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सोनी हैकिंग पर अमरीका का ड्रामा

मनोरंजन के क्षेत्र के बादशाह सोनी पिकचर की हेकिंग के पीछे अमरीका की एफ.बी.आई. ने नार्थ कोरिया को जिम्मेदार ठहराया है। ओबामा ने इसके बदले में उत्तरी कोरिया के विरुद्ध साइबर हमले या जिसे वे “सामान जबाब” कहते हैं, की धमकी दी है। इस धमकी के बाद उत्तरी कोरिया का इन्टरनेट बंद पड़ गया था। उत्तरी कोरिया ने इस आरोप का खंडन किया और अंतर्राष्ट्रीय जांच करने की मांग की जिससे की इस हेकिंग के पीछे कौन है, का पता लगाया जा सके।

विश्वसनीय सबूत जो हाथ लगे हैं उसके आधार पर अब लग रहा है कि उत्तरी कोरिया के बजाय  इस साइबर हमले के पीछे किसी अंदरूनी व्यक्ति का हाथ है। फिर भी, अमरीका द्वारा यह दावा करना कि सोनी की हेकिंग के पीछे उत्तरी कोरिया है ,वह विभिन्न तरीकों में से एक है जिससे वह उस पर हमला कर सकता है। यह इराक में जन-तबाही के हथियारों और सीरिया में सरीन गैस की पुनरावर्ती को दोहराने जैसा एक और कदम है। यह अमरीका की दोषारोपण की कहानी बनाने की नीति का हिस्सा है चाहे फिर दोषारोपण की कहानी का झूठ भी पकड़ा गया हो। लेकिन तब तक लोगों के ज़हन में पहली दोषारोपण की कहानी पैठ बना लेती है। आपको याद होगा उस चुनाव के बारे में जिसमें 40% अमेरिकी ये मानते थे कि 9-11 के हमले के पीछे सद्दाम हुसैन का हाथ था?

तो सोनी के सर्वर और वेबसाइट की हेकिंग के पीछे की कहानी क्या है? अगर आप दुनिया की किसी भी मुख्य धारा की प्रेस को पढ़ते हैं तो आप पायेंगे यह एक बेहूदा फिल्म के बारे में है जिसका नाम है – द इंटरव्यू – जिसमें सोनी ने उत्तरी कोरिया के राष्ट्रपति के मारे जाने की कहानी पर आधारित कर बनाया है। अमरिकी और वैश्विक मीडिया जो अमरीका पर नज़र रखता है यह विश्वास कर रहा है कि उत्तरी कोरिया पहले तो सोनी के आंतरिक नेटवर्क और सर्वर में घुसा, और फिर उसने बड़ी तादाद में वहां से सूचना चुरा ली, और उसने धमकी दी कि अगर इस फिल्म को बंद नहीं किया गया तो वह संवेदनशील सुचना को सार्वजनिक कर देगा। उत्तरी कोरिया ने इसमें अपने शामिल होने से इनकार कर दिया है, और यह लेख लिखने तक यह सूचना आ गयी कि सोनी इस फिल्म को अपने तयशुदा कार्यकर्म के तहत क्रिसमस में रिलीज कर देगा। फिल्म आलोचकों ने कहा है कि यह अकेली ऐसी फिल्म है जिसे इतनी पब्लिसिटी मिली है, किसी देश के संरक्षक पर आतंकी हमला दिखा कर और दुसरे देश में फिल्म को हिट करने का फार्मूला है अन्यथा फिल्म काफी बेस्वाद हो जाती।

असली कहानी यह है कि सोनी के आंतरिक नेटवर्क, सर्वर या पासवर्ड के बारे में जिन लोगों को विस्तृत ज्ञान था, उन्ही लोगों ने अनिवार्य रूप से सोनी को "मुर्ख" बनाया। एक समूह जो अपने आपको “शान्ति के अभिवावक” बुलाते हैं ने सोनी सर्वर से बड़ा डाटा उड़ा लिया, और उसके कुछ हिस्से को सार्वजिन डोमेन में पोस्ट कर दिया है जिससे पता चला कि सोनी द्वारा लिंग भेद, सेलिब्रिटी (उदाहरण के लिए, एंजेलिना जोली को कम प्रतिभाशाली और एक बिगडैल लड़की बताया है)के बारे में गपशप उजागर हुयी, यहाँ तक कि गूगल के खिलाफ सोनी का युद्ध, की जा रही छंटनी और कुछ अप्रकाशित फिल्मों के बारे में खबर है। उन्होंने, सोनी सर्वर की अधिक से अधिक दो-तिहाई हिस्से का सफाया कर दिया जिसकी वजह से सोनी कार्यविधि अपने स्थान से अन्य स्थान पर चली गयी। जी।ओ।पी। की धमकी को तभी संभाला जा सका जब सोनी ने उनकी मांग को स्वीकार का लिया नही तो और भी ज्यादा तबाह करने वाली सूचनाएं बहार आती।

कहानी कुछ इस तरह मोड़ लेती है। मेल के जरिए सोनी को भेजे गए असली मांगपत्र में शुरुवाती मांग यह थी, “ हमें मौद्रिक मुआवजा दिया जाए।क्षति का भुगतान करो, या पूरे सोनी पिक्चर पर तेज़ हमला किया जाएगा। तुम हमें अच्छी तरह जानते हो। हम ज्यादा देर इंतज़ार नहीं करेंगे। इसलिए अच्छा होगा कि आप तहज़ीब से पेश आयें।” अन्य शब्दों में यह सब पैसे का खेल था, या स्पष्ट रूप से कहा जाए तो ज़बरदस्ती वसूली का खेल था। यह मीडिया ही था जिसने हेकिंग को द इंटरव्यू फिल्म से जोड़ दिया, उसके बाद “शान्ति के अभिवावकों” ने इस मुद्दे को पकड़ा और सोनी से फिल्म को वापस लेने के लिए कहा। अब उन्होंने इस मांग को खारिज़ कर दिया है। कुछ अन्य लोग मानते हैं कि न तो यह अपराधिक और न ही राजनेतिक है, पर यह तो  "मनोरंजन के लिए" या मज़े के लिए इंटरनेट स्लैंग था। इस तरह देखा जाए तो सोनी एक ऐसी कंपनी है जिसे हेकर्स दिल से नफरत करते हैं और उनके लिए वह हमेशा एक चहेती टारगेट रहेगी।

शुरू से ही सुरक्षा विशेषग्य ओबामा की कहानी कि उत्तरी कोरिया इसके लिए जिम्मेदार है, पर विश्वास करने से झिझक रहे थे। इसे पहले कि एफ।बी।आई। द्वारा उत्तरी कोरिया पर आरोप दागने के लिए बयान आता, वायर्ड पत्रिका ने उत्तरी कोरिया का इसमें हाथ होने को एक कमज़ोर आरोप बताया। पूर्व बेनामी हैकर हेक्टर मोंसेगुर या "साबू" ने सरकार के दावों को खारिज कर दिया, उन्होंने कहा कि उत्तर कोरिया के पास टेराबाइट डेटा को हज़म करने करने के लिए इंटरनेट के बुनियादी ढांचे या बैंडविड्थ नहीं है का तर्क दिया। या तो मौजूदा सोनी कर्मचारियों में काम कर रहे या बर्खास्त लोग हैं जो साइबर अपराधी बन काम कर रहे है।

इसके बाद एफ़।बी।आई। उत्तरी कोरिया के शामिल होने के “सबूत” को लेकर कहानी में आती है जिसे कि सुरक्षा के कारणों से सार्वजनिक नहीं किया गया। और इस तरह इस सबूत की जांच और मुश्किल बन गयी। डिजिटल सुरक्षा पर तीन विशेषग्य क्यों उत्तरी कोरिया पर लगाए गए आरोपों को सही नहीं मानते है, इस पर नजर डालते हैं, ब्रूस स्चिएरेर जोकि  सुरक्षा दुनिया में अग्रणी हस्ती है वह एफबीआई घोषणा को "गहराई से उलझन भरा है" ऐसा मानते है। एफबीआई का प्रमुख तर्क है कि उत्तर कोरिया के साइबर हमलों में पहले भी इस समूह ने इन उपकरणों का इस्तेमाल किया है। सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा है लेकिन, जैसा कि इन उपकरणों का व्यापक रूप से और अच्छी तरह से अन्य हैकर्स द्वारा भी इस्तेमाल किया गया है। दूसरा तर्क है कि हैकर्स ने पहले भी उत्तर कोरियाई हमलों में इस्तेमाल नेटवर्क और आईपी पतों का इस्तेमाल किया है। इस पर मार्क रोजर्स, (अमेरिका में सबसे बड़ा हैकर्स सम्मेलन) जो देफकों के लिए सुरक्षा का प्रमुख है, ने (दैनिक बिस्ट, 24 दिसंबर 2014) में लिखा है कि आरोप निराधार है, “"साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के इस बयान का भोलापन से भरे भिखारी का विश्वास बताया है। एफबीआई के लिए नोट: में लिखा है, कि चूँकि साइबर अपराध के लिए विशेष आईपी पते का इस्तेमाल किया गया ,आप हर बार उस विशेष आईपी पते जोड़कर,हर समय पर आप साइबर अपराध के लिए उसे लिंक नहीं कर सकते है।” रोज़र यह भी कहते हैं कि कमांड और नियंत्रण पते जोकि मालवेयर शो में मिले हैं उन्हें प्रोक्सी के तौर पर जाना जाता है और इनका इस्तेमाल अक्सर हेकर करते हैं। फिर उत्तरी कोरिया के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। 

तो हमने सिर्फ इस तर्क पर छोड़ दिया गया कि “हम पर विश्वास करो, हमारे पास सबूत है जिन्हें हम सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं और हम अच्छे लोग हैं।” यहाँ तक कि अमरिकी विशेषज्ञों को, यह विश्वास दिलाया गया था – इराक युद्ध के बाद अमरीका दावा किया था कि हम पर विश्वास करो कि इराक के पास जन-तबाही के हथियार हैं – में कोई दम नहीं था। आखिरकार किसी भी देश के विरुद्ध साइबर युद्ध किसी शारीरिक युद्ध से अलग नहीं है, विशेषतौर पर अगर यह शारीरिक ढाँचे को चोट पहुंचाता है तो, जैसे कि बिजली और पानी की सप्लाई को अवरुद्ध करना।

अगर यह उत्तरी कोरिया नहीं है तो फिर यह कौन है जिसने यह सब किया है एक बड़ा सवाल है। इधर, सोनी के व्यापक आंतरिक ज्ञान का सबूत प्रासंगिक हो जाता है। मार्क रोजर्स लिखते हैं, "मैलवेयर में हार्ड कोडित रास्तों और पासवर्ड से यह स्पष्ट है कि जिस किसी ने भी कोड लिखा है उसे सोनी की आंतरिक संरचना उसके मुख्य पासवर्ड और उसके उपयोग का व्यापक ज्ञान था। एक उत्तर कोरियाई की अभिजात वर्ग साइबर इकाई के लिए संभव था की वह समय के साथ साथ इस ज्ञान को बनाता और फिर मैलवेयर बनाने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकता तो प्रशंसनीय होता। ओच्काम के रोज़र मानते है कि यह साधारण रूप से स्पष्ट है की यह किसी अंदरूनी का काम है। इस साक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कि सोनी बड़ी छटनी की तैयारी कर रहा था, और इसके लिए ज्यादा दिमाग पर जोर डालने की जरूरत नही है कि यह किसी सोनी के ख़फ़ा हुए कर्मचारी का काम भी हो सकता है।

रोज़र यह भी रेखांकित करते हैं कि अगर किसी देश के पास ऐसी संवेदनशील सूचना है, तो उस सुचना को सार्वजनिक करना कहाँ की समझदारी है और वह ऐसा क्यों करेगा, वह तो इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करेगा क्योंकि अंतत: ज्ञान ही शक्ति है।

सबसे ज्यादा सहमती वाली आवाज़ कुरत स्ताम्म्बेर्गेर की है, जोकि साइबर सुरक्षा कम्पनी नॉर्स के उपाध्यक्ष हैं, उसने सी।बी।एस। न्यूज़ को बताया “ हमें विश्वास है कि यह उत्तरी कोरिया द्वारा किया हमला नहीं है, कि इतिहास में इतने बड़े हमले के लिए अंदरूनी लोग ही इसे लागू करने में आगे रहे हैं।” कुरत स्ताम्म्बेर्गेर कहते हैं कि नॉर्स के पास जो डेटा है उसके मुताबिक़ “लेना” नाम की एक युवती है जिसने अपने आपको “शान्ति के अभिभावक” जोकि हेकिंग समूह है, का नाम दिया है, वह जो लोस एंजलस में सोनी फैसिलिटी में काम करती है।

सी।बी।एस। के मुताबिक़, “यह महीला एकदम सही स्थिति में थी जोकि तकनिकी तौर पर काफी विशिष्ट है और जिसे ख़ास सर्वर को लोकेट करने की जरूरत थी जिस सर्वर के साथ यह छेड़छाड़ की गयी है।

तो हमारे पास एक ऐसी संभावना है कि यह काम किसी गुस्साए और रोज़गार से बाहर किये गए व्यक्ति का है जिसे सोनी नेटवर्क की गहरी जानकारी है और उसी ने इसे हैक किया है।

तो फिर सोनी और अमरीका ने उत्तरी कोरिया को इसमें क्यों घसीटा? उत्तरी कोरिया लम्बे समय से अमरीका की आँख की किरकिरी बना हुआ है। यह सिर्फ कड़वा अतीत नहीं है – कोरिया युद्ध, और वहाँ अमेरिका युद्ध मशीन का सुखद ढंग से रहना ही नहीं है – बल्कि यह भी कि उत्तर कोरिया अमेरिका को अपनी शक्ति की सीमा बता चूका है। बहुत कम तकनीकी बुनियादी सुविधाओं के साथ एक छोटे से राष्ट्र ने अमेरिका को धता बता दिया, यह अमेरिकी प्रशासन के लिए एक अभिशाप बन गया है। भू-रणनीतिक तौर पर, उत्तर कोरिया अमेरिका के उद्देश्य की पूर्ती करते हुए वह वह चीन और जापान को एक-दुसरे के विरुद्ध इस्तेमाल कर सकता है। बावजूद उत्तर कोरिया की जोखिम भरी नीतियों पर चीन की आपत्तियों के, वह उत्तरी कोरिया की सुरक्षा का जमानतदार है। इसलिए, उत्तर कोरिया अमेरिका की नज़र में एशिया के लिए धुरी और चीन के अपने नियंत्रण में एक सुविधाजनक पिटाई करने वाला लड़का है।

सोनी के लिए, कारण कहीं अधिक सांसारिक हैं। यह पहले से ही अपनी सुरक्षा की कमी और सार्वजनिक प्रकटीकरण में तृतीय पक्षों के चलते और नुकसान के लिए एक दर्जन से अधिक केस  इसके खिलाफ दर्ज है। युद्ध का एक नाटक का दावा इस तरह के दावों के खिलाफ सोनी को क्षतिपूर्ति करनी होगी।

साइबर हमलों और साइबर युद्ध के लिए बड़ा सवाल में जो रुचि रखते हैं, उन लोगों के लिए, सोनी के मामले में एक संधि पर आधारित शासन साइबर हथियारों और साइबर हमलों के खिलाफ कितना महत्वपूर्ण है इससे यह पता चलता है। साइबर हथियार का इस्तेमाल करने वाला  यह एकमात्र देश है, ईरानी सेंट्रीफ्यूज पर स्तुक्स्नेट हमला। अमेरिका विश्वास करता है कि इस युद्ध के इस क्षेत्र में वह अन्य लोगों से काफी आगे है और इसलिए वह साइबर शांति की सभी बातों को उसकी नेतागिरी के लिए चुनौती के रूप में देखता है। यही कारण है कि उसने रूस और चीन द्वारा सभी प्रयासों का विरोध किया है जिसमें वे संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पास करने के लिए (जो थोडा शक्तिशाली हो) और उसने अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार यूनियन (आईटीयू) या किसी भी बहुपक्षीय के लिए साइबर सुरक्षा के प्रस्ताव लाने के लिए प्रयासरत थे।

सोनी हमले की "प्रतिक्रिया" और अमेरिका द्वारा उत्तर कोरियाई इंटरनेट को ध्वस्त करने की   प्रतिक्रिया के साथ हम नए क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। अनियमित साइबर हमलों या हथियारों, अब इंटरनेट के रूप में लागू युद्ध के नियमों की स्वेच्छा से इंटरनेट की प्रकृति ही बदल जाएगी। अमेरिका,  इंटरनेट के लिए एक संधि पर आधारित शासन करने के उद्देश्य के साथ इन मुद्दों पर चर्चा की अनुमति नहीं देता है तब तक, देशों को अपना स्वतंत्र इंटरनेट स्पेस बनाना होगा और फिर उसे वैश्विक इंटरनेट से कनेक्ट करना होगा जोकि मौजूदा टेलीफोन लाइन्स के ढांचे पर आधारित होगा। यह प्रस्ताव भारत ने बुसान में हुयी आईटीयू पूर्णाधिकारी बैठक में दिया था।

हम साइबर युद्ध और साइबर हमलों के युग में पहले से ही रह रहें हैं। हम कैसे इस पर रुख अखित्यार करते हैं वह ही इंटरनेट की संरचना का निर्धारण करेगा। हमें इंटरनेट गवर्नेंस को भी चर्चा में लाने की जरूरत है। इंटरनेट गवर्नेंस के इस विस्तार का सवाल आईपी पते और डोमेन नाम आवंटित करने से परे है जिसका की अमरिका विरोध करता है और साइबर हमले की शिकायत करता है। यह ठीक नहीं है, अगर हम इन्टरनेट को जनता के अच्छे के लिए चाहते हैं।

(अनुवाद:महेश कुमार)

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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