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भारत की दूसरी 'लहर': अल्पकालिक उपाय और कोविड को लेकर लापरवाहियां

'...चाहे स्वास्थ्य से जुड़े उपाय हों या अर्थव्यवस्था और आजीविका से जुड़े उपाय हों,ये सभी उपाय अल्पकालिक रहे हैं,यानी ‘अल्पकालिक अस्पताल की सुविधा,अल्पकालिक अतिरिक्त कॉंट्रैक्ट स्वास्थ्य कार्यकर्ता,अल्पकालिक सार्वजनिक संदेश और सूचना प्रावधान और अल्पकालिक फ़ंडिंग...’
covid

इस समय देश में कोविड-19 के 40,000 से भी ज़्यादा नये मामले लगातार दर्ज किये जा रहे हैं,यह महामारी एक बार फिर से भारत में अपना सर उठा रही है। भारत में यह महामारी सितंबर 2020 के बीच एक दिन में लगभग 98,000 आंकड़ों को छूते हुए शिखर पर पहुंच गयी थी। मामलों में धीरे-धीरे कमी आयी, और फ़रवरी 2021 की शुरुआत में तक़रीबन 7000 मामलों के साथ सबसे कम संख्या को छूने के बाद देश इस मामलों में बढ़ोत्तरी के दूसरे दौर के लिए ख़ुद की तैयार कर रहा है। कुछ राज्यों में तो आधिकारिक तौर पर इसके संक्रमण की दूसरी 'लहर' घोषित कर दी गयी है।

हालांकि,यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका ने पिछले साल अक्टूबर और नवंबर के महीनों के दौरान ही दूसरी लहर का अनुभव कर लिया था,लेकिन भारत अब अपने दूसरे चरण की ओर बढ़ सकता है। वैश्विक स्तर पर कोविड के मामलों के फिर से उभरने और उससे निपटने के अनुभव अलग-अलग रहे हैं, कुछ देश इस बढ़त्तरी की स्थिति से निपटने में सक्षम रहे हैं,तो कई देशों ने बदतर हालात का भी सामना किया है।

हालांकि,जो देश पहली लहर के बाद संक्रमण और मृत्यु दर को कम करने में सक्षम रहे हैं,उनमें चीन और स्लोवाकिया जैसे देश हैं,जिन्होंने ज़ोरदार परीक्षण और मामले पर नज़र रखने का काम शुरू कर दिया था,और फिर क्वारंटाइन करने और इलाज पर ज़ोर दिया था। दूसरी ओर,इस महामारी से एक साल से जूझ रहे भारत में इतना ज़्यादा वक़्त बीत जाने के बाद भी परीक्षण लगातार कम होते जा रहे हैं। तक़रीबन 136 करोड़ की कुल आबादी वाले इस देश में अब तक महज़ 17% आबादी का ही परीक्षण किया गया है। यह और बात है कि परीक्षण के इस आंकड़े में भी फ़र्ज़ी आंकड़ों को शामिल किये जाने की ख़बरें आयी हैं।

मामलों के ग्राफ़-भारत और राज्य

कोविड-19 के नये मामलों की संख्या के लिहाज़ से इस समय के शीर्ष छह राज्य हैं-महाराष्ट्र, पंजाब, केरल, कर्नाटक, गुजरात और तमिलनाडु।

आंकड़ा 1: नये साप्ताहिक मामले-शीर्ष छह राज्य (20 मार्च, 2021 को)

महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में नये मामलों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है,जहां कोविड-19 के नये मामले ने जब पिछले साल जोरदार क़हर ढाया था,उस समय के चरम से भी ज़्यादा स्तर पर इस समय पहुंच गया है। केरल को छोड़कर इनमें से ज़्यादातर राज्यों ने इस मामले में अखिल भारतीय आंकड़ों के ग्राफ़ का ही अनुसरण किया है। उभरते मामलों का सामान्य पैटर्न सितंबर-अक्टूबर 2020 के आसपास चरम पर था,इसके बाद धीरे-धीरे घटकर जनवरी-फ़रवरी 2021 के आसपास कम हो गया,और अब इस साल मार्च में फिर से बढ़ रहा है।

हालांकि,केरल का अनुभव अलग रहा है। अक्टूबर 2020 में केरल में कोविड-19 के मामले चरम पर थे, वे कभी भी एकदम से बहुत कम नहीं हुए। उभरते मामलों की संख्या लगभग सपाट रही और इसमें धीरे-धीरे गिरावट आती रही। जहां देश भर के साप्ताहिक नये मामलों में बढ़ती हुई प्रवृत्ति दिख रही है, वहीं केरल में इनमें गिरावट आ रही है। इसे राज्य सरकार की तरफ़ से अपनाये गये तौर-तरीक़े और सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के निरंतर अनुसरण को भी श्रेय दिया जा सकता है।

दैनिक नये मामलों की सबसे ज़्यादा संख्या वाले ज़िलों को देखते हुए हम पाते हैं कि शहरी और ग्रामीण,दोनों ही के शीर्ष छह ज़िलों की सूची के पूरे के पूरे ज़िले महाराष्ट्र से जुड़े हुए हैं।

तालिका 1: दैनिक नये मामलों के लिहाज़ से शीर्ष छह ज़िले (20 मार्च, 2021 को)

क्या इसे दूसरी लहर कहा जा सकता है ? क्या इसकी प्रकृति में कोई बदलाव आया  है ?

पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) में फ़ैकल्टी,प्रोफ़ेसर सत्यजीत रथ के मुताबिक़, इस महामारी की बढ़ते जाने को 'लहरों' के रूप में देखना इसलिए ठीक नहीं है,क्योंकि आख़िरकार इसकी प्रकृति भी "उसी तरह" की है,और यह उसी तरह 'जल्द ही बढ़ेगा और फिर पूर्व स्थिति' में आ जायेगा; असल में इन दोनों बातों में से कोई भी बात पूरी तरह सही नहीं है।” उनके मुताबिक़, "हालांकि,पूरे देश में इन मामलों की संख्या बढ़ रही है,सभी महामारियों की तरह ये स्थानीय प्रकोपों की एक श्रृंखला का परिणाम हैं ... और आस-पड़ोस के क्षेत्र पिछले साल की 'लहर' में उतने गंभीर रूप से प्रभावित नहीं थे।" इसके बहुत हद तक उसी तरह का फैलने की आशंका है,जिस तरह सांस से जुड़े वायरस महामारी व्यापक रूप से फैलती है। "

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय स्थित सेंटर ऑफ़ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ में फ़ैकल्टी,प्रोफ़ेसर राजीव दासगुप्ता का कहना है,"ज़्यादातर देशों में दूसरी लहर का अनुभव किया गया है, और अनुमान यही है कि यह एक तीव्र श्वसन संक्रमण है, जो आमतौर पर महामारी फ़ैलाने वाले होते हैं,और इसमें उतार-चढ़ाव देखा जाता है। "

प्रभावित क्षेत्रों में कर्फ़्यू और सार्वजनिक स्थनों को बंद करने के एक और दौर की घोषणा की जा रही है और इसे लागू भी किया जा रहा है, महाराष्ट्र जैसे सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य को केंद्रीय टीम की तरफ़ से भेजी गयी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्रामीण और शहरी,दोनों ही क्षेत्रों में लोगों के बीच "कोविड-19 उचित तौर-तरीक़ों" के पालन में कमी और पता लगाने,परीक्षण करने, संक्रमति लोगों को अलग रखने और क्वारंटाइन पर नज़र रखने जैसे ज़रूरी प्रयासों की कमी रही है।

महामारी विज्ञानियों ने यूरोप में इस वायरस के प्रसार को संतुलित करने और सार्वजनिक जीवन में सामान्य स्थिति में लौटने के संघर्ष को दर्शाते हुए, सरकारी प्रतिबंधों और व्यक्तिगत सावधानियों,दोनों में ही ढील दिये जाने को इस दूसरी लहर के लिए बहुत हद तक ज़िम्मेदार ठहराया है। जहां तक भारत का सवाल है,तो प्रोफ़ेसर रथ ने इसे "महामारी को लेकर लापरवाही" कहा है,जिसे वह इसके फैलने की मौजूदा दर के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं। फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग और मास्क के इस्तेमाल करने जैसे उपायों को व्यक्तिगत स्तर पर अपनाये जाने को लेकर कम परवाह दिखायी देती है।

हालांकि,उन्होंने जिस गंभीर थकान या लापरवाही की ओर इशारा किया है, वह "शासन के स्तर पर थकान या फिर ख़्याली पुलाव का एक रूप है,जो इस महामारी को एक अल्पकालिक संकट मानता है।इसका मतलब यह है कि चाहे स्वास्थ्य से जुड़े उपाय हों या अर्थव्यवस्था और आजीविका से जुड़े उपाय,ये तमाम उपाय अल्पकालिक हैं,यानी अल्पकालिक अस्पताल की सुविधा, अल्पकालिक अतिरिक्त संविदा स्वास्थ्य कार्यकर्ता, अल्पकालिक सार्वजनिक संदेश और सूचना प्रावधान और अल्पकालिक फ़ंडिंग।”

भारत में कोविड के प्रकार-किस तरह का संभावित ख़तरा ?

राज्यसभा के एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने बताया कि SARS-CoV-2 के जिन तीन नये प्रकारों को लेकर भारत को जानकारी है,वह चिंता का विषय है और ये प्रकार हैं- यूके संस्करण, दक्षिण अफ़्रीका संस्करण और ब्राजील संस्करण । 4 मार्च 2021 तक कुल 242 सैंपल का भारत में इन विभिन्न प्रकारों के परीक्षण पोज़िटिव आये हैं, लेकिन SARS-CoV-2 वायरस के इन रूपांतरित प्रकार से होने वाले दुबारा संक्रमण का कोई भी मामला भारत से अब तक सामने नहीं आया है।

प्रोफ़ेसर रथ ने बताया,"इस बात की काफ़ी संभावना थी कि आख़िरकार,टीकाकरण की बढ़ती आवृत्तियों (या वास्तव में स्वाभाविक संक्रमण) के चलते वायरस की तादाद में बदलाव आयेगा।" उनका दावा है कि चूंकि मौजूदा प्रकोपों का उभार उन्हीं इलाक़ों में हुआ है,जो पिछले साल गंभीर रूप से प्रभावित नहीं हुए थे; ऐसे में इस बात की संभवावना नहीं है कि इम्यूनिटी प्रतिरोधी वायरस के प्रकार का वहां उभार हुआ हो।

प्रोफ़ेसर दासगुप्ता के मुताबिक़ “कोरोनवायरस नये-नये रूप में आता रहेगा और इसमें बढ़ोत्तरी भी होती रहेगी। अलग-अलग प्रकार के इन रूपों को चिह्नित करने और उनका पता लगाने को लेकर इसके जीनोमिक लक्षण पर लगातार नज़र रखी जा रही है, और ख़ास तौर पर इस बात पर नज़र रखी जा रही है कि क्या नये-नये पैदा हो रहे वायरस के प्रकार ज़्यादा संक्रामक हैं और / या ज़्यादा मृत्यु दर का कारण बनते हैं। ”

भारत में पोज़िटिव यात्रियों से लिये गये नमूनों की जीनोमिक सिक्वेंसिंग और समुदाय से लिये गये पोज़िटिव टेस्ट के नमूनों का पांच प्रतिशत पर काम करने करने के लिए नेशनल सेंटर फ़ॉर डिजीज़ कंट्रोल वाले उन दस क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं की एक जीनोमिक कंसोर्टियम की स्थापना शीर्ष प्रयोगशाला के रूप में की गयी है।

जहां तक वैश्विक स्तर पर इसकी प्रतिक्रिया का सवाल है, तो सरकारी नीति और स्वास्थ्य प्रणालियों के विशेषज्ञ, डॉ चंद्रकांत लहारिया बताते हैं कि महामारी विज्ञानियों और संक्रामक-रोग विशेषज्ञों की चेतावनियों के बावजूद, तमाम देशों में ज़रूरी तैयारी की कमी थी और उन देशों ने तभी क़दम उठाये,जब महामारी ने वहां अपना पांव पसारना शुरू कर दिया, ये देश हमेशा इसी धारणा के शिकार रहे कि वे इससे निपटने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार हैं।

कोविड-19 महामारी के साथ कड़वे अनुभव को देखते हुए डॉ लहारिया ने भविष्य में इस तरह के गंभीर प्रभाव को कम करने को लेकर पिछले सबक को अमल में लाने का आह्वान किया। इकलौती उम्मीद यही है कि आने वाले दिनों में शासन प्रणाली टिकाऊ और दीर्घकालिक समाधान के साथ सामने आये और इस महामारी की बेहतर तैयारियों में ज़्यादा से ज़्यादा निवेश करे।

(इस आलेख के लिए पीयूष शर्मा और पुलकित शर्मा ने आंकड़े जुटाये हैं।)

 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

https://www.newsclick.in/India%E2%80%99s-Second-%E2%80%98Wave%E2%80%99-Of-Short-Term-Measures-and-COVID-Fatigue

 

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