चुनावी कुंभ: उत्तराखंड के डॉक्टरों की अपील, चुनावी रैलियों पर लगे रोक

कोविड की तीसरी लहर से जुड़ी आशंकाएं ठीक हमारे सामने हैं। उत्तराखंड में पिछले 4 हफ्तों में कोविड संक्रमण दर में 4 से 5 गुना तक इजाफा हुआ है। जबकि देशभर में एक हफ्ते में 500% तक कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ी है।
3 जनवरी को आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल देहरादून में विशाल जनसभा को संबोधित करके गए। राज्य के लोगों के लिए बड़े ऐलान करके गए। लेकिन 4 जनवरी को ट्विटर पर उनके कोरोना संक्रमित होने की खबरों ने सबको सकते में डाल दिया। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि जो भी उनके संपर्क में आए हों, खुद को आइसोलेट कर लें और टेस्ट करवाएं।
चुनावी रैली में हज़ारों की भीड़ से गुज़रते केजरीवाल का ये निवेदन जायज़ है, लेकिन ओमिक्रॉन के संकट से गुज़रते समय में भी ये चुनावी रैलियां भी क्या जायज़ हैं? तस्वीरें बताती हैं कि अरविंद केजरीवाल ने मास्क नहीं पहना था। सोशल डिस्टेन्सिंग का तो सवाल ही नहीं था।
I have tested positive for Covid. Mild symptoms. Have isolated myself at home. Those who came in touch wid me in last few days, kindly isolate urself and get urself tested
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 4, 2022
4 जनवरी को खटीमा में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने जनसभा की। मंच पर मौजूद किसी नेता ने मास्क नहीं पहना था। तस्वीर साभार- उत्तराखंड DIPR
चुनावी कुंभ
उधर, उधमसिंह नगर के खटीमा में आज नितिन गडकरी ने चुनावी सभा की। उनके साथ राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता शामिल थे। चुनावी रैली के लिए बुलाई गई भीड़ भी मौजूद थी। मंच पर मौजूद नितिन गडकरी, पुष्कर सिंह धामी समेत ज्यादातर नेता बिना मास्क के थे।
खटीमा एक बेहद छोटी सी जगह है। जहां के अस्पतालों के बीमार रहने की खबरें स्थानीय मीडिया में आती रहती हैं। गंभीर बीमार को इलाज के लिए 75 किलोमीटर दूर हल्द्वानी तक आना पड़ता है।
उत्तराखंड में अगले एक-दो महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह समेत सभी दिग्गज नेता बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां कर रहे हैं।
9 जनवरी को कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा के अल्मोड़ा और पौड़ी में रैली की तैयारी चल रही है। जबकि प्रियंका के आज खुद को आइसोलेट करने की खबरें भी हैं। उनके परिवार और स्टाफ के लोग संक्रमित पाए गए हैं।
मौजूदा परिस्थितियां पिछले वर्ष हरिद्वार कुंभ की याद भी दिलाती हैं। जब कुंभ को सांकेतिक रखने की जरूरत थी लेकिन साधु-संतों के मन की बात कहकर कुंभ पर जुटने वाली भीड़ पर रोक नहीं लगाई गई। पूरे देश में कोरोना से होने वाली मौतों का भयानक सिलसिला चल पड़ा था।
इस समय चुनावी कुंभ चल रहा है।
‘चुनाव आयोग दखल दे’
उत्तराखंड में कोविड डाटा का विश्लेषण कर रही संस्था एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल कहते हैं “राज्य में पिछले 4 हफ्तों में कोविड केस और संक्रमण दर में 4 से 5 गुना तक इजाफा हुआ है। इन परिस्थितियों में 3 जनवरी को आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल देहरादून में एक विशाल जनसभा को संबोधित करके गए। पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ उनकी मुलाकात हुई। ये चुनावी रैलियां अपने आप में सुपर स्प्रेडर का काम करने में सक्षम हैं। ऐसी परिस्थितियों में चुनाव आयोग से निवेदन है कि वे इस किस्म की सभी चुनावी रैलियों को सभी दलों के लिए प्रतिबंधित करें और राजनीतिक दलों को ये दिशा-निर्देश दें कि वे अन्य माध्यमों से और छोटी सभाओं के ज़रिये प्रचार-प्रसार करें”।
अनूप कहते हैं “देश ने कुछ महीनों पहले ही कोविड की दूसरी लहर देखी है। ओमिक्रॉन के खतरे से देश को बचाने के लिए ये बहुत जरूरी है कि जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां इस तरह की विशाल राजनीतिक रैलियों को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए”।
2 जनवरी को हरिद्वार में मुख्यमंत्री धामी के कार्यक्रम में जुटी भीड़, तस्वीर साभार- उत्तराखंड DIPR
टीवी-सोशल मीडिया के ज़रिये कर लें चुनाव प्रचार
देहरादून के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. मनोज उप्रेती कहते हैं कि कोविड की थर्ड वेव से निपटने के लिए हमारी तैयारियां पूरी हैं। लेकिन सार्वजनिक जगहों पर लोग इकट्ठा हों और चुनावी आयोजन हों, ये अच्छी बात नहीं है।
“इस समय देश के हालात को देखते हुए ये ठीक नहीं है। जहां इस तरह का जमावड़ा होगा, संक्रमण तेजी से फैलेगा। डेल्टा की तुलना में कोविड का ओमिक्रॉन वेरिएंट कई गुना ज्यादा संक्रामक है। हालांकि ये ज्यादा गंभीर तौर पर बीमार नहीं कर रहा और बीमार व्यक्ति जल्द ठीक हो रहा है”।
“एक डॉक्टर होने के नाते हम कहेंगे कि इस तरह की रैलियां, पार्टीज और शादियों जैसे आयोजन नहीं होने चाहिए। लोगों को समझदार होना चाहिए कि इन रैली में शामिल न हों। चुनाव से संबंधित रैली अगर टीवी के माध्यम से किये जाएं तो लोग इसे ज्यादा पसंद करेंगे। राजनीतिक दल ये घोषणा करें कि जनता की जिम्मेदारी हमारे ऊपर है और हमने कोरोना की दूसरी लहर का दर्द देखा है। इस तरह के कोई भी आयोजन न किए जाएं तो बेहतर होगा”।
कोविड एसओपी का क्या?
उत्तराखंड की मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या कहती हैं कि चूंकि राज्य में अभी चुनाव आचार संहिता लागू नहीं है इसलिए राज्य निर्वाचन आयोग इस पर कोई कदम नहीं उठा सकता है।
ओमिक्रॉन के खतरे को देखते हुए 25 दिसंबर से राज्य में नाइट कर्फ्यू लगा दिया गया है। कोविड से जुड़ी सावधानियां न बरतने पर आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कार्रवाई करने का प्रावधान है। साथ ही महामारी अधिनियम 1897 और आईपीसी की धारा 188 के प्रावधानों के तहत कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जा सकती है।
कोविड एसओपी के मुताबिक सभी सार्वजनिक स्थलों पर कोविड अनुरूप व्यवहार जैसे कि सामाजिक दूरी, मास्क पहनना जैसे नियम शामिल हैं।
राज्य के आपदा प्रबंधन सचिव एसए मुरुगेशन से ओमिक्रॉन के खतरे के बीच चुनावी सभाओं के आयोजन पर बात करने की फोन पर लगातार कोशिश की गई। वे हर बार व्यस्त बताए गए।
देश के 5 राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में फरवरी से मार्च के बीच चुनाव होने हैं। फरवरी में ही कोरोना की लहर के चरम पर पहुंचने के अनुमान है। ऐसे में चुनाव का होना और उससे भी ज्यादा बड़ी मुश्किल चुनावी रैलियों का होना है।
क्या देश की बड़ी राजनीतिक पार्टियां इसका कोई हल निकालेंगी!
(देहरादून स्थित वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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