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कांग्रेस के घोषणापत्र पर मुस्लिम लीग की 'छाप'!, क्या हैं पीएम मोदी के बयान के मायने

बंगाल के अलावा, हिंदू महासभा ने सिंध और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में गठबंधन सरकार बनाने के लिए मुस्लिम लीग से हाथ मिला लिया था।
Syama Prasad Mookerjee and Jinnah
हिंदू महासभा के श्यामा प्रसाद मुखर्जी और मुस्लिम लीग के एमए जिन्ना। फ़ोटो साभार: सबरंग इंडिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया बयान कि, 2024 के आम चुनावों के लिए कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणापत्र पर आज़ादी से पहले के भारत की मुस्लिम लीग की मुहर लगी हुई है, घोषणापत्र की सामग्री की उनकी जानबूझकर त्रुटिपूर्ण समझ से उत्पन्न पूर्वाग्रहों से भरी हुई है, जो ऐतिहासिक है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका भारत की आज़ादी से पहले मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग से दूर-दूर तक कोई संबंध हो।

 

वास्तव में, अन्य के अलावा जो घोषणापत्र की सामग्री में शामिल है, वह देश भर में जाति जनगणना करना, नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षण, फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने के लिए कानून बनाना, आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा को हटाना और निजी क्षेत्र में आरक्षण देना शामिल है, जिसका मुस्लिम लीग के आज़ादी से पहले के युग के दृष्टिकोण से कोई लेना-देना नहीं है। अब तक, प्रधानमंत्री के बेतुके दावों को सही ठहराने के लिए कोई बेहतरीन स्पष्टीकरण सामने नहीं रखा गया है।

 

मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा एक दूसरे के पूरक थे

 

इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि आज़ादी के आंदोलन के दौरान हमारे नेतृत्व ने मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा को एक ही पायदान पर खड़ा कर दिया था और अपनी अभिव्यक्ति से जनता को शिक्षित किया था कि दोनों में से किसी को भी ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

 

27 दिसंबर, 1941 को बारडोली में रहते हुए महात्मा गांधी ने प्रेस को एक बयान जारी किया था, जिसमें उन्होंने हिंदू महासभा को मुस्लिम लीग का सहयोगी संगठन बताया था। उन्होंने ऐसा तब किया जब हिंदू महासभा के अध्यक्ष वीडी सावरकर, बीएस मुंजे के साथ, जो औपनिवेशिक शासन और भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए ब्रिटिश सरकार के फैसले के समर्थन के लिए जाने जाते हैं, को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया था। ऐसा तब हुआ जब बकरीद के समय सांप्रदायिक टकराव की संभावना से बचने के लिए हिंदू महासभा को अपनी बैठक आयोजित करने से रोक दिया गया था। गांधी ने गिरफ्तारी और उस बैठक को आयोजित करने की स्वतंत्रता से इनकार करने की निंदा करते हुए उस प्रेस वक्तव्य में कहा था कि "मुस्लिम लीग संभवतः अपने सहयोगी संगठन को उस स्वतंत्रता से वंचित नहीं करना चाहती, जिसका वे अपने लिए दावा कर सकते हैं।"

 

जबकि गांधी ने कहा था कि मुस्लिम लीग हिंदू महासभा का "सिस्टर संगठन" है, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी पुस्तक, इंडियन स्ट्रगल: 1920-1942 में, दोनों संगठनों के नेताओं के प्रति निराशा व्यक्त करते हुए लिखा था और कहा था कि मुस्लिम लीग के जिन्ना और हिंदू महासभा का प्रतिनिधित्व करने वाले सावरकर कभी भी देश की आजादी के लिए भारतीयों के एकजुट संघर्ष में शामिल नहीं हुए थे। भारत को गुप्त रूप से छोड़ने से पहले नेताजी ने लिखा था कि "...मुस्लिम लीग या हिंदू महासभा से कुछ भी उम्मीद नहीं की जा सकती है।"

 

इसलिए, जब प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि 2024 में कांग्रेस के घोषणापत्र पर आज़ादी से पहले के युग की मुस्लिम लीग की छाप है, तो वह गांधी और नेताजी द्वारा दिए गए तर्क के अनुसार, उस पर हिंदू महासभा का प्रभाव भी देख रहे हैं।

 

हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी

 

मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा की संपूरकता सबसे अच्छी तरह 1941 में तब व्यक्त हुई थी जब हिंदू महासभा के एक प्रभावशाली व्यक्ति श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल में फजलुल हक मंत्रालय में वित्त मंत्री के रूप में शामिल हुए थे। हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के उस गठबंधन ने इस बात की गवाही दी थी कि दोनों आपस में सहयोगी संगठन थे।

 

यह याद रखना उचित होगा कि मुस्लिम लीग के हिस्से तौर पर फजलुल हक ने विभाजनकारी प्रस्ताव पेश किया था, जिसे 'पाकिस्तान प्रस्ताव' के नाम से जाना जाता है, जिसने भारत को विभाजित करने और एक अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लीग के इरादे की पुष्टि की थी। तब कांग्रेस ने हक को घोर सांप्रदायिक बताया था।

 

बंगाल के अलावा, हिंदू महासभा सिंध और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में गठबंधन सरकार बनाने के लिए मुस्लिम लीग के साथ शामिल हो गई थी।

 

3 मार्च, 1943 को जब मुस्लिम लीग के जी.एम. सैयद ने सिंध विधानसभा में इस आशय का प्रस्ताव पारित किया था कि "भारत के मुसलमान एक अलग राष्ट्र हैं", हिंदू महासभा के नेताओं ने, जो गठबंधन सरकार का हिस्सा थे, इसका विरोध किया लेकिन सरकार नहीं छोड़ी।

 

ये ऐतिहासिक रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि कांग्रेस के घोषणापत्र के संदर्भ में मोदी जिस मुस्लिम लीग का जिक्र कर रहे हैं, वह 1940 के दशक की शुरुआत में सरकार बनाने और सत्ता साझा करने के लिए हिंदू महासभा के साथ मिली हुई थी।

 

मोदी के बयान का उद्देश्य मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना है

 

अब, 2024 में, मोदी उत्सुकता से कांग्रेस के घोषणापत्र में मुस्लिम लीग की 'छाप' खोज रहे हैं। आज़ादी से पहले की मुस्लिम लीग और कांग्रेस के घोषणापत्र के बीच कोई संबंध देखना वास्तव में समझ से परे की बात है। प्रधानमंत्री मोदी ने जो संबंध जोड़ा है उसके पीछे का तर्क नहीं बताया है। मोदी, जो जनसंघ के संस्थापक के रूप में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रशंसा करते हैं, जो एक राजनीतिक संगठन के रूप में भारतीय जनता पार्टी से पहले का संगठन था, उन्हें संविधान सभा में मुखर्जी के 17 दिसंबर, 1946 के बयान को याद करना चाहिए। उस दिन संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए, मुखर्जी ने मुगल शासकों को 'महान' शासकों के रूप में वर्णित किया था और अंग्रेजों पर उनके दरबार में याचक के रूप में आने और अपने कई भूल-चूक कृत्यों से भारत को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था। जो अन्य बातों के अलावा, धर्म को राजनीति के साथ मिला रहे थे

 

विरोधाभासी रूप से, मोदी अब कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र की सामग्री को तत्कालीन मुस्लिम लीग की सोच के साथ जोड़ रहे हैं, और साथ ही अपने कई कार्यों और अभिव्यक्तियों के साथ धर्म को राजनीति के साथ जोड़ रहे हैं। ऐसा करके, वह राजनीति में धर्म को शामिल करने के अंग्रेजों के खिलाफ मुखर्जी के आरोप को खारिज कर रहे हैं।

 

इसलिए, यह कहकर कि आज़ादी से पहले भारत की मुस्लिम लीग की "सोच" कांग्रेस के घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से शामिल है, मोदी मुसलमानों के खिलाफ अपने पूर्वाग्रहों को एक राजनीतिक दस्तावेज़ में मिला रहे हैं, जिससे चुनावी लाभ हासिल करने के लिए ध्रुवीकरण प्रक्रिया को मजबूत किया जा रहा है।

 

लेखक, भारत के राष्ट्रपति के आर नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि के रूप में कार्य कर चुके हैं। विचार निजी हैं।

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