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5 सितम्बर रैली : दर्द , गुस्सा , उत्साह और दृढ़ता का एक दृश्य

महाराष्ट्र से बिहार से हिमाचल तक, गरीब और मेहनतकश लोग राशन की कमी, नौकरियों की कमी, भूमिहीनता और कम वेतन की समस्याएं लेकर दिल्ली आये हैं।
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बुधवार को जब मज़दूरों किसानों और खेत मज़दूरों की ऐतिहासिक रैली की तैयारियां चल रही हैं तो दिल्ली में तीन जगहों पर कैंप लगे हुए हैं - नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन ,रामलीला मैदान और साहिबाबाद। ये कहानियाँ उन बहादुर महिलाओं और पुरुषों की हैं जो सैंकड़ों किलोमीटर दूर से दिल्ली तक सिर्फ इसीलिए आये हैं कि उनकी आवाज़ इस बहरी सरकार तक पहुँच सके। 

एक बहुत बड़ी लामबंदी उन खेतिहर मज़दूरों की है जिनके लिए दिल्ली तक का सफर अपने आप में ही एक बहुत बड़ी बात थी। बिना संपत्ति, बिना बैंक अकाउंट, बिना ज़मीन के यह लोग हर इस संघर्ष को आगे बढ़ाने की लड़ाई के लिए तत्पर हैं चाहे उन्हें कितनी भी तकलीफें झेलनी पड़े। यह संघर्ष वे CITU, AIKS और AIAWU जैसे अपने संगठनों के ज़रिये आगे ले जा रहे हैं। 

 पालघर से लेहान दौरा 
लेहान दौरा महाराष्ट्र के पालघर ज़िले से आये हैं। उनके जत्थे में आये 700 महिलायें और पुरुष सिर्फ एक दिन पहले नयी दिल्ली में आकर रुक गए क्योंकि रामलीला मैदान में बारिश से पानी भर गया था। लेहान एक आदिवासी महिला हैं और उनके हिसाब से बीजेपी सरकार के पिछले 4 साल उनकी ज़िन्दगी के सबसे खराब साल थे। इन चार सालों में महिलाओं पर हिंसा के मामले बढ़ें हैं। महिलाओं और छोटी बच्चियों को लगातार शोषित किया जा रहा है और इसके ज़िम्मेदार लोगों के साथ बीजेपी सरकार खड़ी हुई दिख रही है। जब वे ज़मानत पर बाहर आ जाते हैं तो उन्हें मालाएं पहनाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि यह कभी पहले नहीं देखा था। पहले आरोपियों को समाज के बाहर कर दिया जाता था लेकिन बीजेपी की सरकार इसका उलट होने लगा है। वे सामाजिक ढांचे को बर्बाद करने का प्रयास कर रहे हैं। देहात के इलाकों में विकास का मूलभूत ढाँचा भी मौजूद नहीं है। उनके घर से स्वास्थ्य केंद्र 6 किलोमीटर दूर है और वहाँ भी डॉक्टर नहीं है। 

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महाराष्ट्र के संतारा ज़िले की आनंदी अपने इलाके के राशन की दिक्कतों के बारे में बतातीं हैं। गरीबों तक राशन नहीं पहुँचा रहा है। वह कहती हैं चीज़ों की कीमत लगातार बढ़ रही है और इस वजह से लोगों की ज़िन्दगी दुखदाई हो गयी है। बीजेपी सरकार के रेप के लिए मृत्यु दंड के ऐलान पर उनका कहना था कि इससे अब पीड़ित को क़त्ल कर दिया जायेगा। जो ज़रूरी है वह यह है कि ठीक ढंग से छानबीन हो और दोषी को सजा मिले। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में पीड़ितों का शोषण होता है और केस भी दर्ज़  नहीं किये जाते। 

हिमाचल प्रदेश के कुर्मी और प्रताप बंगला समुदाय से हैं, जिन्हें उनके 200 साल पुराने निवास से हटाया जा रहा है। दोनों ही धरमपुर के सोलन ज़िले से हैं। यह  समुदाय पिछड़ी जातियों में आता है यह सालों से जंगलों से जुड़ा हुआ रहा है। उनके घर तोड़े जा रहे हैं और उन्हें परवानु से शिमला जाने वाले हाईवे की चौड़ाई बढ़ाये जाने के चलते हटाया जा रहा है। लेकिन उन्हें कोई मुआवज़ा नहीं दिया जा रहा। यह समुदाय हिमाचल के सबसे गरीब समुदायों में से एक है। 

दो नसीमओं की एक सी कहानी 

महाराष्ट्र के शोलापुर की नसीमा शेख और दिल्ली की नसीमा बेगम दोनों की एक जैसी कहानी है। उनके हिसाब से जबसे मोदी सरकार सत्ता में आयी है तबसे उनके समुदाय पर लगातार हमले बढ़े हैं। बीजेपी नेता दिल्ली की छोटी छोटी दुकानों पर जाकर उनके बर्तनों को खोलकर यह देख रहे हैं कि उसमें मीट तो नहीं। इस वजह से बहुत सी छोटी छोटी मीट की दुकाने बंद हो गयी हैं। बिरियानी की हाँडी को बीफ के लिए जाँचा जा रहा है। यह बार बार इसीलिए किया जा रहा है जिससे दुकानों  के मालिक यह काम छोड़ कर चले जाएँ। नसीमा शेख के लिए बायोमेट्रिकस उनकी समझ से परे है , वह खासकर राशन पाने के और दूसरी ज़रूरतों के लिए इसपर निर्भरता के खिलाफ हैं।  उनका कहना है कि जो महिलायें मेहनत का काम करती हैं उनके हाथ सख्त हो जाते हैं और इससे बायोमेट्रिकस पर असर पड़ता है –उनके अंगूठे के निशान घिस जाते हैं और इस वजह से उन्हें सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता। यह बहुत बड़ी संख्या में मेहनतकशों के साथ हो रहा है। 

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रईस , अलवर 
अलवर के रईस राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार के बहुत खिलाफ थे और उन्होंने राजस्थान की बीजेपी सरकार पर बलात्कारियों और खूनियों का सम्मान करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने यह वादा किया था कि वह संसद और विधान सभा में महिलाओं के आरक्षण के लिए कानून पास करेगी लेकिन पूर्ण बहुमत के बावजूद उसने ऐसा नहीं किया । उनका कहना है कि बीजेपी को मालूम है कि कैसे लोगों को बेवक़ूफ़ बनाया जाता है। 

साहिबाबाद कैंप 

दिल्ली से सटे साहिबाबाद में रैली के लिए बिहार और यूपी से आये लोगों का कैंप लगा था। जैसे ही आप साहिबाबाद में जायेंगे सरकार की नाकामी साफ़ दिखाई देने लगेगी। वो बीजेपी जो अपने आप को विकास की पार्टी बताती है , उसे इस इलाके का एक चक्कर लगा लेना चाहिए। इस शहर की गलियों  सडकों  पर नाले का पानी बहता रहता है। गायों का झुण्ड जगह जगह प्लास्टिक पन्नी खाता हुआ दिखाई पड़ता है। साहिबाबाद रेलवे स्टेशन के पास ही कैंप लगाया गया था। हज़ारों लोग इन कैंप में मौजूद थे। इस टेंट में जन नाट्य मंच ने भी एक कार्यक्रम किया। 

बिहार के सरसा ज़िले से सीता देवी अपनी 90 और महिला साथियों के साथ यहाँ आयीं हैं। वह अखिल भारतीय किसान सभा की सदस्य हैं। उन्होंने बिहार में विकलांग और वृद्धावस्था में पेंशन न मिलने के कारण हो रही परेशानियों के बारे में बताया। उनके हिसाब  न तो मोदी और न ही नितीश सरकार ने अपने वादों को पूरा किया है। इसी वजह से वह गुस्सा ज़ाहिर करने बिहार से दिल्ली आई हैं। उन्होंने कहा शौचालय बनाने के लिए दिए गए पैसों को NGO खा  गये, अब नए NGO को शौचालय बनाने का काम दिया जा रहा है। उनके हिसाब से स्वच्छ भारत मिशन बिहार में सबसे बड़ा घोटाला है। जिन ज़ीरो  बैलेंस खातों को बैंकों में बनाया गया था उन्हें बंद कर दिया गया है और जब भी वह बैंक में जाती हैं उनसे बैंक मैनेजर पैसे मांगते हैं। 

 गोपाल दास दलित समुदाय से आते हैं और उनके समुदाय के पास कोई ज़मीन नहीं है। वह सभी खेत मज़दूर हैं। सरकार ने उन्हें 3 कट्टा ( 20 कट्टा = 1 बीघा ;12.5 बीघा+ 1 हैक्टेयर )  ज़मीन देने का वादा किया था लेकिन यह वादा पूरा नहीं किया गया। वह भयावह गरीबी में रहते हैं। इस समुदाय के लोग बड़ी मात्रा में कुपोषित हैं। इस वजह से अगर उन्हें जन कल्याणकारी योजनाओं से दूर रखा गया तो वह भुखमरी से मर सकते हैं। वे पहली बार दिल्ली आये हैं। 

माथु राम बिहार के बेलवारा में एक मिड डे मील मज़दूर थे। वे अब रिटायर हो चुके हैं और उन्हें सहारा देने के लिए कुछ नहीं है। कोसी नदी में आयी बाढ़ की वजह से उनकी ज़मीन का एक हिस्सा डूब गया। इस वजह से अब वे भूमिहीन हैं। दूसरे मिड डे मील कर्मचारी सही दिहाड़ी मिलने की मांग के साथ यहाँ  आये हैं। उन्होंने बताया कि वे सुबह 9 से शाम 4 बजे तक काम करते हैं लेकिन उन्हें सिर्फ महीने में सिर्फ 1,250 रुपये मिलते हैं। 

गरीब किसान भी बुरी तरह प्रभावित हैं। एक एकड़ ज़मीन से होने वाली आमदनी 7 रुपये से बढ़कर 33 रुपये हो गयी है। पेट्रोल और डीज़ल के दामों में बढ़ौतरी की वजह से भी गरीबों को भारी नुक्सान हुआ है। 

 खेत मज़दूरों में महिला मज़दूरों की स्थिति रेमो देवी और विकास ने बताई। उन्होंने बताया कि 10 घंटे ज़मींदार की  काम करके मर्दों को 100 रुपये और महिलाओं को 50 रुपये मिलते हैं। जबकि दोनों ही उतने ही समय और उतना ही काम करते हैं। काजल ने कहा कि ज़मींदार पिछले साल तक सिर्फ 20 रुपये ही दे रहा था। अब उनके 30 रुपये बढ़ा दिया है। जब वह बीमार हुई और कुछ दिनों तक काम पर नहीं जा सकीं तो ज़मींदार ने उन्हें और उनके परिवार को खेत से निकाल दिया। राजीव नामक एक खेत मज़दूर  सवाल किया कि जब फैक्ट्री में काम करने  मज़दूरों के लिए लेबर कोर्ट होते हैं तब खेत मज़दूरों के लिए लेबर कोर्ट क्यों  नहीं होता । 

 इस कैंप में गुस्सा और उत्साह दोनों देखे जा सकते हैं। गरीब लोगों की बेहाली और दुःख बीजेपी के कार्यकाल की असलियत सामने ला रहा है। लोगों में इतना  गुस्सा है कि जब एक  कहा कि अगर जन मुद्दों जैसे पेट्रोल के दाम और महंगाई आदि पर भारत बंद का आवाहन किया जायेगा तो वे पूरे जोश के साथ इसमें शामिल होंगे । 

 

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