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वायु प्रदूषण भारत में जीवन प्रत्याशा को 5 वर्ष कम कर रहा है: अध्ययन

वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक को लेकर शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी) द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली दुनिया का सर्वाधिक प्रदूषित शहर है और यह 10 वर्ष लोगों की ज़िंदगी कम कर रहा है।
Air pollution

वायु प्रदूषण भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह जीवन प्रत्याशा को पांच साल कम कर रहा है। देश भर में दिल्ली सबसे प्रदूषित राज्य है। अगर वार्षिक औसत प्रदूषण का स्तर पांच माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक न है, तो यह औसतन 10 साल बढ़ सकता है। मंगलवार को जारी किए गए शिकागो यूनिवर्सिटी के ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी) के वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) में ये बात सामने आई है। वहीं, बच्चे और मातृत्व कुपोषण औसत जीवन प्रत्याशा को करीब 1.8 वर्ष और धूम्रपान 1.5 वर्ष कम कर रहा है।

बीमारी के बोझ को कम करने के लिए 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के पुराने संशोधित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के लक्ष्य के आधार पर पिछले साल एक्यूएलआई के विश्लेषण के अनुसार औसतन लगभग 9.7 साल की जीवन प्रत्याशा के साथ दिल्ली सबसे प्रदूषित राज्य भी था। इस वर्ष के विश्लेषण के अनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और त्रिपुरा शीर्ष पांच प्रदूषित राज्यों में शामिल हैं। इन राज्यों में अगर प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित कर लिया जाए तो जीवन प्रत्याशा में सबसे अधिक लाभ मिल सकता है।

वैश्विक स्तर पर, बांग्लादेश के बाद भारत दूसरा सबसे प्रदूषित देश है। खराब हवा के कारण वर्ष 2020 में बांग्लादेश के जीवन प्रत्याशा में 6.9 वर्ष की कमी आई है और इसके बाद नेपाल (4.1 वर्ष), पाकिस्तान (3.8 वर्ष) और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (2.9 वर्ष) का स्थान है।

एक्यूएलआई ने पाया कि वे कणिकीय वायु प्रदूषण वैश्विक औसत जीवन प्रत्याशा से 2.2 साल कम करता है। विश्लेषण में कहा गया है कि जीवन प्रत्याशा पर ये प्रभाव धूम्रपान की तुलना में अधिक घातक है। यह शराब के उपयोग और असुरक्षित जल के तीन गुना से अधिक घातक है, वहीं एचआईवी / एड्स के छह गुना और संघर्ष और आतंकवाद के 89 गुना से अधिक घातक है।

ईपीआईसी में अपने सहयोगियों के साथ एक्यूएलआई तैयार करने वाले मिल्टन फ्रीडमैन डिस्टिंगिस्ट सर्विस प्रोफेसर इन इकोनॉमिक्स के माइकल ग्रीनस्टोन कहते हैं,"यह एक वैश्विक आपातकाल होगा यदि मार्शियंस (मंगल ग्रह का निवासी) पृथ्वी पर आए और एक पदार्थ का छिड़काव करे जिससे इस ग्रह पर औसत व्यक्ति दो साल से अधिक जीवन प्रत्याशा खो दे। यह दुनिया के कई हिस्सों में मौजूद स्थिति के समान है, सिवाय इसके कि हम उस पदार्थ का छिड़काव कर रहे हैं जो कि बाहरी अंतरिक्ष से कुछ आक्रमणकारियों ने नहीं की।” वे आगे कहते हैं, "सौभाग्य से, इतिहास हमें सिखाता है कि इसे इस तरह करने की आवश्यकता नहीं है। दुनिया भर में कई जगहों पर, संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, परिवर्तन के लिए समान रूप से सशक्त इच्छा शक्ति द्वारा समर्थित, मजबूत नीतियां, वायु प्रदूषण को कम करने में सफल रही हैं।”

भारत के कुल 1.3 बिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां वार्षिक औसत कण प्रदूषण स्तर डब्ल्यूएचओ की सीमा से अधिक है। विश्लेषण में पाया गया कि 63% से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जो देश के अपने राष्ट्रीय वार्षिक वायु गुणवत्ता मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक है।

भारत में शीर्ष दस सबसे प्रदूषित राज्य

देश के सबसे प्रदूषित दस राज्यों की बात करें तो पहले स्थान पर दिल्ली है वहीं दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश है। इसके बाद बिहार, हरियाणा, त्रिपुरा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का स्थान है।

वर्ष 1998 के बाद से औसत वार्षिक कणिकीय (पार्टिकूलेट) प्रदूषण में 61.4% की वृद्धि हुई है जिससे औसत जीवन प्रत्याशा में 2.1 वर्ष की और कमी आई है। दुनिया के प्रदूषण में लगभग 44% वृद्धि वर्ष 2013 से भारत से हुई है।

यदि वर्तमान प्रदूषण का स्तर बना रहता है तो सिंधु-गंगा के मैदानों में 510 मिलियन लोग जो कि भारत की आबादी का लगभग 40% है वह औसतन 7.6 वर्ष की जीवन प्रत्याशा खोने की राह पर हैं। यदि प्रदूषण का स्तर यही बना रहता है तो लखनऊ के लोगों की जीवन प्रत्याशा 9.5 वर्ष कम हो जाएगी।

एक्यूएलआई जीवन प्रत्याशा पर इसके प्रभाव में कणिकीय वायु प्रदूषण की व्याख्या करता है। यह वायु प्रदूषण से दीर्घकालिक मानव जोखिम और जीवन प्रत्याशा के बीच के संबंध को बताता है।

अपने ताजा विश्लेषण में, एक्यूएलआई टीम ने वर्ष 2020 से वायु प्रदूषण के आंकड़ों का इस्तेमाल किया। इस वर्ष वैश्विक स्तर पर कोविड -19 को लेकर प्रतिबंध लगाए गए थे। इस विश्लेषण में कहा गया कि, “विश्व भर में आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार धीमी होने के बावजूद नए तथा संशोधित उपग्रह से प्राप्त पीएम.5 डेटा के अनुसार, वैश्विक जनसंख्या भारित-औसत पीएम2.5 स्तर 2019 और 2020 के बीच 27.7 से घट कर 27.5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हुआ है जो कि डब्ल्यूएचओ के संशोधित दिशानिर्देश 5 से पांच गुना से अधिक है। वास्तव में, वैश्विक कणिकीय प्रदूषण सांद्रता आज लगभग वर्ष 2003 की तरह ही है।”

भारत में शीर्ष दस सबसे प्रदूषित जिले

देश के सर्वाधिक प्रदूषित दस जिलों की बात करें तो पहले स्थान पर दिल्ली है। इसके बाद गोपालगंज, जौनपुर, सिवान, आगरा, प्रतापगढ़, उन्नाव, लखनऊ, आजमगढ़ तथा फिरोजाबाद का स्थान है।

एक्यूएलआई की निदेशक क्रिस्टा हसनकोफ ने कहा कि इससे पता चलता है कि वायु प्रदूषण एक बहुत ही गंभीर समस्या है जिसके लिए निरंतर और मजबूत कार्रवाई की आवश्यकता है।

दक्षिण एशिया वायु प्रदूषण का सबसे अधिक भार झेलता है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल दुनिया के शीर्ष पांच सबसे प्रदूषित देशों में शामिल हैं। उच्च प्रदूषण के कारण विश्व स्तर पर अनुमानित खोए हुए जीवन वर्षों में दक्षिण एशिया में आधे से अधिक अर्थात 52% का योगदान है। इनमें से प्रत्येक देश में जीवन प्रत्याशा पर वायु प्रदूषण का प्रभाव अन्य बड़े स्वास्थ्य खतरों की तुलना में काफी अधिक है।

इन चार देशों के औसतन निवासी कणिकीय प्रदूषण के स्तर के संपर्क में आते हैं जो कि 47% है तो ये सदी के अंत की तुलना में अधिक है। यदि 2000 में प्रदूषण का स्तर समय के साथ स्थिर रहा, तो इन देशों के लोग 3.3 साल की जीवन प्रत्याशा खोने की राह पर होंगे।

भारत अपने उच्च कणिकीय प्रदूषण सांद्रता और बड़ी आबादी के कारण विश्व स्तर पर वायु प्रदूषण से सेहत संबंधी अधिक बोझ का सामना करता है। कणिकीय प्रदूषण का स्तर वर्ष 2013 में 53 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से बढ़कर आज 56 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया है जो कि डब्ल्यूएचओ की सीमा से लगभग 11 गुना अधिक है।

चीन 2.5 साल की जीवन प्रत्याशा खो देगा, लेकिन वर्ष 2013 के बाद प्रदूषण के स्तर में कमी के कारण इसे दो साल का भी फायदा हुआ है। वर्ष 2014 में "प्रदूषण के खिलाफ युद्ध" शुरू करने के बाद से चीन का प्रदूषण कम हो रहा है। विश्लेषण में कहा गया है कि, यह गिरावट 2020 तक जारी रही जो वर्ष 2013 की तुलना में प्रदूषण का स्तर 39.6% कम है। इन सुधारों के कारण, औसत चीनी नागरिक दो साल अधिक जीवित रहने की उम्मीद कर सकता है, बशर्ते कि इस तरह गिरावट जारी रहे। बीजिंग में वर्ष 2013 और 2020 के बीच वायु प्रदूषण में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई, जिसमें पीएम2.5 का स्तर केवल सात वर्षों में 85 से 38 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक गिर गया जो कि करीब 55% की गिरावट के समान है। वर्ष 2019 से 2020 तक बीजिंग के प्रदूषण में 8.7 की गिरावट आई है।

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