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2012 से भारत में 690 इंटरनेट शटडाउन, कश्मीर सबसे अधिक प्रभावित

इस साल अकेले भारत को 75 इंटरनेट शटडाउन के कारण 174.6 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
internet shutdown
Image courtesy : India Today

भारत में इंटरनेट शटडाउन की संख्या पिछले एक दशक में तेजी से बढ़कर 690 हो गई है, जिनमें से 101 शटडाउन केवल 2021 में हुए हैं।

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएफएलसी) के अनुसार, इस वर्ष अब तक 75 शटडाउन लगाए गए हैं, जो एक दाता-समर्थित कानूनी सेवा संगठन है जो डिजिटल दुनिया में स्वतंत्रता की रक्षा के लिए वकीलों, नीति विश्लेषकों, प्रौद्योगिकीविदों और छात्रों को एक साथ लाने वाला मंच है।

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (SFLC.in) की रिपोर्ट 'लेट द नेट वर्क: इंटरनेट शटडाउन इन इंडिया 2022' के मुताबिक, सरकार ने इस साल 75 बार इंटरनेट बंद किया, जिसकी वजह परीक्षाओं में नकल रोकने, सांप्रदायिक तनाव और आतंकवाद का मुकाबला बताई गई। 

2022 में क्षेत्रवार इंटरनेट शटडाउन की तस्वीर। कश्मीर में लगातार 522 दिनों तक इंटरनेट बंद होने से का सबसे बुरा हाल रहा।

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (SFLC.in) जिसे संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद के तहत विशेष परामर्श संगठन का दर्जा प्रदान किया गया है, ने मानव अधिकारों और आर्थिक दृष्टिकोण से इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव का विश्लेषण किया, और कैसे वे बुनियादी जरूरी सेवाओं को प्रभावित करते हैं, और कैसे ये शटडाउन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को प्रभावित करते हैं का पता अपने इंटरनेट शटडाउन ट्रैकर (आईएसटी) के इस्तेमाल से लगाया है। 

इंटरनेट शटडाउन ट्रैकर (आईएसटी), जिसे https://internetshutdowns.in/ पर एक्सेस किया जा सकता है और विशेष रूप से देश में अपनी तरह का एकमात्र रीयल-टाइम डेटाबेस है, जो 2012 के बाद से हर एक इंटरनेट शटडाउन का दस्तावेजीकरण करता है, जिसकी शुरुआत जम्मू और कश्मीर में पहली बार 26 जनवरी  2012 में हुई थी।

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएफएलसी) ने संबंधित राज्य सरकारों द्वारा इंटरनेट शटडाउन के लिए जारी आदेशों की जानकारी समाचार और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी से माध्यम से की है। सभी रिपोर्टों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए टीम ने एक कठोर क्रॉस-सत्यापन प्रक्रिया अपनाई है। एसएफएलसी शटडाउन के बारे में विवरण हासिल करने के लिए सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत नियमित आवेदन भी दाखिल करता है।

2022 की शीर्ष 10वीपी रिपोर्ट के अनुसार, भारत को अकेले इस वर्ष 174.6 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है, लंबे समय तक इंटरनेट बंद होने के कारण लोगों की आजीविका पर भारी प्रभाव पड़ा है, और जो सीधे तौर पर रोजगार के नुकसान में बदला है। 

शटडाउन की अवधि।

नागरिकों पर इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए, एसएफएलसी  (SFLC.in) ने उन लोगों की गावाही के प्रयोगसिद्ध रिकॉर्ड भी रखे हुए हैं जो इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। लॉस्ट वॉयस नामक इस परियोजना के माध्यम से, कश्मीर ने लगातार 522 दिनों तक सबसे कठोर इंटरनेट शटडाउन का सामना किया है।

कश्मीर, जहां 18 महीने से अधिक समय तक इंटरनेट पूरी तरह से बंद था, वह आर्थिक रूप से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ था। कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, 5 अगस्त, 2019 से जुलाई 2020 तक व्यवसायों को 40,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

नवंबर 2020 तक, पर्यटन और मोबाइल सेवाओं में कम से कम 5,000 सेल्समैन को अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में वेतन नहीं दिया गया था। इसके अलावा, कश्मीर में 4.96 लाख लोगों की नौकरी चली गई थी।

चैंबर ने कहा कि 5 अगस्त के बाद ऑनलाइन शॉपिंग और लेन-देन में व्यवधान के कारण इंटरनेट बंद होने से नुकसान हुआ। कश्मीर में स्टार्ट-अप, दूरसंचार क्षेत्र और कूरियर सेवाएं सबसे ज्यादा प्रभावित व्यवसायों में से हैं।

2022 में निवारक और प्रतिक्रियाशील इंटरनेट शटडाउन।

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (SFLC.in) की 'लिविंग इन डिजिटल डार्कनेस-ए हैंडबुक ऑन इंटरनेट शटडाउन इन इंडिया' शीर्षक वाली रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि इंटरनेट शटडाउन न केवल बड़े व्यापारियों, ई-कॉमर्स या बड़ी कंपनियों को प्रभावित करता है बल्कि छोटे से छोटे व्यवसाय को भी प्रभावित करता है जिसका इंटरनेट निर्भरता से किसी भी किस्म का नाता रहा है। 

तेलंगाना के आदिलाबाद जिले के मुटनूर गांव में एक सेवा केंद्र के एक संचालक ने बतया कि,  “हमारे इलाके में 30-45 दिनों तक इंटरनेट नहीं होने के कारण, विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों को नुकसान उठाना पड़ा। जिसमें जन्म प्रमाण पत्र, ओबीसी प्रमाण पत्र आदि जैसे प्रमाण पत्र के लिए ऑनलाइन आवेदन भरना शामिल है। चूँकि हम किसे भी किस्म का ऑनलाइन बैंक लेनदेन नहीं कर पाए,  इसलिए हमारे ग्राहकों को भी बहुत असुविधा का सामना करना पड़ा।

गिग वर्कर्स (फूड ऐप डिलीवरी पार्टनर्स और कैब एग्रीगेटर ड्राइवर्स) पर प्रभाव, जो पूरी तरह से अपने वेतन के लिए अपनी सेवाएं देने के लिए इंटरनेट पर निर्भर हैं, गंभीर रूप से पीड़ित रहे हैं। शटडाउन ने उन्हें पूरी तरह से अपनी सेवाएं देने में असक्षम बना दिया था। 

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेट शटडाउन स्वास्थ्य सेवाओं को भी प्रभावित करता है। स्वास्थ्य रिकॉर्ड और सुविधाओं के डिजिटलीकरण में वृद्धि के कारण भी काम प्रभावित हुआ, कई डॉक्टर अपने साथियों के साथ परामर्श के लिए इंटरनेट पर निर्भर हैं, और मरीज़ भी डॉक्टरों से परामर्श करने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं।

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (SFLC) रिपोर्ट14 ने इंटरनेट शटडाउन के दौरान मणिपुर में एक डॉक्टर द्वारा सामना की गई डेटाबेस एक्सेस कठिनाइयों की पहचान की। उनकी सर्वर तक पहुंच न होने के कारण उन्हे भुगतान करने, चिकित्सा आपूर्ति के शिपमेंट पर नज़र रखने और स्वास्थ्य सेवाओं को निर्बाध रूप से उपलन्ध कराने में जरूरी तथा अन्य आवश्यक चिकित्सा गतिविधियों को जारी रखने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ा।

गरीबों और कमजोरों के लिए सरकार द्वारा बनाई गई कई स्वास्थ्य योजनाएं भी इससे प्रभावित होती हैं। 2020 की शुरुआत में, यह बताया गया था कि आयुष्मान भारत के कई लाभार्थी स्वास्थ्य सेवा हासिल नहीं कर पाए थे क्योंकि कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन के कारण अस्पताल इन मामलों से निपटने में असमर्थ थे। डॉक्टरों ने कहा कि वे लगातार 25 दिनों तक आयुष्मान भारत के मामलों को संसाधित करने में असमर्थ थे, जिसके बाद उन्होंने ऑफ़लाइन प्रक्रियाओं का सहारा लिया, जिससे प्रक्रिया में देरी हुई और लाभार्थियों को सेवाओं में बाधा उत्पन्न हुई।

इंटरनेट बंद होने का असर पढ़ाई पर भी पड़ रहा है। दुनिया भर में महामारी के दौरान कक्षाओं और परीक्षाओं के ऑनलाइन होने से शिक्षा क्षेत्र में इंटरनेट तक पहुंच का महत्व स्पष्ट हो गया है।

भारत में 96.33 प्रतिशत से अधिक इंटरनेट यूजर्स मोबाइल इंटरनेट यूजर्स हैं और लगभग 75 प्रतिशत इंटरनेट बंद होने से मोबाइल इंटरनेट सेवाएं प्रभावित होती हैं। यह देश में पहले से मौजूद डिजिटल डिवाइड को और खराब करता है।

लंबे समय तक इंटरनेट शटडाउन के कारण कुछ छात्रों को स्कूल छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा   या वे पूरे एक साल की स्कूली शिक्षा से वंचित रह गए। कश्मीर में कम इंटरनेट स्पीड और कनेक्टिविटी की वजह से एकेडमिक ईयर के सिलेबस को 40 फीसदी तक कम करना पड़ा था।

बच्चों के अभिभावकों ने बताया कि इंटरनेट की स्पीड कम होने के कारण छात्र कक्षाओं में जाने से कतराते हैं। इसने कई छात्रों के लिए भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी पैदा कीं जो शिक्षा हासिल करने में सक्षम नहीं थे।

कुछ मामलों में, छात्र उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरियों के लिए कॉलेजों में प्रवेश के लिए सरकार द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण परीक्षाओं में शामिल नहीं हो पाए।

रिपोर्ट में की गई टिप्पणियां इंटरनेट तक पहुंच के संदर्भ में मानवाधिकारों की रक्षा में वर्तमान कानूनी ढांचे की विफलताओं को सशक्त रूप से स्पष्ट करती हैं। जैसा कि रिपोर्ट में देखा गया है, इंटरनेट तक पहुंच में व्यवधान सबसे कम ऐसे उदाहरणों में शुरू हुआ, जिसमें ऐसे कारण भी शामिल हैं जहां इंटरनेट शटडाउन के विकल्प उपलब्ध हैं। शटडाउन शक्तियों के इस्तेमाल  में जरूरत, तर्कसंगतता, आनुपातिकता और उचित प्रक्रिया को न अपनाने से भारत में लोकतंत्र की स्थिति को धक्का लगा है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

690 Internet Shutdowns In India Since 2012, Kashmir Most Impacted

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