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महिला विरोधी विज्ञापनों को रोका जाना क्यों जरूरी है?

इस तरह के डबल मिनिंग वाले विज्ञापन, जोक्स, सेक्ज़िम, टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी, विक्टिम ब्लेमिंग और महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं पर लोगों के व्यवहार को साधारण बना देते हैं। ये एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं जिसमें यौन हिंसा और बलात्कार की घटनाओं को सामान्य मान लिया जाता है। 
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आख़िरकार सरकारी आदेश और कंपनी की माफ़ी के बाद परफ्यूम ‘शॉट’ का विज्ञापन विवाद अब समाप्त हो गया है। क्रिएटिविटी के नाम पर बेहूदगी परोसता ये विज्ञापन रेप की मानसिकता को बढ़ावा देने जैसा था। इस विज्ञापन को सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना और भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। हालांकि सवाल अब भी बरकरार है कि भारतीय विज्ञापन कॉउंसिल के तय कोड के बावजूद विज्ञापन का यह कंटेंट जारी कैसे हुआ? क्या रेप और महिला हिंसा की मानसिकता को लेकर आज भी हमारा समाज इतना ही अंसवेदनशील है कि इसे मनोरंजन के नाम पर हल्का बनाकर प्रस्तुत कर दिया जाए?

बता दें कि इस तरह के डबल मिनिंग वाले विज्ञापन, जोक्स, सेक्ज़िम, टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी, विक्टिम ब्लेमिंग और महिलाओंके खिलाफ हिंसा की घटनाओं पर लोगों के व्यवहार को साधारण बना देते हैं। ये एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं जिसमें यौन हिंसा और बलात्कार की घटनाओं को सामान्य मान लिया जाता है। महिलाओं की स्वायत्ता को कुचलकर उनके ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा की घटनाओं के प्रति असंवेदनशीलता जाहिर की जाती है। 

क्या है पूरा मामला?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, परफ्यूम ‘शॉट’ के दो विज्ञापनों की एक सीरीज़ इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच खेले जा रहे पहले टेस्ट मैच के दौरान ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर देखने को मिली थी। इस विज्ञापन में इस्तेमाल किए डायलॉग्स तो हम आपको नहीं बता सकते, लेकिन इतना जरूर बता सकते हैं कि दोनों विज्ञापनों में साफतौर पर पहली नज़र में देखने पर महिला के साथ जबरदस्ती गैंगरैप जैसी कहानी देखने को मिलती है। जहां लड़की के चेहरे के भाव से पहले प्रॉडक्ट के प्रमोशन के लिए इस्तेमाल की गई पंचलाइन भी इसी तरह की स्थिति को जाहिर करती है। 

विज्ञापन में डबल मिनिंग बातें हैं जहां लड़की और प्रॉडक्ट के साथ-साथ होने की वजह से लड़की को ‘हासिल’ करने वाला संदेश भी दिया जा रहा है। पूरे विज्ञापन में डबल मीनिंग बातों का इस्तेमाल कर टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी और रेप कल्चर को प्रमोट करता दिखाया गया है। गैंगरेप जैसी हिंसा को सामान्य और सहज बनाने का संदेश दिया जा रहा है। कुल मिलाकर सोशल मीडिया पर मौजूद इन विज्ञापनों की दोनों वीडियो में कूल बनने और वर्ड प्ले करने की वाहियात कोशिश के साथ सामूहिक बलात्कार की झलक देखने को मिलती है जिसे समझकर आम जनता और कुछ सेलेब्रिटी ने इसके बारे में ट्वीट किया और उसके बाद सरकार से प्रतिबंध की मांग की गई।

महिला आयोग और सेलिब्रिटिस की कड़ी आपत्ति

दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को पत्र लिखकर मीडिया पर चलाए जा रहे इस महिला विरोधी विज्ञापन को हटाए जाने की मांग की थी।आयोग ने शनिवार, 4 जून को कहा कि विज्ञापन से ‘सामूहिक बलात्कार की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है’ और मामले में दिल्ली पुलिस को नोटिस भी जारी किया गया है। 

द मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, ठाकुर को लिखे अपने पत्र में डीसीडब्ल्यू की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने के लिए मंत्रालय से तत्काल कार्रवाई की मांग के साथ जांच और संतुलन सुनिश्चित करने की बात सामने रखी थी। आयोग की ओर से लिखे पत्र में कहा गया था, "यह विज्ञापन स्पष्ट रूप से महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ यौन हिंसा को बढ़ावा दे रहा है और पुरुषों में एक बलात्कारी मानसिकता को प्रोत्साहित कर रहा है। आयोग ने लिखा है कि विज्ञापन शर्मिंदा करने योग्य है और इसे मास मीडिया पर चलाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"

मालीवाल ने कहा था, "यह कैसी रचनात्मक प्रक्रिया है जो विषाक्त पुरुषत्व को सबसे खराब रूप ढंग से बढ़ावा देती है और सामूहिक बलात्कार की संस्कृति को प्रोत्साहित करती है? प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए, ऐसे विज्ञापनों को बंद कर दिया जाना चाहिए। मालीवाल ने कहा था कि इस कंपनी पर सबसे कठोर जुर्माना लगाया जाना चाहिए। इस मामले में और समय बर्बाद किए बिना दिल्ली पुलिस और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।

मालूम हो कि स्वाति मालीवाल के अलावा एक्टिविस्ट योगिता भयाना, अभिनेता फरहान अख्तर, प्रियंका चोपड़ा, ऋचा चड्ढा और स्वरा भास्कर समेत कई जानी-मानी हस्तियों ने विज्ञापनों के जरिये ‘सामूहिक बलात्कार की संस्कृति’ को बढ़ावा देने को लेकर बॉडी स्प्रे ब्रांड ‘लेयर’ की आलोचना की थी।

कंपनी ने मांफी मांगी

कई लोगों ने विज्ञापन को लेकर भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) से भी सवाल किए थे। जिसके बाद ASCI ने संज्ञान लेते हुए कंपनी को नोटिस जारी करने की बात कही थी। एक ट्वीट में ASCI ने लिखा था, "हमें टैग करने कि लिए शुक्रिया। ये विज्ञापन ASCI कोड का गंभीर उल्लंघन कर रहा है और जनहित के खिलाफ है। हमने तत्काल कार्रवाई की है और विज्ञापनदाता को ये विज्ञापन सस्पेंड करने के लिए सूचित किया है। इसपर जांच अभी लंबित है।

सोशल मीडिया पर तमाम अलोचनों के बाद लेयर शॉट कंपनी ने अपने ट्विटर हैंडल से एक माफ़ीनामा जारी करते हुए कहा कि हम सभी को सूचित करना चाहते हैं कि उचित और अनिवार्य मंजूरी के बाद ही हमने विज्ञापन प्रसारित किया है। हमारा किसी की भावनाओं को आहत करने का कोई इरादा नहीं था और न ही किसी भी प्रकार की गलत संस्कृति को बढ़ावा देने का इरादा था। हम विज्ञापन के लिए माफी चाहते हैं, साथ ही हम अपने मीडिया सहयोगियों से इस विज्ञापन के प्रयोग न करने का अनुरोध करते हैं। 

मानसिकता में बदलाव की जरूरत

गौरतलब है कि विज्ञापनों का हमारे दिमाग पर गहरा और लंबा असर होता है। कई बार कूल डूड बनने, कुछ नया करने या दूसरों पर प्रभाव डालने की कोशिश में नासमझ लड़के गलत कदम उठा लेते हैं। उन्हें सेक्स एजुकेशन नहीं होती। सेक्शुएलिटी उनके लिए नई उत्सुकता वाली को चीज होती है। जिसे वह आज़मा कर देखने की चाहत में कुछ और ही कर जाते हैं।

साल 2019 से 2021 के बीच भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ ग्रीवलांस अगेन्स्ट मिसलीडिंग एडवर्टाइजमेंट (GAMA) पोर्टल पर 6154 शिकायतें दर्ज की गईं। इनमें 2021 में 948 तो वहीं 2020 में 1790 शिकायतें दर्ज हुईं। वैसे ऐसे कई टीवी शो और विज्ञापन हैं जो कहीं ना कहीं पि़तृसत्ता को बढ़ावा देने के साथ ही महिलाओं की छवि को गलत ढंग से पेश करते हैं, लंबे समय से औरतों के प्रति छोटी, असंवेदनशील और भेदभाव की मानसिकता दिखाते आ रहे हैं। लेकिन अब बड़ी बात ये है कि वक्त तो आगे बढ़ रहा है, लेकिन इस तरह के विज्ञापनों का स्तर और पिछड़ता ही जा रहा है।विज्ञापन ही नहीं फिल्मों के जरिए भी पुरुषों की टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी और महिलाओं की रूढ़ीवादी छवि दिखाई जाती रही है।

लेकिन अब समय आ गया है कि इन तमाम कंपनियों, निर्देशक-निर्माताओं को समझना होगा कि महिलाओं का मजाक उड़ाकर रेप कल्चर को बढ़ावा देकर वो अपना सामान या फिल्मों को नहीं चला पांएगे। महिलाएं अब जागरूक हैं और अपने विरोध के हक़ को बखूबी पहचानती भी हैँ। इस सब से इतर अब हमें ऐसे विज्ञापनों के आने और प्रतिबंध लगने से ज्यादा इंडस्ट्री के रवैय्ये और मानसिकता को बदलने की दिशा में बात करने की आवश्यकता है।

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