NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सुदर्शन न्यूज़, सर्वोच्च न्यायालय और अभिव्यक्ति की आज़ादी  
अभिव्यक्ति की आज़ादी और ‘घृणा फैलाने’ के मामले में न्यायिक हस्तक्षेप विनाशकारी साबित हो सकता है।
टिकेंदर सिंह पंवार
25 Sep 2020
Translated by महेश कुमार
सुदर्शन न्यूज़

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सुदर्शन न्यूज के मामले पर चल रही बहस विचित्र है; जहां मीडिया के प्रसारण से पहले सेंसरशिप पर अदालत एक रोड-मैप तैयार कर रही है। कई राजनीतिक टिप्पणीकारों, समाजशास्त्रियों और कानूनी विशेषज्ञों ने इस पर अपनी आशंका व्यक्त की है जिस में सर्वोच्च न्यालय प्रवेश कर रहा है। जबकि अधिकांश लोगों का कहना है कि विवादित  ‘बिंदास बोल' कार्यक्रम की निंदा करने के लिए किसी दूसरे मत की जरूरत नहीं है क्योंकि यह एक समुदाय को बदनाम करने के मक़सद पर आधारित है, संविधान विरोधी है और इसे तुरंत ही रोका जाना चाहिए; हालाँकि इस मसले पर अब प्रशासनिक कानून को संवैधानिक कानून में विलय किया जा रहा है, जो खतरनाक है!

’सॉरी, योर लॉर्डशिप’ नामक एक संपादकीय में, द इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा कि: “जो लोग सत्ता में हैं वे समाचार को हथियार बनाएँगे खासकर जब टीवी स्टूडियो में उनके इच्छुक साथी बैठे होंगे, लेकिन पूर्व संयम के साथ, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने खुद इस बात को बार-बार रेखांकित किया है कि जिस समस्या को वे संबोधित करने की कोशिश कर रहे हैं उस समस्या का समाधान किसी समस्या से कम नहीं है और ऊपर से वह काफी परेशान करने वाला होगा।"

हालाँकि, उस मुद्दे में घुसने से पहले जिसकी सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय कर रहा है, बेहतर होगा कि हम यह जाने कि आखिर यह हंगामा क्यों बरपा है। 

विवाद

सुदर्शन न्यूज के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ, सुरेश चव्हाणके 'बिंदास बोल' नामक कार्यक्रम में  एक 'जांच' के नाम कार्यक्रम के प्रोमो में दिखाई दिए। जिसे "यूपीएससी जिहाद" नामक श्रृंखला के नाम से पेश किया जाना था और उस शो के एक ट्रेलर को भी उन्होने व्यापक रूप से ट्वीट किया था। जैसा कि नाम से ही पता चल जाता है, कि शो का मक़सद जामिया मिलिया इस्लामिया से भारतीय नौकरशाही में मुस्लिम छात्रों की तथाकथित ‘घुसपैठ’ का विश्लेषण करना था। मुस्लिम समुदाय को उकसाने के अलावा, शो ने मुस्लिम समुदाय या युवाओं पर भारतीय नौकरशाही पर कब्जा जमाने की एक सुनियोजित साजिश रचने का आरोप लगाया।

जामिया के पूर्व छात्रों के एक समूह ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की और शो के प्रसारण पर रोक लगाने की मांग की। उच्च न्यायालय ने विवादास्पद शो के प्रसारण पर रोक लगा दी और कहा कि केंद्र को तय करना चाहिए और मामले का निपटारा करना चाहिए।

9 सितंबर को, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने चैनल को शो का प्रसारण करने की अनुमति दे दी। यह आश्चर्य की बात नहीं थी क्योंकि भाजपा सरकार को ऐसे शो प्रसारित करने में कोई गुरेज़ नहीं है जो शो अल्पसंख्यक समुदाय को बादनाम या उसे कमजोर करते हैं। सरकार द्वारा चैनल को दी गई अनुमति से एक चेतावनी जुड़ी हुई थी जिसमें कहा गया था कि शो को किसी भी प्रोग्राम कोड का उल्लंघन नहीं करेगा।

इसी अवधि के दौरान, एक अन्य याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर कर दी थी। जब तक सुप्रीम कोर्ट 15 सितंबर को इसकी सुनवाई करता, तब तक शो के चार एपिसोड 9 सितंबर से 14 सितंबर के बीच चैनल द्वारा प्रसारित किए जा चुके थे।

सुदर्शन न्यूज ने कहा कि उसकी अभिव्यक्ति की आज़ादी को बाधित किया जा रहा है और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने कहा कि इसके नियम बड़े मजबूत हैं और वे अपराधियों को माफी मांगने पर मजबूर करेंगे। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इन सभी तर्कों को दरकिनार करते हुए, टेलीकास्ट को रोक दिया और कहा कि कार्यक्रम की सामग्री नफरत को बढ़ावा देती है।

जामिया के तीन छात्रों के वकील शादान फरासत जो खुद याचिका में पार्टी बन गए थे, ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के राजनीतिक वैज्ञानिकों स्टीवन लेवस्की और डैनियल ज़िबाल्ट द्वारा लिखित एक पुस्तक “हाउ डेमोक्रेसीज़ डाई” के हवाले से सुप्रीम कोर्ट में कहा कि "संस्थाएं चलती रहती हैं, लेकिन वे खोखली हो जाती हैं। इसी तरह के लगातार हमले घृणा फैलाने वाले भाषण के लिए व्यापक वातावरण बनाते हैं, जो मुझको को कोई ओर बना देते हैं" जिसके लिए समानता का वादा मौजूद रहता है, लेकिन केवल एक मृगतृष्णा के रूप में।" रवांडा रेडियो के एक शो की तुलना करते हुए, जिसने टुटिस के खिलाफ लोगों को उकसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उन्होंने कहा इस "शो की प्रकृति और विषय भी कुछ ऐसा ही था जिसमें बताया गया कि सिविल सेवाओं में मुसलमानों की घुसपैठ का प्रयास देश पर कब्जा करने की साजिश है।"

सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों के कुछ उल्लेखनीय बयान काफी दिलचस्प हैं:

“यह देश के लिए खुशी की बात है कि यूपीएससी परीक्षा में मुसलमानों का चयन हो रहा है। लेकिन आप उनको नीचा दिखाने के लिए एक शो चला रहे हैं ”न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ।

 “संवैधानिक न्यायालय का न्यायाधीश होने के नाते, मानवीय गरिमा की रक्षा करना मेरा संवैधानिक कर्तव्य है, जो अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। हम स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करते हैं लेकिन हम किसी समुदाय के खिलाफ इस प्रकार के हमलों से पूरी तरह चिंतित हैं”, न्यायमूर्ति डी॰ वाई॰ चंद्रचूड़। 

“मैंने एक एपिसोड देखा और उसे देखना काफी दर्दनाक साबित हुआ। न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने कहा कि कई चित्रांकन आक्रामक हैं और उन्हे हटाने की जरूरत है।

15 सितंबर का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश कहता है: “भारत सभ्यताओं, संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं को आत्मसात करने वाला देश है। किसी भी धार्मिक समुदाय को वशीभूत या बदनाम करने के किसी भी प्रयास को इस न्यायालय द्वारा संवैधानिक मूल्यों के संरक्षक के रूप में गंभीरता से देखा जाना चाहिए। संवैधानिक मूल्यों को लागू करने के मामले में इस कोर्ट का कर्तव्य कुछ कम नहीं है।”

अदालत ने स्पष्ट रूप से चैनल को दोषी ठहराया और कहा कि शो की पूरी कवायद "यह बताने का एक कपटी प्रयास था कि पूरा समुदाय सिविल सेवाओं में घुसपैठ करने की साजिश कर रहा है।" कोर्ट ने कहा कि शो की सामग्री न केवल त्रुटिपूर्ण है, बल्कि यह सत्य की अवहेलना भी करती है।

अब तक तो सब ठीक था। हालाँकि, जल्द ही बहस मीडिया रेगुलेशन के दायरे में चली गई। केस मेरिट के आधार पर, दिल्ली उच्च न्यायालय की तरह सर्वोच्च न्यायालय को भी मामले को खारिज कर देना चाहिए था, लेकिन इसे सोशल मीडिया को रेगुलेट करने की केंद्र सरकार की मांग के लिए दायर एक हलफनामे के साथ लंबित रख दिया गया।

“सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस पर अन्यथा विचार करने और इस मामले को एक संवैधानिक रंग देने की उत्सुकता की जरूरत नहीं थी। जब मूल आदेश में एक अन्य बयान के संदर्भ में देखा गया कि अदालत को मीडिया रेगुलेशन पर 'एक बहस' को बढ़ावा देने की जरूरत है, तो वह अदालत की उस धारणा को प्रभावित करता है जो अपने दायरे की बहस के बाहर जा रही है,'' ऐसा विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के शोध निदेशक अरघाय सेनगुप्ता ने लिखा है।

देश को गलत सूचना के प्रसार और अभिव्यक्ति की आज़ादी को बड़े पैमाने पर खतरे पर एक बहस की जरूरत है। टेलीविज़न बहस की सामान्य गाथा, जो वास्तव में बहस की पूरी प्रक्रिया को बाधित करती है, पर भी चर्चा करने की जरूरत है। हालाँकि, इस बहस का मंच सर्वोच्च न्यायालय भी नहीं हो सकता है।

द इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने एक कॉलम में, प्रताप भानु मेहता, ने ठीक ही कहा कि यह मुद्दा राजनीतिक है न कि कानूनी है। “पिछले दो दशकों का सबसे बड़ा सबक तो यही है कि बुनियादी तौर पर सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को हल करने के लिए कानूनी प्रक्रिया पर अधिक निर्भरता अक्सर बैकफायर करती है। अभिव्यक्ति की आज़ादी के मामले में, यह बात और भी अधिक लागू होती है, ”उन्होंने लिखा।

सुदर्शन न्यूज का मामला सरल मामला है। यह नफरत फैलाने का मामला है और इसलिए हस्तक्षेप की सख्त जरूरत थी। लेकिन जिस तरह से फ्री स्पीच यानि अभिव्यक्ति की आज़ादी और नफरत फैलाने वाली घटनाओं को आपस में भिड़ा दिया गया है, इसके लिए एक संतुलन बनाए रखने की जरूरत है।

इस आसन्न या लंबित याचिका के व्यापक प्रभाव हो सकते हैं। ‘हुकूमत’ असंतोष को दबाने के लिए इसका इस्तेमाल करने की कोशिश करेगी और इसे उदारवादियों, लोकतंत्रवादियों, कम्युनिस्टों और उन सभी लोगों के खिलाफ हमले के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा जो केंद्र सरकार के फैसलों का विरोध करते हैं। उदाहरण के तौर पर मजदूरों द्वारा उनके प्रासंगिक मुद्दों पर  उद्योगपति के विरोध के ट्रेड यूनियनों के आहवान को लें। क्या इस तरह के आह्वान को भी किसी व्यक्ति के प्रति घृणा फैलाने के योग्य माना जाएगा? इसी तरह, विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा कुलपति को घेरने के आहवान और अधिकारियों के कार्यों की निंदा करने के लिए विरोध प्रदर्शन का आयोजन, ‘नफरत फैलाने’ या अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला माना जाएगा?

हम पहले ही देख चुके हैं कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए के निरस्त होने के बाद, जम्मू-कश्मीर के प्रमुख मीडिया हाउस केंद्र सरकार के डंडे के सामने केवल हुकूमत के फरमाबरदार में तब्दील हो गए हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये मीडिया हाउस मासूम बच्चों और लोगों पर सशस्त्र बलों द्वारा की गई ज्यादतियों को उजागर कर रहे थे। घृणा के प्रसार को नियंत्रित करने की आड़ में, हुकूमत ने अभिव्यक्ति की आज़ादी को ही तथास्तु कर दिया।

ऐसी स्थिति में जब हुकूमत प्रचार के अधिकांश रूपों का उपयोग कर रही है,’ अभिव्यक्ति की आज़ादी’ पर अधिक रेगुलेशन एक ऐसी सरकार के उद्देश्य को ही आगे बढ़ाएगा जो न केवल ’दक्षिणपंथी’ है, बल्कि महत्वपूर्ण विरोध को भी कोई जगह नहीं देती है। अब किया क्या जाना चाहिए?

अभिव्यक्ति की आज़ादी क्या है और क्या नहीं इसके बारे में सार्वजनिक बहस होनी जरूरी है। मुझे याद है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणापत्र तैयार करने की प्रक्रिया के दौरान मीडिया के विभिन्न समूहों ने इस मांग को गंभीरता से उठाया था। ये निम्नलिखित चरण हैं जिनके माध्यम से स्वतंत्र मीडिया विनियमन तंत्र बनाने का आहवान किया गया था।

मीडिया के घोषणापत्र में कहा गया था कि, "व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करना जरूरी है और उन सभी प्रावधानों की समीक्षा और सुधार करना भी जरूरी है जो प्रावधान अनुचित प्रतिबंध लगाते हैं, अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत अधिकारों की स्वतंत्रता में बाधा डालते हैं।"

घोषणापत्र में प्रकाशित एक अन्य प्रमुख मुद्दा, जो आज भी प्रासंगिक बना हुआ है, वह कि “धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील और लोकतांत्रिक संस्कृति को बढ़ावा देना; सांप्रदायिक ताकतों द्वारा सांस्कृतिक व्यक्तित्व और उनके काम पर किए गए हमलों का दृढ़ता से मुक़ाबला किया जाना चाहिए। प्रसार भारत निगम को मजबूत करना, इसे टीवी और रेडियो के लिए एक वास्तविक सार्वजनिक प्रसारण सेवा बनाना; सार्वजनिक प्रसारण सेवा द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों में हुकूमत का हक़ होगा। मीडिया काउंसिल का गठन करना जो मीडिया के मामले में एक स्वतंत्र नियामक प्राधिकरण के रूप में कार्य कर सके।"

क्या लोगों के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी सत्तारूढ़ प्रवचन या इसके विपरीत नफरत फैलाने वाली हो सकती है? इस संतुलन को भारत के संविधान की पुस्तक, जिसे संविधान में वर्णित किया गया है, उसके द्वारा ही बनाए रखा जाना चाहिए। न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से इस पर विचार करने से ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी' के संपूर्ण विचार के लिए खतरनाक हो सकता है।

लेखक शिमला के डिप्टी मेयर रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Why We Are Treading Murky Waters with the Sudarshan News Cases

free speech
Sudarshan News
BJP
Suresh Chavankhe
UPSC Jihad
Censorship
Supreme Court
Delhi High court

Trending

बंगाल चुनाव: छठे चरण में हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बीच 79 फ़ीसदी मतदान
क्यों फ्री में वैक्सीन मुहैया न कराना लोगों को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है?
कोविड-19: पहुँच से बाहर रेमडेसिवीर और महाराष्ट्र में होती दुर्गति
देश के संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ है वैक्सीन वितरण फार्मूला
चिंता: देश में कोरोना के फिर 3 लाख से ज़्यादा नए मामले, 2,263 मरीज़ों की मौत
छद्म धर्मनिर्पेक्षता और धर्मनिर्पेक्ष संप्रदायवाद : कैसे उदारवादी और प्रगतिशील धारणा ने दक्षिणपंथ को बढ़ाया है

Related Stories

daily
अदालत की केंद्र को फटकार, कोरोना अपडेट और अन्य
22 April 2021
बंगाल में भी कोरोना विस्फोट, क्या चुनाव आयोग लेगा ज़िम्मेदारी?
अनिल जैन
बंगाल में भी कोरोना विस्फोट, क्या चुनाव आयोग लेगा ज़िम्मेदारी?
22 April 2021
पश्चिम बंगाल में जारी विधानसभा चुनाव के बीच कोरोना संक्रमण के हालात कितने भयावह शक्ल ले चुके हैं, इसे कोलकाता हाईकोर्ट की बेहद तल्ख टिप्पणियों से स
कोरोना से ज़्यादा जानलेवा है हाकिम की संवेदनहीनता
बादल सरोज
कोरोना से ज़्यादा जानलेवा है हाकिम की संवेदनहीनता
22 April 2021
कल शाम के प्रज्ञा शून्य भाषण और इन दिनों सारे कानूनों, परम्पराओं, संवेदनाओं और मानवता  को ठेंगा दिखाकर की जा रही आपराधिक लापरवाही को देखकर दो घटनाए

Pagination

  • Previous page ‹‹
  • Next page ››

बाकी खबरें

  • जम्मू-कश्मीर सरकार ने "देश-विरोधी" कर्मचारियों की निगरानी के लिए टास्क फ़ोर्स का गठन किया
    अनीस ज़रगर
    जम्मू-कश्मीर सरकार ने "देश-विरोधी" कर्मचारियों की निगरानी के लिए टास्क फ़ोर्स का गठन किया
    23 Apr 2021
    यह स्पेशल टास्क फ़ोर्स आतंकवाद पर नज़र रखने वाले संगठनों के साथ भी काम करेगी और उन कर्मचारियों की पहचान करेगी जो उसके हिसाब से प्रतिरोधी गतिविधियों में शामिल हैं।
  • Punjabi University Patiala
    शिव इंदर सिंह
    भाषा के आधार पर बना भारत का एकमात्र विश्वविद्यालय घोर आर्थिक संकट में
    23 Apr 2021
    यह राजकीय विश्वविद्यालय पंजाब का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है, इसके अंतर्गत 271 कॉलेज आते है। यह पहली बार हो रहा है कि इसके अध्यापकों, कर्मचारियों और पेंशनर्स को तनख्वाहें और अन्य भुगतान देरी से हो रहे…
  • कोविड-19: पहुँच से बाहर रेमडेसिवीर और महाराष्ट्र में होती दुर्गति
    प्रीति शर्मा मेनन
    कोविड-19: पहुँच से बाहर रेमडेसिवीर और महाराष्ट्र में होती दुर्गति
    23 Apr 2021
    खुदरा दुकानदार रेमडेसिवीर की बिक्री नहीं कर रहे हैं। देश में इस दवा की उपलब्धता का गंभीर संकट बना हुआ है और मरीजों के रिश्तेदार और परोपकारी लोग इसे हासिल करने के लिए दिन भर मारामारी कर रहे हैं।
  • बंगाल चुनाव: छठे चरण में हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बीच 79 फ़ीसदी मतदान
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट/भाषा
    बंगाल चुनाव: छठे चरण में हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बीच 79 फ़ीसदी मतदान
    22 Apr 2021
    पश्चिम बंगाल चुनाव में छठे चरण की 43 विधानसभा सीटों पर शाम पांच बजे तक करीब 79 प्रतिशत मतदान हुआ। इस दौरान भी बाक़ी चरणों की तरह ही हिंसा खबरें आईं। 
  • बेरोज़गारी
    ज्ञान पाठक
    भारत एक अभूतपूर्व बेरोज़गारी संकट के मुहाने पर खड़ा है : सीएमआईई रिपोर्ट
    22 Apr 2021
    सीएमआईई की रिपोर्ट बताती है कि ज़्यादातर वैतनिक नौकरियों का नुक़सान ग्रामीण क्षेत्रों में हुआ है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें