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पांच सालों में दलित महिलाओं के रेप के मामलों में 33% वृद्धि

प्रतीकों का इस्तेमाल करके तरह-तरह से भाजपा दलित हितैषी होने का दावा कर रही है। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं।
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'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: Reuters

भाजपा सरकार लगातार दावा कर रही है कि दलितों की स्थिति में सुधार हो रहा है, दलित उत्पीड़न की घटनाओं में कमी आई है। सफाई कर्मियों के पांव धोकर, अंबेडकर की तस्वीर और अन्य प्रतीकों का इस्तेमाल करके तरह-तरह से भाजपा दलित हितैषी होने का दावा कर रही है। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं।

राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार नें सदन में दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के बारे में गृह मंत्रालय से सवाल पूछा। जिसका लिखित जवाब 20 जुलाई 2022 गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने दिया।

उन्होंने अपने जवाब में पिछले पांच सालों के जो आंकड़े दिये हैं वो चौंकाने वाले हैं और दलितों को लुभाने वाले सरकारी प्रोपगेंडा की पोल खोल कर रख देते है। आइये, इन आंकड़ों की नज़र से देखते हैं कि देश में पिछले पांच सालों में दलित उत्पीड़न की क्या स्थिति रही है।

पिछले पांच सालों में दलितों के ख़िलाफ़ अपराध में 23% बढ़ोतरी

गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय द्वारा राज्यसभा में दिये गये लिखित जवाब के अनुसार वर्ष 2016 में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 40,801 मामले दर्ज़ किय गये थे, 2017 में 43,203, वर्ष 2018 में 42,793, वर्ष 2019 में 45,961 और 2020 में ये संख्या बढ़कर 50,291 हो गई। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि पिछले पांच सालों में दलितों के खिलाफ अपराध के मामलों में साल दर साल लगातार बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2016 में जहां कुल अपराधों की संख्या 40,801 थी, वहीं 2020 में बढ़कर 50,291 हो गई। यानी पिछले पांच सालों में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों में 23% बढ़ोतरी हुई है। ये काफी चिंताजनक स्थिति है और सरकार के दलित हितैषी होने के तमाम दावों और प्रोपगेंडा की पोल खोल कर रख दे रही है।

दलित महिलाओं के रेप के मामलों में 33% वृद्धि

गौरतलब है कि दलितों में भी दलित स्त्री तथाकथित सवर्णों की ताकत और जाति व्यवस्था का सबसे नृशंस रूप भुगतती हैं। दलित स्त्री के शरीर को मर्दानगी, श्रेष्ठता, ताकत दिखाने के साथ-साथ मौज-मजा करने, सबक सिखाने और बदला लेने के लिए एक मैदान की तरह देखा जाता है। पिछले पांच सालों में दलित महिलाएं भयानक क्रूरता का सामना कर रही हैं। राज्यसभा में पेश किये गये आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि पिछले पांच सालों में दलित महिलाओं के साथ रेप के मामलों में साल दर साल लगातार बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2016 में दलित महिलाओं के रेप के 2,541 मामले दर्ज़ किये गये थे, वर्ष 2017 में 2,714, वर्ष 2018 में 2,936, वर्ष 2019 में 3,484 और वर्ष 2020 में 3,372 मामले दर्ज़ किये गये हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच सालों में दलित महिलाओं के रेप के मामलों में लगभग 33% बढ़ोतरी हुई है। यानी एक-तिहाई बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है। हर रोज 9 दलित महिलाओं के रेप के मामले दर्ज़ होते हैं।

न्याय में देर और अंधेर

सबसे पहले तो हमें ये समझना होगा कि ये संख्या मात्र उन मामलों की है जो पुलिस तक पहुंच पाते हैं। ऐसे बहुत से मामले होंगे जो दबा दिये जाते हैं और दर्ज़ नहीं हो पाते हैं। हमें ये भी देखने की ज़रूरत है कि जो मामले दर्ज़ होते हैं उनकी स्थिति क्या है? क्या सचमुच पीड़ितों को न्याय मिलता हैं? वर्ष 2020 में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 50,291 मामले दर्ज़ किये गये थे जिनमें से मात्र 3,241 मामलों में ही सजा सुनाई गई है। यानी मात्र 6% मामलों में ही सजा हुई है। यही स्थिति दलित महिलाओं के रेप के मामलों की है। वर्ष 2020 में दलितों महिलाओं के रेप के कुल 3,372 मामले दर्ज़ किए गये। जिनमें से मात्र 2,959 मामलों में ही चार्ज़शीट पेश की गई और सिर्फ 225 मामलों में ही सज़ा सुनाई गई। यानी मात्र 6% मामलों में। ये आंकड़ा पुलिस प्रशासन से लेकर न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठा रहा है और तमाम सरकारी दावों की पोल खो रहा है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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