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रूस विरोधी नीतियां पश्चिम के लिए बनी बड़ी मुसीबत

अमेरिका, यूरोपीयन यूनियन और उनके कई सहयोगी यूक्रेन में युद्ध को लम्बा खींचने वाली नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं, जबकि घरेलू आबादी बुनियादी वस्तुओं की क़ीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि का सामना कर रही है और ग़रीब देश एक आसन्न खाद्य संकट से जूझ रहे हैं।
Anti Russia policies

यूक्रेन युद्ध का सीधा प्रभाव, जो अब अपने चौथे महीने में पहुँच गया है, रूस और यूक्रेन तक सीमित नहीं हैं। तीसरी दुनिया के अधिकांश देश बढ़ती मुद्रास्फीति और खाद्य संकट का अनुभव कर रहे हैं और साथ ही पश्चिमी देशों के लोगों को भी उनके शासक वर्गों द्वारा अपनाई गई प्रतिबंधों और युद्ध-समर्थक नीतियों के नतीजों का सामना करना पड़ रहा है।

सोमवार, 6 जून को, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने देश में "ऊर्जा आपातकाल" की घोषणा की है, और यह दावा किया कि अन्य चीजों के अलावा, यूक्रेन में युद्ध के कारण "ऊर्जा बाजार में व्यवधान" "संयुक्त राज्य अमेरिका की पर्याप्त ऊर्जा उत्पादन प्रदान की क्षमता को खतरे में डाल रहा है।"

हालांकि कई टिप्पणीकारों ने बाइडेन द्वारा ऊर्जा आपातकाल को अपने "हरित ऊर्जा" के एजेंडे को बढ़ावा देने का प्रयास कहा है, यह स्पष्ट है कि तेल और गैस की बढ़ती लागत इसका एक प्रमुख कारक है। अमेरिका में एक गैलन गैस की कीमत अब 5 अमेरिकी डॉलर के करीब है, जो 2008 के बाद सबसे अधिक है। फरवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूसी तेल और गैस की आपूर्ति बाधित हुई है। 

यूरोपीयन यूनियन के देशों में ऊर्जा की कीमत नए रिकॉर्ड बना रही है जब से उन्होंने अमेरिका का अनुसरण किया है और रूस पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। हाल ही में, उन्होंने रूस से सभी तेल आयात पर भी प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। हालांकि, ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि ही एकमात्र नतीजा नहीं है जिससे इन देशों के लोग जूझ रहे हैं।

अन्न का संकट

यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद पश्चिम और नाटो देशों ने रूस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए हैं जिससे विश्व बाजार में अनाज का निर्यात बाधित हो गया है। इससे आयात पर निर्भर देशों में खाद्यान्न की कमी हो गई है और कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।

रूस और यूक्रेन मिलकर गेहूं, जौ और मक्का जैसे कुछ सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले खाद्यान्नों में से एक-तिहाई और सूरजमुखी के तेल जैसे खाद्य तेलों की आपूर्ति करते हैं।

हालांकि पश्चिमी देशों और नाटो ने रूस पर ओडेसा के यूक्रेनी बंदरगाह से अनाज के निर्यात को रोकने का आरोप लगाया है, रूस का दावा है कि यूक्रेनियन के बारूद बिछाने से बंदरगाह काम नहीं कर पा रहा है। 

रूस और बेलारूस पर लगाए गए प्रतिबंधों ने महत्वपूर्ण कृषि इनपुट, तेल और उर्वरकों की उपलब्धता और कीमतों को भी प्रभावित किया है, क्योंकि दोनों देश इन वस्तुओं के दुनिया के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से हैं। संयुक्त राष्ट्र ने चिंता व्यक्त की है कि इससे गरीब देशों में खाद्य संकट पैदा हो सकता है।

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव काराइन जीन पियरे ने मंगलवार को यूक्रेन में युद्ध को अमेरिका में व्यापक और ऐतिहासिक रूप से उच्च मुद्रास्फीति का मुख्य कारण बताया है, लेकिन बाइडेन प्रशासन द्वारा अपनाई गई नीतियों की किसी भी विफलता से इनकार किया है।

यूरोप में, ब्रिटेन द्वारा भोजन की कीमतों में भारी वृद्धि के बाद, जर्मन किसान यूनियन  ने बुधवार को चेतावनी दी है कि खाद्य कीमतों में वृद्धि जारी रहेगी। जर्मनी में मुद्रास्फीति मई में 7.9 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो इसके एकीकरण के बाद के इतिहास में सबसे अधिक है।

आरटी की रपट के मुताबिक, जीएफए के अध्यक्ष, जोआचिम रुक्वीड ने दावा किया है कि "ऊर्जा की कीमतें दोगुनी हो गई हैं, उर्वरकों, विशेष रूप से नाइट्रोजन उर्वरकों की कीमतें औसतन चौगुनी हो गई हैं और चारे की लागत अधिक हो गई है।" उन्होंने यह भी दावा किया है कि अगर उर्वरक उत्पादन में सुधार नहीं होता है, तो देश में कृषि उपज में अल्पावधि में 30-40 प्रतिशत की गिरावट देखी जा सकती है।

मामले की तात्कालिकता के साथ-साथ अपने स्वयं के हितों को देखते हुए, तुर्की यूक्रेन से अनाज के निर्यात के लिए एक सुरक्षित मार्ग खोलने के लिए रूस के साथ बातचीत शुरू करने की कोशिश कर रहा है। इस कदम का यूएन ने भी समर्थन किया है।

तुर्की को अपने नाटो सहयोगियों के मुक़ाबले एक फायदा है क्योंकि उसने दूसरों के विपरीत रूस पर प्रतिबंध लगाने से इनकार किया है। इसने मार्च में यूक्रेन के साथ रूस की वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की भी कोशिश की थी।

बुधवार को अंकारा में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, जो देश की दो दिवसीय यात्रा पर हैं, ने दावा किया कि रूस, यूक्रेनी अनाज को सुरक्षित मार्ग प्रदान करने के लिए तैयार है। हालांकि, उन्होंने दावा किया कि ओडेसा बंदरगाह के चालू होने से पहले यूक्रेन द्वारा काला सागर में बिछाई गई बारूद की खानों को हटाने की जरूरत है। तास की एक रिपोर्ट के अनुसार, तुर्की खानों को हटाने पर सहमत हो गया है।

अभी भी समझौता वार्ता का मौक़ा

लावरोव ने बुधवार को तुर्की की अपनी यात्रा के दौरान एक रूसी समाचार चैनल से बात करते हुए दावा किया कि भविष्य में यूक्रेन के साथ "एक समझौते पर पहुंचने की उम्मीद है", भले ही इस समय बातचीत आगे नहीं बढ़ रही हो।

लावरोव ने उन देशों की मध्यस्थता का भी स्वागत किया है जिन्होंने "रूस के खिलाफ बोलना छोड़ दिया है, क्योंकि वे वर्तमान संकट के कारणों और रूस के मुख्य राष्ट्रीय हित को समझते हैं, और प्रतिबंध के युद्ध में शामिल नहीं हैं।"

रूस ने इससे पहले पश्चिम पर यूक्रेन के साथ वार्ता को बाधित करने का आरोप लगाया था। मार्च में इस्तांबुल में आयोजित अंतिम दौर की वार्ता कथित तौर पर पश्चिमी दबाव में रोक दी गई थी। पश्चिम ने यूक्रेन और रूस के बीच वार्ता को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया था और इसके बजाय यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति करके युद्ध को आगे बढ़ाने का रास्ता चुना था।

इस हफ्ते की शुरुआत में, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को यह कहते हुए रिपोर्ट किया गया था कि यूक्रेन को रूस के साथ "एक बुरा सौदा" स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। पहले मार्च में दोनों देशों के बीच बातचीत को तोड़ने में उनकी अहम भूमिका होने की खबर है। 

इस बीच, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडोमिर ज़ेलेंस्की ने रूसी आक्रमण का सामना करने के लिए पश्चिम से हथियारों की मांग जारी रखी हुई है। उनकी सरकार ने हथियारों की आपूर्ति से इनकार करने के जर्मन और इजरायल के निर्णय की आलोचना की है।

यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति के मामले में अब अधिक देश शामिल हो गए हैं, जैसे कि नॉर्वे, जिसने मंगलवार को 22 हॉवित्जर और अन्य गोला-बारूद भेजने का दावा किया था। अमेरिका ने मंगलवार को यूक्रेन को 700 मिलियन अमरीकी डालर के सैन्य सहायता पैकेज के एक हिस्से के रूप में चार एम142 हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (HIMRAS) की मंजूरी दे दी है।

जॉनसन की तरह, बाइडेन ने भी द न्यू यॉर्क टाइम्स में एक राय में दावा किया है कि यूक्रेन को अधिक हथियार रूसी आक्रमण का विरोध करने और बातचीत की मेज पर इसे मजबूत बनाने में मदद करेंगे।

साभार : पीपल्स डिस्पैच 

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