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'एक घिनौने सच' ने फ़ेसबुक के संदिग्ध व्यावसाय का किया पर्दाफ़ाश 

दो खोजी पत्रकार अपने द्वार लिखी एक किताब में फ़ेसबुक की व्यावसायिक प्रथाओं पर सवाल उठा रहे हैं। हाल ही में फ़ेसबुक की एक पूर्व-कर्मचारी व्हिसल-ब्लोअर ने भी कंपनी द्वारा 'जनता के हितों के ख़िलाफ़ काम करने' का खुलासा किया है।
‘An Ugly Truth’ Lays Bare Facebook’s Murky Business Practices

अपनी अभूतपूर्व पुस्तक, एन अग्ली ट्रुथ: इनसाइड फ़ेसबुक बैटल फॉर डोमिनेशन (द ब्रिज स्ट्रीट प्रेस, लिटिल, ब्राउन बुक ग्रुप, 2021 में छपी) में, जानी-मानी और पुरस्कार विजेता पत्रकार शीरा फ्रेंकेल और सेसिलिया कांग ने मिलकर फ़ेसबुक द्वारा सोशल नेटवर्किंग स्पेस पर हावी होने के के उनके सभी कृत्यों को उज़ागर कर दिया है। 

सेसिलिया कांग 

इस पुस्तक को लिखने के लिए, "चार सौ से अधिक लोगों के साथ एक हजार घंटे से अधिक के साक्षात्कार" शामिल हैं जिसमें कर्मचारी, सलाहकार और निवेशक शामिल हैं और "कभी न रिपोर्ट की जाने वाली ईमेल, मेमो, और श्वेत पत्र या शीर्ष अधिकारियों द्वारा अनुमोदित" निर्णयों की जांच से यह पुस्तक दर्शाती है कि फ़ेसबुक कैसे काम करता है और एल्गोरिदम के पीछे अपना एजेंडा कैसे छिपा कर रखता है। 

फ़ेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने फ्रेंकेल और कांग को साक्षात्कार देने इनकार कर दिया, और फ़ेसबुक की सीओओ शेरिल सैंडबर्ग ने भी उनके साथ किसी भी किस्म का "प्रत्यक्ष संचार" बंद कर दिया। यह उस कंपनी के लिए अशोभनीय लगता है जिसके मालिक दावा करते हैं कि वे लोगों को "एक साथ" लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

शीरा फ्रेंकेल 

फ़ेसबुक बनने की कहानी 

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति पद पाने की दौड़ के दौरान, डोनाल्ड ट्रम्प ने "अमेरिका में प्रवेश चाहने वाले मुसलमानों पर “पूर्ण बंद" का आह्वान किया था। फ्रेंकेल और कांग ने पाया  इस पोस्ट को "100,000 से अधिक 'लाइक' मिले हैं और इसे 14,000 बार साझा किया गया था।" कई अधिक तरीकों से, फ़ेसबुक ने ट्रम्प को राष्ट्रपति बनने में मदद की, फोर्ब्स के पूर्व स्टाफ सदस्य पर्मी ओल्सन ने भी अपने लेख में इस बात का तर्क दिया है। जुकरबर्ग, ओल्सन नोट, ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि अमेरिकी लोगों ने "अपने 'जीवित अनुभवों' के आधार पर निर्णय लिए हैं, न कि झूठी खबरों के आधार पर जिन्हे वे ऑनलाइन पढ़ते हैं।"

यहां याद रखना जरूरी है कि जुकरबर्ग ने 2015 में अपने प्रशंसकों और कर्मचारियों को लिखा था कि: "दुनिया भर में हाल के अभियानों में - भारत और इंडोनेशिया से लेकर यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका तक - हमने देखा है कि आमतौर पर फ़ेसबुक पर सबसे ज्यादा फॉलोअर वाला उम्मीदवार जीतता है।"

फ्रेंकेल और कांग ने अपनी जांच में पाया कि ट्रम्प की पोस्ट को हटाने के प्रस्ताव पर फ़ेसबुक के शीर्ष अधिकारी विभाजित थे। फ़ेसबुक की झिझक और बचाव का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व इसके मुख्य डेवलपर और संवर्धित और आभासी वास्तविकता के उपाध्यक्ष, एंड्रयू बोसवर्थ "बोज़" द्वारा किया जाता है, जिसमें उसने कहा था कि "हम लोगों को जोड़ते हैं।"

'द अग्ली' नामक एक आंतरिक नोटिस में, बोज़ ने लिखा है कि, "हो सकता है कि धमकियों से किसी की जान चली जाए। हो सकता है कि हमारे उपकरणों के माध्यम से समन्वित कार्यवाही से आतंकवादी हमले में कोई मारा जाए। और फिर भी हम लोगों को जोड़ते हैं। बदसूरत सच्चाई यह है कि हम लोगों को इतनी गहराई से जोड़ने में विश्वास करते हैं कि जो कुछ भी हमें लोगों को अधिक बार जोड़ने की अनुमति देता है वह वास्तव में अच्छा है।

इस 'वास्तव में अच्छा' के बारे में बोज़ बताते हैं इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। म्यांमार में हिंसा भड़काने में फ़ेसबुक की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। फर्म ने अपनी मिलीभगत को  स्वीकार किया है। हाल के वर्षों में, फ़ेसबुक न केवल नकली समाचारों के निर्माण और प्रसार का एक प्रजनन स्थल बन गया है, बल्कि इसने अपने उपयोगकर्ताओं के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल, लेखों की एक श्रृंखला में, जिनका दस्तावेज किया गया है और नोट करता है कि "फ़ेसबुक अपनी सेवाओं से होने वाले नुकसान को जानता था, जिसमें किशोर लड़कियों का कहना था कि इंस्टाग्राम ने उन्हें खुद बारे में बुरा महसूस कराया।" न्यूयॉर्क टाइम्स ने नोट किया कि ये लेख एक "फ़ेसबुक दस्तावेजों के संग्रह" पर आधारित हैं जो एक व्हिसलब्लोअर द्वारा लीक किए गए हैं।

फ़ेसबुक पैसे कैसे कमाता है?

फ्रेंकेल और कांग ने गंभीर और बारीकी से जुकरबर्ग और सैंडबर्ग के एक साथ आने, उनके प्रभुत्व की साझा दृष्टि और फ़ेसबुक की 17 वर्षों की यात्रा को कवर किया है। उनके दावों और निष्कर्षों के मद्देनजर, चीजों को परिप्रेक्ष्य में लाना जरूरी हो जाता है।

जुकरबर्ग ने उन आरोपों का खंडन किया कि फ़ेसबुक के उपयोगकर्ता वोट डालने के लिए निर्णय लेते वक़्त नकली समाचार पर विश्वास करते हैं। वे आश्वस्त लगते हैं कि फ़ेसबुक का स्मारकीय नवाचार 'न्यूज फीड' जिसकी अवधारणा और दावे को फ्रेंकेल और कांग ने तार-तार किया और असाधारण रूप से समझाया – कि फ़ेसबुक सनसनीखेज और हिंसा भड़काने वाली खबरों को वायरल करने के लिए कोई चाल नहीं चलती है। लेखक तर्क देते हैं कि अगर ऐसा है तो फिर फ़ेसबुक और उसका शीर्ष नेतृत्व एल्गोरिदम पर स्पष्ट क्यों नहीं होता है कि कंपनी कैसे 'समाचार' और 'अपडेट' का नमूना उपयोगकर्ताओं के समाचार फ़ीड पर तैरती है। सवाल यह भी है कि क्यों फ़ेसबुक कभी भी अपनी प्रक्रियाओं और न ही उनके इच्छित परिणामों को साझा नहीं करता है?

लेखक नोट करते हैं कि फ़ेसबुक, जिसका विज्ञापन से कमाया जाने वाला राजस्व सभी अमेरिकी समाचार पत्रों की तुलना में कई अधिक है, "ने कभी जवाब नहीं दिया कि उनके पास कितने सामग्री मॉडरेटर हैं।" ओल्सन ने इस भावना को साझा करते हुए लिखा है कि लोग "फ़ेसबुक को वेब सामग्री के 'संपादक' के रूप में उसकी बढ़ती भूमिका की अधिक जिम्मेदारी लेने की मांग कर रहे हैं। वे कहते हैं कि फ़ेसबुक को खुद को संपादकीय मानकों पर रखना शुरू कर देना चाहिए – न्यूज़ फीड को कम व्यक्तिगत बनाने और दिखाना कि उपयोगकर्ताओं विचारों और टिप्पणियों का विरोध करते रहे हैं।"

न्यूज़क्लिक के संस्थापक-संपादक प्रबीर पुरकायस्थ, सिरिल सैम और परंजॉय गुहा ठाकुरता द्वारा द रियल फेस ऑफ़ फ़ेसबुक इन इंडिया: हाउ सोशल मीडिया हैव अ प्रोपगैंडा वेपन एंड डिसेमिनेटर ऑफ़ डिसइनफॉर्मेशन एंड फॉल्सहुड, (परंजॉय गुहा ठाकुरता, 2019) के अपने परिचय में लिखते हैं कि, "फ़ेसबुक का मक़सद पैसा है। जितने अधिक लोग उसे देखते हैं, उतने अधिक संभावित उपयोगकर्ता उनके पास होते हैं, और उतना ही अधिक वे उन उपयोगकर्ताओं के डाटा को राजनीतिक दलों और व्यवसायिक घरानों को बेच सकते हैं।” यह एक खतरनाक मिसाल है। माइकल नुनेज़, एक लेखक जो फोर्ब्स के लिए फ़ेसबुक और सोशल मीडिया को कवर करते हैं,  फ्रेंकल और कांग की खोज को सच मानते हैं, और खुद भी ऐसा ही मानते हैं। वे कहते हैं, "फ़ेसबुक ने ऐसा जता दिया है कि यह एक ब्लैक बॉक्स है, जैसे कि ये निर्णय लेने वाला कोई सिस्टम है,  लेकिन वास्तव में ऐसे कर्मचारी हैं जो बिना किसी जांच के महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं।"

फ्रेंकल और कांग लिखती हैं: "जबकि फ़ेसबुक पर साझा किए गए प्रत्येक लेख, फोटो और वीडियो को शामिल करने वाले डेटा पर फ़ेसबुक पर बैठा है, और यदि वह चाहता, तो उपयोगकर्ताओं द्वारा उन लेखों को देखने में बिताए गए मिनटों की सटीक संख्या की गणना की जा सकती थी। जो बताता है कि कंपनी में झूठी सामग्री और झूठी खबरों पर कोई भी नज़र नहीं रख रहा था।”

सोन्या आहूजा कहती हैं कि, क्या यह चौंकाने वाली बात नहीं है कि निगम 'जानता है कि आपके दिमाग में क्या चल रहा है' वह उसे जानने के लिए उत्सुक है - और आपको यह सब साझा करने की अनुमति देता है - न्यूज फीड पर इसकी किसी भी 'वास्तविक तैयार' सामग्री के लिए अस्वीकरण नहीं है? दिलचस्प बात यह है कि फ़ेसबुक फेक न्यूज पर नजर नहीं रख सकता है, लेकिन जब असहमति को दबाने की बात आती है, तो उसके पास 'चूहा पकड़ने वाला' होता है।

"आहूजा का विभाग," फ्रेंकल और कांग ने कहा, "सभी संचारों तक पहुंच के मामले में, फ़ेसबुक कर्मचारियों के दैनिक कामकाज पर एक गिद्ध की नजर रखती है। इस तरह की निगरानी फ़ेसबुक के सिस्टम में बनाई गई थी: जुकरबर्ग फ़ेसबुक की आंतरिक बातचीत, परियोजनाओं और संगठनात्मक परिवर्तनों पर अत्यधिक नियंत्रण कर रहे थे।

उदाहरण के लिए, फ़ेसबुक किस समाचार को नहीं हटाना चाहता है- यह उसे कैसे नियंत्रित करता है और यह आपके व्यक्तिगत डेटा के साथ क्या करता है। क्या कैम्ब्रिज एनालिटिका याद है? एक व्हिसलब्लोअर ने खुलासा किया था कि यह फर्म, "ट्रम्प मर्थक रॉबर्ट मर्सर और ट्रम्प के वरिष्ठ सलाहकार स्टीफन के द्वारा वित्त पोषित है। बैनन के नेतृत्व में, ने व्यक्तित्व लक्षणों और राजनीतिक मूल्यों पर फ़ेसबुक डेटा का इस्तेमाल करके राजनीतिक विज्ञापन को लक्ष्य करने का का एक नया स्तर बनाया था।" अन्य खतरे भी फ़ेसबुक की कार्य संस्कृति को परिभाषित करते हैं; उदाहरण के लिए, लेखक काम के दौरान यौन उत्पीड़न के उदाहरणों को भी दर्शाते हैं।

यह तर्क देना आसान है कि पैसा बनाने के लिए फ़ेसबुक जो नफरत फैलाता है और बेचता है वह उसकी नीतियों, नैतिकता और संस्कृति में गहराई से निहित है। इसके समझौता करने वाले व्यावसायिक मानक सोशल नेटवर्किंग स्पेस पर हावी होने के अपने एकल-दिमाग वाले एजेंडे का प्रतिबिंब हैं। हालाँकि, संयुक्त राज्य की संघीय एजेंसियां तकनीकी फर्मों को नियंत्रित करने की तलाश में नहीं है। फेडरल ट्रेड कमिशन (FTC) ने अगस्त 2021 में, "फ़ेसबुक के खिलाफ अविश्वास मामले को फिर से खारिज कर दिया था, यह तर्क देते हुए कि कंपनी सोशल नेटवर्किंग में एकाधिकार शक्ति रखती है।" एक साल में इस तरह का यह दूसरा प्रयास है। लेकिन क्या एफटीसी संगठन को जवाबदेह ठहरा पाएगा? फ़ेसबुक उपयोगकर्ताओं के सामने असली सवाल यह है कि क्या वे ऐसे मंच का उपयोग करने में सहज हैं जो लोगों के जीवन को खतरे में डालता है, लोकतंत्र को पंगु बनाता है, और असंतोष को दबाता है?

सौरभ शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

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