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गरीबों की थाली पर पड़ रही है महंगाई की मार

पिछले साल के लॉकडाउन की मार से अभी भी बुरी तरह से जूझ रहे आर्थिक स्तर पर कमजोर वर्ग, खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल की वजह से सबसे अधिक पीड़ित है।
गरीबों की थाली पर पड़ रही है महंगाई की मार

सिद्धांत चकावे, जो कि ठाणे के डोंबिवली के सोनारपाड़ा इलाके से ऑटो-रिक्शा चालक हैं, अपने चार लोगों के परिवार, जिसमें तीन वर्षीया बेटी, एक साल का बेटा और पत्नी हैं, के बीच में अकेले कमाऊ इंसान हैं। बढ़ती महंगाई के बीच इन दिनों सिद्धांत अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए भारी जद्दोजहद कर रहे हैं। वे कहते हैं “महंगाई मार रही है। आप सभी की कीमतों पर एक नजर डालकर देख लीजिये, वो चाहे सब्जियां हों या मछली के दाम हों। हमने तो अब सब्जियाँ खाना करीब-करीब बंद कर रखा है।”

सिद्धांत ऑटो-रिक्शा चलाते हैं, जिसे दो दिनों तक चलाने के लिए कम से कम 5 किलो गैस की जरूरत पड़ती है। सीएनजी की कीमत अब 50 रूपये प्रति किलो तक पहुँच चुकी है, और दो दिनों के लिए उन्हें 250 रूपये खर्च करने पड़ते हैं। उनकी प्रतिदिन की कमाई लगभग 500 रूपये है। उनकी कमाई से यदि सीएनजी की लागत को निकाल दें, तो सिद्धांत की मासिक आय तकरीबन 15,000 रूपये है। उनका कहना है “ऑटो-रिक्शा के रख-रखाव और बाकी की चीजों के लिए कम से कम 2,000 रूपये प्रति माह की जरूरत पड़ती है। इसलिए मेरी कमाई 12 से 14,000 रूपये प्रति माह की बैठती है।” अब उनकी पत्नी को इस 12,000 रूपये में चार लोगों के परिवार को संभालने का जिम्मा है।
इस बारे में सिद्धांत की पत्नी दिव्या चकावे का कहना था “मेरे लिए इस रकम में चीजों का प्रबंधन करना और बच्चों के लिए दूध, दवाईयां, सब्जी, चावल, दाल, आटा और बाकी की सारी चीजें खरीदना काफी कठिन काम हो गया है। इसके अलावा बिजली बिल, टीवी केबल का रिचार्ज इत्यादि भी भरने की जिम्मेदारी है। इस सब में मैं एक पैसा भी नहीं बचा पा रही हूँ।”

दैनिक जरूरतों की चीजों के दाम दिन-प्रतिदिन जिस रफ्तार से बढ़ते ही चले जा रहे हैं, उसने देश के गरीबों और हाशिये पर रह रहे घरों को बुरी तरह से प्रभावित कर रखा है। मुंबई और महराष्ट्र में शीघ्र ख़राब हो जाने वाले उत्पादों की कीमतों में तकरीबन 40 से 50% तक की उछाल देखने को मिल रही है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित चार्ट मुंबई के भीतर मौजूद शहर की सबसे बड़ी फल एवं सब्जीमंडी भाइखला मार्केट से लिए गए आंकड़ों के अनुसार सब्जी की कीमतों में वृद्धि को दर्शाता है।

इस चार्ट से पता चलता है कि खुदरा बाजार में कीमतें पिछले एक महीने की तुलना में कितनी बढ़ चुकी हैं। एक परिवार सप्ताह में कम से कम तीन बार सब्जियां और हफ्ते में एक बार मछली या मीट वगैरह पकाने की कोशिश करता है। चार लोगों के परिवार के लिए इन महंगे दामों पर इनमें से किसी भी सब्जी की खरीद करने पर अलग से 1,000 रूपये खर्च करने पड़ेंगे। एक ऐसे इंसान के लिए जिसे किसी तरह प्रति माह 12,000 रूपये के भीतर अपनी गुजर-बसर करनी हो, उसके लिए सब्जियों पर अलग से 1,000 रूपये खर्च करना काफी मायने रखता है। नतीजतन उन्हें अपनी थालियों में से सब्जियों या मीट को हटाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

इस स्थिति के लिए प्रमुख रूप से पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतें जिम्मेदार हैं। न्यूज़क्लिक ने इस बारे में मालूमात हासिल करने के लिए नासिक में टेम्पो मालिकों की यूनियन के नेता प्रकाश पाटिल से बातचीत की। उनका कहना था “हमारे पास अपनी दरों को बढ़ाने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा था। सब्जियां मुख्यतया नासिक, अहमदनगर, पुणे, सोलापुर, सतारा और सांगली जिलों से मुंबई, ठाणे और पुणे शहरों में ट्रांसपोर्ट की जाती हैं। हमने तकरीबन तीन महीने तक इंतजार किया, लेकिन डीजल की कीमतों में सिर्फ बढोत्तरी ही होती चली गई। इसलिए हमें अपनी ढुलाई की दरों को बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा।”

 माल ढुलाई की लागत के बारे में बेहतर समझ बनाने के मकसद से न्यूज़क्लिक ने अहमदनगर के पारनेर के उल्हास दोंडे से बातचीत की। उनके पास दो पिक-अप वाहन हैं, जिनसे हर रात सब्जियों को कल्याण ले जाया जाता है। उनका वाहन औसतन 11 किलोमीटर प्रति लीटर डीजल खर्च करता है। गाँव से कल्याण मार्केट की दूरी 185 किमी है। इसलिए दोंडे को प्रत्येक वाहन के लिए रोजाना 35 लीटर डीजल की जरूरत पड़ती है। डीजल की मौजूदा कीमत 89 रूपये प्रति लीटर होने की वजह से दोंडे को प्रति ट्रिप पर 3,150 रूपये का खर्च वहन करना पड़ता है।

उनका कहना था “मैं ड्राईवर को 12,000 रूपये मासिक वेतन देता हूँ। इसके अलावा वाहन की प्रति माह की ईएमआई 7,000 रूपये है। इसलिए जीप (पिकअप वाहन) को 30 दिनों तक चलाने पर मेरी लागत 1 लाख 15 हजार रूपये बैठती है। मुझे इससे प्रति माह कम से कम 1,25,000 रूपये कमाई करने की जरूरत है। इसलिए हमने प्रति ट्रिप रेट में बढ़ोत्तरी की है। लेकिन आप कितनी बढोत्तरी कर सकते हैं, यह सब सब्जियों की दैनिक आवक पर निर्भर करता है।”

आमतौर पर हर जीप मालिक की कोशिश इस बात को सुनिश्चित करने की रहती है कि उसे प्रति ट्रिप पर कम से कम 500 रूपये की कमाई हो जाए। इसलिए पहले पारनेर से कल्याण तक के लिए प्रति ट्रिप का भाड़ा 3,500 रूपये था। वहीँ पारनेर से भायखला तक के लिए किराया-भाड़ा 4,000 रूपये था। अब इसे उन्होंने कल्याण के लिए 4,000 रूपये और मुंबई में भायखला के लिए 4,500 रूपये तक बढ़ा दिया है। इसने माल की कीमतों में तेजी ला दी है - जैसे कि इस मामले में सब्जियों की कीमतों में।

संतोष मेस्त्री विभिन्न ठेकेदारों के लिए दिहाड़ी मजदूरी पर छोटा-मोटा बढ़ईगिरी का काम करते हैं। वे मुंबई के कफ परेड इलाके में बधवार पार्क की झुग्गियों में रहते हैं। संतोष अपने 15x10 फीट की झोपडी में अपनी पत्नी, दो बच्चों और सास के साथ रहते हैं। वे हफ्ते में पांच दिन रोजाना 400 से लेकर 500 रूपये कमा लेते हैं। इस प्रकार उनकी अधिकतम मासिक आय 12,000 रूपये तक है। उनकी पत्नी संगीता भी अपनी झोपड़ी के पास के तीन घरों में घरेलू कामगार के तौर पर काम करती हैं। वे प्रति माह 4,200 रूपये कमा लेती हैं। इस प्रकार परिवार की मासिक आय 16,000 रूपये तक हो जाती है।

उन्होंने बताया “पिछले साल लगभग छह महीनों तक हमारे पास कोई काम नहीं था, और हमें अपने पैतृक स्थान कोंकण में पलायन करना पड़ा। हम इस उम्मीद के साथ मुंबई वापस लौटे थे कि सब कुछ सामान्य हो जायेगा। लेकिन इन दिनों हमारे सामने दो मुद्दे बेहद गंभीर बने हुए हैं। पहला यह कि पहले की तरह अब काम-धाम नहीं रह गया है और दूसरा यह बढ़ती महंगाई है।”

इस मुद्रास्फीति ने समाज के कमजोर तबकों के लिए पौष्टिक भोजन की जरूरतों के संबंध में गंभीर परिणामों को उत्पन्न कर दिया है। खाद्य सुरक्षा को लेकर अन्न अधिकार मंच कई वर्षों से कार्यरत है। मंच की कार्यकर्त्ता उल्का महाजन ने बताया कि ‘हंगर वाच’ के लिए उन्होंने जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें संकट की गंभीरता को दिखाई देती है। उल्का का कहना था “भोजन से प्रोटीन को हासिल करने की दर में कमी आ चुकी है। इसकी असली वजह यह है कि बढ़ती मुद्रास्फीति के चलते इस वर्ग के पास बेहतर भोजन ले पाने की सामर्थ्य नहीं बची है। पहले लॉकडाउन ने और उसके बाद इस मुद्रास्फीति ने गरीबों के लिए दोहरी मार का काम किया है। अगले कुछ महीनों में कुपोषण के बढ़ने की आशंका है। मुझे उम्मीद है कि राज्य सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करेगी और सभी कमजोर वर्ग के लोगों को राशन मुहैय्या कराएगी, भले ही उनमें से किसी के पास दस्तावेज़ न हों।”

इस संघर्षरत वर्ग की मदद के लिए कोई भी सरकार किसी भी विशिष्ट योजना के साथ सामने नहीं आई है। न तो केंद्र और ना ही राज्य सरकार ही। महाराष्ट्र ने शिव भोजन थाली योजना में सब्सिडी बढ़ा दी है। इस योजना के तहत गरीब अपने इलाकों में स्टाल पर 5 रूपये में भोजन कर सकते हैं। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल के अनुसार “मजदूर वर्ग एवं अन्य कमजोर वर्ग 5 रूपये में भोजन कर सकते हैं। हम इस थाली में दो रोटियां, चावल, दाल और एक उपलब्ध सब्जी मुहैय्या करा रहे हैं। इससे परिवार के कम से कम एक सदस्य को मदद प्राप्त हो रही है, जो रोजाना काम के सिलसिले में घर से बाहर निकलता है।” 

भुजबल ने आगे कहा “यह सच है कि सब्जियों और खाद्य बाजारों में महंगाई की मार पड़ रही है। ऐसा पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि की वजह से हो रहा है। इस समस्या का समाधान केवल केंद्र सरकार के हाथ में है।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

As Food Inflation Hits the Poor, Vegetables and Animal Protein Cut from Diet

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