NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
मांग में कमी और सार्वजनिक ख़र्च में कटौती वाला बजट अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी ख़बर नहीं है
केंद्र सरकार का इरादा साफ़ है कि वह वित्तीय वर्ष 2021-22 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के हिस्से के रूप में कम करने के लिए ख़र्च में कटौती के साथ बड़े पैमाने पर विनिवेश करेगी।
सुरजीत दास
04 Feb 2021
Translated by महेश कुमार
बजट

वित्तीय वर्ष 2021-22 का केंद्रीय बजट 1 फरवरी को संसद में पेश कर दिया गया है। इस साल के बजट को कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन और उससे अर्थव्यवस्था की अभूतपूर्व दुर्गति के संदर्भ में तैयार किया गया है। कई अर्थशास्त्रियों ने तर्क दिया है कि इस बेहद चुनौतीपूर्ण समय में अर्थव्यवस्था में सकल मांग को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने के राजकोषीय प्रोत्साहन की तत्काल जरूरत है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो पिछले छह महीने के अधिक समय से नौकरी और आमदनी दोनों गवाएँ बैठे है। कई लोग तो अपनी बचत को भी खा चुके है, जबकि अन्य जरूरी और लंबे लॉकडाउन के चलते भयंकर कर्ज़ में डूब गए हैं। लोगों की आमदनी के नुकसान को पूरा करने के लिए लोगों को पैसे के नकद-हस्तांतरण की मांग की गई थी। अर्थव्यवस्था में वर्तमान बेरोजगारी दर बहुत अधिक है। अंतिम उपाय के रूप में सार्वभौमिक रोजगार लागू करने की जरूरत थी। गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को इसका सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। साथ ही बजट में आने वाले वर्ष के लिए गरीबों के लिए मुफ्त खाद्यान्न आपूर्ति का भी प्रावधान होना चाहिए था। लेकिन, इस बजट में इनमें से कुछ भी नहीं किया गया है।

आबादी के अमीर तबके और व्यापारी समुदाय को कुछ प्रत्यक्ष कर में रियायतें मिली हैं। जबकि  गरीब हितैषी सामाजिक क्षेत्र के खर्चों में काफी कमी आई है और केंद्र सरकार ने तय किया है कि वह आने वाले वर्ष में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के कुल खर्च से 2 प्रतिशत ओर कम करेगी। 

वित्तीय वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा 9.5 प्रतिशत (संशोधित अनुमान के अनुसार) था और पिछले वर्ष के बजट पर किए गए खर्च के संशोधित अनुमान में 13.5 प्रतिशत की वृद्धि एक ख़र्चीली राजकोषीय नीति की छाप देती है। हालाँकि, ऐसा नीचे दिए कारणों से सही नहीं है। सबसे पहले, 2020-21 की अपेक्षित जीडीपी अब 13.4 प्रतिशत है, जो पिछले वर्ष के बजट की प्रस्तुति के दौरान यानि लॉकडाउन की वजह से कम थी और जो नकारात्मक वृद्धि का नतीजा थी। यदि हम पहले की अपेक्षाओं के आधार पर 2020-21 के राजकोषीय घाटे की गणना करते हैं, तो राजकोषीय घाटा 8.2 प्रतिशत बैठता है न कि 9.5 प्रतिशत। यह 9.5 प्रतिशत इसलिए हुआ क्योंकि जीडीपी की दर कम थी। दूसरे, संशोधित अनुमानों के अनुसार राजस्व में कमी 2020-21 के सकल घरेलू उत्पाद में 2 प्रतिशत से अधिक रही है, जोकि पिछले साल के बजट की तुलना में ऐसा है। तीसरी बात यह है कि, खर्च में वृद्धि केवल जीडीपी के 2 प्रतिशत से कम (यदि हम उसी जीडीपी से विभाजित करते हैं) के बावजूद आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेजों से हुई है।

वित्तमंत्री ने जिस 4 लाख करोड़ के अतिरिक्त खर्च की बात की, उसमें से 3 लाख करोड़ अतिरिक्त खर्च भारतीय खाद्य निगम (FCI) की सब्सिडी के कारण हुआ है। मनरेगा के लिए 50,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, कोविड-19 के कारण रेलवे के संसधानों में आई कमी को पाटने के लिए रेलवे को 3,8,000 करोड़ रुपए का कर्ज़ दिया आया था, और पीएम जन-धन योजना के लिए 28,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। लॉकडाउन की वजह से ये तीन चीजें हुईं। दूसरी ओर, कई मंत्रालयों और विभागों के अनुमोदित बजट से जिसमें कृषि, शिक्षा, आदिवासी मामलों, महिलाओं और बाल कल्याण, सामाजिक कल्याण, और शहरी विकास के खर्च में गंभीर कटौती कर दी गई थी। इसके अलावा, कुल खर्च का संशोधित अनुमान बढ़ा है। दिसंबर 2020 तक, चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में, केंद्र सरकार का कुल खर्च केवल 22.8 लाख करोड़ रुपये रहा था और पूरे वर्ष का संशोधित अनुमान बढ़कर 34.4 लाख करोड़ रुपये हो गया था।  इसलिए, जनवरी फरवरी और मार्च के महीनों में, सरकार 11.6 लाख करोड़ खर्च करने की उम्मीद कर रही है, जो कि नौ महीनों के बड़े संकट के दौरान खर्च किए गए से आधे से अधिक है। जाहिर है, वास्तविक खर्च संशोधित अनुमानों से बहुत कम होगा।

हालाँकि, वर्ष 2020-21 में बजट की अनुमानित राशि कि तुलना में वास्तविक राजस्व प्राप्ति कम होगी। सरकार को पिछले नौ महीनों में (दिसंबर 2020 तक) जो 11 लाख करोड़ रुपये से कम का जो राजस्व मिला है उसकी तुलना में इस वर्ष 15.6 लाख करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है। इसलिए, मांग में गंभीर कमी के चलते 2020-21 में वास्तविक खर्च में बढ़ोतरी के नगण्य होने की संभावना है; इसलिए जीडीपी के अनुपात में राजकोषीय घाटा 2020-21 में मुख्य रूप से राजस्व की कमी और जीडीपी में कमी के कारण बढ़ जाएगा।

जहां तक ​​2021-22 के बजट का सवाल है, उम्मीद ये की जा रही है कि अर्थव्यवस्था 14.4 प्रतिशत की सांकेतिक वृद्धि दर्ज़ करेगी जबकि वास्तविक विकास दर 11.5 प्रतिशत के साथ वापस आएगी। दिलचस्प बात यह है कि 14.4 प्रतिशत सांकेतिक विकास दर के बाद भी, भारत की सांकेतिक जीडीपी अभी भी 2020-21 की सांकेतिक जीडीपी से कम होगी, जैसा कि पिछले साल के बजट के दौरान उम्मीद की गई थी। इसलिए, इस वर्ष सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर इसलिए अधिक होगी क्योंकि इस वर्ष नकारात्मक विकास दर कम रहेगी। यदि हम सरकार के इस वर्ष के संशोधित अनुमानों पर विश्वास करते हैं, तो भी इस वर्ष के संशोधित अनुमानों की तुलना में, २०२१-२२ के लिए बजट का कुल खर्च सांकेतिक के संदर्भ में 1 प्रतिशत कम है। यदि जीडीपी 14.4 प्रतिशत तक बढ़ जाती है और खर्च 1 प्रतिशत कम हो जाता है, तो जीडीपी के अनुपात के रूप में केंद्र सरकार का खर्च बहुत हद तक गिर सकता है। यानि 2020-21 में कुल सरकारी खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 17.7 प्रतिशत से गिरकर 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद का 15.6 प्रतिशत होना तय है। 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 2021-22 में कुल राजस्व प्राप्ति के 15 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है। जीडीपी के अनुपात में राजकोषीय घाटे को  9.5 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत पर लाने के लिए 2021-22 में बड़े पैमाने पर कटौती करनी होगी। इसलिए, यह खर्च में कटौती करने वाला बजट है जबकि जरूरत एक बड़े खर्च वाली वित्तीय नीति की है जो अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त मांग को पैदा कर सके। 

यदि हम 2020-21 के संशोधित अनुमानों से 2021-22 के बजट अनुमानों की तुलना करते हैं, तो हम पाएंगे कि केवल पूंजीगत व्यय में 26 प्रतिशत की वृद्धि है, जो एक स्वागत योग्य कदम है। हालांकि, कुल आय-व्यय का ब्याज भुगतान और उसका शुद्ध व्यय वास्तव में बड़े पैमाने पर 8.6 प्रतिशत तक गिर जाएगा, जबकि राजस्व प्राप्तियां 15 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है। केंद्रीय योजनाओं पर खर्च लगभग 20 प्रतिशत कम हो जाएगा; सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के संसाधनों में भी लगभग 10 प्रतिशत की कमी आएगी। 2021-22 में कुल व्यय जीडीपी का 2 प्रतिशत अंक से अधिक कम हो जाएगा। स्वाभाविक रूप से, 2021-22 में भारत में जीडीपी अनुपात में राजकोषीय घाटे को नीचे लाने के लिए खर्च कटौती वाली राजकोषीय नीति के कारण भारी मांग में कमी/संकुचन होगा। जीडीपी की वृद्धि दर उम्मीद से कम (स्तर कम होने के बावजूद) रहेगी और 2021-22 में भी सकल मांग में कमी के कारण लाभ, निजी निवेश को झटका लगना जारी रहेगी।

स्वास्थ्य आपूर्ति, स्वच्छता और पोषण सहित स्वास्थ्य खर्च में बड़े पैमाने की वृद्धि यानि 137 प्रतिशत की बढ़ोतरी का दावा किया गया है, लेकिन अगर हम पानी की आपूर्ति, स्वच्छता और पोषण और वित्त आयोग को छोड़ दें, तो स्वास्थ्य खर्च में बढ़ोतरी केवल 11 प्रतिशत है। इसके अतिरिक्त, 2021-22 में कोविड-19 टीकाकरण के लिए 35 हजार करोड़ रुपये प्रदान किए जाएंगे। इसके अलावा एक बार के टीके के खर्च, और देश में उपजे इस गंभीर स्वास्थ्य संकट के बावजूद  स्वास्थ्य पर खर्च सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में गिरना तय है।

जहां तक ​​बजट के कराधान यानि टैक्स का सवाल है, 2020-21 में प्रत्यक्ष कर के कारण राजस्व (लाभ और आयकर) में 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक की कमी रही है। बजट भाषण में आबादी के अमीर तबके के लिए कुछ प्रत्यक्ष कर में रियायतों की घोषणा की गई है, लेकिन आम लोगों के लिए जीएसटी दरों या पेट्रोलियम कर दरों में कोई कमी नहीं की गई है। वस्तुओं और सेवाओं की मांग में कमी के चलते और लोगों की क्रय शक्ति कम होने के कारण 2020-21 में जीएसटी में 1.75 लाख करोड़ रुपये की कमी रही है। हालांकि, पेट्रोलियम और डीजल पर अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि के कारण मुख्य रूप से लॉकडाउन वर्ष में केंद्रीय उत्पाद शुल्क में 94,000 करोड़ रुपये का लाभ हुआ है। यह न केवल मुद्रास्फीति बढ़ाएगा बल्कि प्रत्यक्ष करों में अधिक कमी को प्रोत्साहित करेगा और अप्रत्यक्ष करों में कम कमी से अमीर और गरीबों के बीच असमानता को बढ़ाएगा। केंद्र सरकार पहले की तुलना में बहुत अधिक उपकर (कर के ऊपर शुल्क) एकत्र कर रही है, जो विभाज्य पूल यानि राज्य और केंद्र के बीच बँटवारे का हिस्सा नहीं है। नतीजतन, 15वे वित्त आयोग की सिफारिश के बावजूद कि राज्यों के साथ 41 प्रतिशत राजस्व को शेयर किया जाए केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को संसाधनों के कुल हस्तांतरण के नाम पर पिछले साल के संशोधित अनुमान में बजट में 40,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमी की है।

केंद्र सरकार ने 2020-21 में सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति को बेचकर 2.1 लाख करोड़ रुपये इकट्ठा करने का लक्ष्य रखा था जबकि विनिवेश से उसे 32,000 करोड़ रुपये ही हासिल हुए।  इस वर्ष फिर से 1.75 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें एयर इंडिया, बीपीसीएल, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, आईडीबीआई बैंक, बीईएमएल, पवन हंस, और नीलाचल इस्पात निगम लिमिटेड आदि का निजीकरण करना शामिल है। संसद में आवश्यक संवैधानिक संशोधनों के बाद दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और एक बीमा कंपनी का निजीकरण भी बाद में किया जाएगा। हमें याद रखना चाहिए कि घरेलू कारोबारियों को सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां देने से मौजूदा लेखांकन मानदंडों के अनुसार कम राजकोषीय घाटे की संख्या दिखाने में मदद कर सकती हैं, हालांकि सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को एक साथ लाने पर भी कुल घरेलू मांग नहीं बढ़ पाएगी। इसलिए, मांग में इस गंभीर कमी के चलते ये सब कदम कुल मांग में कुछ भी बढ़ोतरी करने नहीं जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में, वर्षों से करदाताओं के पैसे से निर्मित कीमती सार्वजनिक संपत्ति या उधयोग को हमेशा के लिए निजीकरण कर बड़े पूँजीपतियों के हाथों में सौंप दिया जाएगा। भारत की एलआईसी को भी विदेशी निवेशकों के लिए 74 प्रतिशत तक खोला जा रहा है।

इसलिए, केंद्र सरकार का इरादा 2021-22 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के अनुपात में खर्च को संकुचित या कम करके और बड़े पैमाने पर विनिवेश के ज़रीए कम करना है। संक्षेप में कहा जाए तो देश में मांग में गंभीर कमी है और बजट सार्वजनिक खर्च में कटौती का बजट है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि उम्मीद से कम होगी और भयंकर बेरोज़गारी, कम लाभ और उच्च मुद्रास्फ़ीति होगी तथा अमीर और ग़रीब के बीच असमानता का फ़ासला बढ़ेगा। 

Budget 2021
India GDP
fiscal deficit
India Budget 2021
Budget Explainer
indian economy
Nirmala Sitharaman
Healthcare Budget

Trending

क्या फिर से मंदिर मस्जिद के नाम पर टकराव शुरू होगा?
क्या राजनेताओं को केवल चुनाव के समय रिस्पना की गंदगी नज़र आती है?
बंगाल चुनाव: पांचवां चरण भी हिंसा की ख़बरों की बीच संपन्न, 78 फ़ीसदी से ज़्यादा मतदान
नौकरी देने से पहले योग्यता से ज़्यादा जेंडर देखना संविधान के ख़िलाफ़ है
भाजपा की विभाजनकारी पहचान वाले एजेंडा के कारण उत्तर बंगाल एक खतरनाक रास्ते पर बढ़ सकता है
लेबर कोड में प्रवासी मज़दूरों के लिए निराशा के सिवाय कुछ नहीं

Related Stories

मोदी जी, अर्थव्यवस्था के बारे में क्या कोई योजना है?
सुबोध वर्मा
मोदी जी, अर्थव्यवस्था के बारे में क्या कोई योजना है?
16 April 2021
जब देश भर में कोविड-19 की नई लहर चल रही है, कई राज्यों ने रात के कर्फ्यू से लेकर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं (सिर्फ हरिद्वार में कुंभ मेले को छो
नित्या चक्रवर्ती
कोरोना की दूसरी लहर के बीच देश में शुरू होना चाहिये न्यूनतम बुनियादी आय कार्यक्रम
14 April 2021
आज भारत कोरोना की दूसरी लहर से पैदा होने वाले आर्थिक झटके और मानवीय वेदना से निपटने की तैयारी कर रहा है, इसके मद्
सीईएल कर्मचारियों का निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी, सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल!
मुकुंद झा, रवि कौशल
सीईएल कर्मचारियों का निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी, सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल!
12 April 2021
दिल्ली से सटे हुए साहिबाबाद स्थित सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) के कर्मचारी 15 मार्च से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कर्मचारी विनिवेश की प्र

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • MIgrants
    दित्सा भट्टाचार्य
    प्रवासी श्रमिक बगैर सामाजिक सुरक्षा अथवा स्वास्थ्य सेवा के: एनएचआरसी का अध्ययन
    20 Apr 2021
    ‘अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों का अनुभव एक सहायक नीतिगत ढाँचे की ज़रूरत पर ध्यान दिला रहा है। प्रवासी श्रमिकों की इन जटिल समस्याओं का निराकरण करने के लिए केंद्र, राज्य एवं समुदाय आधारित संगठनों द्वारा…
  • Election Commission of India
    संदीप चक्रवर्ती
    बंगाल चुनाव: निर्वाचन आयोग का रेफरी के रूप में आचरण उसकी गरिमा के अनुकूल नहीं
    20 Apr 2021
    निर्वाचन आयोग ने बंगाल में जारी लंबी चुनावी प्रक्रिया में आलोचना के कई कारण दे दिए हैं। अगले तीन चरण बहुत महत्वपूर्ण हैं।
  • library
    अनिल अंशुमन
    ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी पर ‘विकास का बुलडोजर‘ रोके बिहार सरकार 
    20 Apr 2021
    ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी के प्रति वर्तमान सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये और तथाकथित फ्लाई ओवर निर्माण के नाम पर लाइब्रेरी के वर्तमान अध्ययन कक्ष लॉर्ड कर्ज़न रीडिंग रूम को तोड़ने के सरकारी फरमान के खिलाफ…
  • tunisia
    पीपल्स डिस्पैच
    ट्यूनीशियाई राज्य समाचार एजेंसी टीएपी के विवादास्पद प्रमुख ने विरोध के बाद इस्तीफा दिया
    20 Apr 2021
    देश के पत्रकार संघ ने बाद में घोषणा की कि वह 22 अप्रैल को अपनी पहली हड़ताल की योजना को वापस लेगा और इसके साथ ही सरकार के बारे में समाचारों के बहिष्कार को भी बंद करेगा।
  • corona
    अजय कुमार
    20 बातें जिन्हें कोरोना से लड़ने के लिए अपना लिया जाए तो बेहतर!
    20 Apr 2021
    न लापरवाह रहिए, न एकदम घबराइए। न बीमारी से डरिए, न सरकार से। जहां जब जो ज़रूरी हो वो सवाल पूछिए, वो एहतियात बरतिये।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें