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जम्मू-कश्मीर में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में गड़बड़ियों की जांच क्यों नहीं कर रही सरकार ?

नौकरशाह आम लोगों के मसलों का हल प्राथमिकता के साथ इसलिए नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने के बाद भी जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार और लूट जारी है।
PM Ujjwala Yojana in J&K

राजा मुज़फ़्फ़र भट लिखते हैं कि नौकरशाह आम लोगों के मसलों का हल प्राथमिकता के साथ इसलिए नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने के बाद भी जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार और लूट जारी है।

जब अगस्त 2019 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया था, तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर को दिया गया यह विशेष संवैधानिक दर्जा ही भूत जम्मू-कश्मीर राज्य में भ्रष्टाचार और कुशासन का मूल कारण था।

इस संवैधानिक प्रावधान को निरस्त हुए अब दो साल से ज़्यादा का समय हो चुका है, लेकिन अब एक केंद्र शासित प्रदेश बन चुके जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार और कुशासन का आम आदमी पर असर उसी तरह जारी है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौक़ों पर जम्मू-कश्मीर के लोगों को भरोसा दिया है कि भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। लेकिन, दो साल से ज़्यादा समय से सीधे नई दिल्ली से शासित होने के बाद भी दुर्भाग्य से हमें इसका कोई अंत होता हुआ नहीं दिख रहा है।

इस साल की शुरुआत में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की दूसरी वर्षगांठ पर विदेश मंत्री डॉ एस.जयशंकर ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर ने पिछले दो सालों में सच्चे लोकतंत्र, विकास,सुशासन और सशक्तिकरण को महसूस किया है। उन्होंने पिछले साल अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की पहली वर्षगांठ पर भी इसी तरह की बात कही थी।

लेकिन, ज़मीनी स्तर पर शासन के विश्लेषण से पता चलता है कि इन दावों में कोई दम नहीं है। ज़मीनी हालत तो यह है कि भ्रष्टाचार सामाजिक आधार को उसी तरह कुतर-कुतरकर खा रहा है, जिस तरह कि अनुच्छेद370 के निरस्त किये जाने से पहले खा रहा था।

केंद्रीय गृह मंत्रालय और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के ज़रिये भारत सरकार जम्मू-कश्मीर के नागरिक प्रशासन और पुलिस प्रशासन के भ्रष्ट सरकारी अफ़सरों पर निर्भर है। ये अफ़सर दूसरे प्रशासनिक सेवाओं के भ्रष्ट अफ़सरों को संरक्षण दे रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि किसी की तरह की कोई सार्वजनिक जवाबदेही नहीं रह गयी है और पीड़ित नागरिकों को लगता है कि उनके लिए इंसाफ़ के तमाम दरवाज़े बंद कर दिये गये हैं।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में गड़बड़ी

10 अगस्त को प्रधान मंत्री मोदी ने प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) के दूसरे चरण की शुरुआत की थी, जिसमें भारत भर में एक करोड़ ग़रीब परिवारों को मुफ़्त एलपीजी कनेक्शन दिये जायेंगे। इस योजना का पहला चरण मई 2016 में शुरू किया गया था, जिसके तहत केंद्र सरकार के मुताबिक़, पिछले पांच सालों में देश भर के 8 करोड़ से ज़्यादा ग़रीब परिवारों को मुफ़्त एलपीजी कनेक्शन का लाभ मिला है।

हालांकि, सवाल है कि क्या पूरे भारत और ख़ास तौर पर जम्मू-कश्मीर में इस योजना से सचमुच ग़रीबों को लाभ मिल पाया है ?

इस लेखक को पिछले कुछ सालों से ग़रीबी रेखा से नीचे (BPL) के कई परिवारों से लगातार शिकायतें मिल रही हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उन्हें उज्ज्वला योजना के मुताबिक़ उनके अपने-अपने इलाक़ों के गैस डीलर से मुफ़्त एलपीजी गैस कनेक्शन मुहैया नहीं कराया जा रहा है।

कश्मीर में 'मोदी गैस योजना' के तौर पर जाने जाने वाली इस योजना के बारे में ‘सूचना का अधिकार (RT) अधिनियम’ के तहत जानकारी ले पाने में भी असमर्थ था, क्योंकि मुझे यह नहीं पता कि किस सरकारी अफ़सर या सरकारी दफ़्तर से इसकी जानकारी मांगी जाये। खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग (FCS & CA) के अफ़सरों ने मुझे बताया कि यह जानकारी उनके पास उपलब्ध नहीं है। आरटीआई अधिनियम की धारा 4 के मुताबिक़,एफ़सीएस और सीए विभाग को जम्मू-कश्मीर के सभी एलपीजी डीलरों से लाभार्थियों की सूची हासिल करना चाहिए और इसे अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड भी कर देना चाहिए।

मैंने कुछ ज़िलों की वेबसाइटों को खंगाला,लेकिन उनमें से किसी भी वेबसाइट पर उज्ज्वला लाभार्थियों की सूची अपलोड नहीं की गयी है।

आख़िरकार, मैंने इस आरटीआई अधिनियम के तहत सीधे केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय से जानकारी लेने का फ़ैसला किया। हमारे एक कार्यकर्ता मोहम्मद मुदस्सर ने पिछले महीने इस मंत्रालय में एक ऑनलाइन आरटीआई आवेदन दायर किया था। उनके इस आरटीआई आवेदन को एक या दो दिनों के भीतर ही इस मंत्रालय ने दो सार्वजनिक प्राधिकरणों-भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) को भेज दिया।

बीपीसीएल का किसी भी तरह की जानकारी से इनकार

जैसा कि मैंने पहले भी इस उस जानकारी का ज़िक़्र किया है कि मुदस्सर बारामूला, बडगाम,कुपवाड़ा, पुलवामा और श्रीनगर ज़िलों के कुछ चुनिंदा इलाक़ों में उज्ज्वला लाभार्थियों के नाम जानना चाहते थे। हमने अपने स्वयंसेवकों के ज़रिये चुने हुए गांवों, कॉलोनियों और मुहल्लों में ज़मीनी स्तर पर सत्यापन करके उन नामों की जांच करने की योजना बनायी।

हालांकि, मुंबई स्थित बीपीसीएल (LPG) मुख्यालय में केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (PIO), यानी एस.के. पाधी ने उस जानकारी को साझा करने से इनकार कर दिया, जिसे कि आरटीआई अधिनियम की धारा 4(1)(बी) के तहत अनिवार्य रूप से सरकारी वेबसाइटों पर उपलब्ध होनी चाहिए थी। जानकारी देने के बजाय अपना फ़र्ज़ नहीं निभाने वाले इस अफ़सर ने आरटीआई अधिनियम की धारा8(1)(जे) का सहारा लिया।

अफ़सर का जवाब कुछ इस तरह है:

“मांगी गयी जानकारी निजी जानकारी से जुड़ी हुई है, जिसके ख़ुलासे का किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई लेना-देना नहीं है,और इससे व्यक्ति की निजता पर अवांछित हमला होगा। इसलिए, आरटीआई अधिनियम2005 के 8 (1) जे के मुताबिक़ इनकार किया गया।”

मुदस्सर ने ऐसी जानकारी मांगी थी, जिसे सरकार के लिए क़ानूनी तौर पर हर नागरिक को मुहल्ला, प्रखंड या पंचायत स्तर पर मुहैया कराना अनिवार्य है। किसी के लिए यह समझ पाना मुश्किल है कि इस योजना के तहत लाभा पाने वालों की सूची की मांग करना निजता का हनन कैसे है ? अगर मुदस्सर जैसा लोक-हित भावना वाला नागरिक किसी ख़ास गांव या मोहल्ले में मुफ़्त एलपीजी गैस कनेक्शन पाने वाले बीपीएल परिवारों की सूची चाहता है, तो यह उन ग़रीब लोगों या परिवारों की गोपनीयता पर हमला कैसे हो सकता है ?

ऐसे हज़ारों ग़रीब परिवार हैं, जिन्होंने उज्ज्वला गैस कनेक्शन के लिए आवेदन तो किया है,लेकिन उन्हें अपने आवेदनों की स्थिति की जानकारी नहीं है। क्या बीपीएल परिवारों से जुड़े मंत्रालय के सामने एक ऑनलाइन पोर्टल के ज़रिये आरटीआई आवेदन दाखिल करने की अपेक्षा की जाती है ?

स्थानीय प्रशासन को तो पंचायत स्तर पर सभी उज्ज्वला सूची उपलब्ध कराकर आवेदक के लिए चीज़ों को आसान और पारदर्शी बनाना चाहिए था। दरअस्ल,इस तरह की पारदर्शिता से बचते हुए ऐसे सरकारी अफ़सर भ्रष्टाचार और कुशासन को बढ़ावा ही देते हैं, और अपने साथी अफ़सरों और गैस एजेंसियों के अपराध को छुपा लेते हैं।

वांगवास गांव में हर तरह से की गई पड़ताल

संयोग से एचपीसीएल ने मुदस्सर को उज्ज्वला लाभार्थियों के बारे में कुछ जानकारी मुहैया करायी।

मुझे इस बात की आशंका थी। मुफ़्त एलपीजी कनेक्शन सही मायने में उन कई बीपीएल परिवारों के लिए स्वीकृत किये गये थे, जिन्होंने कुछ साल पहले अपने दस्तावेज़ जमा किये थे,लेकिन इसे कुछ अन्य लोगों को 2,500 - 3,000 रुपये के नक़द भुगतान के बदले दे दिया गया था। जिन बीपीएल परिवारों को उज्ज्वला के तहत एलपीजी कनेक्शन दिया गया था, उन्हें 600 रुपये से 2,500 रुपये के बीच की राशि का भुगतान किया गया था।

मैंने इस बात की पुष्टि बडगाम के वांगवास गोगी पथरी गांव में जाकर की। इस गांव में रहने वालों में बेहद ग़रीब परिवार भी हैं, जो ज़्यादातर भूमिहीन हैं और मिट्टी के बरतन बनाकर अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं। वांगवास गोगी पथरी कुम्हारों के गांव के रूप में मशहूर है।

जब हमने इस गांव में एचपीसीएल की ओर से मुहैया कराये गये लाभार्थियों के नामों की जांच-पड़ताल की, तो हमने पाया कि कम से कम एक दर्जन परिवार ऐसे थे, जिनके नाम उज्ज्वला लाभार्थी के तौर पर दर्ज तो थे,लेकिन एलपीजी कनेक्शन के साथ मिलने वाले एलपीजी गैस सिलेंडर, स्टोव और प्लास्टिक पाइप वाला रेगुलेटर उन्हें नहीं दिये गये थे।

ऐसा लगता है कि ये तमाम चीज़ें दूसरे लोगों को बेच दिये गये थे, और इस तरह राज्य के ख़ज़ाने को लूट लिया गया है।

हमारे स्वयंसेवकों में से एक मुश्ताक़ अहमद कुछ ही हफ़्ते पहले इस गांव की 70 साल की एक बुज़ुर्ग मुख़्ती बेगम के घर गये थे। मुख़्ती ने मुश्ताक़ से कहा था कि उन्हें गैस कनेक्शन नहीं मिला है, लेकिन उनका नाम उज्ज्वला लाभार्थी सूची में क्रम संख्या 661486 पर है। इस तह की शिकायत करने वाली ऐसी और भी महिलायें थीं।

70 साल की मुख़्ती बेगम/फ़ोटो: राजा मुज़फ़्फ़र भट

सूची में मुख़्ती बेगम का नाम/फ़ोटो:राजा मुज़फ़्फ़र भट

मुश्ताक़ ने सोशल मीडिया के ज़रिये इस गड़बड़ी का पर्दाफ़ाश किया और 24 घंटे के भीतर स्थानीय गैस एजेंसी का डीलर गैस सिलेंडर, चूल्हा और रेगुलेटर लेकर मुख़्ती के घर पहुंच गया।

मैंने ख़ुद गांव जाकर मुख़्ती का इंटरव्यू लिया। उज्ज्वला गैस कनेक्शन पाकर वह ख़ुश थीं। उनके बेटे मक़बूल ने पूरे जम्मू-कश्मीर में इस मुद्दे की गहन जांच की मांग की।

मुख़्ती और मक़बूल के साथ मेरा यह वीडियो साक्षात्कार सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, लेकिन सरकार ने अभी तक इस घोटाले की जांच नहीं की है, जो ग़रीबों के लिए प्रधानमंत्री के इस प्रमुख कार्यक्रम को प्रभावित कर रहा है।

जांच की शुरूआत तक नहीं

सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो हैं, जो यह साबित करते हैं कि जम्मू-कश्मीर और ख़ासकर बडगाम ज़िले में ग़रीबों को लूटा गया है। स्थानीय न्यूज़ चैनलों ने इसका ख़ुलासा किया है। अख़बार इस बारे में लिखते रहे हैं, लेकिन, सरकार इस मामले की जांच कराने की ज़हमत तक नहीं उठा रही है।

मैं अपने फ़ेसबुक और ट्विटर पेजों पर उज्जवला घोटाले को लेकर अपने सभी वीडियो और अख़बारों के लेख अपलोड करता रहा हूं। बडगाम के उपायुक्त को यह सब पता है, क्योंकि इस बारे में अपने एक पोस्ट के साथ उनके आधिकारिक ट्विटर हैंडल को मैंने टैग किया था। हालांकि, दुर्भाग्य ही है कि उन्होंने इस इलाक़े के एक भी एसएचओ को इस मुद्दे पर प्राथमिकी दर्ज करने तक के लिए नहीं कहा है।

क्या यही सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन है,जिसकी बात पीएम मोदी, गृह मंत्री शाह और विदेश मंत्री जयशंकर करते रहते हैं ? मुझे इस बात का यक़ीन है कि न सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एलपीजी कंपनियां और उनके डीलर ग़रीबों के साथ इस तरह की धोखाधड़ी कर रहे हैं। अगस्त 2019 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने बलरामपुर ज़िले में भी इस योजना से जुड़े एक घोटाले का ख़ुलासा किया था, और उसी साल बाद में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने भी इस योजना के तहत चल रहे एक बड़े घोटाले का ख़ुलासा किया था। सभी राज्यों में इसकी सीबीआई जांच कराये जाने की ज़रूरत है।

इस साल की शुरुआत में पीएम ग़रीब कल्याण अन्न योजना के तहत ग़रीबों के लिए दिये जा रहे मुफ़्त राशन को लूट लिया गया था, और मैंने इसकी सूचना इसी वेबसाइट पर दी थी। इस सिलसिले में मिलने वाले कई आश्वासनों के बावजूद इस मामले की जांच भी सरकार की ओर से की जानी अभी बाक़ी है।

जब लोग आरटीआई अधिनियम के तहत ज़िलाधिकारियों या अन्य अधिकारियों से जानकारी लेने की कोशिश करते हैं, तो उसे नामंज़ूर कर दिया जाता है, और विडंबना यह है कि जम्मू-कश्मीर राज्य सूचना आयोग (SIC) के बंद होने के चलते सूचना चाहने वाले पीड़ितों को केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में अपील दायर करने के लिए कहा जाता है, जहां मामले एक या एक साल बाद ही सूचीबद्ध हो पाते हैं। हालांकि,जम्मू-कश्मीर एसआईसी के साथ पहले ऐसा नहीं था। वहां जम्मू-कश्मीर आरटीआई अधिनियम 2009 (अब अनुच्छेद370 के निरस्त होने के बाद इसे भी निरस्त कर दिया गया है) के प्रावधानों के मुताबिक़ हमारी अपीलों को 60 से 120 दिनों के भीतर निपटाया जाना होता था।

ऐसे में सवाल पैदा होता है कि क्या सार्वजनिक मामलों में अस्पष्टता के लिए ही धारा 370 को निरस्त किया गया था, जिसके बदले आम लोगों के धन की लूट को बढ़ावा मिला है ?

(राजा मुज़फ़्फ़र भट श्रीनगर के एक स्तंभकार और कार्यकर्ता हैं। वह जम्मू और कश्मीर आरटीआई मुवमेंट के संस्थापक और अध्यक्ष और एक्यूमेन इंडिया फ़ेलो हैं।)

साभार: द लीफ़लेट

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Why Isn’t Government Probing Irregularities in PM Ujjwala Yojana in J&K?

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