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सरकारी ऋण से बने 25% सस्ते मकान अब भी खाली

सार्वजनिक उपक्रमों पर एक संसदीय पैनल एक रिपोर्ट में यह पाया गया कि उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली और मध्य प्रदेश, वे प्रमुख राज्य हैं जहाँ निर्मित घरों का कब्ज़ा न लेने की समस्या है।
affordable housing schemes
Image for representational purposes. Courtesy: Hindustan Times

इस तथ्य का गंभीर नोट लेते हुए कि घर निर्माण एक गहरे संकट मैं है, सस्ती दरों से निर्मित घरों का 25 प्रतिशत जो सरकारी ऋण से बना है वह अभी भी खाली पड़े हुए हैं, इस सम्बंध में गठित एक संसदिय समीति ने सम्बंधित मंत्रालय से विचार करने के लिए कहा है।

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत आवास और शहरी विकास निगम (हुडको) के प्रदर्शन की जाँच करने वाली समीति ने पाया कि इकाइयों का निर्माण तीन सरकारी योजनाओं - शहरी गरीब के लिए आधारभूत सेवाएँ (बीएसयूपी), एकीकृत आवास और झोपड़पट्टी विकास कार्यक्रम के लिए बुनियादी सेवाएँ (आईएचएसडीपी) और जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत हुआ है।

भाजपा सांसद शांता कुमार की अध्यक्षता वाली समीति को यह पता चला कि कई लाभार्थियों ने जेएनएनयूआरएम, बीएसयूपी और आईएचएसडीपी की तीन योजनाओं के तहत हुडको द्वारा दिए गए ऋणों से निर्मित इकाइयों पर कब्ज़ा नहीं किया था।

हडको, 100 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी है, मुख्य रूप से सामाजिक आवास क्षेत्र और देश में कोर शहरी आधारभूत संरचना को खड़ा करने के लिए स्थापित की गई थी।

मंत्रालय के सचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली और मध्य प्रदेश में अधिकतम गैर-कब्ज़े वाले आवास हैं।

पैनल ने नोट किया कि घरों की लोगों द्वारा कब्ज़ा न लेने के विवरण से संबंधित अपनी विशिष्ट पूछताछ के जवाब में, हुडको ने केवल इतना कहा था कि घरों के अधिग्रहण का विवरण केवल राज्य सरकारों के पास  उपलब्ध है और कंपनी की भूमिका केवल ऋण सहायता प्रदान करने तक ही सीमित है।

समीति ने महसूस किया कि घरों की गैर-कब्ज़े के प्रति हुडको की उदासीनता सही नहीं है, विशेष रूप से जब देश में आवास की भारी कमी हैI हुडको के इस रुख ने उसके सामाजिक आवास के उद्देश्य को हरा दिया है।

समीति के मुताबिक कंपनी को अपने लिए ऋण के साथ बनाए गए घरों के गैर-अधिग्रहण की समस्या के बारे में जानकारी होनी चाहिए थीI साथ ही इसके संभावित कारणों का विश्लेषण करना चाहिए था और तदनुसार, ऋण लेने वाले एजेंसियों के साथ एक रणनीति तैयार करनी चाहिए थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिन लाभार्थियों के लिए इन घरों का निर्माण किया गया था, वे घरों पर कब्ज़ा ले सकें।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "मंत्रालय इस संबंध में नीतियों का पुनरीक्षण कर सकता है ताकि उपायों का पता लगाने और पहल करने के लिए आवास इकाइयों के बड़े प्रतिशत का अधिग्रहण किया जा सके और तदनुसार नवीनतम राज्यवार कब्ज़े का विवरण के साथ समीति को अवगत कराया जा सके।"

जहाँ तक हुडको की कार्यान्वयन के लिए विभिन्न रियल एस्टेट और आधारभूत संरचना परियोजनाओं के साथ संयुक्त उद्यम साझेदारी कि बात है, समीति ने कंपनी को इन घाटे के संयुक्त युग्मों से जितनी जल्दी हो सके बाहर निकलने की सलाह दी है।

समीति ने कहा कि कुछ हद तक जोखिम लेना ठीक है और कंपनी के लिए महत्वपूर्ण था, हडको को शायद उचित सहारे के लिए संयुक्त उद्यम में शामिल होना चाहिए, साथ ही पर्याप्त काम की प्राप्ति के मामले में वैकल्पिक कार्य योजना भी होनी चाहिए।

(अरुण कुमार दास दिल्ली स्थित पत्रकार हैं और उन्हें [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है)

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