Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

सीआईए प्रमुख का फ़ोन कॉल प्रिंस मोहम्मद के साथ मैत्रीपूर्ण बातचीत के लिए तो नहीं ही होगी, क्योंकि सऊदी चीन के बीआरआई का अहम साथी है।
saudi and US
प्रतिकात्मक फ़ोटो | साभार: फ़्लिकर

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस प्रिंस मोहम्मद बिन सुल्तान के साथ सीआईए प्रमुख विलियम बर्न्स की कथित बैठक के तक़रीबन तीन हफ़्ते बाद गुरुवार को ओपेक प्लस का एक मंत्रिस्तरीय वीडियो सम्मेलन आयोजित किया गया।

ओपेक प्लस के इस मंत्रिस्तरीय बैठक में इस बात पर संतोष जताया गया कि "तेल बाज़ार के बुनियादी सिद्धांत और नज़रियों पर बनी यह आम सहमति एक संतुलित बाजार की ओर इशारा करते हैं।" वियना में जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि मंत्रिस्तरीय इस बैठक में "भू-राजनीतिक कारकों और चल रही महामारी से जुड़े मुद्दों के लगातार हो रहे असर पर ग़ौर  किया गया" और फ़ैसला लिया गया कि जून 2022 के महीने को लेकर मासिक समग्र उत्पादन को 0.432 मिलियन बैरल/दिन से ऊपर समायोजित करने के सिलसिले में ओपेक प्लस की जो पिछले साल जुलाई में सहमति बनी थी,वह मासिक उत्पादन समायोजन व्यवस्था बनी रहेगी।

जर्नल करेन इलियट हाउस के पूर्व प्रकाशक के मुताबिक़, बर्न्स सऊदी अरब प्रिंस मोहम्मद के साथ "पिंगे बढ़ाने" के लिए आये थे ,यानी कि उनका मक़सद था कि "यूरोपीय देशों को ऊर्जा की कमी से बचाने की ख़ातिर उत्पादन बढ़ाने के लिए" सुरक्षा के लिहाज़ से तेल की नयी रणनीति पर प्रिंस को सहयोग करना चाहिए।

सऊदी ख़ुफ़िया प्रमुख और ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के उप प्रमुख के बीच बग़दाद में सऊदी-ईरान के बीच के रिश्ते को सामान्य करने के लिए आयोजित वार्ता के 5 वें दौर से ठीक पहले बर्न्स की यह किंगडम यात्रा हुई है। मध्यस्थ के रूप में कार्य कर रहे और नवीनतम दौर की वार्ता में भाग ले रहे इराक़ी प्रधान मंत्री मुस्तफ़ा अल-काधेमी ने पिछले हफ़्ते सरकारी मीडिया से बताया, "सऊदी अरब और ईरान के हमारे भाई मौजूदा क्षेत्रीय स्थिति की मांग की ज़रूरत के हिसाब से एक बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ बातचीत कर रहे हैं। हमें भरोसा है कि सुलह नज़दीक है।"

ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद से जुड़ा नोरन्यूज़ ने 24 अप्रैल को यह भी बताया था कि दोनों देशों के बीच के रिश्ते के संभावित सुधार को लेकर पांचवें दौर की यह वार्ता "रचनात्मक" है और वार्ताकार द्विपक्षीय सम्बन्धों को फिर से शुरू करने के तरीक़े के बारे में "एक स्पष्ट तस्वीर खींचने" में कामयाब रहे हैं, और " अब तक के रचनात्मक द्विपक्षीय संवाद को देखते हुए निकट भविष्य में ईरानी और सऊदी शीर्ष राजनयिकों के बीच बैठक होने की संभावना है।

बर्न्स का यह मिशन तेहरान के साथ सउदी के सुलह के रास्ते पर चल रही इस वार्ता को लेकर उदासीन नहीं हो सकता। वियना में जेसीपीओए वार्ता के नतीजे अनिश्चित होने के चलते रूस और चीन के साथ ईरान के घनिष्ठ सम्बन्ध वाशिंगटन के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। इसके अलावे, तेहरान के अमेरिकी क्षेत्रीय रणनीतियों के अनुरूप अपनी क्षेत्रीय नीतियों में किसी भी तरह की काट-छांट को लेकर इनकार के साथ वाशिंगटन अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के ईरान विरोधी मोर्चे को पुनर्जीवित करने के डिफ़ॉल्ट ऑप्शन पर फिर से वापस आ गया है। अमेरिका को उम्मीद है कि सऊदी अरब अब्राहम समझौते में शामिल होगा।

इस बीच तेल की क़ीमतों का मुद्दा फिर केंद्र में आ गया है। दरअसल, तेल की ऊंची क़ीमत होने का मतलब ही यही है कि रूस की आमदनी में बढ़ोत्तरी होगी। आसमान छूती क़ीमतों के परिणामस्वरूप रूस के तेल और प्राकृतिक गैस की बिक्री 2021 के उस शुरुआती पूर्वानुमानों से कहीं ज़्यादा है, जो देश के कुल बजट का 36 प्रतिशत है। यह राजस्व प्रारंभिक योजनाओं को 51.3% से ज़्यादा,यानी कि कुल 119 बिलियन अमेरीकी डॉलर से पार कर जा रहा है।

रूसी अर्थव्यवस्था को पंगु बनाने को लेकर बाइडेन प्रशासन की बनायी गयी योजनायें अब सामने आने लगी हैं। इसी तरह तेल की ऊंची क़ीमत भी बाइडेन के लिए घरेलू मुद्दा है। सबसे बढ़कर, जब तक यूरोप को अन्य तेल स्रोत नहीं मिल जाते,तबतक वह रूसी तेल खरीदना जारी रखेगा।

हालांकि, प्रिंस मोहम्मद का एजेंडा कुछ और है। सऊदी अरब पर उसकी हुक़ूमत करने की संभावना कई दशकों तक की है, अगर वह अपने पिता की उम्र,यानी कि 86 साल तक जीवित रहते हैं,तो उनकी हुक़ूमत आधी सदी तक चलेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रिंस "सत्ता का आधार" बना पाने में उल्लेखनीय रूप से कामयाब रहे हैं। उनकी जीवनशैली में आये बदलाव सऊदी अरब के 35 साल की 70% आबादी वाले नागरिकों के बीच जबरदस्त रूप से लोकप्रिय रही है और सऊदी अरब को एक आधुनिक तकनीक से लैस देश में बदलने की उनकी महत्वाकांक्षा नौजवानों की परिकल्पना को प्रज्वलित करती रही है।

साफ़ है कि रूस को दंडित करने से इनकार किये जाने और डोनाल्ड ट्रम्प के दामाद जेरेड कुशनर की ओर से शुरू किये  गये एक नये अप्रयुक्त निवेश कोष में 2 बिलियन डॉलर की शानदार रक़म रखने का उनका इशारा ख़ुद-ब-बख़ुद बहुत कुछ बयां कर देता है। प्रिंस मोहम्मद के भी अपने कारण होंगे, जिसकी शुरुआत बाइडेन की ओर से सऊदी अरब को "ख़ारिज" देश के रूप में तिरस्कार करने और निजी तौर पर व्यावहार किये जाने से इनकार करने से होती है।

प्रिंस ने हाल ही में जो बाइडेन से फ़ोन पर बातचीत से इनकार करते हुए पलटवार किया था। इसके अलावा, हथियारों की बिक्री पर अमेरिका का प्रतिबंध; हूती बलों की ओर से सऊदी अरब पर होने वाले हमलों को लेकर अपर्याप्त प्रतिक्रिया; जमाल ख़शोगी की 2018 की हत्या में एक रिपोर्ट का सामने आना –इन सभी खेलों का खेल यहां खेला जा रहा है।

भले ही अमेरिकी प्रशासन सऊदी अरब के लिए नयी सुरक्षा गारंटी को लेकर कांग्रेस की मंज़ूरी पाने में सक्षम हो (जो कि मुश्किल है), लेकिन इससे प्रिंस मोहम्मद को प्रभावित इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि आख़िरकार तेल की ऊंची क़ीमतों से सऊदी के बजट को भी बढ़ावा मिलेगा।

विरोधाभास तो यही है कि सऊदी अरब और रूस दोनों ही ओपेक प्लस में शामिल ऐसे देश हैं,जिन पर असर पड़ता है, जैसा कि पिछले महीने ओपेक महासचिव मोहम्मद बरकिंडो की ओर से यूरोपीय संघ को दी गयी स्पष्ट चेतावनी से साफ़ हो जाता है कि मौजूदा या भविष्य के प्रतिबंधों या स्वैच्छिक कार्रवाइयों के कारण संभावित रूप से हाथ से निकल चुके रूसी तेल और अन्य तरल निर्यात के प्रति दिन 7 मिलियन बैरल से ज़्यादा की भरपाई कर पाना असंभव होगा।

जिस तरह से स्थितियां बदल रही हैं और उसकी वजह से जो परेशानियां पेश आ रही हैं, उससे शायद बाइडेन प्रशासन सबसे ज़्यादा परेशान है। ये परेशानियां यही हो सकती हैं कि हाल ही में लगातार आ रही इन रिपोर्टों के बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सऊदी अरब के दौरा करने की योजना बना रहे हैं कि रियाद और बीजिंग डॉलर के बजाय युआन में कुछ खाड़ी देशों की तेल बिक्री की क़ीमत को लेकर बातचीत कर रहे हैं, जो वास्तव में तेल बाज़ार के लिए एक गहरा बदलाव लेकर आयेगा और चीन के इन प्रयासों को और ज़्यादा देशों और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों को अपनी मुद्रा में लेनदेन करने को लेकर तैयार करने में मदद मिलेगी।

युआन में इस बदलाव को लेकर सऊदी का स्पष्टीकरण तो यही है कि सऊदी घरेलू रूप से देश के भीतर बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में शामिल चीनी ठेकेदारों को भुगतान करने के लिए इस नयी मुद्रा राजस्व के हिस्से का इस्तेमाल कर सकता है, जो कि बीजिंग की ओर से अपनी मुद्रा पर लगाये गये पूंजी नियंत्रण से जुड़े जोखिमों को कम करेगा। लेकिन, वाशिंगटन के लिए तो इसका मतलब यही है कि युआन में कुछ संवेदनशील सऊदी-चीन लेनदेन स्विफ्ट मैसेजिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के रियर व्यू मिरर में दिखाई नहीं देगें, जिससे इस लेनदेन की निगरानी कर पाना मुश्किल हो जायेगा। 

इस बात को लेकर अमेरिकी रिपोर्टें लगातार आती रही हैं कि चीनी समर्थन के साथ सऊदी अरब परमाणु प्रौद्योगिकी के अपने अभियान को आगे बढ़ाने को लेकर अल उला के पास एक नयी यूरेनियम प्रसंस्करण सुविधा का निर्माण कर सकता है। पाकिस्तान के लिए सऊदी अरब की ओर से मिलने वाली 8 बिलियन डॉलर की उस उदार वित्तीय सहायता से वाशिंगटन की घिघ्घी बंधना लगभग तय है।

अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट की ओर से संचालित चाइना ग्लोबल इन्वेस्टमेंट ट्रैकर के मुताबिक़, सऊदी अरब चीन की बेल्ट एंड रोड इंफ़्रास्ट्रक्चर पहल का एक केंद्रीय स्तंभ है और चीनी निर्माण परियोजनाओं के लिए विश्व स्तर पर शीर्ष तीन देशों में शुमार है। इस बात को कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि सीआईए प्रमुख का फ़ोन प्रिंस मोहम्मद के साथ मैत्रीपूर्ण बातचीत को लेकर तो नहीं ही रहा होगा।

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वह उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत थे। इनके व्यक्त विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

US’ Coercive Diplomacy With Saudi Arabia

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest