देशभर में 'काला दिवस' को मिला व्यापक समर्थन, मोदी सरकार के पुतले जलाए गए
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केन्द्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने अपने आंदोलन के छह माह पूरे होने पर बुधवार को ‘काला दिवस’ मनाया और इस दौरान उन्होंने काले झंडे फहराए, सरकार विरोधी नारे लगाए, पुतले जलाए और प्रदर्शन किया। प्रदर्शन दिल्ली की सीमाओं के साथ ही देशभर के गांव और शहरों में मनाया गया। किसानों ने पहले ही साफ कर दिया था कि वो कोई बड़ा जमावड़ा नहीं करने जा रहे हैं ,जो जहाँ है वो वही विरोध प्रदर्शन करेगा। किसानों के इस आह्वान को मज़दूर, छात्र, नौजवान, महिला संगठनों और सभ्य समाज के लोगो ने भी पूर्ण समर्थन दिया। दिल्ली सहित बाकि पुरे देश में किसानों के समर्थन में लोगों ने अपने घरों पर काले झंडे लगाए।
क्या रहा दिल्ली की सीमाओं का हाल
दिल्ली मोर्चो पर आज बुद्ध पूर्णिमा मनाई गई और लोगों को शांतिमयी विरोध करने का आह्वान किया गया। संयुक्त किसान मोर्चा का विश्वास है कि किसानों का यह आंदोलन शांतिपूर्ण रहते हुए ही जीता जा सकता है।
आज दिल्ली की सीमाओं पर किसानों ने बड़ी संख्या में पहुंचकर आज का विरोध दिवस मनाया और मोदी सरकार को चेतावनी दी कि जब तक किसानों की मांगे पूरी नहीं होती तब तक किसान वापस नहीं जाएंगे। सरकार चाहे जितना बदनाम करें, पुलिस बल का प्रयोग करें पर किसान डटे रहेंगे।
सिंघु बॉर्डर पर दिन की शुरुआत बुद्ध पूर्णिमा मनाकर हुई। इसके बाद किसानों ने अपनी अपनी ट्रॉलियां में, कच्चे मकानों में और अन्य वाहनों पर काले झंडे लगाए। इसके बाद किसानों ने अलग-अलग जगह पर मोदी सरकार के पुतले जलाए और नारेबाजी कर विरोध प्रदर्शन किया। टिकरी बॉर्डर पर आज हजारों की संख्या में किसानों ने पहुंचकर मोर्चे को मजबूत किया। टिकरी बॉर्डर पर आसपास के नागरिकों ने भी पहुंचकर किसानों का समर्थन किया और हर संभव मदद का भरोसा दिया। गाजीपुर बॉर्डर पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों का लगातार आना जारी है।
आज 6 महीने पूरा होने पर आंदोलन को मजबूत करने का किसानों ने संकल्प लिया। वही शाहजहांपुर बॉर्डर पर आज राजस्थान व हरियाणा के किसानों ने इकट्ठे होकर मोर्चे को मजबूत करने का फैसला किया और आने वाले दिनों में और किसानों को साथ में जोड़ने का फैसला किया।
दिल्ली यूपी के गाजीपुर बॉर्डर में प्रदर्शन स्थल पर थोड़ी तैनातनी दिखी है, जहां किसानों ने भारी संख्या में पुलिसकर्मियों की तैनाती के बीच केन्द्र सरकार का पुतला जलाया। गाजीपुर में सैकड़ों की संख्या में किसान भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता राकेश टिकैत की अगुवाई में समूहों में बट गए और उन्होंने विरोध प्रदर्शन करने हुए केन्द्र का पुतला जलाया।
भाकियू समर्थक हाथों में काले झंडे लिए हुए थे, कई लोगों के हाथों में तख्तियां थीं जिनमें सरकार की निंदा वाले नारे लिखे हुए थे और उन्होंने तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की।
‘काला दिवस’ प्रदर्शन के तहत किसानों ने तीन सीमा क्षेत्रों सिंघू, गाजीपुर और टीकरी पर काले झंडे लहराए और नेताओं के पुतले जलाए। पंजाब, हरियाणा में लोगों ने घरों और वाहनों पर लगाए काले झंडे कृषक संगठनों द्वारा बुधवार को आहूत ‘काला दिवस’ पर पंजाब और हरियाणा में किसानों ने अपने घरों पर काले झंडे लगाए, केंद्र सरकार के पुतले फूंके और प्रदर्शन किया।
पंजाब -हरियाणा में कई स्थानों पर प्रदर्शनकारी किसानों ने भाजपा नीत सरकार के फूंके पुतले
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने बताया कि हरियाणा में कई स्थानों पर किसानों ने अपने घरों और वाहनों पर काले झंडे लगाए।
दोनों राज्यों में किसानों ने काले झंडे हाथ में लिए और केन्द्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए मार्च भी निकाला। महिलाएं भी काली चुन्नी लगाकर प्रदर्शन में आयीं।
पंजाब में अमृतसर, मुक्तसर, मोगा, तरनतारन, संगरूर और बठिंडा समेत कई स्थानों पर प्रदर्शनकारी किसानों ने भाजपा नीत सरकार के पुतले भी फूंके। कई जगहों पर खासकर युवा किसानों ने ट्रैक्टरों, कारों, दो पहिया वाहनों पर काला झंडा लगा रखा था।
हरियाणा में भी कई स्थानों पर ऐसा ही नजारा देखने को मिला। अंबाला, हिसार, सिरसा, करनाल, रोहतक, जींद, भिवानी, सोनीपत और झज्जर में किसानों ने प्रदर्शन किया। सिरसा में बरनाला रोड पर काले झंडे लेकर बहुत सारे किसान पहुंच गये। जींद में किसानों ने केंद्र और हरियाणा की भाजपा नीत सरकारों के खिलाफ प्रदर्शन किया।
संयुक्त मोर्चा के नेता और अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य उपाध्यक्ष इंद्रजीत सिंह ने कहा कि आज के काले दिवस में किसान खेत मज़दूर, मनरेगा और छात्रों ने भागीदारी की है वो दिखाता है की आम जनता मोदी के सात साल के कुशासन से त्रस्त हो गई है।
उन्होंने कहा, “देशभर में 70 हज़ार गाँव हैं और हरियाणा में सात हज़ार गाँव हैं,आज हर गाँव में लोगो काले झंडे के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह एक रिकॉर्ड है कि किसी के भी शासन में इतना व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ हो। आज वही लोग काले झंडे फराह रहे हैं जिन्होंने 26 जनवरी को रिकॉर्ड संख्या में तिरंगे लहराए थे।"
अंबाला में चढूनी ने कहा, ‘‘केंद्र यदि हमारी मांगों पर सहमत हो जाता है तो किसान आज प्रदर्शन खत्म करने के लिए तैयार है। साथ ही हम अपना आंदोलन तब तक जारी रखने के लिए तैयार हैं जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होती हैं।’’
किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर ने केन्द्र सरकार पर कानून वापस न लेने को लेकर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन को शुरू हुए अब छह महीने हो चुके हैं।’’
नेशनल ब्लैक डे पर हिमाचल में भी किसान–मज़दूरों का जोरदार प्रदर्शन
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच व संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर मजदूर संगठन सीटू द्वारा हिमाचल प्रदेश के जिला,ब्लॉक मुख्यालयों, कार्यस्थलों, गांव तथा घर द्वार पर जोरदार प्रदर्शन करके नेशनल ब्लैक डे मनाया गया। इस दौरान प्रदेश भर में हज़ारों मजदूरों ने अलग-अलग जगह कोविड नियमों का पालन करते हुए अपनी भागीदारी की।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि कोविड महामारी को केंद्र की मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के लिए लूट के अवसर में तब्दील कर दिया है। यह सरकार महामारी के दौरान स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने में पूर्णतः विफल रही है। कोरोना महामारी की आपदा में भी केंद्र सरकार ने केवल पूंजीपतियों के हितों की रखवाली की है। सरकार का रवैया इतना संवेदनहीन रहा है कि यह सरकार सबको अनिवार्य रूप से मुफ्त वैक्सीन तक उपलब्ध नहीं करवा पाई है। कोरोना काल में लगभग पन्द्रह करोड़ मजदूर अपनी नौकरियों से वंचित हो चुके हैं परन्तु सरकार की ओर से इन्हें कोई मदद नहीं मिली। इसके विपरीत मजदूरों के 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार लेबर कोड बना दिये।
राजस्थान : जिला कलेक्ट्रेट और टोल नाकों पर प्रधानमंत्री का किया गया पुतला दहन
संयुक्त किसान मोर्चा व जन संगठनों के द्वारा 26 मई को काला दिवस मनाने के आह्वान की पालना करते हुए आज किसान सभा,सीटू व एसएफआई द्वारा किशनसिंह ढाका भवन से प्रधानमंत्री के पुतले की शव यात्रा निकाली गई जो जिला कलेक्ट्रेट पर पहुंचकर आमसभा में बदल गई। राजस्थान मेंकई जगहों पर इस तरह के विरोध प्रदर्शन हुए। जिन टोल प्लाज़ो पर किसानों का पक्का मोर्चा लगा है वहां भी विरोध प्रदर्शन हुए और पुतला दहन किया गया।
किसान नेता कामरेड किशन पारीक ने कहा कि किसान आंदोलन को आज पूरे 6 माह का समय हो गया है और 400 किसानों की शहादत के बावजूद मोदी सरकार हठधर्मिता का रुख अपनाए हुए है हम मांग करते हैं कि तीनों काले कृषि कानूनों को रद्द किया जाए, न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी गारंटी दी जाए और प्रस्तावित बिजली संशोधन विधेयक 2020 को वापस लिया जाए।
सीटू सीकर जिला महामंत्री सोहन भामू ने कहा कि हम कोरोनाकाल में केंद्र सरकार द्वारा मजदूर विरोधी श्रम संहिता बनाने का विरोध करते हैं और मांग करते हैं कि मजदूरों पर हमले बंद किए जाएं और बैंक,बीमा,रेलवे तथा रक्षा क्षेत्र में निजीकरण की प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाई जाए।
भवन निर्माण मजदूर यूनियन सीटू के जिला महामंत्री बृजसुन्दर जांगिड़ ने सभी निर्माण मजदूरों को सात हजार पांच सो रूपये प्रतिमाह की सहायता देने, छात्रवृत्ति व अन्य सहायता योजना का पैसा जारी करने की मांग करते हुए और राहत पैकेज के जारी करने की मांग की है।
बिहार : किसान और मज़दूरों ने राज्यभर में मनाया "काला दिवस"
किसान संगठनों और ट्रेड यूनियनों के देशव्यापी आह्वान पर आज इससे जुड़े अखिल भारतीय किसान महासभा व ट्रेड यूनियन ऐक्टू ने भारतीय लोकतंत्र का काला दिवस राजधानी पटना सहित राज्य के हर हिस्से में बढ़ चढ़ कर मनाया।इस दौरान कार्यालयों व घरों पर काला झंडा फहराया और शहीद किसानों को श्रद्धांजलि दिया।
आज पटना के आर ब्लॉक स्थित अखिल भारतीय किसान महासभा व ट्रेड यूनियन ऐक्टू के नेताओं ने अपने अपने राज्य कार्यालय पर काला झंडा फहराया और दोनों संगठनों ने संयुक्त रूप से कोविड नियमों का पालन करते हुए अपने राज्य कार्यालय के समक्ष प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया और संक्षिप्त सभा किया।
माले पोलित ब्यूरो सदस्य सह किसान महासभा राष्ट्रीय महासचिव राजाराम सिंह ने सम्बोधित करते हुए कहा कि देश के लोग समझ गए है कि देश की तबाही-बर्बादी का मतलब मोदी सरकार है । उन्होंने कहा कि दुनिया के देश कोरोना महामारी के संकट से उबर गया वहीं मोदी सरकार की लुटेरी नीतियों के कारण देश महामारी में फंस गया , मोदी ने देश के लोगों को कोरोना से मरता छोड़ इस संकट का इसतेमाल पूंजीपतियों के कमाई के अवसर में किया इसके लिए बेरोजगारी,भुखमरी, महंगाई बढ़ाने वाला नया संकट देश पर थोप दिया और मजदूर-किसानों को पूंजीपतियों, मालिकों का गुलाम बनाने के लिए 3 कृषि कानून व 4 श्रम संहिता जैसे लोकतन्त्र विरोधी कला कानून थोप दिया।उन्होंने बताया कि यूपी के जमनिया से कोरोना मृतकों की गंगा में बह कर आये शवों का अंतिम संस्कार किसान महासभा के नेताओं ने आरा, डुमरांव में किया।
एटक,सीटू,एआईयूटीयूसी,टीयूसीसी तथा इनसे जुड़े किसान संगठनों ने भी पटना स्थित अपने कार्ययलयो सहित राज्य भर में मोदी सरकार के लोकतन्त्र विरोधी शर्मनाक 7 वर्ष पूरा होने के अवसर पर काला झंडा फहरा विरोध प्रदर्शित किया।
बिहार के विभिन्न जिलों में सीपीआईएम पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने इन कानूनों को रद्द करने की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनों में कोविड नियमों का पूरा ख्याल रखा गया। साथ ही पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं की ओर से वर्चुअल मीटिंग का भी आयोजन किया गया है।
आंदोलन की इस कड़ी में बिहार राज किसान सभा वैशाली जिला इकाई की ओर से जिला अध्यक्ष अधिवक्ता संजीव कुमार के नेतृत्व में एक वर्चुअल मीटिंग की गई। इस बैठक में सीपीआईएम के जिला सचिव राज नारायण सिंह ने कहा कि मौजूदा केंद्र सरकार के कार्यकाल में देश के नौजवान, महिलाएं, श्रमिक वर्ग, छात्र, पेशेवर अधिवक्ता सहित तमाम लोग आंदोलनरत है लेकिन सरकार अपने कॉर्पोरेट मित्रों को खुश करने के लिए देश के तमाम संसाधनों को लूट रही है। इनमें ताजा हमला किसानों की खेती की जमीन और खेती का पूरा व्यवसाय है। किसानों का एक अहम मांग एमएसपी को कानूनी दर्जा देने की भी है जिसे सरकार आंकड़ों का खेल दिखा कर देने से इनकार करती है।
इस कार्यक्रम में अंबेडकराइट पार्टी ऑफ इंडिया के नेता राम पुकार पासवान ने कहा कि संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन करना ही नरेंद्र मोदी सरकार का एकमात्र लक्ष्य रहा है और इसी के तहत किसानों के ऊपर यह हमला केंद्र सरकार ने की है। भारतीय लोक मंच पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव अधिवक्ता व अभिनेता कुणाल सिकंदर ने सरकार की अड़ियल रवैया को लेकर काफी आलोचना की और कहा कि एक संवेदनशील सरकार से ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती कि किसान आंदोलन में मर रहे हो और सरकार चुनावी रैलियों की तैयारी में लगी हुई हो। किसान कांग्रेस के प्रदेश संयोजक व मीडिया प्रभारी मनोज कुमार गुप्ता ने कहां के आंदोलन की निरंतरता बताती है कि नरेंद्र मोदी की निरंकुश शासन का अब अंत होगा। पासवान ने किसानों के आंदोलन को पूर्ण समर्थन करते हुए कहा कि खेतिहर मजदूरों का हक किसानों के हक के साथ जुड़ा हुआ है। खेती की जमीन अगर कॉरपोरेट के हाथों में चली जाएगी तो खेतिहर मजदूर भी बेरोजगार हो जाएंगे।
उधर आज किसान आंदोलन के समर्थन में केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ काला दिवस वैशाली जिला के मुख्यालय हाजीपुर के रामभद़ में मनाया गया। इस दौरान नेताओं ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि आयकर नहीं देने वाले सभी लोगों को 6 महीने तक साढ़े सात हजार रूपए प्रति माह दिया जाए। सीपीआईएम नेता राजेंद्र पटेल सरकार से मजदूर विरोधी चारों कानूनों को रद्द करने की मांग की और कहा कि निजीकरण, कॉरपोरेटाइजेशन की नीति पर रोक लगाया जाए।
इस अवसर पर सीपीआईएम के भगवानपुर अंचल कमेटी के सचिव मदन मोहन शर्मा ने कहा कि किसानों का आंदोलन अब नरेंद्र मोदी सरकार की सत्ता से बेदखली का आंदोलन होगा।
छत्तीसगढ़ : कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ पूरे प्रदेश में 'काला दिवस'
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन और छत्तीसगढ़ किसान सभा के आह्वान पर मोदी सरकार द्वारा बनाये गए तीन किसान विरोधी कानूनों और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को निरस्त करने और सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने, कोरोना महामारी से निपटने सभी लोगों को मुफ्त टीका लगाने तथा ग्राम स्तर पर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने, गरीब परिवारों को मुफ्त राशन और नगद सहायता देने आदि प्रमुख मांगों पर आज प्रदेश में सैकड़ों गांवों में काले झंडे फहराए गए तथा मोदी सरकार के पुतले जलाए गए। माकपा सहित प्रदेश की सभी वामपंथी पार्टियों और सीटू सहित अन्य ट्रेड यूनियनों व जन संगठनों के कार्यकर्ता भी इस आंदोलन के समर्थन में आज सड़कों पर उतरे।
मोदी सरकार के कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ प्रदेश में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के बैनर तले 20 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए हैं और कोरबा, राजनांदगांव, सूरजपुर, सरगुजा, दुर्ग, कोरिया, बालोद, रायगढ़, कांकेर, चांपा, मरवाही, बिलासपुर, धमतरी, जशपुर, बलौदाबाजार व बस्तर सहित 20 से ज्यादा जिलों के सैकड़ों गांवों-कस्बों में, घरों और वाहनों पर काले झंडे लगाने और मोदी सरकार के पुतले जलाए जाने की खबरें आ रही हैं। लॉक डाऊन और कोविद प्रोटोकॉल के मद्देनजर अधिकांश जगह ये प्रदर्शन 5-5 लोगों के समूहों में आयोजित किये जा रहे हैं।
जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते ने इस सफल आंदोलन के लिए किसान समुदाय और आम जनता का आभार व्यक्त किया है और कहा है कि देश और छत्तीसगढ़ की जनता ने इन कानूनों के खिलाफ जो तीखा प्रतिवाद दर्ज किया है, उससे स्पष्ट है कि मोदी सरकार के पास इन जनविरोधी कानूनों को निरस्त करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। किसान संघर्ष समन्वय समिति के कोर ग्रुप के सदस्य हन्नान मोल्ला ने भी प्रदेश में इस सफल आंदोलन के लिए किसानों, मजदूरों और आदिवासियों को बधाई दी है।
किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं ने बताया कि कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ भी छत्तीसगढ़ के किसान आंदोलित हैं और उन्होंने आज सुकमा जिले के सिलगेर में आदिवासी किसानों पर की गई गोलीबारी की निंदा करते हुए इसकी उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराने और दोषी अधिकारियों को दंडित करने की भी मांग की है। वनोपजों की सरकारी खरीदी पुनः शुरू करने और आदिवासी किसानों को व्यापारियों-बिचौलियों की लूट से बचाने का मुद्दा भी आज के किसान आंदोलन का एक प्रमुख मुद्दा था। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेटों की तिजोरी भरने के लिए देश के किसानों से टकराव लेने वाली कोई सरकार टिक नहीं सकती।
इसी तरह किसान संगठनों के बयाना के मुताबिक़ पूरे देश से किसान आंदोलन के समर्थन में और मोदी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की खबरें आती रही। महाराष्ट्र के नंदुरबार, नांदेड़, अमरावती, मुंबई, नागपुर, सांगली, परभणी, थाने, बीड़, सोलापुर, बुलढाणा, कोल्हापुर, नासिक, औरंगाबाद, सतारा, पालघर, जलगांव में किसानों और आम नागरिकों ने घर पर काले झंडे लगाकर और मोदी सरकार के पुतले जलाकर विरोध प्रदर्शन किया।
उत्तर प्रदेश में बरेली सीतापुर, बनारस, बलिया, मथुरा समेत कई जगह पर किसानों ने मोदी सरकार के पुतले जलाकर और काले झंडे लगाकर विरोध प्रदर्शन किया।
तमिलनाडु में शिवगगई, कल्लकुर्ची, कतुलुर, धर्मपुरी तंजौर, तिरुनेलवेली कोयंबटूर समेत कई जगह पर किसान मोर्चा को समर्थन किया गया और मोदी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम और तेलंगाना में हैदराबाद समेत कई जगह किसानों ने विरोध प्रकट किया। उत्तराखंड के तराई क्षेत्र और हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में नागरिकों ने संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान को सफल बनाया। किसानों ने आंदोलन के 6 महीने पूरे होने पर मोदी सरकार के पुतले जलाए व घरों में काले झंडे लगाए और प्रण लिया कि जब तक किसानों की मांगे पूरी नहीं होती यह आंदोलन चलता रहेगा। उड़ीसा के रायगड़ा, पश्चिमी बंगाल के कोलकाता, जम्मू कश्मीर के अनंतनाग, त्रिपुरा, आसाम में भी किसानों के प्रदर्शन हुए।
गौरतलब है कि दिल्ली के टीकरी बॉर्डर, सिंघू बॉर्डर तथा गाजीपुर बॉर्डर पर किसान पिछले साल नवम्बर से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मांग तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दिए जाने की है। हालांकि सरकार का कहना है कि ये कानून किसान हितैषी हैं।
सरकार और प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच कई दौर की वार्ता बेनतीजा रही है। दोनों के बीच आखिरी वार्ता 22 जनवरी को हुई थी। 26 जनवरी को किसानों की ‘ट्रैक्टर परेड’ के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में हुई हिंसा के बाद से दोनों पक्षों के बीच पूरी तरह बातचीत बंद है।
किसानों ने कहा यह आंदोलन चाहे 6 महीने का हो गया हो परंतु किसानों का हौंसला बरकरार है और वे लगातार लड़ते रहेंगे। सरकार इसे जितना खींचना चाहे वह कर सकती है, परंतु इसमें सरकार का ही राजनैतिक नुकसान है। किसान को यह समझ आ चुका है कि यह कानून किसानी पर बहुत गहरा हमला है इसलिए किसानों को भी मजबूती से लड़ना है।
(समाचार एजेंसी भाषा और बिहार से एम. ओबैद के इनपुट के साथ )
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