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प्रत्यक्षदर्शियों की ज़ुबानी कैसे जहांगीरपुरी हनुमान जयंती जुलूस ने सांप्रदायिक रंग लिया

प्राथमिकी में तलवार, बेसबॉल बैट और रिवॉल्‍वर, भड़काऊ गाने बजाने और नारे लगाने का ज़िक्र नहीं है। सूत्रों के अनुसार यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि तय मार्ग का पालन क्यों नहीं किया गया। और अब जब पुलिस खुद कह रही है कि इस यात्रा की अनुमति नहीं दी गई थी, तब और बड़ा सवाल उठता है कि ये हथियारबंद यात्रा कई घंटो तक हथियारों की नुमाइश के साथ हुड़दंग करते हुई घंटों तक पुलिस के साथ कैसे घूमती रही? 
jahangirpuri

नई दिल्ली : 16 अप्रैल को उत्तर पश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती के जुलूस के दौरान तलवार, चाकू, बेसबॉल बैट और हॉकी स्टिक के साथ कथित एक शोभा यात्रा निकली, जो बाद में एक अशोभा यात्रा साबित हुई। क्योंकि इस यात्रा में कुछ भी शोभनीय नहीं था। इसी क्षेत्र के निवासी गोविंद मिश्रा के मुताबिक उन्होंने ऐसा भयानक तमाशा कभी नहीं देखा था।

उन्होंने रविवार को न्यूज़क्लिक को बताया, “मैं पिछले दो दशकों से यहां रह रहा हूं और कई हनुमान जयंती जुलूस देखे हैं, लेकिन मैंने जुलूस में तलवार, चाकू, बेसबॉल के बल्ले और हॉकी स्टिक के साथ इतनी बड़ी भीड़ कभी नहीं देखी।” गोविन्द, जहाँगीरपुरी के डी-ब्लॉक के शीतला माता मंदिर के पुजारी हैं। गोविन्द ने बताया, ''उस दिन (शनिवार,16 अप्रैल) हनुमान जयंती थी, इसलिए मैं उस दिन सुंदरकांड पाठ करने में व्यस्त था।"

बिहार के मधुबनी जिले से ताल्लुक रखने वाले गोविन्द ने कहा, “उनमें से कुछ कट्टा (देश निर्मित पिस्तौल) भी दिखा रहे थे।”

शुरू में इस घटना के बारे में बोलने से हिचकते हुए गोविंद ने मैथिली भाषा में बातचीत करने पर खुल कर बात की। उन्होंने स्वीकार किया कि "लाउडस्पीकर अत्यधिक आपत्तिजनक और उत्तेजक संगीत बजा जा रहे थे। वातावरण को गर्म किया गया था। जुलूस को आयोजकों द्वारा ठीक से निर्देशित और नियंत्रित नहीं किया गया था।"

कुशाल रोड पर मस्जिद से गुज़रने की अनुमति नहीं मिलने के बाद पहली दो रैलियां शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुईं। उन्होंने कहा, "अगर रैलियों को डायवर्ट नहीं किया गया होता तो दिन के समय हिंसा होती।"

मिश्रा ने दावा किया कि परेशानी तब शुरू हुई जब जुलूस पर पथराव किया गया। हालांकि, वो मौके पर मौजूद नहीं थे। न्यूज़क्लिक द्वारा एक्सेस और देखे गए वीडियो फुटेज से मिश्रा के पहले के दावे की पुष्टि हुई कि कई शोभायात्रा में भाग ले रहे लोग सशस्त्र थे यानि वो हथियारबंद थे। ये तीसरी और अंतिम रैली निर्धारित मार्ग का पालन नहीं करते हुए बी और सी ब्लॉक से होते हुए कुशल रोड क्रॉसिंग पर पहुंची। ये पूरा मोहल्ला छोटे व्यापारियों, प्रवासी श्रमिकों और बंगाली भाषी मुस्लिम जिनमें अधिकतर कचरा बीनने वाले हैं, की बसावट से भरा हुआ है। हालांकि, पुलिस ने बाद में सोमवार को पुष्टि की कि इस रैली का कोई रूट ही नहीं था, क्योंकि इसकी परमिशन दी ही नहीं गई थी। बाकि दोनों शोभा यात्राओं  की परमिशन पुलिस ने दी थी।

अंतिम रैली में भाग लेने वालों ने कथित तौर पर मस्जिद में घुसने और भगवा झंडा फहराने का प्रयास किया, जिसके बाद इस मिश्रित मज़दूर वर्ग के क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। कथित वीडियो में सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ गीत और आपत्तिजनक नारे स्पष्ट रूप से सुनाई दे रहे हैं। हालाँकि हिंसा की शुरआत कैसे हुई ये अपने आप में जाँच का विषय है।

सी-ब्लॉक के डीडीए मार्केट में रेडीमेड कपड़े की दुकान चला रहे एक युवा मुस्लिम ने पूछा, “क्या इन उत्साही भक्तों को अपनी भक्ति दिखाने के लिए कोई मंदिर नहीं मिला? हिंदुओ के एक त्योहार में जबरन मस्जिद में घुसने का क्या कारण था?” मस्जिद से 100 मीटर पहले एक मंदिर है, वहां यात्रा क्यों नहीं रुकी और फिर मस्जिद के पास ही क्यों रोका गया?

दुकान के मालिक ने आरोप लगाया, “पहली रैली दोपहर 1 बजे के आसपास मुख्य सड़क (कुशाल रोड ) पर पहुंचने के लिए सी-ब्लॉक मार्किट को पार करके गई। दूसरी रैली भी शाम करीब 4:30-5:00 बजे शांतिपूर्वक गुज़र गई। दोनों रैलियों ने मस्जिद से परहेज़ किया। लेकिन बजरंग दल द्वारा आयोजित तीसरी रैली ने टकराव के उद्देश्य से मस्जिद की ओर जाने वाली सड़क चुनी।”

उनके अनुसार, "मुसलमानों ने उकसाने के बावजूद संयम बनाए रखा। शोभायात्रा में शामिल लोगों में से कुछ मेरे स्कूल के दोस्त हैं और उन्होंने भी मुस्लिम विरोधी नारे लगाए। रैली में केवल दो पुलिसकर्मी ही साथ थे। जैसे ही रैली शाम करीब 6:20 बजे कुशाल रोड पर पहुंची, यह मस्जिद की ओर मुड़ गई, जहाँ इफ्तार की तैयारी हो रही थी। परन्तु भीड़ ज़ोरदार अभद्र संगीत और नारेबाज़ी करते हुए आगे बढ़ गई।”

दुकानदार ने आरोप लगाया कि, "कुछ लोग अचानक मस्जिद में घुस गए और उनके द्वारा भगवा झंडा फहराने की कोशिश की गयी। मस्जिद के अंदर मौजूद लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया और उन्हें खदेड़ दिया, जिससे भगदड़ मच गई। इसके बाद, दोनों समूहों ने पथराव करना शुरू कर दिया और कुछ गोलियां भी चलाईं, जिसमें एक पुलिसकर्मी घायल हो गया। न्यूज़क्लिक की टीम ने भी घटना के बाद जाकर देखा जहाँ मस्जिद के प्रवेश द्वार पर भगवा झंडे और पत्थर बिखरे हुए मिले।

हालांकि, दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने इस आरोप से इनकार किया कि मस्जिद में घुसने की कोशिश की गई थी। उन्होंने कहा कि ये झगड़ा मामूली बातचीत को लेकर शुरू हुआ था। इसकी जांच की जा रही है और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। उनके मेडिकल रिकॉर्ड के अनुसार, गिरफ्तार किए गए लोगों में से 18 मुस्लिम हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले शंकर कुमार जो जहांगीरपुरी निवासी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि बजरंग दल जैसे चरमपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा ये दंगा "सुनियोजित" था। उनके मुताबिक ब्लॉक बी और सी में ज़्यादातर मुस्लिम रहते हैं और डी-ब्लॉक में बहुसंख्यक हिंदू आबादी है। मुस्लिम बहुल इलाकों और मस्जिद से सटी सड़क से जानबूझकर जुलूस निकाले गए जिससे मौहौल ख़राब किया जा सके।

शंकर ने आरोप लगाया कि इस जुलूस ने उन इलाकों को निशाना बनाया, जहां बहुत गरीब मुसलमान रहते हैं जो पास के बाज़ारों में सब्जियां बेचकर और कचरा उठाकर अपना जीवन यापन करते हैं। उन्होंने आगे आरोप लगाया, "पूरी योजना उसी तरह से बनाई गई थी, जैसे गुजरात, मध्य प्रदेश, गोवा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और छत्तीसगढ़ में नवरात्रि और रामनवमी पर अशांति फैलाने के लिए किया गया था।"

ऐसे दक्षिणपंथी समूहों के तौर-तरीकों के बारे में बताते हुए शंकर ने कहा, "ये एक पैर्टन बन गया है कि जुलूस आयोजित करें, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से गुज़रें, मस्जिदों के पास रुकें, आपत्तिजनक गाने बजाएं और मुस्लिम विरोधी नारे लगाएं, समुदाय को भड़काएं और हिंसा करें।"

अस्थाना ने जुलूस में बजाए जाने वाले आपत्तिजनक गीतों और शामिल लोगों के हथियार लहराने के बारे में सवालों से परहेज़ किया। उन्होंने सांप्रदायिक रूप से उत्तेजक संगीत और नारों पर टिप्पणी किए बिना कहा, "यह जांच का विषय है। जांच की जा रही है। सीसीटीवी व अन्य वीडियो फुटेज की जांच की जा रही है। हमने जुलूस के दौरान हथियार ले जाने वाले व्यक्तियों की पहचान नहीं की है।"

सांप्रदायिक अशांति के दौरान दोनों पक्ष एक दूसरे पर अशांति फैलाने का आरोप लगा रहे हैं। जय प्रकाश, जो सीडी पार्क सब्जी मंडी के पास सड़क किनारे चिकन बेचते हैं, ने न्यूज़क्लिक से कहा कि, “हिंदू कभी झगड़ा नहीं करते। उन्होंने [मुसलमानों ने] पूरी योजना के साथ हम पर हमला किया। अगर वे इस तरफ आते, तो उनकी जीभ कट जाती।”

बिना कोई सबूत दिए प्रकाश ने आरोप लगाया कि जुलूस में मांस से भरे पॉलीथिन बैग फेंके गए। उन्होंने कहा जुलूस में मांस के थैले फेंकते हुए लोग वीडियो में दिख रहे हैं। लेकिन ना तो प्रकाश और न ही एक दर्जन से अधिक हिंदू न्यूज़क्लिक की टीम को ऐसा कोई कथित फुटेज दिखा सके। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जुलूस पर पहले मस्जिद और आसपास की कॉलोनी के अंदर से मुसलमानों द्वारा पत्थरों से हमला किया गया था। उन्होंने कहा, "हमारी पहली दो रैलियों को तय रास्ते पर आगे बढ़ने नहीं दिया गया था। उन्होंने तीसरी रैली के दौरान हम पर घात लगाकर हमला किया।"

पुलिस का रवैया 'पक्षपातपूर्ण'

जहांगीरपुरी पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर नंबर 0440/2022) जाहिर तौर पर कुछ हिंदू समूहों द्वारा बताई गए घटनाओं पर आधारित है। एफआईआर यह कहती है कि जुलूस मस्जिद तक पहुंचने तक 'शांतिपूर्ण' था, जहां शोभा यात्रा में शामिल लोगों का अंसार और उसके चार से पांच लोगों के साथ झगड़ा शुरू हो गया। प्राथमिकी में आगे कहा गया है, “इससे दोनों पक्षों के लोगों ने एक-दूसरे पर पथराव किया और फिर जमकर हंगामा हुआ।”

प्राथमिकी में तलवार, बेसबॉल बैट और रिवॉल्‍वर, भड़काऊ गाने बजाने और नारे लगाने का ज़िक्र नहीं है। सूत्रों के अनुसार यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि तय मार्ग का पालन क्यों नहीं किया गया। और अब जब पुलिस खुद कह रही है कि इस यात्रा की अनुमति नहीं दी गई थी, तब और बड़ा सवाल उठता है कि ये हथियारबंद यात्रा कई घंटो तक हथियारों की नुमाईश के साथ हुड़दंग करते हुई घंटो तक पुलिस के साथ कैसे घूमती रही? इन सबके बीच पुलिस ने एक ग़ैरकानूनी यात्रा को चलने कैसे दिया? पुलिस प्रशासन इन सवालों के जवाब देने से बचती दिख रही है।

शेख सरवर जिनके पिता शेख सौरभ को रविवार शाम को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। शेख सौरभ एमसीडी में एक सफ़ाई कर्मचारी हैं। सरवर ने पूछा, "अगर यह दो पक्षों के बीच लड़ाई थी, तो ज़्यादातर मुसलमानों को क्यों गिरफ्तार किया गया है?"

कई मुसलमानों ने पुलिस कार्रवाई को "पक्षपातपूर्ण और भेदभाव पूर्ण" करार दिया है।

इलाके के सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद तबरेज ने पूछा, “यहां तक कि अगर पुलिस के बयान को सच माने, तो वहां तैनात पुलिस दोनों पक्षों के लोगों को उपद्रव से रोक सकती थी। परन्तु उन्होंने मूकदर्शक बने रहना क्यों चुना?” आगे उन्होंने कहा, “मस्जिद के पास भारी पुलिस तैनाती होनी चाहिए थी। देश के हालात से हर कोई वाकिफ है।"

अंसार के परिवार न केवल पुलिस बल्कि मीडिया से भी गुस्से में है। अंसार के रिश्तेदारों ने कहा, “मीडिया सच क्यों नहीं पेश करती? वे एकतरफा कहानी क्यों चला रहे हैं? केवल मुसलमानों को पथराव करने वाले के रूप में दिखाया जा रहा है। कोई भी वो फुटेज नहीं चला रहा है जिसमें बजरंग दल के लोग हथियार लिए हुए हैं और मुसलमानों को भड़का रहे हैं?”

अंसार को एक साज़िशकर्ता के तौर पर गिरफ्तार किया गया है। अंसार की पत्नी सकीना जो पाँच बच्चों की माँ हैं उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, “हम अपना रोज़ा खोलने के लिए अज़ान का इंतज़ार कर रहे थे। अचानक उनका मोबाईल बजा और उन्हें मस्जिद में बनी तनावपूर्ण स्थिति को शांत करने के लिए बुलाया गया। उन्होंने स्थिति को नियंत्रित करने में पुलिस की मदद की और घायल पुलिसकर्मियों को अस्पताल पहुंचाया। वह लगभग 8 बजे थक कर वापस आए।”

सकीना आगे कहती हैं, “रात के करीब 11 बजे, वर्दी में कुछ लोग उन्हें घटनास्थल पर ले गए, जहाँ उन्हें घंटों बैठाया गया। मैंने उन्हें तीन बार फोन किया, लेकिन उसने कहा कि पुलिस उसे आने नहीं दे रही है। जब मैंने उन्हें तड़के करीब तीन बजे फोन किया, तो उन्होंने बताया कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है।"

सकीना के अनुसार, "अंसार प्रभावशाली हैं और अक्सर मुसबित के समय में मोहल्ले के लोगों की मदद करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि, “जब वे [हिंदू] महामारी के दौरान मर रहे थे, तो उन्होंने उनके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की। उन्होंने धार्मिक भेदभाव के बिना तालाबंदी के दौरान अपनी आजीविका का स्रोत खो चुके लोगों को हज़ारों राशन किट वितरित किए। अब, हमें बाहरी लोग, आतंकवादी, बांग्लादेशी और यहां तक कि रोहिंग्या भी कहा जा रहा है।”

पुलिस के अनुसार, अंसार पहले भी मारपीट के दो मामलों में शामिल रहा था और उसे ज़मानती धाराओं के तहत बार-बार गिरफ्तार किया गया था और उसपर सार्वजनिक जुआ अधिनियम और शस्त्र अधिनियम के तहत पांच बार मामला दर्ज किया गया था। हालाँकि उसके गली और मोहल्ले के हिंदू और मुस्लिम दोनों ने उनकी प्रशंसा की। उसके एक पड़ोसी ने कहा, “वे (अंसार और उनका परिवार) पिछले 12 वर्षों से यहां (बी-ब्लॉक) रह रहे हैं और कभी भी किसी भी प्रकार की हिंसा में शामिल नहीं हुए। उसने हमेशा हमारी मदद की है।”

घटना के एक दिन बाद, इलाके में नफरत के कोई स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे। हालांकि मस्जिद के आस-पास की मुख्य सड़क पर आम लोगों की आवाजाही पर रोक थी और वहां भारी पुलिस बल तैनात थी। परन्तु वहीं अंदर बस्तियों में सबकुछ सामान्य दिखा। पूरी मार्किट खुली थी और लोग भी बाज़ारों में बड़ी संख्या में थे। आप इस क्षेत्र में धार्मिक सौहार्द की कल्पना इस बात से कर सकते हैं कि इस हिंसा के एक दिन बाद ही सी-ब्लॉक मार्किट में एक मुसलमान ठेले वाला मंदिर के सामने तरबूज़ बेच रहा था, जबकि बगल में एक हिन्दू युवा जिसने हाथ में धार्मिक निशान और रुद्राक्ष की माला पहनी थी, वो सौंदर्य प्रसाधन के सामान बेच रहा था। इसी तरह पूरी मार्किट में हिन्दू-मुसलमान सभी की दुकाने खुली थीं और दोनों ही समुदाय के लोग मार्किट में घूम रहे थे। हिंसा के प्रभावित क्षेत्र के पास ही ईस्टर के मौके पर छोले-पूरी और रूह अफज़ा के भंडारे का आयोजन किया गया था। मुसलमानों ने अशांति के लिए दक्षिणपंथी ताकतों को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि उन्हें अपने हिंदू पड़ोसियों से कोई दुश्मनी नहीं है, जिनके साथ वे इतने सालों से सौहार्दपूर्ण ढंग से रहते आए हैं।

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