दूरी दर (2018 में केरल में प्रति दिन 271 रुपये है) यह मज़दूरी इसी दर के बराबर होगी। हालांकि, चूंकि शहरी क्षेत्रों में रहने की औसत लागत अपेक्षाकृत अधिक है (यही कारण है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए राज्य में अलग-अलग दो ग़रीबी की रेखाएँ हैं), शहरी रोज़गार गारंटी कार्यक्रम के तहत मज़दूरी भी मनरेगा (MGNREGS) मज़दूरी से अधिक होनी चाहिए।
योजना का ध्यान निम्नलिखित कार्यों पर रहेगा:
जल संरक्षण और जल संचयन, सूखा से निजात का काम (इसके तहत वनीकरण, वृक्षारोपण और हरियाली गतिविधियों सहित), सूक्ष्म सिंचाई कार्य, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के परिवारों के स्वामित्व वाली भूमि की सिंचाई सुविधा का प्रावधान और बीपीएल और केंद्र प्रायोजित लाभार्थियों से संबंधित भूमि योजना, जल भराव क्षेत्रों में जल निकासी, भूमि विकास, बाढ़ नियंत्रण और जल संरक्षण कार्यों सहित जल भराव क्षेत्रों में जल निकासी, कलस्टर में अनुपूरक कार्य, कॉलोनियों में नवीकरण कार्य, सार्वजनिक स्थानों पर जमा मलबा/कचरे को हटाने सहित पारंपरिक जल निकायों का नवीनीकरण AUEGS के तहत सड़कों, भवनों और पुलों का निर्माण, धातुकरण, तारबंदी और मरम्मत प्रतिबंधित शामिल है।
हालांकि, इस योजना के तहत ज़रूरत से ज़्यादा काम लाने की तत्काल ज़रूरत है, जो शहरी क्षेत्रों के लिए अधिक अनुकूल हैं।


इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पूरे देश में अय्यंकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना (AUEGS) जैसी शहरी (नगर निगम और निगम) क्षेत्रों में इस तरह के रोज़गार के अंतिम राहत कार्यक्रम की तत्काल आवश्यकता है। जब शहरी बेरोज़गारी बढ़ रही है, तो यह न केवल खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिए, बल्कि काम की मांग में आए अवसाद के दौरान कुल मांग से बेरोज़गारी कम होगी और मज़दूरी बेहतर होगी, तो स्वचालित रूप से इन नौकरियों की मांग में कमी आएगी। । कीन्स-कहन गुणक प्रक्रिया के माध्यम से, ये नौकरियाँ आगे रोज़गार के अवसर पैदा करती हैं।
केरल की वर्तमान एलडीएफ़ सरकार को इस अत्यंत महत्वपूर्ण योजना को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए अधिक ध्यान देना चाहिए। केरल में शहरी बेरोज़गारी देश में सबसे ज़्यादा है। लेकिन अय्यंकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना (AUEGS) नौकरियों की मांग अब तक की तुलना में बहुत कम है। कम मज़दूरी की वजह से, योजना के वर्तमान डिज़ाइन और सभी निगम और नगर पालिका क्षेत्रों में इसके कार्यान्वयन के बारे में गंभीर मुद्दे शामिल हैं। हालांकि, किसी योजना के सुधार के बारे में आगे की आलोचना और चर्चा केवल तभी संभव हो सकती है जब यह मौजूद हो। भारत में सभी राज्यों में इस तरह की योजना की आवश्यकता तब बढ़ जाती है जब ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोज़गारी और कम मज़दुरी पर काम करने जैसे ठेका प्रथा वर्तमान संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण रूप से ज़्यादा है। लेकिन इसे आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना महसूस नहीं किया जा सकता है और आगे नव निर्वाचित केंद्र सरकार को प्राथमिकता के आधार पर इस तरह के कार्यक्रम को लागू करना होगा। राजनीतिक दलों को अपने चुनाव घोषणा पत्र में शहरी रोज़गार गारंटी योजना रखने की मांग को शामिल करना चाहिए।
 

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