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तिरछी नज़र: राजा सरकार जी और उनकी 'भ्रष्टाचार निरोधी अंगूठी'

सरकार जी ने मीटिंग में अपने नवरत्नों से कहा कि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। पहले से अधिक हो गया है। और अब तो जनता भी यह सब समझने लगी है। उसे और अधिक भुलावे में रखना मुश्किल है। तो इस स्थिति से कैसे निपटा जाए। 
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प्रतीकात्मक तस्वीर। कार्टून साभार : सतीश आचार्य

बात पुरानी है। इतनी पुरानी भी नहीं है कि लोगों को याद भी नहीं रहे। हुआ यह कि जम्बू द्वीप के भारत खण्ड में सरकार जी नाम के एक राजा, राजा जी चुने गए। वह राजा, राजा सरकार जी, जनता से बहुत सारे वायदे करके राजा बने थे। उन वायदों में से एक था, भ्रष्टाचार से मुक्ति।

यूं तो वायदे बहुत सारे किए गए थे जिनमें से एक भी पूरा नहीं हो पा रहा था। राजा सरकार जी को वायदे पूरा करने की बहुत चिंता भी नहीं थी परन्तु जब भी नए राजा के चुनाव की बात आती थी तब स्वयं सरकार जी को कहीं न कहीं यह खलने लगता था कि जनता को दिया कोई भी वायदा पूरा नहीं हो रहा है। हां, हां आप ठीक ही समझे। बात पुरानी नहीं है। बात आधुनिक काल की ही है, जब जनता अपना राजा खुद चुनने लगी थी। और हां, ऐसे भी नहीं चुनती थी कि राजधानी की एंट्रेंस पर जो व्यक्ति सबसे पहले पहुंचा, जिसके गले में हाथी ने माला डाल दी, उसे ही अपना राजा चुन लिया। बाकायदा वोट डाल कर चुनती थी।

तो सरकार जी को लगा कि कम से कम यह एक वायदा तो पूरा किया ही जा सकता है। हालांकि भ्रष्टाचार के कोई बड़े आरोप सरकार जी पर नहीं लगे थे परन्तु दबे मुंह बातें तो होने ही लगी थीं। और यह सही भी था कि भ्रष्टाचार था और चहूं ओर था। यह तो मीडिया अपने में हाथ था कि भ्रष्टाचार उजागर नहीं कर रहा था। ऐसे समय में सरकार जी ने अपने नवरत्नों की एक मीटिंग बुलाई।

सरकार जी ने मीटिंग में अपने नवरत्नों से कहा कि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। पहले से अधिक हो गया है। और अब तो जनता भी यह सब समझने लगी है। उसे और अधिक भुलावे में रखना मुश्किल है। तो इस स्थिति से कैसे निपटा जाए। 

एक नवरत्न ने सुझाया कि उन्हें एक ऐसे साधु महाराज का पता है जो ऐसी किसी भी स्थिति से निपटना जानते हैं। जमाना आधुनिक हो गया था पर इतना आधुनिक भी नहीं हुआ था कि लोग मुसीबत के समय साधु संन्यासियों के पास न जाएं। और राजा सरकार जी तो हर मुसीबत का इलाज धर्म में ही ढूंढते थे। चुनावों के समय तो धर्म की शरण में ही रहते थे। तो उन्हें साधु जी से सलाह लेने की सलाह पसंद आई।

तब सरकार जी के आदेश से हिमालय की गुफाओं से उन साधु जी को बुलाया गया। वे साधु महाराज अपने पर्सनल हेलीकॉप्टर से राजधानी पधारे और एक सेवन स्टार होटल के प्रेसिडेंशियल स्वीट में ठहरे। नियत समय पर उनकी राजा सरकार जी से मुलाकात हुई। सरकार जी ने अपनी समस्या उन साधु महाराज को बताई। साधु महाराज ने अपने झोले से एक अंगूठी निकाली। उस पर फूंक मारी, कुछ मंत्र पढे़ और सरकार जी को कहा कि यह 'भ्रष्टाचार निरोधक अंगूठी' है। कल सुबह नहा धो कर ब्रह्म मुहूर्त में निराहार ही इसे धारण कर लीजिएगा। जैसे ही आपके आसपास कोई भ्रष्ट आचरण होगा, इस अंगूठी में से आवाज निकलेगी और आपको पता चल जाएगा।

तो सरकार जी ने अगली सुबह विधि अनुसार वह अंगूठी धारण की। अंगूठी धारण कर वे नाश्ते के लिए बैठे। नाश्ते में उनके सामने तरह तरह के फल, काजू, अखरोट और पिस्ता-बादाम रखे गए। उनके पसंदीदा अस्सी हजार रुपये किलो वाले मशरुम की डिश भी रखी गई। जैसे ही उन्होंने पहला कौर उठाया, अंगूठी में से आवाज आने लगी, " जिस देश की अधिकांश जनता भूखे पेट सोती है, जो भुखमरी में बहुत ही निचले पायदान पर है। जहां तू स्वयं भूखी गरीब जनता को महीने का पांच किलो अनाज देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है, वहां तू ऐसा नाश्ता कर रहा है। धिक्कार है तुझे"। राजा सरकार जी नाश्ते की टेबल से भूखे ही उठ गए।

सरकार जी अपने ऑफिस गए। वहां जो सबसे पहली फाइल थी उसमें उनके मित्र को अरबों खरबों रुपये की सरकारी परियोजनाएं देने की बात थी। जैसे ही राजा सरकार जी उस पर हस्ताक्षर करने लगे, अंगूठी फिर बोल उठी, "यह भगवान कृष्ण का जमाना नहीं है कि सारा का सारा राजकोश राजा का ही है। अब सारा पैसा जनता का है। तू जनता का पैसा ऐसे अपने मित्र पर नहीं लुटा सकता है"। सरकार जी उस दिन बिना कार्य किए ही ऑफिस से उठ गए।

अब सरकार जी को नौ किलोमीटर लम्बी सड़क का उद्घाटन करने जाना था। सरकार जी इसके लिए कपड़े बदलने लगे। वह अंगूठी फिर बोल उठी, "जिस देश में लोगों को पूरा बदन ढ़कने के लिए कपड़े नहीं हैं। जहां भयंकर ठंड में भी लोग बिना कपड़े रहते हैं, कपड़ों के बिना ठंड से मर जाते हैं, वहां तू दिन में चार चार बार कपड़े बदलता है। शर्म नहीं आती तुझे। कैसा राजा है रे तू"। सरकार जी ने उस दिन पहली बार और अंतिम बार भी, एक जोड़ी कपड़ों में ही पूरा दिन गुजारा।

सरकार जी नई बनी नौ किलोमीटर लम्बी सड़क का फीता काटने के लिए पहुंचे। वैसे वह सड़क नई नहीं बनी थी, मात्र चार लेन से छः लेन की बनाई गई थी। पर प्रचार ऐसे ही किया जा रहा था जैसे कि सड़क नई बनी है। अखबारों में भी इसी आशय के पूरे पेज के विज्ञापन दिए गए थे। जैसे ही सरकार जी फीता काटने लगे, अंगूठी फिर बोल उठी, "इस सड़क को बनाने वाला ठेकेदार महा बेईमान है। उसने तुम्हारे दल के चुनावी फंड में भी करोड़ों रुपये दान दिए हैं। अधिकारियों ने भी खूब पैसा कूटा है और इसमें राजनेताओं और मंत्री जी की मिलीभगत भी ...."। अंगूठी और कुछ बोलती, राजा सरकार जी को सड़क का उद्घाटन करने से रोकती, उससे पहले ही राजा जी ने उसे उतार फैंका।

शाम को सरकार जी ने साधु महाराज को बुलवा लिया। उन्हें अंगूठी की करतूतें बताईं। साधु महाराज को ईडी, सीबीआई और आईटी का डर दिखाया गया और एक नई अंगूठी बनाने के लिए कहा। अब साधु महाराज ने सरकार जी के लिए एक ऐसी अंगूठी बना दी है जिसमें उन्हें अपना भ्रष्टाचार नहीं दिखता है। न ही अपने नवरत्नों का भ्रष्टाचार  दिखता है। और न ही मित्रों का दिखता है। बस विरोधियों का भ्रष्टाचार दिखता है। और तो और अपनी शरण में आए विरोधियों का भ्रष्टाचार भी नहीं दिखता है। सरकार जी अब दिन भर‌ वही नई 'भ्रष्टाचार निरोधी अंगूठी' पहने रहते हैं। 

अब सरकार जी ने उन साधु महाराज से अपने सभी साथियों के लिए भी ऐसी भ्रष्टाचार निरोधी अंगूठियां बनवा दी हैं जिन्हें पहन‌कर वे दिन भर पूरे देश में भ्रष्टाचार का विरोध करते रहते हैं।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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