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उत्तराखंड में भाजपा को पूर्ण बहुमत के बीच कुछ ज़रूरी सवाल

"बेरोजगारी यहां बड़ा मुद्दा था। पर्वतीय क्षेत्रों का विकास भी बड़ा मुद्दा था। भू-कानून, पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली बड़ा मुद्दा था। पलायन बड़ा मुद्दा था। लेकिन नतीजे तो यही कहते हैं कि सभी क्षेत्रीय मुद्दे हाशिए पर चले गए।"
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उत्तराखंड की 70 में से 47 सीटें भाजपा को सौंपकर जनता ने अपना फ़ैसला सुना दिया है। भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में अधिक सीटें और बेहतर वोट प्रतिशत हासिल करने के बावजूद कांग्रेस को इन नतीजों से कई सबक लेने हैं। भाजपा-कांग्रेस, दोनों ही दलों ने जिनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा वे अपनी सीट नहीं बचा पाए। पुष्कर सिंह धामी और हरीश रावत दोनों को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा की जीत ये भी तय करती नज़र आती है कि लोगों ने अपने क्षेत्रीय नुमाइंदों से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिए।

उत्तराखंड में भाजपा का वोट शेयर 44.33% और कांग्रेस का वोट शेयर 37.91% रहा। स्रोत: भारत निर्वाचन आयोग

नतीजे

2017 की तुलना में 2022 में भाजपा की 10 सीटें कम हुई हैं और ये आंकड़ा 57 से 47 पर आ गया है। वोट शेयर भी 46.51% से 44.33% हुआ है। लेकिन बहुमत स्पष्ट है।

कांग्रेस ने 2017 के 11 सीटों की तुलना में इस बार 19 सीट पर जीत दर्ज की है। वोट शेयर भी 33.49% की तुलना में 37.91% हुआ है। लेकिन पार्टी अपने खुद के 38-40 सीट के आकलन से भी बहुत दूर है। सत्ता से उसकी राह बहुत दूर हुई है।

उत्तराखंड अलग राज्य बनने के बाद से ही कांग्रेस और भाजपा को अदल-बदल कर सत्ता हस्तांतरित करता रहा है। इस बार राज्य का ये मिथक भी टूटा है।

वहीं बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की एक सीट तुलना में उत्तराखंड में 2 सीटें जीती हैं।

उत्तराखंड क्रांति दल लगातार दो विधानसभा चुनाव (2017 और 2022) में अपना खाता नहीं खोल पायी और जनाधार गंवा दिया है।

दो निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है।

पंजाब में जीत का जश्न मना रही आम आदमी पार्टी शून्य पर रही।

चुनाव जीते, नेतृत्व हारे

भाजपा के पुष्कर सिंह धामी खटीमा सीट पर करीब 7 हज़ार वोटों के अंतर से हारे हैं। कांग्रेस की चुनाव कमान संभाल रहे हरीश रावत करीब 14 हज़ार वोटों से हारे हैं। आम आदमी पार्टी का प्रमुख चेहरा कर्नल अजय कोठियाल गंगोत्री सीट पर सिर्फ 10 % वोट मिले।

राजनीतिक विश्लेषक योगेश भट्ट कहते हैं कि राज्य में जिन चेहरों पर चुनाव लड़े गए, जो चेहरे टीवी स्क्रीन और अखबारों में कई महीनों से छाए हुए थे, उन्हें जनता ने नकार दिया। पहाड़ में मोदी मैजिक चला। ये समझ  आता है कि लोगों ने मोदी के नाम पर वोट दिए। राज्य की राजनीति नेतृत्व विहीन राजनीति हो गई है। राज्य की लीडरशिप खत्म हो गई है। उत्तराखंड के लिए ये स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है।

मुद्दे हाशिए पर

योगेश भट्ट कहते हैं “बेरोजगारी यहां बड़ा मुद्दा था। पर्वतीय क्षेत्रों का विकास भी बड़ा मुद्दा था। भू-कानून, पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली बड़ा मुद्दा था। पलायन बड़ा मुद्दा था। लेकिन नतीजे तो यही कहते हैं कि सभी क्षेत्रीय मुद्दे हाशिए पर चले गए।"

उनका आकलन है कि लाभार्थी वाली योजनाएं शायद पहाड़ पर कारगर रही हैं। किसानों के खाते में सीधे पैसे आना, गैस सिलिंडर की सब्सिडी खाते में आना, मुफ्त में अनाज मिलना और आयुष्मान कार्ड जैसी योजनाएं वोटर को भा रही हैं।

इन नतीजों में महिलाओं की बड़ी भूमिका रही है। 9 पर्वतीय जिलों की 34 सीटों में से 33 पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले। सिर्फ उत्तरकाशी की पुरोला सीट पर महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुष वोट पड़े। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 34 पर्वतीय सीट पर 53% पुरुष मतदाता ने और 64% महिला मतदाता ने वोट किया। तो इन आंकड़ों के मुताबिक पहाड़ में महिलाएं निर्णायक भूमिका में रहीं।

सामाजिक कार्यकर्ता और पहाड़ के मुद्दों पर काम करने वाली गीता गैरोला कहती हैं “महिलाओं और बुजुर्गों के बीच नरेंद्र मोदी की जो छवि तैयार की गई है, उस छवि ने ही शायद काम किया है। गीता कहती हैं कि नतीजों से पहले बातचीत में कुछ और ही तस्वीर निकलकर सामने आ रही थी लेकिन नतीजे बेहद अप्रत्याशित लग रहे हैं। ऐसा लगता है कि लोगों को अब मुद्दों की जरूरत नहीं रह गई है। दो महीने के राशन-पानी पर वे विश्वास करते हैं। चुनाव से पहले पहाड़ के गांवों में खूब राशन-पानी बंटा।"

पुष्कर सिंह धामी खटीमा सीट से चुनाव हार गए

धामी बनेंगे मुख्यमंत्री?

भाजपा के खेमे में जश्न का माहौल है और अब अगली हलचल इस बात पर है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? पार्टी में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है। सतपाल महाराज, मदन कौशिक, डॉ धन सिंह रावत से लेकर गणेश जोशी जैसे नामों तक पर चर्चा है। त्रिवेंद्र सिंह रावत को जब मुख्यमंत्री पद से हटाया गया था तो सतपाल महाराज प्रमुख दावेदारों में से एक थे। इसके अलावा डॉ रमेश पोखरियाल निशंक और अनिल बलूनी के नाम भी उछाले जा रहे हैं। लेकिन यहां के सियासी गलियारों में हवा अब भी पुष्कर सिंह धामी के पक्ष में ही बह रही है। चंपावत में भाजपा से जीते कैलाश गहतोड़ी ने धामी के लिए सीट छोड़ने की बात कही। फ्लावर नहीं फायर है और धाकड़ धामी से जुमलों से नवाजे गए पुष्कर सिंह धामी मैच जीतने वाली टीम के हारे हुए कप्तान बन गए हैं।

इस चुनाव के कुछ और ज़रूरी नोट्स

चुनाव से पहले कांग्रेस लगातार आंतरिक कलह से जूझ रही थी। एक तरफ हरीश रावत खेमा रहा और दूसरी तरफ प्रीतम सिंह व अन्य। चुनाव के ऐन पहले हरीश रावत ने खुद को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की मांग को लेकर पार्टी में काफी उथल-पुथल भी मचाई।

उत्तराखंडियत की पहचान रखने वाले हरीश रावत ने अपनी हार विनम्रता से स्वीकार कर ली है और ‘चूक कहां हुई’ इस पर कुछ समय देने की बात कही है। 2017 में दो विधानसभा सीटों से हार, 2019 में लोकसभा चुनाव में हार और 2022 विधानसभा चुनाव में सीट बदलने के बाद (पहले रामनगर, फिर लालकुआं सीट चुनी) हार का सामना करने के बाद हरीश रावत का राज्य की राजनीति में करियर अब किस दिशा में जाएगा?

बहू अनुकृति गुंसाई के लिए बागी हुए हरक सिंह रावत कम से कम 5 वर्ष के लिए राज्य की राजनीति से दूर हो गए हैं। भाजपा से बागी होकर वे कांग्रेस में शामिल हुए। उन्हें टिकट नहीं मिला लेकिन उनकी बहू को लैंसडाउन से टिकट मिला। ये चुनाव अनुकृति हार गई हैं।

उत्तराखंड विधानसभा में अब तक 5 से ज्यादा महिलाएं एक साथ चुनकर नहीं आईं लेकिन पांचवी विधानसभा में 7 महिलाएं जीत के साथ पहुंची हैं। इनमें से दो नाम ऋतु खंडूड़ी और अनुपमा रावत के हैं। ऋतु खंडूड़ी की इस बार सीट बदल दी गई थी। वहीं अनुपमा रावत, हरीश रावत की बेटी हैं। पिता चुनाव हार गए लेकिन बेटी जीत गई।

हरिद्वार की खानपुर विधानसभा सीट पर पत्रकार और स्टिंग प्रकरण के लिए जाने गए निर्दलीय प्रत्याशी उमेश कुमार ने जीत दर्ज की है। खानपुर सीट कुंवर प्रणब सिंह चैंपियन की सीट रही थी। चैंपियन यहां से चार बार विधायक रहे थे। इस बार उनकी पत्नी कुंवरानी देवयानी प्रत्याशी थीं। वे तीसरे स्थान पर रही। उमेश कुमार 3 महीने से क्षेत्र में बेहद सक्रिय हुए और खूब हेलिकॉप्टर उड़ाए।

जीत-हार

चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल भाजपा की भारी जीत के लिए 5 प्रमुख वजहें गिनाते हैं। उनके मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी का मैजिक, महिला मतदाता, डबल इंजन, धामी फैक्टर और चुनावी मुद्दे/ संवाद भाजपा की जीत की वजह बने।

चमोली में राजनीतिक और पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती चुनाव नतीजों के बाद ट्वीट करते हैं “लंबी है गम की शाम मगर शाम ही तो है”।

(वर्षा सिंह देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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