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क्या एड्स और कोविड-19 जैसी आपदा बनेगा मंकीपॉक्स?

पश्चिमी जगत भले ही इन बीमारियों के बारे में भूल गया हो, लेकिन टीबी, मलेरिया, डेंंगू, यलो फीवर तथा इसी प्रकार की अन्य बीमारियों को झेलने वाली दुनिया की 60% से ज़्यादा आबादी तो इन्हें नहीं भूल सकती है।
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चेन्नई एयरपोर्ट पर स्वास्थ्यकर्मी मंकीपॉक्स ग्रसित देशों से आये यात्रियों की मॉनिटरिंग करते हुए।

चार हजार से ज्यादा केसों (जून के आखिर तक) के साथ, यूरोप तथा उत्तरी अमरीका में मंकीपॉक्स का ताजा विस्फोट, अंतर्राष्ट्रीय खबरों में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस पर प्रतिक्रिया करते हुए, दुनिया भर में इस संक्रमण के फैलाव की निगरानी शुरू कर दी है और इसके लिए टैस्टिंग तथा तत्काल उठाने के कदमों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। फिर भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब तक (जून के आखिर तक) मंकीपॉक्स को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य इमर्जेंसी घोषित नहीं किया है।

जब तक मंकीपॉक्स अफ्रीका तक ही सीमित था, जहां मध्य तथा पश्चिमी अफ्रीका में इस बीमारी के ऐसे ही विस्फोट पहले भी होते रहे थे, इसके संबंध में दुनिया भर में कोई खास चिंता नहीं थी। लेकिन, अब जबकि मंकीपॉक्स धनी देशों तक पहुंच गया है, फौरन यह मीडिया में आ गया है और इस संबंध में सुर्खियां बन रही हैं तथा टेलीविजन पर कवरेज हो रहा है।

बहरहाल, मंकीपॉक्स के सिलसिले में उठाए जा रहे कदमों में जाने से पहले, जरा इस पर गौर कर लिया जाए कि मंकीपॉक्स है क्या और इसके अभी प्रकट होने की वजह क्या है?

पहली बात तो यह कि इस संक्रमण के लिए मंकीपॉक्स नाम ही भ्रामक है। वास्तव में यह वाइरस कोई बंदरों में सामान्य या अहानिकारक रूप से नहीं पाया जाता है। इसके बजाए, यह वाइरस सामान्य रूप से मध्य तथा पश्चिमी अफ्रीका में चूहों आदि में पाया जाता है। इसका मंकीपॉक्स का भ्रामक नाम इसलिए पड़ गया कि इसके शुरूआती केसों में से, किसी संक्रमित बंदर के एक बच्चे को काटने से, उसमें इस बीमारी का संक्रमण हो गया था। वास्तव में यह वायरस, ऑर्थोपॉक्सीवाइरस परिवार में आता है और इस परिवार स्मालपॉक्स तथा काऊपॉक्स जैसे वाइरस भी आते हैं।

1970 से लगाकर ही, जब-तब मध्य तथा पश्चिम एशिया में मंकीपॉक्स वाइरस फैलता रहा है, लेकिन शेष दुनिया ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया था। पिछले दस वर्षों में ही कांगो जनतांत्रिक गणराज्य में इस संक्रमण के हजारों संदिग्ध मामले सामने आए थे और इससे सैकड़ों मौतें होने का भी संदेह है। 2017 में नाइजीरिया में इस बीमारी का एक उल्लेखनीय विस्फोट हुआ था और वहां मंकीपॉक्स के 700 से ज्यादा पक्के तथा संदिग्ध केस आए थे। यही नहीं, जहां इस वाइरस का जो पश्चिम अफ्रीकी वैरिएंट अब  योरप तथा उत्तरी अमरीका में फैल रहा है, उससे मृत्यु दर करीब 1 फीसद ही है, वही इसी वाइरस के मध्य अफ्रीकी वैरिएंट से मृत्यु दर करीब 10 फीसद रही है यानी इससे दस गुनी ज्यादा।

अब जीनोमिक अध्ययन दिखाते हैं कि मंकीपॉक्स काफी समय से अफ्रीका में बना हुआ है। लेकिन, इसके इससे पहले नहीं बल्कि इस समय ही बढऩे का एक मुख्य कारण है, स्मालपॉक्स के उन्मूलन के बाद, उसके टीकाकरण का बंद कर दिया जाना। स्मालपॉक्स का टीका लोगों को मंकीपॉक्स के संक्रमण से भी बचाने का काम करता था। अब चूंकि युवतर आबादी को स्मालपॉक्स का टीका नहीं लगा है, आबादी में ऐसा हिस्सा बढ़ रहा है, जिसे मंकीपॉक्स के खिलाफ प्रतिरोधकता हासिल नहीं है और इसलिए, लोगों के मंकीपॉक्स से संक्रमित होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। 45 वर्ष या उससे ज्यादा के आयु वर्ग के लोगों में अब भी इस संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधकता बनी हुई है।

2017 में, नाइजीरियाई महामारी वैज्ञानिक एडिसोला यिन्का-ओगुन्लेये तथा अन्य लोगों ने आगाह किया था कि यह वाइरस, नये-नये तरीकों से फैल रहा था। 2017 में नाइजीरिया में हुए इस बीमारी के विस्फोट से पहले तक, ऐसा समझा जाता था कि यह वाइरस ग्रामीण इलाकों तक ही सीमित था, जहां शिकारियों के जानवरों के संपर्क में आने से यह संक्रमण फैलता था। 2017-उत्तर दौर में, यह शहरी इलाकों में दिखाई देने लगा। कुछ मामलों में संक्रमित होने वालों के जननांगों पर फफोले पाए जाते थे, जो इसका इशारा करता था कि हो सकता है कि वाइरस यौन-संपर्क के जरिए भी फैलता हो।

और एक बार जब इस वाइरस का फैलाव छितरी हुई आबादी वाले क्षेत्रों से, कहीं घनी आबादी वाले शहरी इलाकों की ओर होने लगा, अब इसका जैसा तेज रफ्तार से फैलाव देखने में आ रहा है, वह तो जैसे होने का इंतजार ही कर रहा था। मंकीपॉक्स अब पशु-आधारित या जूनोटिक संक्रमण नहीं रह गया है। उस तरह का संक्रमण, वाइरस के होस्ट के रूप में चूहों आदि से ही मनुष्यों में होता है और कुछेक केसों के बाद ही ढल जाता है। लेकिन, अब तो अनेक देशों में इसका मानव से मानव तक संक्रमण हो रहा है और यूके, जर्मनी, स्पेन तथा पुर्तगाल में बड़ी संख्या में लोग इससे संक्रमित हुए हैं।

जीनोमिक अध्ययन दिखाते हैं कि यह वाइरस संभवत: 2018 से ही पूर्वी तथा उत्तरी अफ्रीका में फैल रहा था। योरप में भी शायद कुछ अर्से से यह वाइरस सामुदायिक रूप से फैल चुका था। ऐसा माना जाता है कि शुरू-शुरू में यहां इस वाइरस के संक्रमण के जो केस आए होंगे, इस संक्रमण के संबंध में सार्वजनिक जागरूकता के अभाव में उन्हें किसी प्रकार के त्वचा रोग या एलर्जी के खाने में ही डाल दिया गया होगा। इस समय इसके संक्रमण की रफ्तार कहीं तेज लग रही है, लेकिन बहुत संभव है कि ऐसा इसलिए लग रहा हो कि मंकीपॉक्स के संक्रमण के मामलों को अब फौरन पहचान लिया जाता है।

इस वायरस के संक्रमण की दरों के माप तक पहुंंचने में अभी कुछ हफ्ते और लगेंगे। सार्स-कोव-2 या कोविड-19 वाइरस के मुकाबले, मंकीपॉक्स वाइरस का मुकाबला करने में कुछ आसानियां भी हैं। ऐसा लगता है कि यह वाइरस सीधे संपर्क से ही ज्यादा फैलता है और इसलिए संक्रमितों को, बाकी लोगों से अलग रखना कहीं आसान होता है। यहां तक कि जब इसके मरीजों की सूखी त्वचा झड़ती है, जिसके अंश हवा में रह सकते हैं तथा उनके साथ वाइरस का संक्रमण भी हो सकता है, तब भी सार्स-कोव-2 या फ्लू जैैसे वाइरसों के मुकाबले, इस वाइरस की रोकथाम कहीं आसान होनी चाहिए। बहरहाल, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दी गयी ताजा जानकारी के अनुसार, सांस के साथ निकलने वाले वाष्प/द्रव कणों के साथ भी यह वाइरस फैल सकता है। इस वाइरस के मामले में एक और आसानी से यह भी है कि स्मॉल पॉक्स के टीके तो पहले से ही मौजूद हैं। इनका उपयोग कर तेजी से टीकाकरण कर स्वास्थ्यकर्मियों को और संक्रमितों के संपर्क में आने वाले दूसरे लोगों को भी, इस वाइरस से सुरक्षा मुहैया करायी जा सकती है। शुरूआत में ही मिल जाए तो यह टीका, लोगों को इस बीमारी के ज्यादा बढऩे से भी बचा सकता है।

मंकीपॉक्स के हाल के मामलों में, संक्रमण ज्यादा समलैंगिक पुरुषों में फैला लगता है। लेकिन, जैसा कि विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है, यह कोई यौन संबंध संक्रमित रोग नहीं है और यह संक्रमण तो संपर्क मात्र से फैलता है। कुछ खास ग्रुपों में यह संक्रमण इसलिए फैला लगता है कि अक्सर ये कुछ ही लोगों तक सीमित ग्रुप होते हैं और जाहिर है कि यौन संबंध, घनिष्ठ संपर्क का तकाजा करता है। स्वास्थ्य अधिकारियों की समस्या यह है कि जिन समूहों के बीच इस संक्रमण के फैलने का खतरा ज्यादा है, उन्हें कैसे इस संबंध में  सचेत किया जाए और दूसरी ओर उन्हें कलंकित भी नहीं किया जाए, जैसाकि एड्स के मामले में हुआ था। एड्स के प्रसार के शुरूआती दौर में इसे समलैंगिक पुरुषों के बीच ही फैलने वाली बीमारी माना जाता था। इसका नतीजा यह हुआ कि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्थाओं द्वारा इस समस्या को काफी समय तक अनदेखा किया जाता रहा और बाद में यह काफी बड़े पैमाने पर फैल गयी।

मंकीपॉक्स का मौजूदा विस्फोट, अफ्रीका में इस संक्रमण से उस दौर में नहीं निपटे जाने का परिणाम है, जब यह संक्रमण जब-तब ही सामने आता था और आसानी से इस पर अंकुश लगाया जा सकता था। अगर मंकीपॉक्स की पहचान करना और उसकी रोक-थाम करना इतना ही आसान है, तो क्या वजह थी कि इस बीमारी को अफ्रीका में इतने समय तक बेरोक-टोक चलते रहने दिया गया? आखिरकार, 1970 के दशक से ही मंकीपॉक्स के फैलने के प्रकरण होते रहे थे। तब क्या वजह है कि इस संक्रमण की चुनौती को लेकर विश्व स्वास्थ्य व्यवस्था की नींद तभी कहीं जाकर खुली, जब इस संक्रमण का असर धनी देशों तक पहुंचने लगा?

जाने-माने अमरीकी संक्रामक रोग विशेषज्ञ, एंथनी फूची का कहना था कि पश्चिम तो मानता है कि एंटी-बायोटिक्स दवाओं तथा टीकों के बल पर उसने, संक्रामक रोगों के खतरे पर जीत हासिल कर ली है। यह बात मॉलीक्यूलर बायलॉजिस्ट, पीटर होटेज ने अपनी पुस्तक, ‘फॉरगॉटन पीपुल, फॉरगॉटन डिसीजेस’ में लिखी है। इस पुस्तक में उन्होंने उन बीमारियों की चर्चा की है, जिन्हें अमीर देशों ने भुला ही दिया है। क्यों? क्योंकि अमीर देशों को लगता है कि संक्रामक बीमारियां तो गरीब देशों की ही समस्या हैं और उनके लिए तो इतना ही करना काफी है कि अपने यहां इन गरीब देशों से लोगों के प्रवेश पर अंकुश लगा दें। इसलिए, अमीर देशों को इसकी परवाह करने की जरूरत ही नहीं है कि गरीब देशों में संक्रामक बीमारियां जमकर बैठ गयी हैं और हर साल दसियों लाख लोगों की जान ले रही हैं।

अब पश्चिमी जगत भले ही इन बीमारियों के बारे में भूल गया हो, लेकिन टीबी, मलेरिया, डेंंगू, यलो फीवर तथा इसी प्रकार की अन्य बीमारियों को झेलने वाली, दुनिया की 60 फीसद से ज्यादा आबादी तो इन्हें नहीं भूल सकती है। बहरहाल, संक्रामक रोगों पर ‘जीत’ हासिल कर लेने की इस गफलत ने ही पश्चिम में ऐसी बीमारियों के संबंध में सामूहिक विस्मरण की स्थिति पैदा कर दी है, जिन बीमारियों से दुनिया अब भी जूझ रही है। लेकिन, उनकी गलती यह मानकर चलने में भी निहित थी कि सूक्ष्म जीवाणुओं में कोई बदलाव नहीं होते हैं और उनके खिलाफ हमारे बचाव लंबे अर्से तक काम करते रहेंगे। लेकिन बीमारियों के भी पलटकर आने के अपने तरीके हैं। एड्स की महामारी ने जाहिर है कि उनके लिए पहली सेंध दिखाई थी। कोविड-19 महामारी ने साबित कर दिया है कि किसी भी विषाणु में बदलाव का एक चरण, कभी भी एक नये संक्रमण की चुनौती खड़ी कर सकता है।

इन संक्रामक बीमारियों को अपनी सीमाओं से दूर रखने में समर्थ होने की पश्चिम की इसी गलतफहमी के चलते, कोविड-19 की महामारी ने उसे बिना किसी तैयारी के औचक ही धर दबोचा। मंकीपॉक्स के मामले में इसे एक बार फिर दोहराया गया है।

ऐसे मरीजों को छोड़र, जिनकी रोग प्रतिरोधकता पहले ही कमजोर हो चुकी हो या जो अब चलन में आ गयी शब्दावली के हिसाब से सह-रुग्णताओं (को-मोर्बिडिटीज) के शिकार हों, मंकीपॉक्स से जान का खतरा नहीं होता है। वैसे भी टेकोविरिमेट नाम की एंटीवाइरल दवा, जिसका स्मॉलपॉक्स के उपचार में अधिकृत रूप से उपयोग होता आया है, मंकीपॉक्स के मामले में भी कारगर साबित होगी। लेकिन, यह सब तो तभी संभव है जब बौद्घिक संपदा अधिकारों की ऊंची कीमत, फिर से एड्स जैसी भयंकर आपदा की नौबत नहीं पैदा कर दे। इसी प्रकार, अनेक देशों के पास स्मालपॉक्स के टीकों के भंडार जमा हैं और इनका उपयोग कर के तेजी से ऐसे सभी लोगों का टीकाकरण किया जा सकता है, तो मंकीपॉक्स से संभावित रूप से संक्रमित किसी व्यक्ति के संपर्क में आए हों। इनकी मदद से और पुराने ढंग के महामारी पर नियंत्रण के तरीकों यानी टैस्ट करने, संक्रमितों को अलग करने तथा संक्रमण की मार में आने वालों का टीकाकरण करने के जरिए, इस महामारी पर काबू पाया जा सकता है।

तो अफ्रीका के मामले में ऐसे कदम क्यों नहीं उठाए गए? पहले इस तरह के कदम नहीं उठाए जाने के चलते ही यह बीमारी और बड़े दायरे में फैल गयी है। अफ्र्रीकी स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसकी ओर भी ध्यान खींचा है कि हालांकि विभिन्न देशों ने, आपात स्थितियों का मुकाबला करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन से, स्मालपॉक्स के 3 करोड़ 10 लाख टीके मुहैया कराने का वचन दे रखा है, लेकिन मंकीपॉक्स का मुकाबला करने के लिए अफ्रीका को एक टीका भी उपलब्ध नहीं कराया गया है। इसे फौरन दुरुस्त करने की जरूरत है और इसके साथ ही संभावित संक्रमितों की टैस्टिंग को तथा सस्ते दामों पर, जिस पर आम लोग इन दवाओं को खरीद सकते हों, एंटीवाइरल दवाओं के उपयोग को भी बढ़ाने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो हमें कोविड-19 के टीके से संबंधित रंगभेद की पुनरावृत्ति देखनी पड़ सकती है और अफ्रीका में बहुत ऊंचे दाम की पेटेंटयुक्त एंटीवाइरल दवाओं के चलते हुई एड्स की भारी तबाही को दुहराया जा सकता है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Will Monkeypox Outbreak Replay AIDS and Covid-19 Script?

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