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यूपी : ‘न्यूनतम अपराध’ का दावा और आए दिन मासूमों साथ होती दरिंदगी!

आज़मगढ़ में आठ साल की मासूम बच्ची की दुष्कर्म और फिर हत्या की ख़बर के बाद अब बुलंदशहर में 13 साल की नाबालिग के साथ रेप और गला दबाकर मारने की कोशिश का मामला सामने आया है।
bulandshahr
image credit- Social media

यूपी में ‘न्यूनतम अपराध' का दावा करने वाली बीजेपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार आए दिन किसी न किसी महिला हिंसा की खबर को लेकर सुर्खियों में बनी ही रहती है। आज़मगढ़ में आठ साल की मासूम बच्ची की दुष्कर्म और फिर हत्या की खबर के बाद अब बुलंदशहर में 13 साल की नाबालिग के साथ रेप और गला दबाकर मारने की कोशिश का मामला सामने आया है। ये महज़ कुछ घटनाएं नहीं हैं, ये यूपी सरकार के शासन-प्रशासन के 'रामराज्य' की स्याह तस्वीर पेश करती कड़वी सच्चाई है।

पूरा मामला क्या है?

मीडिया में आई जानकारी के अनुसार, बुलंदशहर के अहमदगढ़ थाना क्षेत्र के गांव में 15 अक्टूबर को 13 साल की किशोरी अपने घर पर खेल रही थी। मां-बाप काम से खेत पर गए थे। इसी दौरान एक अधेड़ उम्र का शख्स घर में किशोरी को अकेला देख घुस आया। इसके बाद उसने किशोरी के साथ रेप किया और उसका गला दबाकर मारने की कोशिश की। किशोरी जब बेहोशी की हालत में हुई तो आरोपी मौके से फरार हो गया।

गंभीर हालत में पुलिस ने बच्ची को दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया था, जहां उसका इलाज चल रहा है। बताया जा रहा है कि बच्‍ची के शरीर पर कई चोट के निशान थे। तो वहीं, दिमाग में चोट लगने के कारण उसे न्‍यूरो संबंधी समस्‍याएं भी हैं।

पुलिस का क्या कहना है?

इस मामले पर बुलंदशहर एसएसपी संतोष कुमार सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि पुलिस ने परिवार वालों की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर लिया है और आरोपी को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। इसके अलावा पीड़िता के मेडिकल परीक्षण में भी रेप की भी पुष्टि हुई है। पुष्टि होने के बाद एफआईआर में धारा 376 जोड़ी गई है। इस मामले में वैधानिक कार्रवाई की जा रही है। इसके अलावा लक्ष्मीबाई योजना में आर्थिक मदद के लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।
 

पुलिस के मुताबिक इस मामले में आरोपी 45 वर्षीय एक शख्स है जो पीड़िता के घर के पास ही रहता है और उसके पिता का जानकार भी है। जिस समय घटना को अंजाम दिया गया उस वक्त बच्ची घर पर अकेली थी।

डीसीडब्ल्यू ने योगी को लिखा पत्र

दिल्ली महिला आयोग की अध्‍यक्ष स्‍वाति मालीवाल ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए अस्पताल में इलाज करवा रही पीड़ित बच्ची से मुलाकात की। मुलाकात के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर मामले में सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि आयोग पीड़िता की हर संभव मदद करेगा।

स्‍वाति ने इस मामले में दर्ज हुई एफआईआर पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि बच्‍ची के साथ भयावह तरीके से रेप हुआ है और उसे जान से मारने की कोशिश की गई है लेकिन यूपी पुलिस ने एफआईआर में रेप की धारा ही नहीं लगाई।

स्वाति मालीवाल ने अपने पत्र में सीएम योगी आदित्यनाथ से लापरवाही बरतने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ एक्‍शन की मांग करते हुए पीड़िता के लिए उचित मुआवजा और पुनर्वास योजना तैयार करने की बात भी कही है। इसके साथ ही इस मामले को फास्‍ट ट्रैक कोर्ट में ले जाने की भी अपील की है ताकि दोषी को जल्‍द से जल्‍द कड़ी सजा दी जा सके।

डीसीडब्ल्यू प्रमुख ने मीडिया से बातचीत में कहा, "लड़की से मिलने के बाद से मैं बेहद व्यथित हूं। डॉक्टरों ने मुझे सूचित किया है कि वह बहुत गंभीर स्थिति में है। आखिर कब तक हमारी लड़कियों को इस तरह से प्रताड़ित किया जाएगा?”

महिला सुरक्षा के मामले पर लगातार योगी सरकार विफल

गौरतलब है कि प्रदेश में महिला सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे करने वाली योगी सरकार के राज में यह कोई पहली बलात्कार की घटना नहीं हैं जो उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था और प्रशासन की संवेदनहीनता पर सवाल खड़े करती हो। बीते साल ही बहुचर्चित हाथरस कांड में भी पुलिस की भूमिका पर कई सवाल खड़े हुए थे। तब भी पुलिस पर मामले को गंभीरता से न लेने का आरोप था। घटना के 10 दिन बाद तक पुलिस ने किसी की गिरफ़्तारी नहीं की थी। इतना ही नहीं पुलिस और प्रशासन पर पीड़िता के परिवार की सहमति के बिना ही उसका अंतिम संस्कार किए जाने का भी गंभीर आरोप है।

योगी सरकार इस मोर्चे पर लगातार विफल ही नज़र आती है। ऊपर से बीते कुछ समय में खस्ता कानून व्यवस्था और शासन-प्रशासन की पीड़ित को प्रताड़ित करने की कोशिश, बलात्कार और हत्या जैसे संवेदशील मामलों में एक अलग ही ट्रैंड सेट करता दिखाई पड़ रहा है।

एनसीआरबी के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में अभी भी पहला स्थान उत्तर प्रदेश का ही है। साल 2020 में देशभर में महिलाओं के खिलाफ कुल 3,71,503 मामले दर्ज किए गए। जिसमें यूपी से ललगभग 50 हजार मामले सामने आए। साल 2019 में देश भर में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले कुल अपराधों में क़रीब 15 फ़ीसद अपराध यूपी में हुए हैं। हालांकि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश का आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से कम रहा है। साल 2019 में इस मामले में देश का कुल औसत 62.4 फ़ीसद दर्ज किया गया जबकि उत्तर प्रदेश में यह 55.4 फ़ीसद ही रहा।

महत्वपूर्ण बदलाव के बावजूद देश में बलात्कार के मामलों में कोई कमी नहीं

यूं तो सिर्फ यूपी ही नहीं पूरे देश की स्थिति यही है। निर्भया कांड के बाद जनता के फूटे गुस्से के चलते भारतीय दण्ड संहिता में हुए महत्वपूर्ण बदलाव के बावजूद देश में बलात्कार के मामलों में कोई कमी नहीं आई है। आज भी परिस्थिति ज्यों कि त्यों हैं। राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो के 2019 की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर रोज़ 88 बलात्कार की घटनाएँ सामने आती हैं। अगर और ध्यान से इन आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि स्थिति इतनी भयावह है कि 88 महिलाओं में से 14 नाबालिग लड़कियां होती हैं। बलात्कार के मामलों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान के बाद, दूसरे नंबर पर है, जहाँ हर रोज़ करीबन 17 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएँ सामने आती हैं।

यह सिर्फ इसी मामले की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे देश की स्थिति दिखाने वाले आधिकारिक आंकड़े हैं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ती जा रही है लेकिन जब मामले दर्ज होते हैं तो अदालतों में उन पर सुनवाई पूरी होने में सालों लग जाते हैं और उसके बाद भी बहुत ही कम मामलों में जुर्म साबित होता है और मुजरिम को सजा होती है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में रोज कम से कम 88 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं लेकिन इनमें अपराध सिद्धि यानी कन्विक्शन की दर सिर्फ 27.8 प्रतिशत है।

यानी हर 100 मामलों में से सिर्फ करीब 28 मामलों में अपराध सिद्ध हो पाता है और दोषी को सजा हो पाती है। इस मामले में सबूत पर्याप्त जुटाए गए हैं या नहीं और पुलिस की जांच विश्वसनीय है या नहीं यह तो बाद में ही पता चल पाएगा, क्योंकि अभी इस मामले का अंत नहीं हुआ है। न ही अंत हुआ है महिलाओं के खिलाफ शासन-प्रशासन के लापरवाही भरे रवैये का, जो पीड़ित को शारीरिक के साथ साथ मानसिक कष्ट भी देती है।

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