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थनबर्ग 'टूलकिट' : 21 साल की जलवायु कार्यकर्ता को 5 दिन की पुलिस हिरासत

21 साल की दिशा रवि 'फ़्राइडेज़ फ़ॉर फ़्युचर' नाम के एक वैश्विक संगठन से जुड़ी हैं जो जलवायु संकट के लिए काम करता है।
disha ravi

21 साल की जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को दिल्ली पुलिस ने शनिवार को बंगलुरु से गिरफ़्तार किया था। दिशा को रविवार को कोर्ट ने 5 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया है। दिशा पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर किसान आंदोलन से जुड़ी एक 'टूलकिट' सोशल मीडिया पर साझा की थी। इस 'टूलकिट' को इससे पहले 18 साल की अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए साझा किया था। यह कार्रवाई दिल्ली में हुई एफ़आईआर का हिस्सा है, जो दिल्ली पुलिस ने ‘खालिस्तान समर्थक’ निर्माताओं के खिलाफ बृहस्पतिवार को दर्ज की थी।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने रविवार को बताया कि दिशा रवि (21) को दिल्ली पुलिस के साइबर सेल के दल ने शनिवार को गिरफ्तार किया था।

दिशा रवि रविवार को कोर्ट की सुनवाई के दौरान रोने लगीं और रोते हुए कहा कि उन्होंने टूलकिट की सिर्फ़ दो लाइनें एडिट की थीं।

इससे पहले, दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को गूगल और अन्य सोशल मीडिया कंपनियों से ‘टूलकिट’ बनाने वालों से जुड़े ईमेल आईडी, डोमेन यूआरएल और कुछ सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी देने को कहा था।

दिल्ली पुलिस के ‘साइबर सेल’ ने ‘‘भारत सरकार के खिलाफ सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक युद्ध’’ छेड़ने के लक्ष्य से ‘टूलकिट’ के ‘खालिस्तान समर्थक’ निर्माताओं के खिलाफ बृहस्पतिवार को प्राथमिकी दर्ज की थी।

अज्ञात लोगों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र, राजद्रोह और अन्य आरोप में भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

21 साल की दिशा रवि फ्राइडेज़ फॉर फ्युचर नाम के एक वैश्विक संगठन से जुड़ी हैं जो जलवायु संकट के लिए काम करता है।

जिस 'टूलकिट' का ज़िक्र हो रहा है, वह दरअसल किसी कैम्पेन की प्लानिंग का एक पर्चा होता है। सभी छोटे बड़े आंदोलनों, सभाओं, कार्यक्रमों की तैयारी के लिए हर संगठन एक पर्चा तैयार करता है, इस 'टूलकिट' को आप वही डिजिटल पर्चा समझ सकते हैं।

दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इससे पहले एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि शुरुआती जांच से पता चला है कि दस्तावेज के तार खालिस्तान-समर्थक समूह ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ से जुड़े हैं।

उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को हुई हिंसा सहित पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रमों पर ध्यान देने पर पता चला है कि ‘टूलकिट’ में बतायी गई योजना का अक्षरश: क्रियान्वयन किया गया है। इसका लक्ष्य ‘‘भारत सरकार के खिलाफ सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक युद्ध छेड़ना है।’’

पुलिस के अनुसार, ‘टूलकिट’ में एक खंड है, जिसमें कहा गया है.... "26 जनवरी से पहले हैशटैग के जरिए डिजिटल हमला, 23 जनवरी और उसके बाद ट्वीट के जरिए तूफान खड़ा करना, 26 जनवरी को आमने-सामने की कार्रवाई और फिर दिल्ली में और उसकी सीमाओं पर किसानों के मार्च में शामिल हों।"

पुलिस ने बताया कि दस्तावेज ‘टूलकिट’ का लक्ष्य भारत सरकार के प्रति वैमनस्य और गलत भावना फैलाना और विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच वैमनस्य की स्थिति पैदा करना है।

टूलकिट पर जो सवाल उठ रहे हैं, वो बेबुनियाद लगते हैं, क्योंकि यह सिर्फ़ एक प्लानिंग है, जिसके तहत कोई भी आंदोलन चलता है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि बीजेपी ने राम मंदिर बनवाने, या 370 को कश्मीर से हटाने के लिए 30 साल प्रदर्शन किया था, उस प्रदर्शन के लिए भी एक योजना की ज़रूरत पड़ी होगी, वही योजना यदि सोशल मीडिया पर आ जाए, तो उसे 'टूलकिट' का नाम दे दिया जाएगा।

दिल्ली पुलिस के दावे के विपरीत, पोएटिक जस्टिस फ़ाउंडेशन ने कहा है कि उसने भारत में होने वाले किसी भी आंदोलन में किसी तरह से हिस्सा नहीं लिया है।

इस बीच 21 साल की दिशा की गिरफ़्तारी की निंदा की जा रही है।

मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी ने भी दिशा की गिरफ़्तारी की निंदा करते हुए उनकी तत्काल रिहाई की मांग की है।

आइये इस गिरफ़्तारी को समझते हैं,

21 साल की जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ़्तारी हुई है, क्योंकि ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट के बाद अज्ञात लोगों पर एफ़आईआर हुई थी, यह एफ़आईआर हुई क्योंकि ग्रेटा सहित कई विदेशी हस्तियों ने किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट किया था, मालूम चला कि यह ट्वीट उन्होंने एक डिजिटल आंदोलन के तौर पर किया था, जिससे देश-विदेश में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक इस आंदोलन की आवाज़ को पहुंचाया जा सके, ग्रेटा की तरफ़ से एक 'टूलकिट' साझा की गई, जिसमें पता चला कि इस डिजिटल आंदोलन के लिए योजना कैसे बनाई गई थी, योजना में कहीं भी खालिस्तान, या भारत विरोधी बातें नहीं थीं, तो दिशा की गिरफ़्तारी क्यों हुई है? विरोध करने की वजह से? इस पर सोचना ज़रूरी है!

जब ग्रेटा के ट्वीट के बाद यह एफ़आईआर हुई थी, तब सबने उसे मज़ाक़ में लिया था, उस पर मीम बनाए थे, लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि यह एफ़आईआर कर के पुलिस को और सरकार को बहाना मिल गया कि कैसे भारत के सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला जाए। यही बात जनवादी महिला समिति की कविता कृष्णन ने कही है, 

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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