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सिद्धांत के प्रति निष्ठा ही कम्युनिस्टों को लेनिन का सबक है

बिहार की राजधानी पटना स्थित 'केदार दास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान' ने 'जनशक्ति भवन' में लेनिन जयंती का आयोजन किया। 
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केदार दास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान पटना द्वारा सर्वहारा के महान शिक्षक लेनिन की 154 वीं जयंती के मौके पर 'जनशक्ति भवन' में विमर्श का आयोजन किया गया। विषय था 'आज के कम्युनिस्टों के लिए लेनिन के सबक'। इस मौके पर पटना के विभिन्न जनसंगठनों के प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। 

आगत अतिथियों का स्वागत केदार दास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान के सचिव अजय कुमार ने किया। 

विषय प्रवेश करते हुए चर्चित कम्युनिस्ट नेता जब्बार आलम ने कहा "लेनिन ने क्रांति के वक्त जो मांग उठाई थी शांति, रोटी, और जमीन यह आज भी प्रासंगिक है। लेनिन ने कैसे बदलते समय के अनुसार अपनी रणनीति को बदला यह हमें सीखना चाहिए। लेनिन के सबकों को गांव- गांव तक लोगों को पहुंचाना चाहिए।"

जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर सुबोध नारायण मालाकार ने कहा "लेनिन की कार्ल काउत्सकी और बर्नस्टीन से बहस हुई ठीक वैसे ही जैसे मार्क्स की बहस प्रूधों के साथ हुई थी। दोस्ती के बाद भी मार्क्स ने प्रूधों के गलत विचारों का विरोध नहीं छोड़ा। ठीक उसी प्रकार लेनिन ने काउत्सकी की उस सिद्धांत की आलोचना की कि अब क्रांति की जरूरत नहीं होगी बल्कि पूंजीवाद ऐसी स्थिति में आ गया है धीरे धीरे करके ही समाजवाद आ जाएगा किसी मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत नहीं होगी। क्रांति के बाद लेनिन ने कई महत्वपूर्ण मसलों पर नीतिगत विचार पहले से लिखकर ले लाए थे। यहां लेनिन हमेशा उदार रहे उनकी प्लेखनोव तक से बहस हुई है। क्रांति की प्रक्रिया जिस बात से अवरुद्ध पाते थे तो उसका विरोध किया करते थे। लेनिन बाद में नई आर्थिक नीति लेकर आए जिसे बाद में जमीन जोतने वालों को छूट देनी पड़ी। लेनिन ने रूस के बिजलीकरण पर काफी जोर दिया। लेनिन कहा करते थे कि जब तक सोवियत संघ में बिजली नहीं आएगा तक तक हम आगे नहीं बढ़ सकते। हमारे देश में भगत सिंह फांसी के वक्त भी लेनिन की किताब पढ़ रहे थे। लेनिन का हिंदुस्तान पर गहरा प्रभाव है। क्रांतिकारी शक्तियों को रास्ता प्रदान करना कम्युनिस्ट पार्टी का काम है।"

प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने अपने संबोधन में कहा "लेनिन का कम्युनिस्टों के लिए आज के समय में सबसे बड़ा सबक यही है कि सिद्धांत को प्रमुखता प्रदान करना नहीं छोड़ें। आज कल सिद्धांत के बदले व्यवहार को तरजीह देने की बात की  जाती है। व्यवहार को प्रमुखता देना दरअसल कम्युनिस्ट राजनीति को बुर्जुआ राजनीति के मातहत करना है। लेनिन की पार्टी का अपना धड़ा, बोलशेविक धड़ा जिसका अखबार 'प्रावदा' था, 1912 में बना। और मात्र पांच साल के अंदर 1917 में क्रांति करने में सफल हो गए।  दूसरा सबक यह है कि कम्युनिस्टों को बुर्जुआ पब्लिक ओपिनियन के सामने दबाव में नहीं आना चाहिए। जब प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ा तो सेकेंड इंटरनेशनल के तमाम नेता अपने अपने शासक वर्ग के पीछे होकर युद्दोन्माद में बह गए। लेनिन इस उन्माद में नहीं बहे। लेनिन के साथ बहुत चंद लोग खड़े रहे थे। उनके अलावा रोजा लक्जमबर्ग, कार्ल लीबनेख्ट आदि थोड़े से लोग थे। लेकिन इतिहास ने उन्हें ही सही साबित किया। राष्ट्रीय उन्माद के बदले अंतराष्ट्रीयतावाद को कभी नहीं छोड़ना। यह भी आज के कम्युनिस्टों के लिए बड़ा सबक है। लेनिन का एक बड़ा योगदान राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष को बढ़ावा देना है। भारत जैसे तीसरी  दुनिया के देशों को इसका लाभ मिला है। भारत में तो लगभग हर राष्ट्रीय नेता ने लेनिन के प्रति सम्मान प्रकट किया है। यहां तक कि अल्लामा इकबाल ने उनपर कविता लिखी। लेनिन का सबक यह भी है साथ ही संघर्ष के साथ-साथ राज्यसत्ता के सवाल को केंद्रित करना है।"

ए.एन सिन्हा संस्थान के संजय कुमार ने अपने संबोधन में बताया "इंदिरा गांधी के वक्त जितने प्रगतिशील सुधार हुए वे सब सी.पी.आई के कारण हुए। अभी जे.एन.यू में चुनाव हुए लेकिन सबों ने अलग-अलग लड़ाई लड़ी यदि एक साथ लड़ते तो ज्यादा बेहतर होता। अभी के चुनाव में हम देखते हैं कि बहुत कम वोटिंग हुई है इससे वाम को फायदा होने की उम्मीद है। लेनिन में परिवर्तन करने क्षमता थी इसके साथ वे आलोचना के स्वतंत्रता को महत्व देते थे।"

इंजीनियर सुनील ने अपने संबोधन में कहा "स्टालिन ने लेनिन के बारे में कहा है लेनिनवाद आज के युग का मार्क्सवाद है। 'प्रोब्लम्स ऑफ लेनिनिज्म' जैसी किताब स्टालिन ने लिखा है। आज के साम्राज्यवाद को समझने में लेनिन की रचनाओं से समझने में मदद मिलती है। आज हमें बुर्जुआ दलों से समझौता करना पड़ता है। लेकिन हमें वर्तमान समय में देखना है कि हम भाजपा को कैसे हटाएं। आम जनता सिर्फ प्रोपेगेंडा और एजीटेशन के अलावा हमें पॉलिटिकल एजुकेशन पर भी ध्यान देना होगा। लेनिन के सिद्धांतों पर चलने वाली वाम दलों को देखना है कि हम जीतें या नहीं लेकिन भाजपा को हरायें। इंदिरा गांधी और यूपीए-वन के दौरान सुधार तो बहुत कराया लेकिन उससे क्रांति की दिशा में बढ़ने में सहायता नहीं मिली।" 

पटना विश्विद्यालय में लोक प्रशासन के प्राध्यापक सुधीर कुमार के अनुसार "लेनिन कुशल व्यावहारिक राजनीतिज्ञ थे। लेनिन की तमाम कार्यनीतियों को ध्यान से देखते हैं तो वह कम्युनिस्ट पार्टी के लिए सीखने की जरूरत है। साम्यवादी आंदोलन को व्यवहारिक रूप देने में उनके अनुभव है उससे सबक लेने की जरूरत है। बहुमत के मसले को अल्पमत को मानना होगा यह लेनिन का सबक है। इस बात को बिना शर्त पालन करना चाहिए। लेनिन मध्यमवर्गीय बुद्धिजीवियों को आंदोलन में साथ लाने की बात की थी।"

एटक के उपमहासचिव डीपी यादव ने कहा "आज भारत में मोदी जी के शासनकाल में जो नफरत फैलाया जा रहा है इसके खिलाफ खड़ा होना होगा। किसानों, मजदूरों, छात्रों-नौजवानों पर जुल्म किया जा रहा है। मजदूरों की छंटनी की जा रही है।"

सामाजिक कार्यकर्ता उदयन ने कहा "भारत में एक 'डीप स्टेट' काम कर रहा है। आज जो चुनाव चल रहा है उससे पता चलता है कि अधिकांश दलों में कोई फर्क ही नहीं है।"

सी.पी.आई के राज्य सचिव मंडल सदस्य ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा "लेनिन का यह उद्धरण पूरी दुनिया के लिए है कि जीवन मनुष्य की कीमती संपत्ति है। और यह मनुष्य को एक बार ही जीने के लिए मिलती है। इसलिए उसे ऐसे जीना चाहिए कि मरते हुए वह कह सके कि मेरी पूरी शक्ति और ताकत मानव जाति की मुक्ति के लिए समर्पित हो सके। मानव जाति की मुक्ति के लिए मार्क्स, एंगेल्स के सिद्धांत को उसे अमली जामा पहनाने और सरजमीन पर उतारने का काम लेनिन ने किया। इसी का परिणाम हुआ कि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में समाजवाद से प्रेरित मुक्ति क्रांतियों को आवेग मिला। रूसी क्रांति के महानायक को इस संदर्भ में देखने की जरूरत है। भारत के संदर्भ में भी लेनिन ने सही राह दिखाने का काम किया। हमें समग्रता में देखने की जरूरत है। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कम्युनिस्ट लोग बड़ी संख्या में जेल में थे।" 

इस कार्यक्रम का संचालन अमरनाथ ने किया। समारोह में मौजूद प्रमुख लोगों में एटक नेता गजनफर नवाब, मजदूर नेता आनंद शर्मा, लेखक चितरंजन भारती, छात्र नेता पुष्पेंद्र शुक्ला, ए.आई.एस.एफ के राज्य सचिव सुधीर कुमार, सुमंत शरण, रामपुकार मुखिया, अशोक सिन्हा, जितेंद्र कुमार, शिक्षक नेता भोला पासवान, हरदेव ठाकुर, सीपीआई नेता रामलला सिंह आदि मौजूद थे।   

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