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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नाम खुला ख़त

क्या हुआ आपके उस वायदे का जिसमें कहा गया था कि शहर के प्रत्येक नागरिक का ख़्याल रखा जाएगा, वो चाहे किसी भी जाति या मज़हब का हो?
arvind kejriwal
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : डेक्कन हेराल्ड

माननीय अरविंद केजरीवाल जी,

सलाम!

हम एक दूसरे से कभी नहीं मिले। न ही कभी एक दूसरे से हमारी बातचीत हुई है। न ही कभी हमारे रास्ते एक दूसरे से टकराए हैं। यह अलग बात है कि मैं आपको टीवी पर देखती हूँ। और मैं कहना चाहूँगी कि पिछले पखवाड़े तक मैं आपसे प्रभावित रही थी- आपके मुखर रूप से अपनी बातों को रखने और आपके भाषणों में किये गए वायदे पर कायम रहने को लेकर। आपकी हालिया चुनावी जीत के दिन की मुझे याद आ रही है। तब मैं कहीं न कहीं इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि बतौर मुख्यमंत्री के तौर पर आपके रहते राजधानी के नागरिकों की ज़िंदगी महफूज़ है और उनकी गरिमा को कोई ठेस नहीं पहुँचने जा रही है।

मुझे इस बात की उम्मीद थी कि आप हिंदुत्ववादी शक्तियों और सांप्रदायिक तौर पर बदनाम तत्वों से मुकाबला करने में सक्षम रहेंगे, जो इस देश को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। मुझे याद आ रहा है उन लोगों से बहस में उलझना, जो लोग तब इस बात को साबित करने पर तुले थे कि आप और आपकी आम आदमी पार्टी के तार आरएसएस से कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं। मुझे इन आरोपों पर यकीन ही नहीं होता था कि आप पार्टी भी बीजेपी की ही एक बी-टीम है, इत्यादि। इसकी सीधी सी वजह ये थी कि आप कभी सीधे तौर पर सांप्रदायिक रूप में सामने नहीं आये थे।

जब कभी आपने खुद को धार्मिक व्यक्ति बताया, मैं कहीं और अधिक इस बात को लेकर आश्वस्त हुई, कि धर्म हमें अधिक मानवीय बनाता है तथा जीवन को सम्मान व महत्त्व देना सिखाता है।

दुःख की बात ये है कि सुरक्षा का यह एहसास बेहद कम समय का ही साबित हुआ। 2020 की इस दिल्ली हिंसा ने मुझे झकझोर कर रख डाला है और बेहद तकलीफ पहुँचाई है। एक भारतीय मुसलमान होने के नाते मुझे लगता है कि मेरे साथ धोखा हुआ है। आपको सिर्फ एक बार इशारा करना था कि आप अल्पसंख्यकों की रक्षा कर सकने की हालत में नहीं हैं। यकीन मानिए मुस्लिमों, दलितों और ईसाईयों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को वोट दिया होता। लेकिन उन्होंने आपको वोट किया क्योंकि आपने भरोसा दिलाया था कि आपकी नजर में हर नागरिक समान है, और सबसे बराबर का बर्ताव किया जाएगा।

2002 के नरसंहार की याद ताजा कराने वाले इस सुनियोजित साजिश के तहत रचे गए हमले से आज हर कोई बेतरह निराश है और उसका मोहभंग हो चुका है। क्या हुआ आपके उस वायदे का जिसमें कहा गया था कि शहर के प्रत्येक नागरिक का ख्याल रखा जाएगा, वो चाहे किसी भी जाति या मजहब का हो? तब कहाँ थे आप जब सैकड़ों की संख्या में मुसलमानों को गुंडों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था? जब घायल मुसलमानों को पुलिस तक ने नहीं बख्शा, तब कहाँ थे आप और आपके मंत्री-संतरी और पार्टी कार्यकर्ता? क्या आपने उन दो डाक्टरों को प्रतिबंधित किया जो दिल्ली के अस्पतालों से सम्बद्ध हैं, और जिन्होंने सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा किसी तरह बचा कर लाये गए पीड़ित मुस्लिमों पर खुलेआम सांप्रदायिक जहर उगलने का काम किया? माना कि पुलिस महकमा आपके क्षेत्राधिकार में नहीं है- लेकिन कम से कम एक विशेष समुदाय के खिलाफ घृणा अभियान चलाने वालों के खिलाफ गिरफ्तारी की माँग तो आप कर ही सकते थे।

क्या हेट स्पीच उगलने वालों और उसकी प्रतिक्रिया में आत्मरक्षा में जवाब देने वालों के बीच में कोई फर्क नहीं किया जाना चाहिए? आज जो असहाय पीड़ित हैं उनकी तो गिरफ्तारी की जा रही है, जबकि हत्यारों और इसके मास्टरमाइंड खुलेआम घूम रहे हैं। इस तरह की अजीब, सांप्रदायिक तौर पर तोड़ मोड कर रख दिए गए दौर में हम सब जिन्दा रहने या मर जाने के लिए अभिशप्त हैं।

श्रीमान केजरीवाल जी, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इलाकों में रह रहे मुस्लिम पीड़ितों के बीच दुःख और गुस्से से आप अवश्य ही परिचित होंगे जिन्हें आज महसूस होता है कि उन्हें बलि का बकरा बनाया गया है। जी, वे यह भी महसूस कर रहे हैं कि आपकी पार्टी के नेता ताहिर हुसैन भी कहीं न कहीं उन्हीं बलि के बकरों में से एक हैं।

श्रीमान केजरीवाल जी, यदि आप वाकई में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पीड़ितों के बारे में सोचते हैं तो आप खुद जाकर उनसे मिलिए। कृपया लच्छेदार भाषण से काम न चलायें, क्या आपको नहीं लगता कि हम पहले ही बहुत कुछ झेल चुके हैं? आज सबसे पहले इस बात की जरूरत है कि हिंसा में जो भी लोग तबाह हुए हैं उनके सर पर एक छत मिल जाये और जिन्दा रहने के लिए पेंशन या रोजगार की व्यवस्था मुहैया हो। लेकिन इसके साथ ही आपको चाहिए कि एक मुस्लिम होने के कारण उन्हें जिस प्रकार से अपमानित किया जा रहा है और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है उस पर रोक लगे। मुसलमान इस देश में सम्मान के साथ जीना चाहता है- यह देश उसका भी उतना ही है जितना किसी और का।

आज एक भारतीय मुस्लिम के रूप में मैं कोई खोखले वादे नहीं चाहती। इस लोकतान्त्रिक गणराज्य के एक नागरिक के रूप में मैं अपना हक़ माँग रही हूँ जिससे कि मैं अपने मस्तक को गर्व से उठा कर चल सकूँ, न कि किसी आपराधिक गैंग या हिंदुत्व-प्रेरित भीड़ से हमले के डरी सहमी रहूँ।

श्रीमान केजरीवाल जी मुझे यकीन है कि आपको अच्छे से पता होगा कि अगर किसी से उसका काम-धंधा और रहने का आसरा छिन जाये तो ज़िंदगी काटनी कितनी मुश्किल भरी हो सकती है। इसलिये कृपा करके आगे कदम बढ़ाकर देखिये कि जो लोग इसका शिकार हैं वे आज किस तरह की जिन्दगी जीने के लिए मजबूर हैं। उनका जीवन किस तरह के भावनात्मक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक तकलीफ के बीच गुजर रहा है और वे लोग शारीरिक और मानसिक टूटन की कगार पर खड़े हैं। उनको देखने वाला कोई है भी या नहीं ये उनकी समझ में ही नहीं आ रहा है।

मुझे मालूम है कि नवीनतम कोरोना वायरस पर रोकथाम का काम वाकई में काफी मुश्किल भरा है। लेकिन साम्प्रदायिकता के वायरस पर काबू पाना निश्चित तौर पर संभव है, बशर्ते राजनीतिक सत्ताधारी लोग ऐसा करना चाहें तो। Covid-19 की तरह ही साम्प्रदायिकता के वायरस पर भी काबू पाया जा सकता है यदि आप उनकी शिनाख्त कर उन सभी सांप्रदायिक तत्वों पर प्रतिबन्ध लगाकर उन्हें अलग-थलग कर दें। यदि आप ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो जिस प्रकार से ये दक्षिणपंथी धड़ों के गुट अपने जहरीले प्रचार में मशगूल हैं, उसका अंत हो सकता है। कोशिश कीजिये कि आपकी पहुँच हालिया हिंसा से प्रभावित बच्चों तक हो सके। इन भीड़ द्वारा प्रायोजित हिंसाओं से यदि सबसे अधिक कोई प्रभावित हुआ है तो वे ये बच्चे ही हैं। इनमें से कई लोगों की पढ़ाई-लिखाई मदरसों में चल रही थी, और चूँकि वे स्कल कैप पहनते हैं इसलिये एक मुसलमान के रूप में उनकी पहचान बेहद आसान हो जाती है। लेकिन उनमें से अधिकतर बच्चे या तो अनाथ हैं या बेहद गरीब परिवारों से आते हैं। राजधानी में हिन्दुत्ववादी गुंडे उनपर हमले करते रहे हैं और उनका बाल भी बाँका नहीं होता। आपको अवश्य ही इसपर ध्यान देना होगा!

अपने इस पत्र का समापन मैं वर्षों पहले अभिनेता-राजनीतिज्ञ के रूप में प्रसिद्ध सुनील दत्त जी की बात से खत्म करना चाहूंगी, जो उन्होंने सोमालिया में हुए नागरिक युद्ध की पृष्ठभूमिके संदर्भ में मुझसे कही थी। यह दुःखद पहलू है कि दत्त साहब इसे अमल में लाने से पहले ही गुजर गए, लेकिन आप और आपके साथी श्री मनीष सिसोदिया जी अगर चाहें तो इसे अपने सरकारी स्कूलों में लागू करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।

जब मैंने दत्त जी से हमारे देश में सांप्रदायिक दंगों को रोक पाने के हर सम्भव उपायों के बारे में सवाल किये तो उनका मानना था कि इसका एक ही तरीका हो सकता है। उन्होंने मुझे बताया कि “कल ही रात को जब मैं टाइम पत्रिका के नवीनतम अंक को देख रहा था तो उसमें सोमालिया में छिड़े गृह युद्ध की तस्वीरों को देखकर मैं अंदर से इतना सिहर उठा कि मुझसे खाना तक नहीं खाया गया... । तस्वीरों में दिख रहे वे इंसाननुमा लोग इतने कमजोर थे कि वे चल-फिर भी नहीं सकते थे....। हर तस्वीर अपने आप में सोमालिया में जारी गृह युद्ध से उपजी विभीषिका की कहानी बयाँ कर रही थी।”

इसके बाद दत्त साहब ने मुझसे कहा कि सारे देश भर में उन तस्वीरों को प्रदर्शित किये जाने की ज़रूरत है, “...हर बस्ती हर शहर में, सभी सार्वजनिक जगहों पर, कालेजों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों, कार्यालयों और पुस्तकालयों हर जगह। हर तस्वीर का शीर्षक होना चाहिए: देखिये आंतरिक युद्ध या गृह युद्ध या अशांति आपके अपने जीवन में, आपके देश के लिए या आपके देशवासियों के जीवन में क्या कर सकती है।”

कोशिश कीजिये कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हैप्पीनेस क्लासेज के साथ साथ इस प्रकार के अद्वितीय संचार के माध्यमों से पहुँच बनाई जा सके। अपनी सरकार से जुड़े लोगों को कहिये कि वे अल्पसंख्यक तबके से जुड़े छात्रों तक अपनी पहुँच बनाएं। क्योंकि इनमें से कई बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने हाल की हिंसा में काफी करीब से अपने परिवारों और खुद को इसका निशाना बनाए जाते देखा है, लोगों को मारे जाते देखा है। मैं आशा करती हूँ और दुआ करती हूँ कि एक बार फिर से अमन चैन का राज हो। इसलिये मैं अपने पत्र को अस-सलाम-अलेइकुम के साथ समाप्त करती हूँ- आपको शांति बख़्शे। आख़िरकार, हम सभी लोग तो देश और दुनिया भर में शांति के लिए बेचैन हैं और दुआएं कर रहे हैं।

नमस्कार,

हुमरा कुरैशी

(लेखिका एक स्वतंत्र पत्रकार और टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

An Open Letter to Arvind Kejriwal, Chief Minister of Delhi

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