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बंगाल: 4 साल का वादा टूटा? एक आदिवासी लड़की को दिल्ली के एम्स में इलाज कराने का आज भी है इंतज़ार

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपने घर पर मेजबानी करने वाले एक आदिवासी मजदूर, जिनकी बेटी मधुमेह की बीमारी से गंभीर रूप से ग्रसित है, उनका कहना है कि उन्हें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह ही अमित शाह ने भी इलाज में मदद का आश्वासन दिया था, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
amit shah
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 5 नवंबर, 2020 को चतुर्डीही गांव में बिभीषण हांसदा को सम्मानित करते हुए।

लगभग चार साल पहले, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जंगल महल के बांकुरा की मधुमेह की गंभीर बीमारी से पीड़ित एक आदिवासी छात्रा रचना हांसदा को आश्वासन दिया था, कि उसे दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज में मदद दी जाएगी। इसके तुरंत बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बांकुरा के रवीन्द्र भवन में एक प्रशासनिक बैठक के दौरान जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि राज्य सरकार उनके इलाज की पूरी जिम्मेदारी लेगी।

इस गरीब और वंचित परिवार ने तब राहत की सांस ली थी। रचना के माता-पिता, बिभीषण हांसदा और मोनिका, दोनों बांकुरा जिले के छोटूरदाही गांव के ईंट-भट्ठा मजदूर हैं, उनका मानना था कि जब केंद्रीय गृह मंत्री और बंगाल की मुख्यमंत्री दोनों ने उनकी बेटी का इलाज़ कराने के आश्वासन से जो उम्मीदें जगी थीं वे जल्द ही धराशायी हो गईं।

चार साल बाद भी रचना दिल्ली के एम्स में इलाज का इंतजार कर रही है। हांसदा ने बताया कि उन्हें उम्मीद छोड़नी पड़ी और बांकुरा में ही अपनी बेटी के इलाज की व्यवस्था करनी पड़ी। उन्होंने कहा कि वे खुद भी पीड़ित हैं क्योंकि पिछले छह महीनों में उनकी दोनों किडनी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई हैं। वे बीमारी के कारण काम करने में असमर्थ है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी छोटी-मोटी आय भी बंद हो गई है।

हांसदा और उनकी बेटी अपनी दवाई का पर्चा दिखाते हुए

उन्होंने कहा कि बांकुरा से भाजपा सांसद सुभाष सरकार ने परिवार को उनकी बेटी की दवा के लिए कुछ पैसे दिए थे। हालांकि, हांसदा को नहीं पता कि वह अपनी किडनी की बीमारी के महंगे इलाज कैसे कराएंगे? बेहद निराशा और अवसाद में डूबे इस परिवार की फिलहाल कोई सुध नहीं ले रहा है।

अमित शाह और ममता बनर्जी ने हांसदा से वादा क्यों किया?

बांकुरा 1 नंबर ब्लॉक के आंधरथोल ग्राम पंचायत के अंतर्गत छोटुरडीहा गांव में रहने वाले गरीब राजमिस्त्री हांसदा एक जानी-मानी शख्सियत हैं। यह गांव, कोलकाता से लगभग 180 किमी की दूरी पर है और बांकुरा जिला मुख्यालय से 8 किमी दूर है और यह सुनुकपहाड़ी गांव के पास बांकुरा-रानीबंध राज्य राजमार्ग के बाईं ओर स्थित है। हांसदा यहां अपनी बुजुर्ग मां फुलमोनी, पत्नी मोनिका, बेटी रचना और बेटे के साथ रहते हैं। वे और उनकी पत्नी ईंट भट्टे पर मजदूरी करके अपनी आजीविका चलाते हैं।

हांसदा का परिवार 5 नवंबर, 2020 को एक राजनीतिक कार्यक्रम के दौरान सुर्खियों में तब आया था, जब परिवार ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कैलाश विजयवर्गीय, मुकुल रॉय, दिलीप घोष और राहुल सिन्हा जैसे अन्य पार्टी नेताओं को दोपहर का भोजन अपने घर में कराया था। इन सभी नेताओं को हांसदा के आवास पर दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था, जिसकी व्यवस्था स्थानीय भाजपा नेताओं ने की थी।

विशेष रूप से, इस गांव को ऐतिहासिक रूप से 'जोल्डुबी छोटूरडीही' के नाम से जाना जाता है, इसकी स्थापना छह दशक पहले 1960 के दशक में कांगसाबोटी जलाशय के निर्माण से विस्थापित परिवारों को समायोजित करने के लिए की गई थी। मुख्य रूप से मुकुटमोनीपुर के बासोंतोपुर के इन परिवारों को घरों के पानी में डूब जाने के बाद मुआवजे के रूप में यहां जमीन मिली थी।

अंधरथोल ग्राम पंचायत सदस्य अनिमा माल अपने घर भालुकगेंजा गांव में।

5 नवंबर, 2020 को दोपहर में आदिवासी रीति-रिवाजों के अनुसार, गांव वालों ने शाह और उनके दल का पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ स्वागत किया, जिसमें शंख बजाना और संताली नृत्य करना शामिल था। हांसदा का घर देशज संताल चित्रों से सजाया गया था, और दीवारों पर संताली, हिंदी और बंगाली भाषाओं में एक स्वागत संदेश लिखा गया था। साथ ही, प्रशासन ने उस कार्यक्रम से पहले उनके आवास को सैनिटाइज भी किया था।

दोपहर के भोजन के दौरान, जिसे मुख्यधारा के मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से व्यापक कवरेज मिली थी, भाजपा नेताओं ने सुगंधित चावल, दाल का सूप, हाथ से बनी रोटी, तली हुई लौकी, सब्जी का स्टू, खसखस के पेस्ट में पकाए गए आलू सहित बंगाली शाकाहारी व्यंजनों और मिश्रित मिठाइयां का आनंद लिया था। आतिथ्य से प्रभावित शाह ने सोशल मीडिया (एक्स हैंडल) पर आभार व्यक्त करते हुए कहा: “चतुर्धी गांव में श्री विभिसण हंसदाजी के घर पर अद्भुत बंगाल भोजन का आनंद लिया। उनकी गर्मजोशी और आतिथ्य को शब्दों में व्यक्त नहीं किया सकता है।”

रवाना होने से पहले, केंद्रीय गृहमंत्री ने हांसदा के परिवार और ग्रामीणों को आश्वासन दिया, 'हम लोग फिर मिलेंगे'। इस भाव ने हांसदा पर अमिट छाप छोड़ी, जिन्होंने बाद में पत्रकारों को बताया कि शाह की मेजबानी करना उनके लिए सम्मान की बात थी और उनके जीवन का यह एक महत्वपूर्ण दिन था।

कुछ दिन पहले, हांसदा ने अपने घर में अपनी बेटी के साथ इस संवाददाता से बात करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री की अपने घर में मेजबानी करने पर गर्व व्यक्त किया था। हांसदा ने कहा कि उन्होंने शाह को अपनी बेटी की मधुमेह की बीमारी के बारे में बताया था और कुछ वित्तीय सहायता का अनुरोध किया था। शाह ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया था।

गांव के दौरे के कुछ दिनों बाद, शाह ने नई दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि हांसदा की बेटी रचना का दिल्ली के एम्स में इलाज कराया जाएगा। इस घोषणा के बाद, 25 नवंबर, 2020 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बांकुरा के रवीन्द्र भवन में एक प्रशासनिक बैठक बुलाई और जिला प्रशासन को रचना के इलाज की जिम्मेदारी लेने का निर्देश दिया।

इन घटनाओं पर विचार करते हुए, हांसदा ने कहा: "जब मैं अपनी बीमार बेटी के साथ दिल्ली गया, तो मुझे अमित शाह से मिलने का अवसर नहीं मिला। दुर्भाग्य से, मेरी बेटी को एम्स में इलाज नहीं मिला। अगर इलाज़ होता तो अच्छा होता।”

जब बांकुरा जिले के मुख्य स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओएच) डॉ. श्यामल सारेन से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे रचना को नियमित रूप से इंसुलिन दे रहे हैं। लेकिन हांसदा ने उनके दावे का खंडन किया और कहा कि शुरू में राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने इंसुलिन दी थी, लेकिन बाद में कमी का दावा करते हुए नियमित रूप से दवा की आपूर्ति बंद कर दी गई। हालांकि, उन्होंने बांकुरा के सांसद, सरकार का आभार व्यक्त किया, जो व्यक्तिगत रूप से उनकी बेटी की दवा का खर्च वहन करते हैं।

वर्तमान में, बांकुरा सारदामोनी कॉलेज में स्नातक तृतीय वर्ष की छात्रा रचना का बांकुरा में इलाज चल रहा है। उनके खून में शुगर का उतार-चढ़ाव जारी रहता है। उन्होंने समुचित इलाज़ की इच्छा व्यक्त की है।

चतुर्डीही गांव के दोनों खेतिहर मजदूर बिस्वनाथ सारेन और सुसांतो हांसदा ने बताया कि शाह के घर पर लंच के बाद, बिभीसन बेटी के इलाज के लिए अपनी बेटी के साथ दिल्ली गए थे। हालंकि, उन्हें नहीं पता कि रचना को वहां कोई इलाज मिला या नहीं।

चतुर्डीही गांव

बिभीषण हांसदा अब अपने दिन कैसे बिता रहे हैं?

उन्होंने इस संवाददाता को बताया कि, "मैं पिछले छह महीने से किडनी की बीमारी से पीड़ित हूं। मेरी दोनों किडनी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई हैं। मैं विभिन्न चिकित्सा जाचों और दवाओं पर काफी पैसा खर्च कर रहा हूं।" उन्होंने बताया कि वे दवा पर प्रति माह 10,000 रुपये खर्च करते हैं।

अपनी बीमारी के कारण, हांसदा काम करने में असमर्थ है, और उनकी पत्नी पर काम खोजने का दबाव है। हांसदा ने भारी मन से कहा, "हम बेहद गरीबी में जी रहे हैं। हम अपनी पालतू बकरियां बेचकर और परिचितों की मदद पर निर्भर होकर मुश्किल से गुजारा कर रहे हैं।" उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री को अपनी विकट परिस्थितियों के बारे में सूचित करने की तीव्र इच्छा व्यक्त की और अपने और अपनी बेटी दोनों के लिए मदद की गुहार लगाई है।

आंदरथोल ग्राम पंचायत की सदस्य और भालुकगेंजा गांव की निवासी अनिमा माल ने हांसदा के परिवार की दुर्दशा के बारे में विस्तार से बताया। "अमित शाह ने दिल्ली में उनकी बेटी के इलाज की जिम्मेदारी लेने का वादा करते हुए हांसदा के घर का दौरा किया था और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी समर्थन देने का वादा किया था। दुर्भाग्य से, उनमें से किसी ने भी अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की है। लंबे समय तक पंचायत में कोई काम उपलब्ध नहीं होने के कारण, हांसदा और उनका परिवार गरीबी में जी रहा है।"

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 5 नवंबर, 2020 को चतुरधिही गांव में हांसदा के घर पर भाजपा नेताओं के साथ दोपहर का भोजन करते हुए।

भारतीय जीवन बीमा निगम के कर्मचारी और सुनुकपहाड़ी गांव के निवासी दुलाल परमानिक ने कहा कि शाह और बनर्जी दोनों इस गरीब आदिवासी मजदूर की बेटी के इलाज के संबंध में अपना वादा निभाने में विफल रहे हैं।

सेवानिवृत्त लाइब्रेरियन और हांसदा के पड़ोसी सुनील घोष ने भी शाह के आश्वासन को याद किया कि रचना का इलाज एम्स, दिल्ली में किया जाएगा और मुख्यमंत्री की घोषणा भी इलाज़ कराने की थी। उन्होंने कहा कि, "वह घर चलाने के लिए परिवार की बकरियां बेच रहे हैं। यह कब तक चलेगा? हम उनके लिए उचित इलाज सुनिश्चित करने के लिए मदद का आग्रह करते हैं।"

जैसे ही मैं वापस जाने लगा, तो हांसदा ने एक बार फिर अपनी निराशा यह कहते हुए व्यक्त की, कि कोई भी सरकार (केंद्र या राज्य) उनकी दुर्दशा पर नज़र नहीं रख रही है। उन्होंने कहा, "हम बस जीना चाहते हैं।"

लेखक, पश्चिम बंगाल में 'गणशक्ति' अखबार के लिए जंगल महल इलाके को कवर करते हैं।

मूल लेख को अंग्रेजी में पढने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें :

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