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आख़िर उत्तर प्रदेश को कब मिलेगा स्थायी पुलिस मुखिया, विपक्ष हमलावर 

प्रदेश में लगातार तीसरी बार कार्यवाहक डीजीपी बनाए जाने से राजनीति भी तेज़ हो गई है। योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला करते हुए विपक्ष का कहना है कि प्रदेश में एक बार फिर बिना उत्तरदायित्व और जवाबदेही वाला डीजीपी बनाया गया है।
Police
IBC 24

उत्तर प्रदेश का नया कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) 1988 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी विजय कुमार को बनाया गया है। ऐसा लगातार तीसरी बार है जब देश के सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश को कार्यवाहक पुलिस मुखिया मिला है। 

प्रदेश में लगातार तीसरी बार कार्यवाहक डीजीपी बनाये जाने से राजनीति भी तेज़ हो गई है। योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला करते हुए विपक्ष का कहना है कि प्रदेश में एक बार फिर बिना उत्तरदायित्व और जवाबदेही वाला डीजीपी बनाया गया है। जिससे लगता है कि केंद्र और प्रदेश सरकारों के बीच काफ़ी समय से, प्रदेश के पुलिस मुखिया के लिए किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। 

बता दें कि विजय कुमार वर्तमान में महानिदेशक विजिलेंस और सीबीसीआईडी के पद पर हैं। वह अपने मौजूदा पद के साथ ही पुलिस मुखिया का कार्यभार संभालेंगे। विजय कुमार अगले वर्ष जनवरी 2024 में सेवानिवृत्त (रिटायर) होंगे। 

कार्यवाहक डीजीपी आर.के विश्वकर्मा का कार्यकाल आज 31 मई को पूरा हो रहा है। आईपीएस मुकुल गोयल को 11-12 मई 2022 को डीजीपी के पद से हटाया गया था। इसके बाद प्रदेश को दो कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक मिले। 
मुकुल गोयल के बाद प्रदेश सरकार ने महानिदेशक इंटेलिजेंस डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बनाया था। डीएस चौहान के 31 मार्च, 2023 सेवानिवृत्त होने के बाद डीजी पुलिस भर्ती बोर्ड ने आर.के विश्वकर्मा को कार्यवाहक डीजीपी बनाया था, जो 2 महीने ही पद पर रहे। 

आज बुधवार को एक बार फिर कार्यवाहक डीजीपी बनाये जाने की ख़बर आते ही विपक्ष भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार के खिलाफ हमलावर हो गई। हालांकि समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर पहले ही सवाल किया था कि क्या प्रदेश को एक बार फिर स्थायी डीजीपी नहीं मिलेगा? 

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्विटर पर लिखा था, “उप्र के डीजीपी 31.05.2023 को सेवा निवृत हो रहे हैं। इस बार क्या फिर से भाजपा सरकार अपनी मनमानी करने के लिए बिना उत्तरदायित्व व जवाबदेही वाला कार्यवाहक डीजीपी उप्र को देगी या कह देगी, इस पद के लिए कोई भी उपयुक्त पात्र नहीं मिला। ऐसे लगता है यूपी में शासन-प्रशासन, दोनों ज़िम्मेदारी से भाग रहे हैं।”

सपा नेता और पूर्व विधायक सुनील सिंह यादव कहते हैं कि प्रदेश की सरकार केवल एक कठपुतली की तरह चल रही है, जिसकी ड़ोर दिल्ली में बैठे बीजेपी नेताओं के हाथ में है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लंबे समय से कार्यवाहक डीजीपी है और यही कारण है कि प्रदेश में कानून और व्यवस्था ध्वस्त हो रही है और पुलिस सुरक्षा और पुलिस हिरासत में हत्या हो रही हैं। पूर्व विधायक सुनील सिंह यादव आगे कहते हैं ऐसा लगता है कि प्रदेश में केवल डीजीपी नहीं मुख्यमंत्री भी कार्यवाहक हैं और सारे निर्णय दिल्ली में लिए जाते हैं। 

उधर कांग्रेस ने भी एक बार फिर कार्यवाहक डीजीपी बनाये जाने पर सत्तारुढ़ बीजेपी सरकार को निशाना बनाया है। पार्टी के संयोजक अंशू अवस्थी कहते हैं कि लगभग डेढ़ साल होने जा रहा है, भाजपा सरकार उत्तर प्रदेश को पूर्णकालिक-स्थायी पुलिस मुखिया नहीं दे पाई। उनका कहना है कि यह प्रदेश कानून व्यवस्था और 22 करोड़ जनता की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। 

कांग्रेस संयोजक के अनुसार इससे कानून व्यवस्था के नाम पर बड़े-बड़े दावे करने वाली बीजेपी सरकार और मुख्यमंत्री योगी की अपराध रोकने को लेकर गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके अलावा अंशू अवस्थी ने कहा कि सरकार कुछ व्यक्ति विशेष और अपराधी का धर्म देखकर कार्रवाई करती रही है। इसी कारण से प्रदेश में अपराध दिन पर दिन बढ़ते रहे। 

कांग्रेसी नेता सुरेंद्र राजपूत मानते हैं कि प्रदेश सरकार संवैधानिक तरीक़े से नहीं बल्कि अपने पसंद के अधिकारी को पुलिस मुखिया बनाना चाहती है। यही कारण है की इतने बड़े पुलिस विभाग के लिए उसको तीन बार से एक महानिदेशक नहीं मिल पा रहा है। वह मानते हैं कि ऐसी स्थिति में पुलिस मशीनरी में असमंजस की स्थिति और काम की अस्पष्टता बन गई है। 

कई दशक से प्रदेश के शासन और प्रशासन पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉ उत्कर्ष सिन्हा मानते हैं कि लगातार देखा जा रहा है कि प्रदेश की सरकार में बैठे लोग व्यवस्था को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। यही कारण है कि कई महत्वपूर्ण पदों के लिए अधिकारी नहीं मिल पा रहे हैं। डॉ उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं की मुख्य सचिव और डीजीपी आदि जैसे महत्वपूर्ण पद पर अधिकारियों के नामों की स्वीकृति में होने वाला विवाद और देरी, केंद्र और प्रदेश की सरकार में आपसी तालमेल की कमी को स्पष्ट दर्शाता है। 

पत्रकार डॉ उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं की 6 महीने के कार्यकाल वाले अधिकारी को जब पुलिस विभाग के सबसे बड़े पद पर बैठाया जायेगा तो उसका आधे से अधिक वक़्त तो उसको काम को समझने में निकल जायेगा और जब तक वह कम करना शुरू करेगा तब तक उसके सेवानिवृत्त होने का समय आ जायेगा। वह मानते हैं कि दूसरे अधिकारी भी कार्यवाहक अधिकारियों को तो उतना गंभीरता से नहीं लेते और पूरी व्यवस्था चरमराने लगती है। 

पूर्व भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी ही मानते हैं की विभाग में स्थायी महानिदेशक होना आवश्यक है। पूर्व आईपीएस विजय शंकर सिंह कहते हैं कि कार्यवाहक अधिकारी जटिल फैसले लेने से हिचकते हैं। इसलिए पुलिस विभाग में स्थायी आवश्यक महानिदेशक होना चाहिए हैं। 

विजय शंकर सिंह आगे कहते हैं कि पुलिस महानिदेशक की ज़िम्मेदारी है कि वह विभाग का इक़बाल बना कर रखे लेकिन देखा गया है कि कम समय या कार्यवाहक पद पर आने वाले अधिकारी बड़े फैसले लेने से बचते हैं। क्योंकि वह अपने सेवाकाल के आखिर दिनों में किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं।

ऐसा भी माना जाता है कि सरकारें स्थायी महानिदेशक को 2 साल तक बिना किसी ठोस कारण के पद से हटा नहीं सकती हैं। इसीलिए वह कार्यवाहक डीजीपी बनाती है जिनको वह अपनी सुविधा की हिसाब से सेवा विस्तार दे सकती हैं या हटा भी सकती है। 

सूत्र बताते हैं कि शीर्ष अदालत के आदेशों का उल्लंघन करते हुए "कार्यकारी" डीजीपी नियुक्त करने के लिए उत्तर प्रदेश और पंजाब सरकारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर अवमानना याचिका के बाद प्रदेश में स्थायी पुलिस मुखिया डीजीपी पर विचार किया जा रहा है। नियमित डीजीपी के लिए, राज्य सरकार उन आईपीएस अधिकारियों पर विचार करेगी, जिनका सेवा रिकॉर्ड साफ है और गैर-विवादास्पद होने के साथ-साथ दो साल की सेवा अवधि शेष है। ओपी सिंह अंतिम स्थायी डीजीपी हैं जिन्होंने लगभग दो वर्षों का अपना कार्यकाल पूरा किया। वे जनवरी 2018 से जनवरी 2020 तक पद पर रहे थे।  

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