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ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद

हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
ADHAR
प्रतीकात्मक तस्वीर- INDIA.COM

आधार पर अब खुली सरकार की नींद

आधार कार्ड के दुरुपयोग को लेकर केंद्र सरकार की नींद अब खुली है। उसकी ओर से देश के नागरिकों के लिए एक सलाह जारी की गई है कि वे अपने आधार कार्ड की फोटोकॉपी किसी के साथ साझा न करें क्योंकि इसका दुरुपयोग हो सकता है। भारत सरकार की ओर से 27 मई को जारी सलाह में कहा गया है कि लोग मास्क्ड आधार का इस्तेमाल करें, जिसमें सिर्फ आखिरी चार नंबर दिखाई दें। अब तक सरकार ने आधार को एक तरह से अनिवार्य किया हुआ था। हर सेवा के लिए आधार पेश करना जरूरी था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार की किसी योजना के रजिस्ट्रेशन से लेकर होटल में बुकिंग तक आधार की फोटोकॉपी दी जा रही थी। अचानक अब सरकार को लग रहा है कि आधार की फोटोकॉपी नहीं शेयर करनी चाहिए, उसका दुरुपयोग हो सकता है। नागरिक सुरक्षा और निजता के लिए काम करने वाले लोगों ने पहले चेतावनी दी थी। आधार के साथ हर नागरिक का बायोमेट्रिक लिया जाता है। इसलिए भी सबको आशंका थी कि इसका दुरुपयोग हो सकता है। लेकिन सरकार ने हर छोटे-बड़े काम में इसका इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया। उसकी सूचना के जरिए कोई भी व्यक्ति ई-आधार डाउनलोड कर सकता है। बैंक खातों और पैन कार्ड को आधार से जोड़ा गया है, आयकर रिटर्न भरने के लिए आधार अनिवार्य किया गया है और अब वोटर कार्ड से भी इसे जोड़ने की तैयारी हो रही है। सरकार ने लोगों को ई-आधार डाउनलोड करने के लिए प्रोत्साहित किया था और अब कह रही है कि कैफ़े या सार्वजनिक कंप्यूटर से ई-आधार डाउनलोड न करें। सवाल है कि देश में कितने लोगों के पास के पास अपने घर मे कंप्यूटर या लैपटॉप और इंटरनेट की सुविधा है, जो वे लोग घर में ई-आधार डाउनलोड करेंगे! असल में सरकार की यह चेतावनी बड़े खतरे का संकेत है। सरकार को बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की जानकारी मिली होगी तभी उसने यह चेतावनी जारी की है। 

भाजपा और हिंदुस्तान जिंक का नाता

ऐसा लग रहा है कि भारत की सबसे अधिक जिंक की खदान वाली कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड की किस्मत भाजपा की सरकारों से जुड़ी हुई है। इस कंपनी की हिस्सेदारी बेचने की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने की थी और दो चरणों में इसकी लगभग आधी हिस्सेदारी वेदांता समूह की कंपनी को बेच दी थी। अब जो बची-खुची हिस्सेदारी सरकार के पास है उसे भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार ठिकाने लगाने जा रही है। अप्रैल 2002 तक हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड पूरी तरह से भारत सरकार की कंपनी थी। उसी साल वाजपेयी सरकार ने पहली बार वेदांता समूह की कंपनी स्टरलाइट अपॉर्चुनिटीज एंड वेचर्स लि. को 445 करोड़ में इसके 26 फीसदी शेयर बेचे थे। तब इस सौदे में बड़े घोटाले की चर्चा हुई थी। बहरहाल, विवादों का कोई असर नहीं हुआ और अनिल अग्रवाल के स्वामित्व वाली कंपनी ने 445 करोड़ में 26 फीसदी शेयर खरीद कर प्रबंधन नियंत्रण हासिल कर लिया। उसके थोड़े दिन बाद ही वेदांता ने 20 फीसदी शेयर बाजार से खरीदा और नवंबर 2003 में वाजपेयी सरकार ने उसे 18.92 फीसदी शेयर और बेच दिया। इस तरह 64.92 फीसदी का मालिकाना वेदांता समूह का हो गया। अब सरकार बचा हुआ हिस्सा बेचने जा रही है। कैबिनेट ने इसकी मंजूरी दे दी है। सरकार के पास अभी कुल 29.5 फीसदी शेयर है। शेयर बाजार में हिदुस्तान जिंक के शेयरो की कीमत के हिसाब से इनकी कुल कीमत 38 हजार करोड़ रुपए बनती है। सरकार के लिए यह सौदा इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि उसने विनिवेश से 65 हजार करोड़ रुपए हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इस बीच खरीदार नहीं मिलने से उसे बीपीसीएल का सौदा रोकना पड़ा है और एलआईसी में साढ़े तीन फीसदी शेयर बेचने से वांछित कमाई नहीं हो रही है।

कांग्रेस हिम्मत नहीं जुटा सकी

जिस तरह भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में राजस्थान और हरियाणा में कांग्रेस को उलझाया है वैसे ही अगर कांग्रेस हिम्मत करती तो वह भी कुछ राज्यों में भाजपा को उलझा सकती थी। बिहार और झारखंड में कांग्रेस अगर अपना उम्मीदवार उतार देती या किसी निर्दलीय को उतार कर समर्थन देती तो भाजपा मुश्किल में फंस सकती थी। झारखंड में भाजपा के कुल 26 विधायक हैं, जिनमें से एक बीमार होने की वजह से हैदराबाद के अस्पताल में भर्ती हैं। उनका वोट डालना मुश्किल लग रहा है। दूसरे विधायक बाबूलाल मरांडी की सदस्यता खतरे में है और स्पीकर कभी भी उन्हें अयोग्य घोषित कर सकते हैं। राज्य में एक सीट जीतने के लिए 27 वोट की जरूरत है। कांग्रेस के समर्थन से चल रही झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली सरकार को 50 विधायकों का समर्थन है। कांग्रेस चाहती तो पेंच फंसा सकती थी। इसी तरह बिहार में भाजपा के 77 विधायक हैं और उसे दो सीटें जीतने के लिए 82 वोट चाहिए। अगर जनता दल (यू) अपने चार अतिरिक्त वोट उसे दे तब भी एक वोट कम पड़ेगा। दूसरी ओर कांग्रेस, राजद, लेफ्ट और एमआईएम के एक 116 विधायक हैं। राजद के दो उम्मीदवार जीतने के बाद विपक्ष के पास 34 वोट बचेंगे। जनता दल (यू) और भाजपा के नरम-गरम रिश्ते और मांझी की नाराजगी को देखते हुए अगर कांग्रेस ने पहल की होती और किसी निर्दलीय को उतारा होता तो वहां भी पेंच फंस सकता था।

संसद में मुस्लिम-मुक्त हो गई भाजपा

भाजपा संसद में पूरी तरह मुस्लिम-मुक्त हो गई। लोकसभा में तो वैसे भी उसका कोई मुस्लिम सदस्य न पिछली बार था, न ही इस बार है और राज्यसभा में जो तीन थे, वे भी अब नहीं रहे। मुखतार अब्बास नकवी, एमजे अकबर और जफर इस्लाम तीनों का कार्यकाल खत्म हो गया और भाजपा ने इनमें से किसी को भी वापसी का मौका नहीं दिया। इस तरह राज्यसभा में भाजपा के करीब सौ सदस्य होंगे, जिनमें एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं होगा। लोकसभा में भाजपा के 303 सदस्यों में भी कोई मुस्लिम नहीं है। बहरहाल, वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व मंत्री एमजे अकबर मध्य प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य थे। वे 'मी टू’ के आरोपों में फंसे थे। कई महिला पत्रकारों ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया था, जिसके बाद उनको मंत्री पद छोड़ना पड़ा था और उसी समय तय हो गया था कि उन्हें फिर से राज्यसभा की सदस्यता नहीं मिल पाएगी। लेकिन मुख्तार अब्बास नकवी के बारे में ऐसा नहीं था। सब मान रहे थे कि वे केंद्र में मंत्री हैं और राष्ट्रीय राजनीति में लंबे समय से भाजपा का मुस्लिम चेहरा हैं इसलिए उनकी उच्च सदन में वापसी हो जाएगी। लेकिन इस बार उनको भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया। तीसरे मुस्लिम सांसद सैयद जफर इस्लाम दो साल पहले उपचुनाव के जरिए उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में पहुंचे थे। उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा के करीब लाने और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसलिए माना जा रहा था कि उनको एक कार्यकाल और मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस तरह राज्यसभा में भाजपा के तीनों मुस्लिम सदस्यों की विदाई हो गई। 

ऐश के साथ सिद्धू का 'सश्रम’ कारावास 

पंजाब में बुरी हार के बाद प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाए गए नवजोत सिंह को एक गैर इरादतन हत्या के पुराने मामले में कहने को सुप्रीम कोर्ट ने एक साल के सश्रम कारावास की सजा दी है। लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार के सौजन्य से पटियाला जेल में उनकी जैसी अवभगत हो रही है उसे देखते हुए कोई नहीं कह सकता कि वे सश्रम कारावास की सजा काट रहे हैं। बताया जा रहा है कि पटियाला जेल में उनकी सुबह रोजमेरी चाय के साथ हो रही है और रात में कैमोमाइल चाय दी जा रही है। खाने में लैक्टोज फ्री दूध, सोया मिल्क, पनीर की जगह टोफू, नट्स आदि दिए जा रहे हैं। कहने को तो अदालत के आदेश पर बने मेडिकल बोर्ड की सिफारिश पर यह डायट उनको दी जा रही है लेकिन असल में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद जेल जाने से पहले ही मुख्यमंत्री भगवंत मान से मिल कर अपने लिए ये सुविधाएं सुनिश्चित कर ली थी। यहां सवाल यह भी है कि सिद्धू को उनकी जिस बीमारी के आधार पर यह डायट देने की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बने मेडिकल बोर्ड ने की है, क्या अन्य आम बीमार कैदियों के बारे में भी ऐसे ही मेडिकल बोर्ड बनता है और वह इस तरह की डायट की सिफारिश करता है? क्या सिद्धू के मामले में जो कुछ हो रहा है, वह न्याय व्यवस्था का मजाक नहीं है? कानून और न्याय व्यवस्था का ऐसा ही मखौल हत्या और बलात्कार के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम के मामले में भी उता है। जब भी हरियाणा या पंजाब कोई चुनाव होता है तो हरियाणा सरकार उसे चुनाव से कुछ सप्ताह पहले पैरोल या फरलो पर छो देती है या बीमारी के नाम पर अस्पताल में भर्ती करा देती है। जेल से बाहर रहने के दौरान अपने डेरे से जुड़े लोगों से मिलता-जुलता है और भाजपा के लिए उनका समर्थन सुनिश्चित करता है। इस बात का तो न तो चुनाव आयोग संज्ञान लेता है और न ही कोई अदालत।

गुजरात में पटेलों को लेकर परेशान है भाजपा? 

गुजरात में विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने पिछले साल विजय रूपानी को हटा कर भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया तो कहीं न कहीं उसे पटेल मतदाताओं की चिंता सता रही थी। लेकिन हैरानी की बात है कि पटेल मुख्यमंत्री होने, एक पूर्व पटेल मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को उत्तर प्रदेश और एक अन्य पटेल नेता मंगूभाई पटेल को मध्य प्रदेश जैसे राज्य का राज्यपाल बनाने के बावजूद भाजपा की चिंता खत्म नहीं हुई है। इसीलिए हार्दिक पटेल से कांग्रेस छुवा कर उन्हें धूमधाम से भाजपा में शामिल कराया गया। राज्य के पटेल बहुल इलाकों में उनकी यात्रा की भी योजना भी बनाई गई है। इतना ही नहीं, पिछले तीन महीने में गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 17 कार्यक्रम हुए हैं, जिनमें से छह कार्यक्रम पटेल समुदाय से जुड़े थे। हफ्ते भर पहले ही प्रधानमंत्री ने पाटीदार समाज की ओर से बनाए गए केडी परवाड़िया अस्पताल का उद्घाटन किया। सवाल है कि भाजपा पटेलों को लेकर इतनी चिंतित क्यों है? ध्यान रहे गुजरात में कांग्रेस पटेलों की राजनीति नहीं करती है। उसके स्थानीय जातीय समीकरण की वजह से पटेल भी उससे दूरी बना कर रखते हैं। इसलिए कांग्रेस की तरफ से तो भाजपा बेफिक्र है, लेकिन उसे चिंता इस बात की है कि पटेलों का एक हिस्सा आम आदमी पार्टी की ओर जा सकता है, खास कर युवाओं का। उसी की रोकथाम के लिए वह तमाम तरह की कवायद कर रही है।

स्टालिन की राजनीति बदलने का संकेत! 

खबर बड़ी नहीं है लेकिन राजनीतिक लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है कि चेन्नई में द्रविड़ मुनैत्र कषगम यानी डीएमके संस्थापक एम. करुणानिधि की मूर्ति का अनावरण उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने किया। जिस मल्टी सुपर स्पेशिएलिटी सरकारी अस्पताल के परिसर में उन्होंने 16 फीट ऊंची इस प्रतिमा का अनावरण किया, उस जगह से सौ मीटर की दूरी पर करुणानिधि की मूर्ति पहले लगी थी, जिसे 35 साल पहले एमजी रामचंद्रन के निधन के समय तोड़ दिया गया था। इस लिहाज से इस जगह और मूर्ति का बड़ा महत्व है। लेकिन यह भी गौरतलब है कि पिछले चार साल के दौरान करुणानिधि परिवार में जो कुछ भी हुआ वह नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों के हाथों हुआ है या उनकी मौजूदगी में हुआ है। दिसंबर 2018 में डीएमके मुख्यालय में करुणानिधि की मूर्ति का अनावरण करना था तो एमके स्टालिन ने सोनिया गांधी को बुलाया था और विपक्ष के सारे नेताओं का जमावड़ा किया था। इसी तरह इस साल फरवरी में अपनी आत्मकथा का विमोचन था तो उन्होंने इसके लिए राहुल गांधी को बुलाया था। दिल्ली में पार्टी कार्यालय का उद्घाटन करना था तब भी उन्होंने सोनिया गांधी को बुलाया था। लेकिन अब अचानक उन्होंने वेंकैया नायडू को अपने कार्यक्रम में बुलाया। इसे नए राजनीतिक समीकरण बनने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। अगले दो महीने के दौरान राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति का चुनाव है। उससे पहले स्टालिन के साथ करीबी दिखने से वेंकैया नायडू को भी कुछ फायदा हो सकता है। 

कांग्रेस छोने का सिलसिला जारी रहेगा!

उदयपुर में कांग्रेस के नव संकल्प शिविर के बाद तीन बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। शिविर के दौरान ही सुनील जाखड़ ने पार्टी छोड़ी। उसके बाद हार्दिक पटेल गए और बाद में जब कपिल सिब्बल ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा के लिए नामांकन किया तब पता चला कि वे 16 मई को ही पार्टी छोड़ चुके थे। सोचे, दो हफ्ते के अंदर तीन बड़े नेताओं का पार्टी छोड़ना कितना बड़ा झटका है लेकिन कांग्रेस पार्टी इस तरह के झटके खाने की इतनी अभ्यस्त हो गई है कि उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह एक तरह से शॉक प्रूफ हो गई है। इसीलिए पार्टी में इसे लेकर न कोई चिंता है, न कोई चिंतन। पार्टी नेतृत्व मानने को राजी ही नहीं है कि पार्टी में कुछ कमी है, जिससे नेता साथ छोड़ रहे हैं। बहरहाल, नेताओं के कांग्रेस छोड़ने का सिलसिला अभी थमने नहीं जा रहा है। पार्टी के नेता भी इस बात को जान रहे हैं। राज्यसभा के उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है। अब कुछ और नेता पार्टी छोड़ेंगे। पंजाब में कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता शनिवार को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो गए हैं। पहले से जो नेता पाला बदलने को तैयार बैठे हैं, उनमें एक नाम कुलदीप बिश्नोई का है। वे हरियाणा में विधायक हैं, लेकिन भाजपा के संपर्क में हैं। उनकी भाजपा नेताओं से मुलाकात हो चुकी है और वे कांग्रेस व विधानसभा से इस्तीफा देने को तैयार है। उनकी इतनी मांग है कि वे अपनी खाली होने वाली सीट पर अपनी पत्नी रेणुका बिश्नोई को भाजपा के टिकट उपचुनाव लड़ाने और अपने लिए लोकसभा सीट की गारंटी चाहते हैं।

इतने बेफिक्र हैं राहुल गांधी 

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अब भी देश में नहीं हैं। पार्टी के नेता बता नहीं रहे हैं कि वे कहां हैं लेकिन नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी का नोटिस आया और उनको दो जून को हाजिर होने के लिए कहा गया तो पार्टी के सांसद और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राहुल गांधी बाहर हैं और पार्टी उनकी पेशी के लिए दूसरी तारीख मांगेंगी। उन्होंने बताया नहीं कि राहुल कहां हैं। यह भी नहीं बताया कि राहुल गांधी लंदन गए थे तो वहां से लौटे नहीं या लौट कर फिर बाहर चले गए। पिछले एक महीने में यह तीसरा या चौथा मामला है, जब सघन राजनीतिक घटनाक्रम के बीच राहुल बाहर हैं। पहले प्रशांत किशोर के प्रेजेंटेशन के दौरान एक दिन वे मौजूद रहे और उसके बाद बाहर चले गए। एक बार वे अपनी एक दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए नेपाल गए। नेपाल यात्रा के चलते वे कांग्रेस के मजदूर संगठन इंटक के 75वें साल के कार्यक्रम में नहीं शामिल हुए। इसके बाद कैंब्रिज के किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए लंदन चले गए। इस वजह से वे 21 मई को अपने पिता की पुण्यतिथि के कार्यक्रम में मौजूद नहीं रहे। अभी राज्यसभा का चुनाव चल रहा है और पार्टी के नेता राजस्थान और हरियाणा के विधायकों को संभालने में लगे हैं, तब भी वे बाहर हैं। लगता नहीं कि राहुल गांधी को कोई परवाह है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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