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सरकार को बढ़ती बेरोजगारी पर कोई चिंता नहीं

सीएमआईई के मुताबिक बेरोजगारी 78 सप्ताह के उच्चतम स्तर पर है जबकि सरकार के ऑनलाइन पोर्टल पर 8.6 लाख रिक्त नौकरियों के लिए 4.2 करोड़ पंजीकृत रोज़गार चाहने वाले हैं।
बेरोज़गारी

बेरोजगारी में हजारों घाव वाली मौत है, और भारत को इस मौत लाखों बार भुगतना पड़ता है। हाल ही में जारी आंकड़ों के दो हिस्सों से पुष्टि होती हैं जोकि सभी जानते हैं - कोई नौकरियां नहीं हैं और अधिक से अधिक लोग सड़कों पर इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं।

मोदी सरकार द्वारा हर चीज़ को डिजिटल पोर्टल में बदलने की लगन सत्य है, एक उसने नौकरी तलाशने वालों और नौकरी की रिक्तियों के लिए एक बनाया जो राष्ट्रीय करियर सेवा पोर्टल कहलाता है। इस पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, तीन साल 2015-16 से 2017-18 में, कुछ 861,391 नौकरी की रिक्तियों को लगया गया था, जबकि नौकरी खोजने वालों की संख्या 4.2 करोड़ थी।

ये सही आंकड़े नहीं हैं। सभी लोग रोज़गार एक्सचेंजों या ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण नहीं करते हैं। और न ही सभी नियोक्ता कर्मचारियों की तलाश करने वाले आवेदन डिजिटल करते हैं। इससे पता चलता है कि वास्तविक दुनिया में क्या हो रहा है यह इसका एहसास देता है - प्रत्येक नौकरी पर 50 लोग आवेदन का रहे हैं। नौकरियों की ख़राब स्थिति के अलावा यह दिखाता है कि इस बेरोज़गारी की वजह से मजदूरी भी कम दी जा रही है। नियोक्ता मजदूरी दरों को मनमाने ढंग से तय करते हैं और उन लोगों को काम पर रखते हैं जो इतनी कम मजदूरी से सहमत हैं क्योंकि नौकरियों की तलाश में बहुत से युवक बेताब हैं और मारे-मारे फिर रहे हैं।

यहां डेटा का एक और सेट है। नवीनतम सीएमआईई अनुमानों से पता चलता है कि इस साल अप्रैल के पहले पखवाड़े में बेरोजगारी 7.25 प्रतिशत तकपहुंचा गयी है। ये शुरुआती साप्ताहिक अनुमान हैं और एक महीने में थोड़ा और नीचे जा सकता है, लेकिन फिर भी, यह 78 सप्ताह में उच्चतम स्तर है।

भारत में हर महीने श्रम शक्ति में लगभग 13 लाख लोग शामिल होते हैं। यह हर साल करीब 1.56 करोड़ का आंकड़ा बैठता है। फिर भी 2017 में नई नौकरी के निर्माण की दर मात्र 1 प्रतिशत से भी कम हो गई थी। दरअसल, श्रम शक्ति लगभग 44 करोड़ से घटकर 42 करोड़ हो गयी। ये दिमाग हिलाने वाले नंबर हैं और अकल्पनीय अनुपात की त्रासदी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

पिछले चार वर्षों में मोदी की सरकार की नए रोज़गार सृजन के मामले में सिर्फ उसकी अक्षमता ही नहीं देखी गई बल्कि नौकरियाँ पैदा करने के जुमले लगातार कभी इस परियोजना में इतने लाखों र्प्ज्गार होंगे से आश्वस्त करना और कभी कहना उस कार्यक्रम में बहुत से लोग को रोज़गार मिलेगा। उदाहरण के लिए, वित्त मंत्री जेटली ने अपने पिछले बजट भाषण में बड़े आराम से घोषणा की कि इस वर्ष 70 लाख नौकरियां पैदा होंगी। मगर कैसे? न तो वे जानते हैं और न कोई और जानता है।

औद्योगिक विकास, निवेश दर असल स्थिर हो रहा है, ग्रामीण रोजगार सृजन ख़राब स्थिति में है और ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत रोज़गार तालाशने के लिए लोगों की रिकॉर्ड संख्या जा रही है, निर्यात कम हो गया है - वास्तविक अर्थव्यवस्था धीमी पड़ गई है, फिर जीडीपी या स्टॉक एक्सचेंज डेटा कुछ भी इससे फर्क नहीं पड़ता है I

इस दर्द को और अधिक तीव्रता से महसूस किया गया है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था। यूपीए सरकार के तहत रोजगाररहित विकास के वर्षों के बाद, आशा की भावना जगी थी। लोगों ने बड़ी संख्या में मुख्य रूप से इस वादे से मुखातिब होकर वोट दिया था। उनके लिए फिर भी कुछ भी नहीं बदला है।

बल्कि, मोदी के नजरिए के तहत, भारत नौकरी से नुकसान की अर्थव्यवस्था में बदल गया है। आरबीआई की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक, KLEMS डाटाबेस, भारत की रोजगार वृद्धि दर 2015-16 में 0.1% और 2016-17 में 0.2% की गिरावट आई है, हालांकि देश की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 7.4% और 8.2% की वृद्धि के बावजूद, उन वर्षों में क्रमशः विनिर्माण क्षेत्र के कृषि, खनन और उप क्षेत्र जैसे कई क्षेत्रों में श्रमिक विकास दर में गिरावट आई है।

काम की स्थितियों में भी सरकार में भारी गिरावट आई है। उन्होंने हाल ही में घोषित किया कि निश्चित अवधि के रोजगार सभी प्रकार के उद्योगों में कानूनी तौर पर अनुमत होंगे। इसका मतलब है कि अस्थायी या संविदात्मक कार्य अब आधिकारिक रूप से अनुमोदित हो गए है, जिससे नियोक्ताओं को नौकरी पर लेने और उन्हें नौकरी से हटाने के अनचाहे अधिकार दे दिए हैं।

चूंकि मोदी का कार्यकाल 2019 में खत्म हो रहा है, इसलिए लोग एक नए रास्ते का इंतजार कर रहे हैं जो अत्यधिक बेरोजगारी और जीवन स्तर में गिरावट से संबंधित है।

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