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उत्तरपूर्व एशिया से अमेरिका की सैन्य दख़लदांजी समाप्त की जाए: ऐप्सो 

अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन ( ऐप्सो) की ओर  से चेग्वेरा की 96 वीं जयंती के मौके पर विचार-विमर्श
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पटना: अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन ( ऐप्सो) की ओर  से महान लैटिन क्रांतिकारी अर्नेस्टो चेग्वेरा की 96 वीं जयंती के मौके पर  विमर्श का आयोजन किया गया। विषय था " उत्तरपूर्व  एशिया में अमेरिकन साम्राज्यवाद की दखलंदाजी और शांति आंदोलन की भूमिका"। इस मौके पर पटना शहर के बुद्धिजीवी, समाजिक कार्यकर्ता, छात्र युवा संगठन और ट्रेड यूनियनों के लोग मौजूद थे। 

आगत अतिथियों का स्वागत 'ऐप्सो' के पटना जिला महासचिव   कुलभूषण ने किया जबकि कार्यक्रम का संचालन राजीव जादौन ने किया। 

'ऐप्सो' के राज्य कार्यालय सचिव जयप्रकाश ने विषय प्रवेश करते हुए कहा  " चेग्वेरा ने अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में पूरे लैटिन अमेरिका का मोटरसाइकल से भ्रमण किया था। इससे उन्हें अपने महादेश को समझने में सहायता मिली।  फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में चेग्वेरा  और उनके साथी अंततः किसानों, मजदूरों को समझाने और अपनी ओर लाने में सफल हो गए जिस कारण  क्यूबा में क्रांति होती संपन्न होती है और अमेरिकन साम्राज्यवाद  का राज खत्म होता है। क्यूबा में जब क्रांति हुई तो भारत के प्रधानमंत्री नेहरू  ने उसे सबसे पहले मान्यता प्रदान की। अमेरिका को इतनी चिढ़ थी क्यूबा से कि संयुक्त राष्ट्र की बैठक के दौरान उन्हें रहने के लिए जगह तक नहीं प्रदान की गई। तब नेहरू जी ने उन्हें मदद की थी।  जब चेग्वेरा भारत आए थे तब एक महिला ने उनका इटरव्यू भी किया था। आज यूक्रेन में हम देख रहे हैं कि कैसे अमेरिका हथियार प्रदान करके रूस को बर्बाद करने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका पूरी दुनिया को बर्बाद करना चाहता है। चुनी हुई सरकारों को हटाकर अपनी कठपुतली सरकार बनाना चाहता है। भारत भी आज अमेरिका के इशारे पर चलने वाला  मुल्क बनता चला गया है। अरबों-खरबों के हथियार बेचे जा रहे हैं। अमेरिका के भीतर भी गरीबी-बेरोजगारी बढ़ी है।"

'सार्थक संवाद' से जुड़े शिक्षाविद रौशन कुमार ने अपने संबोधन में कहा " उत्तरपूर्व एशिया में जापान, ताइवान और कोरिया की संप्रभुता खंडित हो गई है। जब भी संप्रभुता खंडित होगी वहां दूसरी ताकत को घुसने का मौका मिलता है। यहीं पर हम चीन की आर्थिक और सामरिक ताकत को आगे बढ़ता देख रहे हैं। चीन का सप्लाई चेन बढ़ता दिख रहा है। इस कारण अमेरिका चीन को आंखें दिखा रहा है। लेकिन साथ ही उसका व्यापारिक सहयोग भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में शांति आंदोलन की यही भूमिका है लोकतंत्र को मजबूत करना। अमेरिका आज यह समझ चुका है कि चीन को आर्थिक स्तर पर तो  तोड़ा नहीं जा सकता है पर रणनीतिक स्तर पर उसे कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। " 

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता अरुण मिश्रा ने  बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा "  रूस आज स्वतंत्र ढंग से चलने की कोशिश कर रहा है ठीक इसी के कारण अमेरिका को रूस पसंद नहीं है। कई वामपंथी लोग भी रूस को लेकर  उलझन में पड़ जाते हैं। इस पूरे क्षेत्र में अमेरिका चीन की ताकत को कमजोर करना चाहता है। अमेरिका खुद भी आज आंतरिक संकटों से घिरा हुआ है। अब हमें पता चल रहा है लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया में लोग झुग्गी झोपड़ियों में रह रहे हैं। खाना मांग कर खा रहे हैं। कारों में ही रह रहे हैं। इस तरीके से समाजवाद तो छोड़ दें पूंजीवाद भी नहीं  चल सकता। आज गजा में हम देख रहे हैं। बच्चों और महिलाओं का  नरसंहार चल रहा है। सब विरोध में खड़े हैं फिर भी अमेरिका आज इजरायल के साथ खड़ा है। जब रूस था तो शांति आंदोलन मजबूत था। आज जो कुछ राफा  में हो रहा है उसके खिलाफ कितने जुलूस हमने निकाले हैं ?  कितने बुद्धजीवियों को गोलबंद किया है? यह सवाल हमलोगों को खुद से भी पूछना चाहिए।  "

'ऐप्सो' के राज्य महासचिव अनीश अंकुर ने बातचीत में हस्तक्षेप करते हुए कहा  " दुनिया भर में अमेरिका के जो लगभग 900 अड्डे हैं उसमें से  सिर्फ  193 सैनिक अड्डे उत्तरपूर्व एशिया में मौजूद हैं। पिछले वर्ष अगस्त में जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका ने कैंप डेविड में समझौता किया। यह समझौता अमेरिका द्वारा उत्तर पूर्व एशिया के देशों में अमेरिकन दखलंदाजी का नमूना है।  यह एशियाई नाटो के समान है। यह इन सबका अमेरिकी मकसद इस इलाके में चीन को घेरना है। अमेरिका ने अब अपने  लगभग साठ प्रतिशत सैन्य सामग्री उत्तरपूर्व की ओर केंद्रित कर दिया गया है। ओबामा के वक्त से ही अमेरिका  'पीवट टू  एशिया ' रणनीति के तहत चीन की घेरेबंदी करने की कोशिश कर रहा है। 1971 के बाद   ताइवान को अमेरिका चीन का हिस्सा मान चुका है फिर भी ताइवान में अमेरिकी  चीन को उकसाने वाली कार्रवाई करने की कोशिश कर रहा है। उत्तर कोरिया का बहाना बनाकर दक्षिण कोरिया में अमेरिकी मिसाइलों की तैनाती की गई है।  आज दक्षिण कोरिया जापान के तमाम युद्ध अपराधों को भूलकर इसके  खड़ा हुआ है। जापान ने 1945 के अपने संविधान को धत्ता बताकर सैन्यीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहा है। आज अकेले  जापान में अमेरिका के  120 सैन्य अड्डे मौजूद हैं। ठीक इसी प्रकार दक्षिण कोरिया में बड़े पैमाने पर मिसाइलों की तैनाती उत्तर कोरिया के कारण नहीं बल्कि चीन पर नजर रखने के कारण की जा रही है। ऐसे में शांति आंदोलन की भूमिका बहुत बढ़ जाती है। आज जापान और दक्षिण कोरिया में शांति आंदोलन सशक्त है। ताइवान में शांति आंदोलन थोड़ा कमजोर है। आज शांति आंदोलन का मुख्य मुद्दा है उत्तरपूर्व से अमेरिका के सैन्य अड्डे वापस किए जाएं।"

 'ऐप्सो'  के जिला अध्यक्ष मंडली सदस्य राजीव रंजन ने बताया " यह बेहद महत्वपूर्ण विषय पर बातचीत आयोजित हो रही है। चेग्वेरा का जीवन एक बेंचमार्क बन चुका है। लेकिन क्या हमारी स्थिति सुधर रही है। हम वर्तमान स्थिति से कैसे खुद को जोड़ पा रहे हैं। "

सामाजिक कार्यकर्ता उदयन ने बताया " चेग्वेरा क्यूबा के राष्ट्रीय बैंक के चेयरमैन थे। चेग्वेरा जैसे लोग आज नहीं है इस कारण आज हमारी यह दुर्गति है। जब वे बोलीविया में गुजरे तब उनके पास  उनके पास तीन देशों के पासपोर्ट थे। उन्हें बहुत क्रूरता से मारा गया। उन्हें बोलीविया से बहुत उम्मीद थी। अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार देश है। जिस दिन चीन के पास अमेरिका से ज्यादा हथियार आ जाएगा वह  बदला लेगा। ताइवान चीन का अंग है। ताइवान की सरकार  क्रांति के बाद चीन का सारा धन, सारा सोना लेकर भाग गई।  उसे अब तक चीन का अंग हो जाना चाहिए था। चरित्र और विचार में घालमेल होगा तो हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे।" 

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए  एटक के राज्य अध्यक्ष गजनफर नवाब ने कहा " अंतराष्ट्रीय स्तर पर उत्तरपूर्व एशिया की दखलंदाजी का प्रभाव पड़ेगा। अमेरिका अपनी ताकत के बल पर दौलत  के लूटने का प्रयास कर रहा है।" 

सभा को फारवर्ड ब्लॉक के नेता अनिल शर्मा ने भी संबोधित किया। 

इस मौके पर मौजूद लोगों में प्रमुख थे- मनोज कुमार, गौतम गुलाल, बिट्टू भारद्वाज, निखिल कुमार झा, सुधीर कुमार, प्रशांत,  अभिषेक विद्रोही, प्रमोद नंदन, अनिल रजक,  मणिभूषण कुमार , सुजीत कुमार, उदयन,  चितरंजन भारती, शगुफ्ता रशीद, कपिलदेव वर्मा, रामजी यादव, आदि।

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