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एक दलित श्रमिक अधिकार कार्यकर्ता की गिरफ़्तारी को लेकर पुलिस पर बर्बरता और यौन हिंसा के आरोप

उनके वकील जितेंदर कुमार द्वारा मेडिकल रिपोर्ट के अवलोकन पर पाया गया है कि उनके गुप्तांग और शरीर पर जख्मों की पुष्टि हुई है।
एक दलित श्रमिक अधिकार कार्यकर्ता की गिरफ़्तारी को लेकर पुलिस पर बर्बरता और यौन हिंसा के आरोप

दलित ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता नोदीप कौर को अपनी अगली जमानत की सुनवाई के वक्त हिरासत में रहते हुए  28 दिन पूरे हो जाएंगे। उन्हें 12 जनवरी को सिंघु बॉर्डर के समीप चल रहे प्रदर्शन स्थल से गिरफ्तार किया गया था। हिरासत में रहते हुए प्रताड़ना और यौन उत्पीड़न के आरोपों के बावजूद उनकी गिरफ्तारी की खबर मेनस्ट्रीम मीडिया से पूरी तरह से गायब है। इस बारे में पेश है मान्या सैनी की एक रिपोर्ट।

मजदूर अधिकार संगठन (एमएएस) की नेता एवं दलित मजदूर कार्यकर्त्ता नोदीप कौर को 12 जनवरी के दिन सिंघु बॉर्डर के पास चल रहे प्रदर्शन स्थल से गिरफ्तार कर लिया गया था। तब से अभी तक इस ट्रेड यूनियन नेता की जमानत याचिका को दो बार खारिज किया जा चुका है, यह सब उनके परिवार की ओर से हिरासत के दौरान पुलिसिया बर्बरता और यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगाने के बावजूद।

उनपर आईपीसी की धारा 307 (हत्या करने के प्रयास) सहित कई आरोप मढ़े गए हैं। उनके खिलाफ कुल तीन एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें उनपर घातक हथियार के साथ दंगा करने, गैरक़ानूनी जमावड़े, आपराधिक धमकी, सरकारी कर्मचारी पर हमला करने, जबरन वसूली, अवैध अतिक्रमण, छिनैती और आपराधिक बल प्रयोग करने जैसे आरोप लगाए गए हैं। आरोपों की गंभीरता का हवाला देते हुए दोनों ही सुनवाई के दौरान अदालत ने जमानत देने से इंकार कर दिया था।

उनके वकील अधिवक्ता जितेंदर कुमार द्वारा उद्धृत एक मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार उनके प्राइवेट अंगों एवं शरीर पर घाव के निशान पाए गए हैं। छात्र नेता और नोदीप कौर की बहन राजवीर कौर ने दावा किया है कि पुलिस हिरासत में उन्हें बेरहमी के साथ मारा-पीटा गया है, और जब पुरुष अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किया जा रहा था तो उनके कपड़े फटे हुए थे। हरियाणा पुलिस के अधिकारीयों ने इन सभी आरोपों से इंकार किया है।

किसान-मजदूर एकता 

नोदीप ने सिंघु बॉर्डर के पास स्थित कोंडली इंडस्ट्रियल एरिया के मजदूरों को किसानों के समर्थन में लामबंद करने का काम किया था, जिसमें उनका मुख्य नारा होता था ‘किसान मजदूर एकता जिंदाबाद।’ दिल्ली विश्वविद्यालय की अपनी आगे की पढ़ाई को पूरा करने के लिए धन की व्यवस्था के लिए, लॉकडाउन के बाद से नोदीप एक फैक्ट्री में पार्ट-टाइम नौकरी कर रही थीं। प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक एमएएस संगठन ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ रोजाना 300 श्रमिकों के साथ रैली निकालने का काम किया था।

सिख कवियत्री रूपी कौर द्वारा ट्विटर पर साझा किये गये एक साक्षात्कार में नोदीप के मजदूरों के हित में किसानों के विरोध प्रदर्शन की महत्ता को बताते हुए टिप्पणी की थी कि “वे एक दूसरे से आपस में पूरी तरह से सम्बद्ध हैं।” उनका यह भी कहना था कि कॉर्पोरेट के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार इन दोनों समुदायों को बेच रही है। इसके अलावा किसानों और मजदूरों, इन दोनों के ही आंदोलनों की सफलता को लेकर उनका मानना था कि इसका दारोमदार एक-दूसरे के सहयोग पर ही निर्भर है।

कई संगठनों का आरोप है कि नोदीप की गिरफ्तारी एक प्रकार से श्रमिकों के अपना संगठन बनाने के संवैधानिक अधिकार का हनन है, और दोनों समूहों की एकता को तोड़ने के इरादे से उन्हें निशाना बनाया गया है। एमएएस ने नए कृषि कानूनों को निरस्त किये जाने की आह्वान करते हुए कहा कि ये किसान विरोधी कानून हैं। इसके साथ-साथ संगठन, राज्य के गैर-संवैधानिक कार्यवाहियों और हिंसा के खिलाफ संघर्ष में एकजुट है।

एक राजनीतिक बंदी 

इस संबंध में तमाम कार्यकर्ता, छात्र संगठन, व्यापारी एवं किसान संघ कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन (सीएएसआर) के झन्डे तले एकजुट हुई हैं, जिनका दावा है कि नोदीप के खिलाफ लगाये गए सभी आरोप मनगढ़ंत और झूठे हैं।

समूह की ओर से जारी बयान में आरोप लगाते हुए कहा गया है कि नोदीप की गिरफ्तारी उनकी जातीय एवं लैंगिक पहचान के आधार पर भेदभावपूर्ण है। इसमें कहा गया है “एक युवा दलित महिला को निशाना बनाना, जिसने श्रमिकों की वाजिब हकों के लिए आवाज उठाने की हिम्मत दिखाई हो, को वर्दीधारी पुरुषों की निर्मम, नारी-विरोधी बर्बरता का सामना करना पड़ा है, जिन्होंने उसके खिलाफ यौन हिंसा का सहारा लिया है। एक ब्राह्मणवादी, पितृसत्तात्मक, हिन्दुत्ववादी जमीन पर पुलिस को हासिल अभयदान पूरी तरह से अभेद्य है।”

उन्होंने इस बात का भी दावा किया है कि नोदीप को करनाल जेल में हिरासत में रखने के दौरान उचित मेडिकल सुविधा भी नहीं मुहैया कराई गई है। कार्यकर्ताओं ने उनकी तत्काल बिना-शर्त रिहाई की मांग की है। खबर है कि किसान यूनियनों का एक प्रतिनिधिमंडल भी इसी मांग को लेकर सोनीपत पुलिस अधीक्षक से मिला है।

तमाम नागरिक समाज संगठन और आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया जैसे छात्र संगठनों ने बुधवार को किसानों के साथ अपनी एकजुटता का इजहार करते हुए मंडी हाउस से जंतर मंतर तक का एक नागरिक मार्च का आयोजन किया था। हालाँकि इसे दिल्ली पुलिस द्वारा रोक दिया गया था। प्रदर्शनकारियों द्वारा की जा रही मांगों में नोदीप कौर की रिहाई का मुद्दा भी शामिल था, जिसके बारे में उनका आरोप था कि वे एक राजनीतिक कैदी हैं और उन्हें झूठे आरोपों में फंसाया गया है। 

दलित कार्यकर्त्ता पंजाब के मुक्तसर स्थित एक किसान परिवार से सम्बद्ध हैं। उनकी माँ स्थानीय खेत यूनियन की सदस्या हैं और उनकी बहन राजवीर, दिल्ली विश्वविद्यालय में भगत सिंह स्टूडेंट्स फ्रंट की छात्र नेता हैं। एमएनएस के सदस्य के बतौर नोदीप ने उचित मजदूरी का भुगतान किये जाने की वकालत की थी और महिलाओं के शोषण के खिलाफ अभियान चलाया था।

नोदीप कौर की जमानत याचिका पर अगली सुनवाई 8 फरवरी को होनी है।

यह लेख मूल रूप से द लीफलेट में प्रकाशित हुआ था।

(मान्या सैनी सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ़ मीडिया एंड कम्युनिकेशन, पुणे में पत्रकारिता की छात्रा हैं और द लीफलेट के साथ इंटर्न के तौर पर सम्बद्ध हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Arrest of a Dalit Labour Rights Activist, Family Alleges Police Brutality and Sexual Violence

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