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तालिबान सरकार ने रफ़्तार पकड़ ली है 

अफगनिस्तान में होने वाले घटनाक्रमों की श्रृंखला के तहत इस लेख में मास्को में क्षेत्रीय राज्यों और तालिबान अधिकारियों के बीच हुई हालिया बैठक के संभावित प्रभाव पर एक नजर डालने का प्रयास किया गया है।
Taliban Government Gains Traction
चीन के राज्य पार्षद और विदेश मंत्री वांग यी ने 25 अक्टूबर, 2021 को तालिबान के कार्यवाहक उप-प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर से दोहा में मुलाकात की 

सभी संकेत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि क्षेत्रीय राज्य तालिबान सरकार को मान्यता देने की तैयारियां कर रहे हैं। पिछले बुधवार को क्षेत्रीय राज्यों और तालिबान अधिकारियों के बीच तथाकथित मास्को प्रारूप में हुई वार्ता ने इस बात के संकेत दिए हैं कि तालिबान सरकार के सम्मोहक वास्तविकता है और उसके साथ रचनात्मक जुड़ाव की आवश्यकता है।

राजनीति में एक सप्ताह का वक्त एक लंबा अर्सा होता है। तेहरान में अफगानिस्तान के पडोसी देशों के साथ विदेश-मंत्रियों के स्तर के सम्मेलन में तालिबान सरकार के साथ औपचारिक राजनयिक संबंधों पर विचार-विमर्श होना अवश्यंभावी है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि तालिबान को इस आयोजन में आमंत्रित नहीं किया गया है।

सभी निगाहें चीनी राज्य पार्षद एवं विदेश मंत्री वांग यी पर लगी होंगी। वांग सोमवार को बीजिंग से दोहा के लिए रवाना होते हुए रास्ते में तेहरान से होकर गुजरे जहाँ उन्होंने तालिबान सरकार के शीर्षस्थ नेताओं में से कार्यवाहक उप-प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के साथ बातचीत की। 

सितंबर की शुरुआत में अफगान अंतरिम सरकार की घोषणा के बाद से यह अब तक का सर्वाधिक उच्चतम स्तर का राजनीतिक संपर्क है। यह प्रतीकवाद अपने आप में अत्यंत गहन है कि तालिबान नेतृत्व से परामर्श करने के बाद ही वांग तेहरान सम्मेलन में भाग लेने के लिए जा रहे हैं।

यह देखना भी गौरतलब होगा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनिपिंग ने भी इस सप्ताह की शुरुआत में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से बातचीत की थी। शिन्हुआ की रिपोर्ट ने शी के आह्वान को चीन-पाकिस्तान समुदाय के बीच और भी घनिष्ठ संबंधों के निर्माण के “नए युग में एक साझा भविष्य के साथ” के तौर पर रेखांकित किया है।

अमेरिका के साथ बीजिंग की रणनीतिक प्रतिद्वंदिता के परोक्ष सन्दर्भ में शी ने “दुनिया भर में और भी अधिक अशांति और जोखिमों के स्रोतों के साथ एक सदी में अभी तक के अनदेखे गहन परिवर्तनों” का उल्लेख किया था। शी ने आह्वान किया कि ऐसी परिस्थितियों में चीन और पाकिस्तान को “पहले से कहीं अधिक मजबूती से एकजुट होकर खड़े रहने और सर्वकालिक रणनीतिक सहयोगात्मक साझेदारी को आगे बढ़ाने की जरूरत है।”

शी ने सीपीईसी और आतंकवाद विरोधी एवं सुरक्षा सहयोग को मजबूत किये जाने की जरूरत वाले बिन्दुओं को छुआ। पाकिस्तानी घोषणा ने खुलासा किया है कि दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान सहित क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर भी चर्चा की। 

इसमें कहा गया है कि दोनों पक्षों ने “अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अफगानी लोगों के कष्टों को कम करने, अस्थिरता और लोगों के पलायन को रोकने के साथ-साथ देश के पुनर्निर्माण के लिए निरंतर जुड़ाव को स्थापित करने के लिए तत्काल मानवीय और आर्थिक सहायता प्रदान करने का आह्वान किया है।” 

इमरान खान के साथ शी की बातचीत निश्चित तौर पर सोमवार को वांग की दोहा में मुल्ला बरादर के साथ हुई संरचित चर्चा के अनुरूप हुई होगी। 

दोहा बैठक पर चीनी विदेश मंत्रालय के द्वारा वांग की टिप्पणी पर प्रकाश डाला गया है कि “अफगानिस्तान, जो आज के दिन अराजकता के माहौल से शासन में तब्दील होने के महत्वपूर्ण दहलीज पर खड़ा है, के समक्ष वर्तमान में अपने स्वंय के भाग्य का सही मायने में मालिक बनने के साथ-साथ समावेशी और सुलह हासिल करने और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने का सुनहरा अवसर मौजूद है।”

वांग ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से तालिबान सरकार के समक्ष मौजूद “चतुर्दिक चुनौतियों – मानवीय संकट, आर्थिक अराजकता, आतंकवादी खतरों और शासन चलाने में कठिनाइयों से निपटने के लिए “और अधिक समझ और समर्थन” की अनिवार्य आवश्यकता को स्वीकार किया।

वांग ने तालिबान सरकार के सामने चीनी अपेक्षाओं को सूचीबद्ध किया है और “सभी पक्षों से अफगानिस्तान के साथ तर्कसंगत और व्यावहारिक तरीके से जुड़ने का आह्वान किया है ताकि अफगानिस्तान को स्वस्थ तरीके से विकास के पथ पर चलने में मदद मिल सके।”

महत्वपूर्ण तौर पर, उन्होंने बीजिंग की उम्मीद को दोहराया कि तालिबान ईटीआईएम और अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ अपने संबंधों को “स्पष्ट रूप से तोड़ देगा” और “उन पर सख्ती से कार्यवाई करने के लिए प्रभावी उपायों को अपनायेगा ।”

चीनी घोषणा ने बरादर के इस दावे पर प्रकाश डाला है कि “अफगानिस्तान में कुलमिलाकर स्थिति नियंत्रण में है और इसमें सुधार होने के साथ-साथ सभी स्तरों पर सरकारें धीरे-धीरे स्थापित हो रही हैं और सरकारी आदेशों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है।”

इसने बरादर की दृढ प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया कि तालिबान “ऐतिहासिक अनुभव से सीख ग्रहण करेगा”। इसके अलावा तालिबान सरकार “शासन के प्रतिनिधित्व को विस्तारित करने के लिए समावेशी उपायों को अपनाना जारी रखेगा”; “सभी जातीय समूहों के प्रतिभाशाली कर्मियों को अधिक संख्या में” भर्ती और शामिल करेगा”; “महिलाओं और बच्चों के अधिकारों और हितों की रक्षा के प्रयासों को मजबूत करेगा, और उन्हें शिक्षा और काम के अधिकारों से वंचित नहीं रखेगा।”

दिलचस्प रूप से बरादर ने अपने कथन में आगे कहा कि “फिलहाल, महिलाओं ने एक बार फिर से चिकित्सा संस्थानों, हवाई अड्डों और अन्य स्थानों पर अपने काम पर जाना शुरू कर दिया है, और कई प्रान्तों के प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में पढने वाली लड़कियाँ स्कूल लौट आई हैं, लेकिन उन्हें अभी भी सुविधाओं और धन की कमी जैसी कठिनाइयों से दो-चार होना पड़ रहा है।” 

मामले की जड़ में यह है कि वांग ने तालिबान सरकार के नेतृत्वकारी हिस्से से सर्वोच्च स्तर पर सुना है कि “चीन के प्रति एक मैत्रीपूर्ण नीति का पालन करना अफगान तालिबान के लिए दृढ विकल्प है, और अफगान विभिन्न क्षेत्रों में चीन के साथ सहयोग को मजबूती प्रदान किये जाने की उम्मीद करता है। अफगान तालिबान, जो चीन की सुरक्षा चिंताओं को बेहद अहमियत देता है, अपने वादे को पूरी दृढ़ता से पालन करने को सम्मान देगा और किसी को भी या किसी भी ताकत को कभी भी चीन को नुकसान पहुंचाने के लिए अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देगा।”

निश्चित ही, स्थितियां कमोबेश बीजिंग के लिए तालिबान सरकार को मान्यता देने के लिए आगे बढने के लिए अनुकूल हैं, बशर्ते वह ऐसा तय करता है।

सर्वोतम अफगान रणनीति के लिए यह उपयोगी है कि काबुल के साथ जल्द से जल्द औपचारिक तौर पर सरकार-से-सरकार स्तर के संबंधों को बहाल किया जाए ताकि मानवीय सहायता के साथ-साथ, बीजिंग सुरक्षा सहयोग को भी चाक-चौबंद किया जा सके और बेल्ट एंड रोड पहल की परिधि के भीतर अफगान पुनर्निर्माण के लिए गेंद को लुढ़कने के लिए छोड़ा जा सके।

इसे सुनिश्चित करने के लिए, लुब्बोलुआब यह है कि चीन (सहित मध्य एशियाई राज्यों और ईरान) इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि यदि आईएसआईएस और अन्य आतंकी समूहों को खत्म करने की लड़ाई को प्रभावी बनाना है तो इसके लिए तत्काल तालिबान सरकार के हाथों को मजबूत करने की आवश्यकता है।

24 अक्टूबर को ईरान की सीमा के पास उत्तर-पश्चिमी अफगानिस्तान में हेरात में तालिबान और आईएसआईएस उग्रवादियों के बीच हुई मुठभेड़ इस उभरते सुरक्षा हालात की गंभीरता की गवाही देते हैं।

क्या तालिबान सरकार को मान्यता देने के मामले में रूस चीन के साथ जायेगा? इसका संक्षिप्त उत्तर है ‘अभी नहीं।’ विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने बुधवार को तेहरान की यात्रा पर जाने में अपनी असमर्थता जताई है।

हालाँकि, अफगानिस्तान मामलों पर रुसी राष्ट्रपति के दूत ज़मीर कबुलोव ने कल स्वीकार करते हुए कहा “इस बात में कोई संदेह नहीं है कि यह (मास्को प्रारूप की बातचीत) नए शासन को मान्यता देने की प्रकिया को शुरू करने के लिए अच्छा आधार मुहैय्या कराता है।” उन्होंने खुलासा किया कि मजार-ए-शरीफ़ में रुसी वाणिज्यिक दूतावास को फिर से खोलने की चर्चा चल रही है।”

रूस मान्यता देने पर क्षेत्रीय सहमति के साथ सहानुभूति रख सकता है लेकिन इसके अपने कानून की पुस्तकों में पुरातन कानून तालिबान के साथ किसी भी प्रकार की औपचारिक सौदेबाजी को प्रतिबंधित करता है। राष्ट्रपति पुतिन ने उम्मीद जताई है कि वह दिन दूर नहीं जब इस कानून से पीछा छुड़ा लिया जायेगा।

मास्को और बीजिंग का इस बारे में एक समन्वित दृष्टिकोण होना चाहिए कि तालिबान सरकार की मान्यता को किसी “बंद मानसिकता” की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। इस बीच, रूस अपने पालतू परियोजना ‘ट्रोइका प्लस’ पर सवार है, जो अमेरिका के साथ सहयोग के दरवाजे को खुले रखने के विचार को बनाये रखता है, जिसे तालिबान सकारात्मक नजर से देखता है।

इसके साथ ही मास्को की निगाहें यूरोपीय संघ के द्वारा अगले महीने तक काबुल में मिशन को फिर से खोले जाने की सक्रिय योजना पर भी टिकी होगी।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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