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भारतीय विमान वाहक पोतों के लिए अमरीकी लड़ाकू विमान के राजनीतिक मायने

अमरीका भारत के साथ और ज्यादा सुरक्षा भागीदारी के लिए जोर लगा रहा है और इसमें पोतों, विमानों, टैंकों, आदि, आदि बड़े सैन्य प्लेटफार्मों की बिक्री खासतौर पर शामिल है।
US-India

क्या आने वाले वर्षों में अमरीका-भारत रिश्तों के सैन्य प्रौद्योगिकी के पहलुओं में बड़े बदलाव होने जा रहे हैं? हाल की खबरें इसका इशारा करती हैं कि अमरीका, भारत के लिए 50 करोड़ डालर के विदेशी सैन्य सहायता पैकेज की तैयारी कर रहा है। बेशक, प्रतिरक्षा साज-सामान या हार्डवेयर की खरीद के अरबों डालर के समझौतों के सामने सैन्य सहायता की यह राशि अपेक्षाकृत छोटी ही है। फिर भी अमरीका की सुरक्षा तथा विदेश नीति प्रणाली के लिहाज से, इस पैकेज का काफी ज्यादा राजनीतिक महत्व होगा। इस तरह की वित्तीय सहायता भारत को अमरीका का एक बड़ा सहयोगी बना देगी, जो इस मामले में सिर्फ इस्राइल तथा मिस्र से ही पीछे होगा।

अमरीका भारत के साथ और ज्यादा सुरक्षा भागीदारी के लिए जोर लगा रहा है और इसमें पोतों, विमानों, टैंकों, आदि, आदि बड़े सैन्य प्लेटफार्मों की बिक्री खासतौर पर शामिल है। भारत के लिए हथियारों की इस तरह की बिक्री का अपना रणनीतिक तथा वित्तीय महत्व तो खैर अपनी जगह है ही, इसके अलावा अमरीका भारत को रूसी सैन्य हार्डवेयर पर उसकी निर्भरता से परे खींचने की भी कोशिश कर रहा है। 

याद रहे कि भारत के शस्त्र आयातों का 60 फीसद के करीब रूस से ही आता है। और यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई के बाद से, इस पहलू ने और भी महत्व हासिल कर लिया है। पिछले दो दशकों में अमरीका ने भारत को 20 अरब डालर से ज्यादा के हथियार बेचे हैं और दूसरी ओर रूस से भारत के शस्त्र आयात, उसके कुल शस्त्र आयातों के 55 फीसद हिस्से के करीब ही रह गए हैं। फिर भी अमरीका से शस्त्रों की खरीद में मुख्य सैन्य प्लेटफार्मों की खरीद का हिस्सा कम ही रहा है और उसके बजाए यह खरीदी अपेक्षाकृत छोटी संख्या में विशिष्ट सैन्य उपकरणों की खरीदी के रूप में ही की गयी है।

भारत-अमरीका के रिश्तों का सैन्य प्रौद्योगिकी का पहलू क्या रूप लेता है, इसे निर्धारित करने में चार कारक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने जा रहे हैं।

पहला है, अमरीका-भारत द्विपक्षीय रिश्तों का आगे विकास, जिसमें उन्नत प्रौद्योगिकियां व खासतौर पर सैन्य प्रौद्योगिकियां तथा हार्डवेयर, भारत-अमरीका रक्षा रूपरेखा समझौते के जरिए, जिसकी शुरूआत 2005 में हुई थी तथा जिसे 2015 में अपडेट किया गया, एक जाने-माने तरीके से एक बड़ी तथा संस्थागत भूमिका अदा करते हैं। दूसरे, अमरीका, आस्ट्रेलिया, जापान तथा भारत के क्वॉड के सुरक्षा पहलुओं का संभव उन्मोचन, विशेष रूप से एशिया-प्रशांत, एशिया के मुख्य भूभाग और दक्षिण एशिया के सुरक्षा परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए। तीसरे, सैन्य हार्डवेयर के सिलसिले में भारत-रूस के लंबे समय से चले आते रिश्तों में अपरिहार्य रूप से होने वाले बदलाव। ये बदलाव इसलिए होने जा रहे हैं कि भारत खुद ही रूस पर अपनी अति-निर्भरता को घटाने की कोशिश कर रहा है तथा रूसी सैन्य-औद्योगिक प्रौद्योगिकी धीरे-धीरे कमजोर हो रही है। यूक्रेन युद्घ और कड़ी पश्चिमी पाबंदियों के चलते, यह प्रौद्योगिकी और भी कमजोर हो सकती है। और चौथे, भारत ने प्रकटत: उस आत्मनिर्भरता की ओर नया-नया झुकाव दिखाया है, जिसकी पहले निंदा की जा रही थी। यह भारत में विनिर्माण के आधार कायम करने के लिए, बड़ी विदेशी शस्त्र निर्माता कंपनियों को लुभाने की काफी अर्से तक चली कोशिशों के पूरी तरह से विफल रहने का नतीजा है।

इसी पृष्ठभूमि में हम इस लेख में भारतीय विमान वाहक पोतों के लिए, अपनी उपयोगिता साबित कर चुके एफ/ए-18 ई/एफ ब्लाक-3 लड़ाकू जैट विमानों के ताजातरीन रूप की आपूर्ति करने की अमरीकी की पेशकश की पड़ताल करेंगे। इस छोटे से लेख में हम उपरोक्ता चारों पहलुओं की तो छानबीन नहीं कर सकते हैं, फिर भी इस विचार-विमर्श में उक्त पहलुओं का ध्यान में रखा जाना जरूरी है।

विमानवाहक आधारित लड़ाकू विमान

चाहे यह संयोग हो या नहीं भी हो, ठीक उस समय जब प्रधानमंत्री मोदी, अमरीकी राष्ट्रपति तथा जापानी व आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्रियों के साथ, क्वॉड की शिखर बैठक में हिस्सा ले रहे थे, तभी दो एफ/ए-18 ई ब्लाक-3 लड़ाकू  जैट विमान गोवा में पहुंचे हुए थे। ये लड़ाकू विमान, 26 विमान वाहक पोत आधारित, मल्टी रोल लड़ाकू विमानों की खरीद के भारतीय नौसेना के टेंडर पर, खरीदी की प्रक्रिया के लिए तट-आधारित तथा उड़ान संबंधी परीक्षणों के लिए भारत पहुंचे थे। इस भूूमिका के लिए अमरीकी लड़ाकू विमान के अन्य प्रतिस्पद्र्घियों में एक तो रफाल-एम ही है यानी रफाल लड़ाकू विमान का समुद्री या विमान वाहक पोत-आधारित रूप। याद रहे कि रफाल विमान पहले ही भारतीय वायु सेना में जोड़ा चुका है। इसके अलावा रूसी मिग-29 के विमान है, जो इस समय भी भारत के इकलौते विमानवाहक पोत, आइएनएस विक्रमादित्य पर तैनात है। एक और दावेदार, स्वीडन का साब ग्रिपन विमान है। शुरूआत में 57 लड़ाकू विमानों का आर्डर दिया जाना था। लेकिन, बाद में वित्तीय सीमाओं के चलते, आर्डर को घटाकर 26 लड़ाकू विमानों तक सीमित कर दिया गया। इसके अलावा डीआरडीओ को एक घरेलू दो इंजनों वाले, विमान वाहक आधारित लड़ाकू विमान का विकास करने के लिए भी मंजूरी दे दी गयी है, जिसमें जाहिर है कि अनेक वर्ष लग जाएंगे।

ये 26 विमान वाहक पोत आधारित लड़ाकू विमान, जिनमें से 8 के दो सीट वाले लड़ाकू विमान होने की उम्मीद है, जो प्रशिक्षण के काम तथा विशेषीकृत तट-आधारित प्रहार कार्रवाइयों के काम आएंगे, भारत के पहले घरेलू तौर पर निर्मित विमान वाहक पोत, आइएसी-1 या आइएनएस विक्रांत पर तैनात किए जा सकते हैं। यह विमान वाहक पोत इस समय सागरीय आजमाइशों के दौर में है और इसके इसी साल बाद में भारतीय नौसेना में जुडऩे की उम्मीद है, जो पूर्वी सागरों में जिम्मेदारी संभालेगा। सरकार की कोशिश है कि इसे भारत की स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह के मौके पर, 15 अगस्त 2022 को नौसेना में शािमल कर लिया जाए। एक और घरेलू विमान वाहक पोत, आइएसी-2, जिसका नाम आइएनएस विशाल रखे जाने की उम्मीद है, उस पर काम फिलहाल टाल दिया गया है, जो कि वित्तीय सीमाओं के कारण ही हुआ है। लेकिन, बाद में इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।

आइएनएस विक्रमादित्य वास्तव में नये सिरे से बनाया-सजाया गया रूसी कीव-श्रेणी का विमान वाहक पोत है, जो 1980 के दशक के उत्तराद्र्घ में जब सोवियत सेना में था, इसका नाम बाकू हुआ करता था। यह विमान वाहक हमारे पश्चिमी सागरों की निगरानी करता है। और हमारी नौसेना की संकल्पना यह है कि एक तीसरा विमान वाहक होना चाहिए, जो या तो अन्य आवश्यक क्षेत्रों को कवर करेगा या फिर उसका उपयोग रख-रखाव के कामों के दौरान, अन्य दो विमान वाहकों में से किसी की भी जगह लेने के लिए किया जाएगा, ताकि हर वक्त कम से कम दो विमान वाहक हमारी नौसेना की सेवा के लिए उपलब्ध हों।

भारतीय नौसेना इस समय विक्रमादित्य पर 45 मिग-29 लड़ाकू विमान संचालित कर रही है, जिस संख्या में इस विमान के वेरिएंट तथा कुछ दो-सीटर लड़ाकू विमान भी शामिल हैं। यह उम्मीद की जाती है कि उन्हें आइएसी-1 विक्रांत पर भी संचालित किया जा सकता है। बहरहाल, मिग-29के जैटों का सेवा का रिकार्ड समस्यापूर्ण रहा है। उन्हें काफी ज्यादा समय अड्डों पर गुजारना होता है तथा रख-रखाव व मरम्मत में मुश्किल होती है। यहां तक कि नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक (सीएजी) तक ने इस संबंध में कठोर टिप्पणियां की हैं। 2014 में रूस के क्रीमिया का अधिग्रहण करने के बाद, यूक्रेन तथा पश्चिमी देशों के पाबंदियां लगाने से ही रूस को इन विमानों के लिए हिस्से-पुर्जे मुहैया कराने में समस्याएं आ रही थीं। उस दौर के मुकाबले इन लड़ाकू विमानों की मरम्मत आदि के मामले में स्थिति में सुधार तो हुआ है, फिर भी इस संबंध में तो अनुमान ही लगाए जा सकते हैं कि इस समय लगायी गयी और भी कठोर पाबंदियों तथा अपने उद्योगों पर इन पाबंदियों के प्रतिकूल असर से, रूस किस हद तक निपट पाएगा। कुल मिलाकर इसकी संभावना तो बहुत कम ही लगती है कि भारतीय नौसेना, वर्तमान टेंडर में और ज्यादा मिग-29 विमानों की खरीद का फैसला करेगी।

और चूंकि भारतीय नौसेना ने स्वीडन के ग्रिपेन जैट खरीदने पर तो कभी गंभीरता से विचार ही नहीं किया था, ऐसा लगता है कि वर्तमान आर्डर की होड़ में दो ही खिलाड़ी रहते हैं--राफेल का समुद्री रूप और एफ/ए 18 सुपर हार्नेट।

क्या आगे हैं सुपर हॉर्नेट?

रफाल-एम और एफ/ए सुपर हॉर्नेट, दोनों को ही खासतौर पर विमान वाहक पोतों से संचालन के लिए डिजाइन किया गया है। पहली नजर में ऐसा लगता है कि रफाल को स्वाभाविक रूप से इस होड़ में आगे होना चाहिए। जाहिर है कि रफाल कहीं ज्यादा आधुनिक विमान है, जबकि बोइंग एफ/ए-18 का डिजाइन कहीं पुराने जमाने का है, 1990 के दशक का। बेशक, उसके बाद से इस विमान में भी अनेक बड़े अपग्रेड हो चुके हैं तथा काफी कुछ नये सिरे से डिजाइन भी किया जा चुका है। वास्तव में, ऐसा लगता है कि संभवत: एफ/ए-18 लड़ाकू विमानों की डिजाइन के इस पुरानेपन के ही चलते, इस विमान को एमएमआरसीए विमान के लिए भारतीय वायु सेना के उस टेंडर की दौड़ से शुरू से ही बाहर कर दिया गया था, जिसमें अंतत: रफाल विमान को चुना गया था। उस टेंडर में भी अंत में होड़ में रफाल और यूरोफाइटर ही रह गए थे।

चूंकि रफाल विमान पहले ही भारतीय वायु सेना की सेवा में हैं, विमानों के लिए हिस्से-पुर्जे मुहैया कराने, उनके रख-रखाव आदि के पहलुओं से यही बेहतर होगा कि विमान वाहक बेड़े पर एक और किस्म के विमान लाने के बजाए, रफाल विमानों की ही और संख्या जोड़ी जाए, भले ही ये विमान नौसेना के लिए खरीदे जाने हैं।

और अगर इस श्रेणी के अपेक्षाकृत हल्के मिग-29 विमानों को होड़ से बाहर कर दिया जाता है तथा कहीं भारी रफाल तथा एफ/ए-18 विमानों के बीच ही चुनाव किया जाना है, तो इन विमानों की इसकी क्षमता बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है कि वे भारतीय नौसेना के विमान वाहकों की स्की जम्प तथा एसटीओबीएआर (शॉर्ट टेक ऑफ बट अरेस्टेड) प्रणालियों का उपयोग कर, जिसके तहत रोकने वाले केबलों की मदद से विमान को रोका जाता है, उड़ान भर सकें तथा उतर सकते हों। भारतीय विमान वाहकों पर अपेक्षाकृत भारी रफाल या एफ/ए-18 के रहने का एक फायदा यह भी होगा कि इन पर कहीं ज्यादा विस्फोटक सामग्री लादी जा सकती है, ये विमान कहीं ज्यादा दूरी तक मार सकते हैं और उनके जरिए कहीं ज्यादा जटिल मिशनों को अंजाम दिया जा सकता है।

रफाल-एम के फील्ड ट्राइल पहले ही गोवा में आइएनएस हंस नौसेनिक अड्डों किए जा चुके हैं। इसके लिए इस नौसेनिक अड्डों पर, रूस निर्मित विक्रमादित्य तथा खुद भारत में निर्मित विमान वाहकों के स्की-जम्प डैक का आभास देने वाली स्की जम्प व्यवस्था जुटायी गयी थी। सुपर हॉर्नेट विमानों ने अनगिनत कम्यूटर सिमुलेशन टैस्टों के जरिए, 2020 के दिसंबर में अमरीका में मैरीलेंड में, पटुक्सेंट नदी में एक भौतिक सुविधा पर और अब गोवा में आइएनएस हंस पर, अपनी स्की-जम्प के लिए उपयुक्तता का सबूत दिया है। इस पहलू से, दोनों लड़ाकू विमान बराबरी पर लगते हैं।

बोइंग की ओर से अपनी ‘पुराने विमान’ की छवि को बदलने के लिए बड़ा जोर लगाया जा रहा है। वह यह तो दिखा ही रहा है कि वह आज के समय का एक उन्नत लड़ाकू विमान है, इसके साथ ही साथ भारत को अनेक प्रलोभन भी दिए जा रहे हैं कि बाजी उसके ही हाथ रहे। बोइंग इस पर जोर दे रहा है कि एफ/ए-18 को दुनिया की दूसरी अनेक नौसेनाओं ने भी विमान वाहक पोतों के लिए दूसरे विमानों के मुकाबले में चुना है और इनमें आस्ट्रेलिया जैसा उसका नया ग्राहक भी शामिल है। ये नौसेनाएं, और भी महंगे एफ-35 विमानों के मुकाबले जो वैसे भी सभी देशों के लिए शायद उपलब्ध भी नहीं होगा, इसे ही पसंद कर रही हैं। वास्तव में बोइंग के पक्ष में पलड़ा झुकाने के लिए विमान की खरीद की कीमत, उसके संचालन तथा रख-रखाव की लागत आदि को, एक प्रमुख दलील बनाया जा रहा है।

सुपर हॉर्नेट में जीई एफ-414 इंजन का उपयोग होता है, जिसका उपयोग भारत के अपने देश में ही विकसित तेजस लाइट कंबैट एअरक्राफ्ट (एलसीए) में भी हो रहा है और इसी इंजन का उपयोग एलसीए विमान के दूसरे विभिन्न रूपों में भी होने की संभावना है, जिनके विकास पर काम चल रहा है। इससे, लॉजिस्टिक्स की अनुरूपता संभव होगी और लागत कम हो जाएगी।

दाम भी और दंड भी

बोइंग इस पर भी बड़ा जोर दे रहा है कि सुपर हॉर्नेट ‘प्रेसीजन लैंडिंग सॉफ्टवेयर’ से लैस है, जो ग्लाइडिंग ढलान के हिसाब से, विमान उतरने की रफ्तार को उपयुक्ततम करता है और इस तरह भारतीय विमान वाहकों पर उपलब्ध ऑप्टिकल लैंडिंग प्रणालियों पर निर्भरता से मुक्ति दिलाएगा। बोइंग इस पर भी जोर दे रहा है कि भारत के लिए जिस सुपर हॉर्नेट ब्लाक-3 की पेशकश की जा रही है, वह बहुत ही नैटवर्क-संपन्न विमान है और इसमें भारत द्वारा अमरीका से खरीदे गए अन्य सैन्य संसाधनों जैसे अमरीकी 17 पी8-आइ मैरीटामन रिकॉनेंस विमान तथा हाल ही में खरीदे गए पनडुब्बी-रोधी एमएच-60 हैलीकोप्टरों के साथ, इन-बिल्ट नैटवर्किग शामिल है। इसके अलावा विमान के पूरे जीवन काल के लिए सर्विसिंग की साझेदारी की पेशकश भी की जा रही है।

इसके अलावा यह भी बताया जा रहा है कि इस सौदे में एक अतिरिक्त फायदा यह है कि भविष्य में जो भी मानव-रहित विमान आएंगे, उनसे भी इसके नैटवर्क की अनुरूपता रहेगी। साफ तौर पर इशारा भारत की, अमरीकी कंपनी जनरल एटोमिक्स से 30 सशस्त्र शिकारी/एमक्यू9बी ड्रोनों की खरीद की ओर है, जिसका प्रस्ताव अभी विचाराधीन ही है और जिसे अभी अंतिम रूप से मंजूरी नहीं मिली है। इसके अलावा रक्षा प्रौद्योगिकी व्यापार पहल के अंतर्गत जिस एक उन्नत प्रौद्योगिकी परियोजना की निशानदेही की गयी है, जो दोनों पक्षों की जरूरतों तथा क्षमताओं के साथ फिट बैठती है, विमान वाहक प्रौद्योगिकियों का ही क्षेत्र है। इसके तहत भारतीय विमान वाहक पोतों पर, हाइब्रिड इलैक्ट्रिक प्रोपल्शन सीएटीओबीएआर प्रणालियों तथा इलैक्ट्रोमैग्नेटिक एअर लिफ्ट प्रणालियों के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण या संयुक्त रूप से विकास की संभावनाओं की पड़ताल की जा रही है और जाहिर है कि अमरीका इनके मामले में भारत के प्रस्तावों में कहीं ज्यादा दिलचस्पी लेगा, बशर्ते भारत उससे और ज्यादा विमान वाहक आधारित प्लेटफार्म खरीदे, जैसे विमान वाहक आधारित ड्रोन, जिनके मामले में भी भारत और अमरीका के बीच बातचीत चल रही है।

ऐसा माना जाता है कि भारत और अमरीका के विदेश तथा रक्षा मंत्रियों के ‘‘2+2’’ शिखर सम्मेलन में सुपर हॉर्नेट विमान और शिकारी ड्रोन, दोनों की खरीद पर चर्चा हुई थी। दूसरी संभावित खरीददारियां, ये दोनों प्रस्तावित खरीददारियां, सब के साथ कुछ प्रलोभन भी लगाकर पेश किए गए होंगे, जबकि ऐसे प्रलोभनों का कभी भी ऐन मौके पर वापस खींचा जा सकता है। सवाल यह है कि  क्या भारत दाम और दंड दिखाने की इस चाल में आएगा।    

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भारतीय विमान वाहक पोतों के लिए अमरीकी लड़ाकू विमान के राजनीतिक मायने              

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