2030 तक आधे से अधिक भारतीयों की पहुँच से दूर हो जाएगा जल?
नीति आयोग की 14 जून को आई ‘समग्र जल प्रबंधक सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई) की रिपोर्ट में इस बात की गहरी चिंता जताई है कि आने वाले समय में देश में जल संकट और भी गंभीर होने जा रहा है। सीडब्ल्यूएमआई की रिपोर्ट के अनुसार- देश में 84 फीसद ग्रामीण घरों में पानी पाइप से नहीं पहुँच रहा और भारत की लगभग 60 करोड़ आबादी पानी के संकट से जूझ रही है।
रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक भारत में पानी की माँग उपलब्धता के अनुपात में दोगुनी से भी अधिक हो जाएगी और इसी कारणवश देश के सकल घरेलू उत्पाद में छह प्रतिशत की कमी हो जाएगी।
गैर हिमालियन राज्यों के जल संसाधन प्रबंधन की समग्र जल सूचकांक में गुजरात सबसे अव्वल नंबर पर है और झारखंड का स्थान सबसे नीचे है। वहीं हिमालियन राज्यों में त्रिपूरा का स्थान इस सूचकांक में सबसे ऊपर है जबकि मेघालय सबसे निचले पायदान पर ।
इसी रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली समेत भारत के 21 बड़े शहरों का भूजल 2020 तक समाप्त हो जाएगा।
इसी रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि पानी की गुणवत्ता की श्रेणी में भारत 122 देशों की सूची में 120वें स्थान पर आता है। इस सन्दर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रत्येक वर्ष दो लाख लोगों की मौत साफ पानी न मिलने की वजह से हो जाती है।
दूनु रॉय पर्यावरण और समाजिक कार्यकर्ता के अनुसार यहाँदेश के नागरिकों के साथ-साथ सरकार भी अपने पुराने संसाधनों को बचाने में सजग नहीं है। अगर भारत के बड़े शहरों दिल्ली और बैंगलोर की बात की जाए तो कुछ समय पहले तक यहाँ तक़़रीबन 650 के आसपास तालाब होते थे लेकिन आज के समय में यह संख्या लगभग खत्म होने के कग़ार पर है।
दूनु रॉय भारत में सरकार की जल नीतियों और जल के वितरण पर भी सवाल उठाते हैं और कहते हैं कि भारत में जल वितरण में भी बड़ी असमानता है जो लोग रसुखदार हैं और आलीशान कॉलोनियों में रहते हैं उनके पास शुद्ध और स्वच्छ जल सरकार आसानी से और भारी मात्रा में मुहैया कराती है, जबकि छोटे तबके के लोगों या झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाकों में रहने वाले लोगों को नहीं।
उन्होंने सरकार की उदासीनता पर भी सवाल खड़ा किया और कहा कि केंद्र सरकार पहले की अपेक्षा अब जल समस्या पर कम ध्यान दे रही है। जहाँ पहले जल कमीशन होता था और वह समय-समय पर केंद्र सरकार को जल संकट से संबधित विषयों पर अपनी रिपोर्ट पेश करता था वह अब 20 सालों से बंद है। वहीं सरकार या सरकार की तमाम रिपोर्टां में जल के व्यय या उसकी उपलब्धता पर चर्चा तो होती है लेकिन उसमें जल बचाने के उपाय या जल संरक्षण पर कुछ खास चर्चा नही होती है। साथ ही वह राजस्थान के कोका-कोला प्लांट की ओर ध्यान आकृष्ट कर कहतें है कि जब सरकार को पता है कि यहाँ जल समस्या है तो यहाँ प्लांट को खोलने की अनुमति ही क्यों दी?
केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार भी इस मामले को लेकर उदासीन दिख रही हैं। जल प्रबंधन को लेकर सरकार का रवैया भी कुछ खास नहीं है। सरकार का हर पहलू पर इतनी विशाल समस्या में उदासीन नज़र आना सोच का विषय है। वहीं सरकार की उदासीनता के साथ-साथ जनता भी इस गंभीर मामले को लेकर सजग नहीं है। जहाँ अमेरिका और चीन 112 घन किलोमीटर भूजल का दोहन करतें हैं जबकि भारत 250 घन किलोमीटर भूजल का दोहन करते हैं जोकि इन देशों के मुकाबले 124 फीसदी ज्यादा है। हमें जल की सही मात्रा में इस्तेमाल को लेकर खुद सचेत होना चाहिए। अभी भी हालात ऐसे है कि पानी का इस्तेमाल लोग बिना सोचे समझे कर रहे हैं। भारतीय जल नीति के अनुसार प्रतिदिन 150 लीटर प्रति व्यक्ति जल के इस्तेमाल करने की रूपरेखा है लेकिन लोग इससे ज़्यादा पानी इस्तेमाल करते हैं। आँकड़े के अनुसार दिल्ली में ही कई परिवार ऐसै हैं जो कि प्रति व्यक्ति तक़रिबन 650 लीटर तक जल का इस्तेमाल करते हैं।
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2008 में देश में पानी की उपलब्धता ज़रूरत से ज़्यादा थी। तब 634 अरब घन मीटर की माँग के मुकाबले 650 अरब घन मीटर पानी उपलब्ध था। वहीं 2030 तक यह माँग 1,498 अरब घन मीटर तक बढ़ जाएगी जबकि उपलब्धता केवल 744 अरब घन मीटर ही रह जाएगी। सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड कि एक रिपोर्ट की मानें तो पिछले दस वर्षां में भारत में भूजल में 61 फीसदी की कमी आई है।
भारत में विश्व की 17 फीसद आबादी रहती है जबकि यहाँ विश्व का केवल 4 फीसदी पानी ही उपलब्ध है। आज से दस साल पहले पूरी पृथ्वी के कुल भूभाग के भूजल का 25 प्रतिशत हमारे पास था। सन् 1983 में 33 फुट खुदाई के बाद पानी मिल जाता था लेकिन 2011 में 132 फुट खुदाई के बाद पानी मिलना शुरू हुआ और भूजल का स्तर दिन-ब-दिन गिरता ही जा रहा है। अगर ऐसा ही हाल रहा और हमने समय पर कदम नहीं उठाया तो हमारा देश भी जल संकट से दूर नहीं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत 2020 तक जल संकट वाला राष्ट्र बन जाएगा।
जिस देश में विभिन्न उपलब्ध सतही साधनों से पानी की उपलब्धता तकरीबन 2,300 अरब घन मीटर हो, जहाँ औसतन प्रत्येक वर्ष 100 सेंटीमीटर से भी अधीक वर्षा होती हो, जिससे 4,000 अरब घनमीटर जल मिलता हो। जहाँ भूजल से 433 घन किलोमीटर पानी मिलता हो। जहाँ तालाबों व कुओं से 690 घन किलोमीटर जल मिलता हो। जहाँ नदियों से 1,869 घन किलोमीटर जल मिलता हो। वहाँ जल का संकट क्यों है? क्या इसकी साफ वजह वर्षा के पानी का संरक्षण न कर पाना है? भारत देश में वर्षा के पानी का 47 फिसदी पानी नदियों में चला जाता है। नदी में गये इन पानी में से 1,132 अरब घनमीटर जल का उपयोग तो हो जाता है जबकि 37 फीसदी पानी सही भंडारण और संरक्षण न होने के कारण समुद्र में चला जाता है।
समय के साथ हम आधुनिक तो होते जा रहे हैं और अपने जल के पुराने संसाधनों जैसे कुआँ, तालाब, झील इत्यादि को ख़त्म करते जा रहे हैं लेकिन अत्याधुनिकता के इस दौर में हम इनके विकल्पों को खोजने पर काम नहीं कर रहें हैं। सरकार को लोगों को जागरूक करना चाहिए कि कैसे वह जौहाद और चेक डैम का निर्माण कर जल का संरक्षण कर सकते हैं और साथ ही जल संरक्षण के विभिन्न उपायों पर भी जागरूक करने की आवश्यकता है।
सरकार के साथ हमें भी इस गंभीर मसले को लेकर सजग हो जाना चाहिए और हमें सरकार के साथ मिलकर अपने पुराने
संसाधनों को बचाने और जल संरक्षण के तमाम उपायों पर गौर करने कि सख्त ज़रूरत है। न केवल भारत देश को जल
संरक्षण नीति लाने कि आवश्यकता है बल्कि विश्व के तमाम देशों को जल संरक्षण की ओर निर्णायक कदम उठाने और इस
मुद्दे पर लामबंद होने की आवशयकता है, वर्ना वह दिन दूर नहीं जब हम पानी कि बून्द-बून्द को तरसने लगेंगे।
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