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असम : चाय बाग़ान खोल कर मज़दूरों की जान ख़तरे में डाल रही है सरकार?

असम में लगभग 70 हज़ार से अधिक मज़दूर 100 से अधिक चाय बाग़ान में काम करते हैं। इन सभी मज़दूरों को इस लॉकडाउन में बिना किसी सुरक्षा उपकरण के काम करने का आदेश दिया गया है। विभिन्न मज़दूर संगठनों ने इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा है कि सरकार मुनाफ़े के लिए मज़दूरों की जान ख़तरे में डाल रही है।
ASSAM TEA WORKER

असम के चाय बाग़ानों में पुनः कार्य शुरू कर दिया गया हैं, इसके लिए असम के गृह सचिव ने 1 अप्रैल को आदेश दे दिया था। लेकिन मज़दूर संगठनों के साथ ही चाय बाग़ान के नौजवान छात्रों के संगठन असम टी ट्राइब स्टूडेंट एसोसिएशन(ATTSA) ने इस फ़ैसले का विरोध किया है। मज़दूर संगठन एक्टू ने इसे मालिकों के मुनाफ़े के लिए मज़दूरों की जान को जोखिम में डालने वाला क़दम क़रार दिया है।

कोरोना महामारी के बढ़ते ख़तरे के मद्देनज़र सरकार ने पूरे देश में 25 मार्च से 14 अप्रैल तक के लॉकडाउन का आदेश दिया हुआ है। इससे देश के करोड़ो मज़दूरों के रोज़गार पर गहरा असर पड़ा है। चाय बाग़ान में काम करने वाले लाखों दैनिक मज़दूरों की रोज़ी रोटी छिन गई है। दूसरे राज्यों से आए मज़दूर इसमें फंस गए हैं और उनमें से बहुतों के सामने भुखमरी के हालात पैदा हो गए हैं।

असम में लगभग 70 हज़ार से अधिक मज़दूर 100 से अधिक चाय बाग़ानों में काम करते हैं। इन सभी मज़दूरों को इस लॉकडाउन में बिना किसी सुरक्षा उपकरण के काम करने का आदेश दिया गया है। ये मज़दूर भी मजबूरी मे काम कर रहे है क्योंकि उन्हें इस लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से ही किसी भी तरह का वेतन या मानदेय नहीं दिया गया है, जिसकी वजह से उनके सामने खाने का भी संकट आ गया है।

असम के गृह सचिव ने 1 अप्रैल 2020 से सभी चाय बाग़ानों में उत्पादन फिर से शुरू करने की दिशा में एक संशोधित नोटिस जारी किया। इसी तरह तमिलनाडु के बाग़ानों ने भी ज़िला कलेक्टर से यह कहते हुए काम शुरू कर दिया है कि यह केवल उद्योग नहीं है बल्कि कृषि है। वहां भी मज़दूरों के लिए किसी भी तरह की सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की गई है।

चाय बागानों में काम करने से कोरोना वायरस के संक्रमण का ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है। क्योंकि असम में कई बड़े चाय बाग़ान ऐसे हैं जहाँ एक समय में 2000 से 3000 श्रमिक काम करते हैं और वहाँ सामाजिक दूरी को बनाए रखना बहुत कठिन है।

मज़दूर संगठन और अन्य संगठन इस फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं। मज़दूर संगठन ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स (ऐक्टू) का कहना है, "चाय उत्पादन असहाय श्रमिकों के जीवन को ख़तरे में डालते हुए शुरू करना सरकार के लॉकडाउन के ख़िलाफ़ है। इस लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग की बात कही गई है। साथ ही इस बात की भी आशंका और संभावना है कि जल्द ही अन्य सरकार द्वारा इसी तरह का आदेश जारी किया जा सकता है। जिसमें पश्चिम बंगाल और अन्य चाय उत्पादक राज्यों में चाय बागानों में सामान्य प्लकिंग (पत्ते तोड़ने) और प्रसंस्करण कार्यों को फिर से शुरू करने के आदेश जारी किए जा सकते हैं। इनमें केवल केरल में ही श्रमिकों को मज़दूरी और लॉकडाउन में राशन के साथ छुट्टी की पेशकश की गई है। इसलिए वहां इस तरह की आशंका कम है।"

असम चाय मज़दूर संघ और ATTSA ने भी इस निर्णय का विरोध किया है। उन्होंने श्रमिकों की सुरक्षा चिंताओं पर सवाल उठाए हैं, चाहे सैनिटाइजिंग सुविधाएं या अन्य सावधानियां उपलब्ध जाने की बात हो।

चाय मज़दूर संघ के जनरल सेक्रेटरी रूपेश गोवाला ने कहा, "विशेष रूप से चाय बाग़ान में जब मज़दूर पत्ते तोड़ने जाएंगे, तब उनको स्वास्थ्य सुरक्षा की गंभीर चिंताएं हैं। हम मांग करते हैं कि मज़दूरों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है और इस तरह के किसी भी निर्णय लेने से पहले स्टेक होल्डर्स को ध्यान में रखा जाए।"

महामारी के बढते फैलाव को देखते हुए देशव्यापी बंद के परिणामस्वरूप, दोनों राज्यों में ट्रेड यूनियनों की मौजूदगी के मद्देनज़र, प्रबंधन को 25 मार्च 2020 के बाद बंद घोषित करना पड़ा था। ट्रेड यूनियन का कहना है कि केंद्र सरकार की अधिसूचना डिज़ास्टर मैनेजमेंट एक्ट -1 (ए) के तहत जो 29 मार्च 2020 को जारी हुआ वो स्पष्ट रूप से यह कहता है कि किसी भी उद्योग में लगे श्रमिकों के वेतन और मानदेय में इस लॉकडाउन के दौरान कोई भी कटौती नहीं होनी चाहिए। लेकिन, बाग़ान मालिकों ने क़ानून का उल्लंघन किया है और श्रमिकों को मज़दूरी और अन्य लाभों से वंचित किया है।

इस बीच, बंद से हो रहे नुक़सान को देखते हुए सीसीपीए ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि चाय उद्योग के लिए 1455 करोड़ का विशेष वित्तीय बेलआउट पैकेज जारी करे। इसके लिए वर्तमान बंद का हवाला दिया गया था।

ऐक्टू ने इस पर कहा, "सीसीपीए 150 साल पुराना उद्योग है जो अपने मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी नहीं देता है। इस बात को सब जानते हैं कि निर्यात और चाय की घरेलू खपत के माध्यम से भारी लाभ कमाता है।"

ऐक्टू ने असम और पश्चिम बंगाल में लॉकडाउन की अवधि के दौरान चाय श्रमिकों के लिए मज़दूरी और वेतन भुगतान करने की मांग की है और इस दौरान मज़दूरों को निकाले जाने का विरोध किया है।

इसके साथ ही ऐक्टू ने चाय क्षेत्र में कामकाजी आबादी के जीवन और आजीविका की कीमत पर असीम मुनाफाखोरी का भी विरोध किया है। इसके साथ ही लॉकडाउन की इस अवधि में सभी राज्यों के सभी वृक्षारोपण - बड़े या छोटे को तुरंत बंद करने की मांग की है।

आपको बता दें कि सोमवार रात मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की एक बैठक में चाय के बाग़ानों को 1 अप्रैल से पत्तियों को प्रोसेस करने की अनुमति देने का फ़ैसला किया था। क्योंकि चाय बाग़ानों के मालिकों का सरकार पर दबाव बढ़ रहा था कि वे इस लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों की मज़दूरी का भुगतान करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करे।

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