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उज्ज्वला गैस योजना को लेकर भी सरकार ने झूठ बोला!
संसद में बजट सत्र के दौरान वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि उज्ज्वला योजना के तहत अब तक 6 करोड़ मुफ्त गैस कनेक्शन दिए जा चुके हैं, लेकिन वास्तव में सच्चाई यह है कि सरकार द्वारा मुफ्त कुछ नहीं दिया जा रहा है, बल्कि प्रत्येक कनेक्शन की आधी कीमत यानी 1600 रुपये गैस कनेक्शन लेने वाले को वहन करनी होती है।
पीयूष शर्मा
06 Feb 2019
सांकेतिक तस्वीर

केंद्र सरकार ने ‘उज्ज्वला’ को अपनी महत्वाकांक्षी योजना के तौर पर पेश किया है। इसमें कोई शक नहीं कि उज्ज्वला योजना में बड़ी संख्या में गैस कनेक्शन बांटे गये हैं, परन्तु धरातल पर स्थिति दूसरी ही है। उज्ज्वला योजना में एकवर्ष में औसत 4 सिलेंडर से भी कम उपयोग हो रहे हैं। यह संख्या सामान्य उपभोक्ताओं के सिलेंडर उपयोग का आधा है। इसके साथ ही 6.23 करोड़ कनेक्शन के कुल खर्च का 68 फ़ीसदी यानी 13,658 करोड़ रुपये खुद उपभोक्ताओं ने वहन किये, दाम बढ़ने से सिलेंडर उपयोग करने में गिरावट, डिस्ट्रीब्यूटरों की कम संख्या आदि तथ्य योजना की अलग ही तस्वीर पेश करते हैं।

संसद में बजट सत्र के दौरान वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि उज्ज्वला योजना के तहत अब तक 6 करोड़ मुफ्त  गैस कनेक्शन दिए जा चुके हैं, लेकिन वास्तव में सच्चाई यह है कि सरकार द्वारा मुफ्त कुछ नहीं दिया जा रहा है, बल्कि प्रत्येक कनेक्शन की आधी कीमत यानी 1600 रुपये गैस कनेक्शन लेने वाले को वहन करनी होती है।

4 फरवरी, 2019 को लोकसभा में एक सवाल का उत्तर देते हुए पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने बताया कि 28 जनवरी 2019 तक उज्ज्वला योजना के तहत 6.23 करोड़ कनेक्शन जारी किये गये हैं जिनके लिए उपभोक्ताओं द्वारा 9,968 करोड़ रुपये खुद दिए हैं। योजना के अंतर्गत सरकार द्वारा केवल जमानत राशि में छूट दी जाती हैं। इसके साथ ही 1 करोड़ 3 लाख लोगों ने सब्सिडी छोड़ी है। सब्सिडी छोड़ने से जो बचत हुई उस धनराशि का प्रयोग उज्ज्वला योजना में कनेक्शन देने में हुआ है। इंडेंन व भारत गैस की वेबसाइट पर दिए आंकड़ो के अनुसार इससे 3690 करोड़ रुपयों की बचत हुई है (इसमें HP गैस की बचत शामिल नहीं हैं। इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।) इस प्रकार 13,658 करोड़ रुपये तो सीधे तौर पर जनता द्वारा दिए गये हैं। यह राशि 6.23 करोड़ कनेक्शन की कुल लागत (19,936 करोड़ रुपयों) का 69 प्रतिशत हैं यानी उज्ज्वला का अधिकांश खर्चा तो खुद जनता द्वारा उठाया गया है। मुफ्त कनेक्शन देना तो मोदी सरकार का एक खोखला दावा है।

उज्ज्वला योजना में सबसे महत्वपूर्ण सवाल इसके दोबारा रिफिल कराने और सक्रिय कनेक्शनों का है। अभी तक योजना में जारी किये गये कनेक्शन में एक साल रिफिल कराने का औसत 4 भी नहीं है। राज्यसभा में 6 फरवरी, 2019 को एक सवाल के जवाब में पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान उज्ज्वला योजना और सामान्य (गैर उज्ज्वला) लाभार्थियों की औसत रिफिल खपत क्रमश: 3.4 और 7.3 थी।  

इससे पूरी तरह साफ है कि उज्ज्वला के उपभोक्ता एक साल में मुश्किल से 4 सिलेंडर भी प्रयोग नही कर पा रहे हैं। योजना के एक लाभार्थी प्रेमवती  ने बताया कि उन्हें 2 साल पहले कनेक्शन मिला तब से उन्होंने मात्र 5 सिलेंडर ही रिफिल किये हैं। इसके साथ ही यदि 6 माह तक गैस रिफिल न कराया जाए तो कनेक्शन निष्क्रिय हो जाता है और उसको सक्रिय करने के लिए गैस एजेंसी जाकर फिर से डाक्यूमेंट्स देने पड़ते हैं।

gas1.jpg

योजना के तहत बहुत कम गैस रिफिल कराने के आंकड़े दर्शाते हैं कि मोदी सरकार का असली मकसद वाहवाही लूटना ज्यादा है| दरअसल इस योजना को लागू करने और टारगेट को पाने के लिए लेकर केंद्र सरकार ने हड़बड़ी दिखाई है| सरकार का पूरा जोर गैस कनेक्शन देने और प्रचार-प्रसार पर है, इस बात पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि बांटे गये गैस कनेक्शनों का जमीनी स्तर पर उपयोग कितना हो रहा है|

टारगेट को पाने और वाहवाही लूटने के चक्कर में सरकार ने कनेक्शन बांटने के आलावा किसी और चीज पर ध्यान नहीं दिया और अब हड़बड़ी में योजना लागू करने का विपरीत असर दिखाई देने लग गया है। उज्ज्वला योजना लागू करने से पहले केंद्र सरकार ने क्रिसिल से एक सर्वे कराया था जिसमें 86 प्रतिशत लोगों ने बताया था कि वे गैस कनेक्शन महंगा होने की वजह से इसका प्रयोग नहीं करते हैं जबकि 83 प्रतिशत लोगों ने सिलेंडर महंगा होना भी कारण बताया था। इस सर्वे में सिलेंडर मिलने में ज्यादा लगने वाला समय और दूरी, कनेक्शन मिलने की प्रक्रिया आदि प्रमुख बाधाएँ सामने आईं थी परन्तु केंद्र सरकार ने कनेक्शन लेने की समस्या को छोडकर किसी अन्य बाधा पर ध्यान नहीं दिया बल्कि कनेक्शन लेने में भी आधी कीमत भी उपभोक्ता से ली गयी। और सिलेंडर सस्ता करने की बजाय और महंगा कर दिया गया। 

सिलेंडर की कीमत ज्यादा होने से उज्ज्वला योजना के उपभोक्ताओं के लिए सिलेंडर खरीदना बहुत मुश्किल होता है, एक तो गैस सिलेंडर के दाम ज्यादा हैं और उनको सब्सिडी भी सिलेंडर खरीदने के बाद बैंक में वापस आती है तो उनके लिए एकमुश्त 700-800 रुपये देना मुश्किल होता है जिसके कारण वो फिर से लकड़ी या गोबर के इंधन को प्रयोग कर रहे हैं। सरकार द्वारा ज्यादा कीमत का उपाय निकाला गया कि 5 किलो के सिलेंडर दिए जाएं परन्तु यह उपाय इतना कारगार नहीं हैं क्योंकि सिलेंडर जल्द ही खत्म हो जायेगा और बार-बार भराने के लिए आने-जाने से उपयोग की कीमत और बढ़ जाएगी।

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले की भारत गैस एजेंसी मालिक ने हमें बताया कि उनके पास 20 हजार गैस कनेक्शन हैं जिसमें से उज्ज्वला योजना के करीब 8000 गैस कनेक्शन हैं। उनका कहना है कि उज्ज्वला के तहत गैस कनेक्शन तो आधी कीमत पर मिल गये हैं परन्तु गैस सिलेंडर के दाम ज्यादा होने के कारण लोगों को गैस भरवाने में परेशानी होती है। उन्होंने बताया कि उनके यहाँ से जारी किये कनेक्शन में से लगभग 50 फ़ीसदी ही सिलेंडर भरवा पा रहे हैं और ये भी साल में औसतन 4 सिलेंडर ही भरवा पा रहे हैं जबकि जो योजना में शामिल नहीं हैं उनका औसत 12 सिलेंडर प्रतिवर्ष का है।

इसी तरह से समय पर सिलेंडर डिलीवरी को लेकर ध्यान नहीं दिया गया है। वर्तमान में देश में 22,328 एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर हैं और कुल 25.12 करोड़ एलपीजी उपभोक्ता है। इस प्रकार एक डिस्ट्रीब्यूटर पर 11 हजार से अधिक उपभोक्ता हैं। अगर इतनी बड़ी संख्या में एक डिस्ट्रीब्यूटर पर उपभोक्ता होंगे तो उनको समय पर सिलेंडर की डिलीवरी करने के आलावा तमाम और तरह की समस्याएँ आएँगी। हालाँकि ऑइल मार्केटिंग कम्पनियों ने पूरे देश में 6400 और डिस्ट्रीब्यूटर बनाने के लिए विज्ञापन दिया है परन्तु इसके बाद भी करीब प्रति डिस्ट्रीब्यूटर 9000 उपभोक्ता औसतन रहेंगे। डिस्ट्रीब्यूटर को सिलेंडर घर तक पहुचाना होता है और इसके लिए उन्हें बिक्री मूल्य के साथ 19.50 रुपये सुपुर्दगी प्रभार (घर तक पहुचाने का खर्चा) भी मिलता है पर इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता गैस गोदाम या किसी पास के कस्बे से खुद सिलेंडर लेकर आते हैं। और इस वजह से उपभोक्ता को अपना काम या मजदूरी छोड़ कर सिलेंडर लेने जाना पड़ता हैं। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार को बड़े स्तर पर नये डिस्ट्रीब्यूटर बनाने की जरूरत है ताकि उपभोक्ताओं को घर के पास ही समय पर सिलेंडर मिल सके।

सरकार ने गैस कनेक्शन महंगा होने की समस्या की तरफ ध्यान दिया था और इसका असर साफ़ दिखाई पड़ रहा है। बड़ी संख्या में लोगों की एलपीजी कनेक्शन लेने की बाधा दूर हुयी है लेकिन क्रिसिल द्वारा बताई गयी अन्य बाधाएं ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। लोगों को कनेक्शन मिले हैं लेकिन इनके उपयोग का सवाल बना हुआ है।

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महंगे सिलेंडर का असर केवल उज्ज्वला योजना के उपभोक्ताओं पर ही नही बल्कि सामान्य उपभोक्ताओं पर भी पड़ा है। देश के सभी क्षेत्रों में ओएमसी के सक्रिय ग्राहकों की प्रति व्यक्ति एलपीजी की औसत खपत में भी कमी आई है। 2014-15 में देश प्रति ग्राहक सिलेंडर की औसत संख्या 7.7 थी जो 2017-18 में घटकर 6.8 हो गयी है। जो यह दर्शता है कि दाम बढ़ने से उपभोक्ता कम प्रयोग करने लग गये हैं।

मौजूदा चुनौती उज्ज्वला स्कीम में मिले गैस सिलेंडर रिफिल व सक्रिय गैस कनेक्शनो की है। गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति देश में अच्छी नही हैं। देश में बड़ी संख्या परिवार का खर्चा बड़ी मुश्किल से चल पाता है। लोगों की इतनी आय नहीं है कि प्रतिमाह 700 से 800 रुपये गैस सिलेंडर पर खर्च कर सके। सरकार के क्रिसिल सर्वे में भी यह बात निकलकर आई थी कि देश में घर के लिए इंधन पर प्रतिमाह 358 रुपये खर्च होते हैं ऐसे में कैसे एक परिवार वर्तमान में इंधन पर खर्च कर रहे रकम का दुगना खर्च कर सकता हैं।  

रंगराजन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 32 रुपये से कम (972 रुपये महीना) और शहरी क्षेत्रों में रोजाना 47 रुपये (1407 रुपये महीना) से कम खर्च करने वाले परिवारों को गरीबी रेखा के नीचे माना हैं। और रंगराजन कमेटी से अभी तक कोई खास बदलाव नहीं आया है। ऐसे में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवार किस तरह से इतने महंगे सिलेंडर भरवा पाएंगे।

कनेक्शन की आधी कीमत 1600 (प्रति कनेक्शन) लेकर और मुफ्त में सिलेंडर देने का ढिंढोरा पीटने से काम नहीं चलने वाला है। इससे सरकार अपने आप अपनी वाहवाही तो कर लेगी लेकिन इससे मूल मकसद हल नहीं होगा। अगर वाकई में मोदी सरकार चूल्हे और धुएं से निजात दिलवाना चाहती है तो सिलेंडर बांटने के साथ ही कम कीमत और इसके इस्तेमाल में आने वाली बाधाओं को भी प्राथमिकता से दूर करना होगा।  

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