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कोर्ट की दखल के बाद सरकार ने NDA में लड़कियों की भर्ती का रास्ता किया साफ़, लेकिन जीत अभी भी अधूरी!

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि महिलाएं नेशनल डिफेंस एकेडमी में दाख़िला ले सकती हैं और वो स्थायी कमिशन के लिए पात्र होंगी। सरकार ने एननडीए के साथ-साथ इंडियन नेवल एकेडमी में भी लड़कियों की भर्ती का फैसला लिया है, जो एक लंबे संघर्ष की जीत है।
कोर्ट की दखल के बाद सरकार ने NDA में लड़कियों की भर्ती का रास्ता किया साफ़, लेकिन जीत अभी भी अधूरी!
Image courtesy : The Hindu

“ये खुशी की बात है कि आर्म्ड फोर्सेस के प्रमुखों ने एक सकारात्मक फैसला लिया है। आप फैसले को रिकॉर्ड पर डालें। हम इस मामले की सुनवाई करेंगे। हम इस स्टैंड से खुश हैं। हम ये मैटर सुनेंगे. हम इससे अवगत हैं कि बदलाव एक दिन में नहीं लाया जा सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच सेना के जिस फैसले को सकरात्मक बता रही है, दरअसल वो फैसला महिलाओं के नेशनल डिफेंस एकेडमी यानी एनडीए में भागीदारी को लेकर है। बुधवार, 8 सितंबर को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि महिलाएं मिलिट्री कॉलेज में दाख़िला ले सकती हैं और वो स्थायी कमिशन के लिए पात्र होंगी। सरकार ने एननडीए के साथ-साथ इंडियन नेवल एकेडमी में भी लड़कियों की भर्ती का फैसला लिया है, जो एक लंबे संघर्ष की जीत है।

ये फैसला कुश कालरा द्वारा दायर एक याचिका पर आया है, जो प्रतिष्ठित पुणे स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और केरल स्थित भारतीय नौसेना अकादमी (आईएनए) में प्रवेश पाने के लिए महिलाओं के वास्ते समान अवसर की मांग कर रही हैं। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 19 के उल्लंघन का मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया गया है कि महिलाओं को केवल जेंडर के आधार पर एनडीए में शामिल नहीं किया जाता है। यह समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

आपको बता दें कि बीते महीने अगस्त में कोर्ट ने महिलाओं को नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) की परीक्षा में बैठने की अनुमति दी थी, जिसके बाद सरकार का ये फ़ैसला आया है। उस समय कोर्ट नेमहिलाओं को एनडीए की परीक्षा में नहीं बैठने देने के लिए केंद्र सरकार की "पुरानी मानसिकता" की आलोचना भी की थी। कोर्ट ने कहा था कि ये एक नीतिगत फ़ैसला है जो कि लैंगिक असमानता के आधार पर बना है।

कोर्ट ने भेदभाव वाली मानसिकता के लिए सेना को लगाई थी फटकार

इस मामले में 18 अगस्त की पिछली सुनवाई में जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश राय की खंडपीठ ने महिलाओं को परीक्षा में शआमिल होने को लेकर अंतरिम फैसला सुनाया था। कोर्ट ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया था कि आर्मी में महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाली मानसिकता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। अंतरिम आदेश के जरिए कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि आगामी 5 सितंबर को होने वाली एनडीए (नेशनल डिफेंस अकैडमी) प्रवेश परीक्षा में महिलाएं भी बैठ सकेंगी। हालांकि उनका दाखिला इस मामले में आने वाले अंतिम फैसले पर निर्भर करेगा, लेकिन कोर्ट के इस फैसले की अहमियत महज एडमिशन प्रॉसेस तक सीमित नहीं है।

आख़िर आर्मी में महिलाओं के सवाल पर खुलापन क्यों नहीं दिख रहा?

कोर्ट का ध्यान मुख्य तौर पर इस बड़े सवाल पर था कि आखिर आर्मी में महिलाओं के सवाल पर खुलापन क्यों नहीं दिख रहा? क्यों हर बार कोर्ट को दखल देकर फैसला सुनाना पड़ता है और फिर भी बात उस खास मामले से जुड़े फैसले पर अमल तक ही सीमित रह जाती है, उससे आगे नहीं बढ़ती? गौर करने की बात है कि अन्य तमाम क्षेत्रों में तो महिलाएं काफी तेजी से आगे बढ़ी हैं, लेकिन सेना में उनकी गति काफी धीमी रही। करीब 14 लाख सैनिकों वाली आर्मी में आज भी महिलाओं का प्रतिशत 0.56 ही है। इस मामले में पिछले साल फरवरी में आया सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला ऐतिहासिक माना जाता है, जिसमें अदालत ने न केवल महिलाओं को कमांड पोस्टिंग के लायक बताया बल्कि केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया कि उन्हें परमानेंट कमिशन दिया जाए।

मालूम हो कि सेना में अभी तक महिलाओं की शॉर्ट सर्विस कमिशन (एसएससी) के तहत भर्ती होती थी, स्थायी कमिशन के तहत नहीं, जो पूरे कार्यकाल के लिए सर्विस की अनुमति होती है। इसलिए महिलाओं को पांच साल सेवा का अवसर मिलता है, जिसे बाद में बढ़ाया जा सकता है, लेकिन उन्हें पुरुषों जैसी सुविधाएं नहीं मिलतीं। इसमें सेना की कानून और शिक्षा विभाग अपवाद हैं, जहां महिला अफसर साल 2008 से स्थायी कमिशन के योग्य हैं।

महिलाएं सेना में डॉक्टर, नर्स, इंजीनियर, संकेतक, एडमिनिस्ट्रेटर और वकील के तौर पर काम करती रही हैं। उन्होंने जंग के मैदान में सैनिकों का इलाज किया है, विस्फोटकों को हैंडल किया है। माइन खोजे और निष्क्रिय किये हैं और संचार के लिए लाइने बिछाई हैं। सेना में लड़ाई के अलावा महिलाओं को इंफेंटरी और बंख़्तबंद सेवा से भी दूर रखा गया है।

एक लंबे कानूनी संघर्ष के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था ऐतिहासिक फैसला

साल 2019 में सरकार ने महिलाओं को स्थायी कमिशन देने की इजाज़त दी थी लेकिन उमरदराज़ महिलाओं की शारीरिक परेशानियों को देखते हुए सरकार ने कहा था कि ये केवल उन अफ़सरों पर लागू होगा तो जिन्होंने 14 साल से कम की सेवा दी है।

गौरतलब है कि एनडीए में महिलाओं की एंट्री को लेकर लंबे समय से मांग चल रही थी। भारतीय सेना के 1 लाख 40 हज़ार की संख्या वाले सैन्य बलों में केवल 0.56 प्रतिशत महिलाएं हैं। वायुसेना (1.08 प्रतिशत) और नौसेना (6.5 प्रतिशत) में महिलाओं का प्रतिशत थोड़ा बेहतर है।

ध्यान रहे कि हर साल यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के एग्‍जाम के तहत एनडीए में एडमिशन होता है। तीनों सेनाओं में भर्ती के लिए एनडीए ही एक सेंटर प्‍वाइंट है। औसतन 1470 ऑफिसर्स हर साल कमीशन होते हैं। इसमें से 670 ऑफिसर्स एनडीए और इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) से आते हैं जबकि कुछ अधिकारी ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (ओटिए) से आते हैं। इंडियन मिलिट्री एकेडमी और ओटीए वो जगह है जहां पर महिलाओं और पुरुषों को एक साथ कमीशन दिया जाता है। इससे अलग 453 ऑफिसर्स शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के जरिए नॉन-टेक्निकल और टेक्निकल विंग में जाते हैं।

एनडीए में सह-शिक्षा एक समस्या क्यों है?

अदालत ने इस बात पर भी सख्त आपत्ति जताई थी कि आखिर एनडीए में सह-शिक्षा एक समस्या क्यों है? सेना में महिलाओं के लिए प्रवेश का एक और अतिरिक्त स्रोत बंद क्यों है? यह सिर्फ एक लैंगिक सिद्धांत नहीं है बल्कि भेदभावपूर्ण है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सेना में महिलाओं के स्थाई कमीशन के संघर्ष की बातें भी याद दिलाई थी। साथ ही सेना की मानसिकता को भी बदलने की जरूरत बताई थी।

ये बात किसी से छिपी नहीं है कि बीते साल एक लंबे कानूनी संघर्ष के बाद 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने से इंकार करना समानता के अधिकार के ख़िलाफ़ है। सरकार द्वारा दी गई दलीलें स्टीरियोटाइप हैं जिसे क़ानूनी रूप से कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

अब जब कोर्ट की दखल के बाद सरकार ने एनडीए में लड़कियों की भर्ती का रास्ता साफ़ कर दिया है, तो ऐसे में इसे एक सकारात्मक पहल जरूर कहा जा सकता है लेकिन जीत अभी भी अधूरी है। क्योंकि महिलाओं की जीत तब पूरी होगी जब सेना के सभी स्टीरियोटाइप टूटेंगे और सभी विभागों में आधी आबादी का खुले दिल से स्वागत होगा।

इसे भी पढ़ें: महिलाओं को NDA की परीक्षा देने का हक़ तो मिल गया, लेकिन सेना के स्टीरियोटाइप को टूटने में अभी भी वक्त लगेगा!

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