Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

'राम के नाम पर बहुसंख्यक की आक्रमकता और धर्म का राजनीतिकरण, संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर हमला'

वाम दलों का कहना है कि भूमि पूजन सरकार का नहीं, मंदिर ट्रस्ट का काम है। भाकपा माले ने राम मंदिर भूमि पूजन समारोह को सरकारी आयोजन में तब्दील कर देने और उत्तर प्रदेश व केंद्र सरकार की इसमें पूर्ण भागीदारी के खिलाफ देशव्यापी प्रतिवाद किया।
left party protest

अयोध्या में आज अगस्त को राम जन्मभूमि पूजन हुआ। इस पूजा में देश के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत पूरी सरकार की सक्रियता थी। इसको लेकर देश की तमाम वामपंथी पार्टियों ने अपना विरोध जताया और कहा भूमि पूजन सरकार का नहींमंदिर ट्रस्ट का काम है। वामपंथी दल भाकपा माले ने राम मंदिर भूमि पूजन समारोह को सरकारी आयोजन में तब्दील कर देने और उत्तर प्रदेश व केंद्र सरकार की इसमें पूर्ण भागीदारी के खिलाफ देशव्यापी प्रतिवाद किया और इसे काला दिवस की संज्ञा दी।  
 

माले ने कहा 'राम के नाम पर बहुसंख्यक की आक्रमकता और धर्म का राजनीतिकरणसंविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर हमला है।'

बिहार की राजधानी पटना में माले राज्य कार्यालय में माले राज्य सचिव कुणालविधायक दल के नेता महबूब आलम सहित पूरे बिहार में माले नेताओं ने प्रदर्शन किया और इसे संविधान की मूल मान्यताओं पर हो रहा हमला बताया।

90bd9713-d02a-4345-babb-ea914ea2160d.jpg

बिहार राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि राम के नाम पर बहुसंख्यक की आक्रमकता और धर्म व राजनीति का घालमेल देश के संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर हमला है। भारतीय संविधान की मूल भावना को सोच समझ कर नष्ट करने का यह कृत्य है।

उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले ने मंदिर निर्माण की राह खोली थीउसी फैसले में दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढाहने की आपराधिक कृत्य के रूप में स्पष्ट तौर पर आलोचना की गयी है। केंद्र सरकार का प्रधानमंत्री के स्तर पर भूमि पूजन में शरीक होनाउस अपराध को वैधता प्रदान करने की कार्यवाही है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त का मखौल उड़ाना तो है हीभारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर भी हमला है।

4edf432d-5eac-4084-bc5c-94ec0bc855d7.jpg

माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने इस मौके पर कोरोना माहमारी को लेकर सवाल उठाए और कहा कि अयोध्या में आज का आयोजन केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी कोविड-19 से बचाव के प्रोटोकॉल का भी उल्लंघन हैजिसमें धार्मिक आयोजनोंबड़े जुटान एवं 65 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों की भागीदारी पर रोक है। अयोध्या में पुजारी और तैनात पुलिस वालों का कोरोना पॉज़िटिव पाया जानाबढ़ती महामारी के बीच लोगों को आमंत्रित करने से मानव जीवन के लिए पैदा किए जा रहे खतरे को रेखांकित करता है। राम मंदिर को कोरोना वारस का इलाज बताने वाले भाजपा नेताओं के बयान संघ-भाजपा की धर्मांधता और कोरोना महामारी के बीच सरकार की अनुपयुक्त प्राथमिकताओं को ही दर्शाते हैं। जब कोरोना के केस दिन दूनी-रात चौगुनी गति से बढ़ रहे हैंतब सरकार अपनी पूर्ण विफलता को लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ के जरिये ढंकना चाहती है।

8b204ed1-cb56-4173-9d96-dcf5066ac083.jpg

धीरेन्द्र झा ने कहा कि धर्म का राजनीतिकरण करने और जन स्वास्थ्य के बजाय धार्मिक आयोजन को प्राथमिकता देने के मोदी सरकार की कार्यवाही को खारिज करना होगा और धर्मनिरपेक्षता व न्याय के संवैधानिक उसूलों को बुलंद करना हम जारी रखेंगे।
 

इससे पहले अन्य वाम दलों ने भी इस आयोजन में सरकारी भागीदारी को लेकर अपनी आपत्ति जाता चुके है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने अगस्त को जारी अपने बयान में इसकी आलोचना की थी। सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने एक के बाद एक ट्वीट कर भूमि पूजन के इस अयोजन को लेकर सरकार पर हमला बोला।
 

 

उन्होंने लिखा कि सीपीआई-एम हमेशा से मानती रही है कि अयोध्या विवाद का हल या तो बातचीत से हो या फिर कोर्ट द्वारा। और कोर्ट ने इसका फैसला कर मंदिर निर्माण की अनुमति दी है। "
इसके साथ ही येचुरी ने कोरोना काल में हो रहे इस भव्य आयोजन पर गंभीर सवाल उठाए और लोगों से संविधान की रक्षा करने की भी अपील की।
 

 

सीपीआई ने भी बयान जारी किया और लगभग वही सवाल उठाए जो सीपीएम और भाकपा माले ने उठाए।
 cpi.PNG

वाम दलों के विरोध के प्रमुख बिन्दु और सवाल इस प्रकार है:-

- उच्चतम न्यायालय जिसने अयोध्या की जमीन मंदिर ट्रस्ट को दीउसने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना एक अपराध था। भारत के प्रधानमंत्रीउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनकी सरकारेंशिलान्यास में शामिल होकर उस आपराधिक कृत्य का राजनीतिक लाभ क्यूँ उठाना चाहते हैंभारत के नागरिक के तौर पर हम बाबरी मस्जिद गिराने के अपराधियों को राजनीतिक लाभ नहीं सज़ा दिये जाने की मांग करते हैं।  

अनलॉक-के दिशा-निर्देशों के अनुसार सभी धार्मिक आयोजनों पर रोक है और 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को घर पर और भीड़भाड़ से अलग रहने की सलाह दी गयी है। जब 69 वर्षीय प्रधानमंत्री इन दिशा निर्देशन का उल्लंघन करते हैं और धार्मिक समारोह में शामिल होते हैंक्या वे सभी भारतीयों को कोरोना से बचाव के दिशा-निर्देशों को अनदेखा करने और उनका उल्लंघन करने के लिए उकसा नहीं रहे हैं ?

भारत का संविधान इस बात में दृढ़ है कि धर्म और राजनीति का मिश्रण नहीं होना चाहिए। तब भारत के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री क्यूँ एक मंदिर के भूमिपूजन समारोह से राजनीतिक लाभ बटोरने की कोशिश कर रहे हैं?

पूरा देश कोविड-19 और लॉकडाउन संकट से जूझ रहा हैसाथ ही बाढ़ भी झेल रहा हैजो हर साल अपने साथ अन्य महामारियां भी लाती है. ऐसे समय में जनता को इन जानलेवा संकटों से बचाने के बजाय भारत के प्रधानमंत्रीमंदिर के शिलान्यास समारोह को राजनीतिक मंच में तब्दील करने में क्यूँ व्यस्त हैं?

सरकार को धार्मिक आयोजनों से दूर रहना होगा. राम मंदिर को कोरोना वायरस का इलाज बताकर अंधविश्वास फैलाना बन्द किया जाए। कोरोना नियंत्रण में विफलता को लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ के जरिये ढंकना बंद किया जाए और धर्म का राजनीतिकरण करना बंद हो। साथ हीजन स्वास्थ्य को प्रमुखता दी जाए। 

 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest