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भूख, नफ़रत और हिंसा के विरुद्ध रोटी, न्याय और सामाजिक साझेदारी के लिए ऐपवा का अनशन

"आवागमन पर प्रतिबंध है आवाज़ पर नहीं " ऐपवा के इसी आहवान पर 23 अप्रैल  को देशभर में हजारों महिलाओं ने एक दिन अनशन किया।
aipwa

कोरोना (कोविड-19) के बहाने बढ़ते सामाजिक भेदभाव, हिंसा, छुआछूत, इस्लाफोबिया के ख़िलाफ़ और भूख से लड़ रही गरीब जनता तक सुचारू रूप से अनाज  उपलब्ध कराने की मांग के साथ 23 अप्रैल को देशभर में एक अनोखा आंदोलन देखने को मिला जब अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसियशन (Aipwa) की हजारों महिलाओं ने अपने परिवार के साथ मिलकर घर से ही अपने आंदोलन को गति दी। हाथों में प्लेकार्ड और पोस्टर लेकर घर में ही अपने एक दिवसीय अनशन और धरने को मजबूती प्रदान करते हुए इन आंदोलनकारी महिलाओं ने इसे ऑनलाइन आंदोलन में भी तब्दील करते हुए जब अपनी तस्वीरों को साझा किया तो मानो एक दिन के लिए सोशल मीडिया आंदोलन मीडिया बन गया।  "आवागमन पर प्रतिबंध है आवाज़ पर नहीं " ऐपवा के इसी आहवान पर 23 अप्रैल  को देशभर में हजारों महिलाओं ने भूख, नफरत और हिंसा के खिलाफ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए एक दिवसीय उपवास और धरने में शामिल हो अपनी मजबूत भागीदारी निभाई।

इस एक दिवसीय धरने और उपवास का हिस्सा न केवल ऐपवा की हजारों महिला कार्यकर्ता थीं बल्कि वे महिलाएं भी शामिल थीं जो एपवा की सदस्य नहीं भी हैं लेकिन इन वाजिब मुद्दों के साथ अपनी सहमति जताते हुए इस आंदोलन का हिस्सा बनीं। ऐसी महिलाओं में पत्रकार, वकील, प्रोफेसर, कलाकार शामिल थीं। इन मुद्दों और सवालों के साथ अपनी एकनिष्ठता जताते हुए। अंबेडकरकारी कार्यकर्ता और रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला और जेएनयू के छात्र नजीब अहमद की मां फातिमा नफीसा भी शामिल हुईं। एपवा की राष्ट्रीय की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव, महासचिव मीना तिवारी, सचिव कविता कृष्णन और सभी राज्यों की ऐपवा अध्यक्षों और सचिवों ने अपने अपने घरों में उपवास किया।

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बिहार ऐपवा नेता और  राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने हमें बातचीत में बताया कि जब हमने लोगों से और खासकर महिलाओं से सोशल मीडिया के जरिए भूख , अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत और महिला हिंसा के विरुद्ध  रोटी , न्याय , और सामाजिक साझेदारी के लिए एकदिवसीय अनशन/धरना में शामिल होने की अपील की तो तब हमको भी अंदाजा नहीं था कि हमें इतनी बड़ी संख्या में जनसमर्थन प्राप्त होगा। उन्होंने बताया कि हमारे इस मुहिम का हिस्सा शाहीन बाग़ की  महिलाएं भी थीं तो विभिन्न अन्य प्रगतिशील संगठनों की महिलाएं भी।

उन्होंने कहा कि जिस तरह से करोना के बहाने एक धर्म विशेष के लोगों को टारगेट किया जा रहा है, सांप्रदायिक टकराव को बढ़ावा दिया जा रहा है उसका  न केवल हम पुरजोर तरीके से विरोध करते हैं, बल्कि इस देश की सरकार से अपील भी करते हैं कि वह विभाजनकारी तत्वों, जिसमें कुछ मीडिया संस्थान भी शामिल हैं, के ख़िलाफ़ कठोर कदम उठाए। उन्होंने लॉक डाउन के समय भी हो रही बलात्कार की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कितनी शर्म और भयावह बात है कि पिछले दिनों Quarantine मैं भी बलात्कार की घटनाएं सामने आईं  ।

दिल्ली ऐपवा नेता और राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने   कहा कि ये ऐसा वक्त है हम सब के लिए जब हमें करोना के वायरस से भी लड़ना होगा और नफ़रत के वायरस से भी।  उन्होंने कहा कि एक तरफ नफ़रत है, झूठ है, हिंसा है तो दूसरी तरफ प्रेम है, भाईचारा है। उन्होंने  कहा कि इसमें दो राय नहीं कि नफ़रत और भेदभाव बढ़ाने वाले कारक चाहे जितने मजबूत हो जाएं लेकिन प्रेम और भाईचारे के मिसाल के आगे बौने हैं। उन्होंने इंदौर, जयपुर और बुलन्दशहर के उन खबरों का जिक्र किया जहां इस कठिन दौर में हिन्दू की मौत पर मुस्लिम भाइयों ने उनकी अरथी को कंधा दिया। 

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उत्तर प्रदेश राज्य अध्यक्ष कृष्णा अधिकारी ने इस सफल आंदोलन के लिए उन तमाम महिलाओं को धन्यवाद दिया जो इस आंदोलन का हिस्सा बनी। उन्होंने कहा कि एक तरफ कोरोना से लड़ाई है और एक तरफ़ भूख से। आज भी एक बड़ी गरीब आबादी है जिसे आवश्यक आहार नहीं मिल पा रहा है जिसके चलते दूध पिलाने वाली माताओं के स्तन पर दूध नहीं उतर पा रहा और न ही उनके बच्चो तक दूध की आपूर्ति सरकार की ओर से हो पा रही है। उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है जिसे सरकार को संज्ञान में लेना होगा ।

राजस्थान ऐपवा राज्य सचिव सुधा चौधरी  ने हमसे बातचीत में कहा कि इस दौर में घरेलू महिला हिंसा का ग्राफ बढ़ना भी सचमुच व्यापक चिंता का विषय है, जैसा कि पिछले दिनों राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों से भी पता चला। उन्होंने कहा कि अब जबकि यह तथ्य सामने आ रहे हैं कि इस समय घरेलू हिंसा की घटनाएं भी बढ़ रही हैं तो हम सरकार से यह मांग करते हैं कि घरों में बंद हिंसाग्रस्त महिलाओं की सुरक्षा की ओर भी ध्यान दिया जाए। हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर कारगर योजनाएं चलाई जाएं।

झारखंड ऐपवा राज्य सचिव गीता मण्डल ने कहा कि इस समय हमें सामाजिक दूरी नहीं बल्कि सामाजिक साझेदारी की ओर बढ़ना होगा। उन्होंने कहा हमारा यह अनशन और एक दिवसीय धरना भूख के विरुद्ध भोजन, नफ़रत और हिंसा के विरुद्ध प्रेम और सांप्रदायिक एकता कायम की राह पर था जिसमें लोग जुड़ते गए और हमारा दस्ता व्यापक होता गया । उन्होंने कहा कि जब हमारे इस आंदोलन ने सोशल मीडिया पर भी दस्तक तो तमाम वे लोग भी एक दिवसीय अनशन और धरने का हिस्सा बने जिन्हें हम जानते तक नहीं थे।

करोना गाईडलाइन का पालन करते हुए घर पर ही रहकर एपवा का यह एक दिवसीय देशव्यापी अनशन और धरने का कार्यक्रम बिहार, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पांडिचेरी, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, असम, उड़ीसा ,कार्वी, राजस्थान, पंजाब आदि राज्यों में किया गया। इस पूरे आंदोलन की प्रमुख मांगे कुछ इस प्रकार हैं

1 . बिना भेदभाव के सबके लिए राशन का प्रबंध करो!

2 . कोरोना मरीजों, स्वास्थ्य कर्मियों के साथ छुआछूत बंद करो!

3 . मोदी जी घड़ियाली आंसू बहाना बंद करो! साम्प्रदायिक जहर फैलाने वालों को सजा का प्रबंध करो!

4 . सरकारी राशन दुकानों से बच्चों के लिए दूध मुफ्त वितरित करो!

5 . महिलाओं के लिए सैनेटरी पैड मुफ्त वितरित करो!

6 . कोरोना के बहाने मुसलमानों के बारे में झूठी खबरें और नफरत भड़काने वाले मीडिया समूहों को प्रतिबंधित करो!

7. मुस्लिमों के सामाजिक - आर्थिक बहिष्कार का विरोध करो!

8. महिलाओं को हिंसा से बचाने के लिए 24×7 हॉटलाइन सेवा शुरू करो!

9. स्वास्थ्य और सफाई कर्मियों की सुरक्षा और उचित मेहनताने का प्रबंध करो!

10. ट्रांसजेंडर के साथ भेदभाव बन्द करो! उनकी सुरक्षा और राशन की व्यवस्था करो।

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