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असम: क्‍यों है एक स्‍वायत्त जिला परिषद के चुनाव में इतनी राजनीतिक उथल-पुथल

दिमा हसाओ जिले में अभूतपूर्व राजनीतिक उथल-पुथल हो रही है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि उसके उम्मीदवारों को जबरन बैठाया जा रहा है और मतदाताओं की संख्या में 'अप्राकृतिक वृद्धि' हुई है।
Assam
एनसीएचएसी सचिवालय। (प्रतीकात्मक तस्‍वीर। | तस्‍वीर साभार : फेसबुक)

दिमा हसाओ असम का एक पहाड़ी जिला है जो राज्य के दक्षिणी-मध्य भाग में स्थित है और अपनी कुदरती सुंदरता के लिए जाना जाता है जिसकी वजह से यह एक बहुत प्रतिष्ठित पर्यटन स्थल बन गया है। यह जिला प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर कोयला, रेत और अन्य संसाधनों के व्यापार के दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है।

इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, असम में सत्तारूढ़ दल यानि भारतीय जनता पार्टी जिला परिषद चुनाव में और खासतौर पर ऐसे किसी चुनाव में जिसकी चर्चा मुख्यधारा की मीडिया और समाज में ज्यादा नहीं है, बहुत अधिक ऊर्जा लगा रही है और प्रयास कर रही है।

नाम न छापने की शर्त पर एक युवा पेशेवर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “16 दिसंबर को, मेरे पास गुवाहाटी से हाफलोंग जाने का कन्फर्म टिकट था। लेकिन आधी रात को, मुझे टिकट रद्द करना पड़ा क्योंकि हाफलोंग में कई होटलों में फोन करने के बाद भी मुझे रहने की सुविधा नहीं मिली। मुझे होटल के कर्मचारियों ने बताया, कि दिमा हसाओ में जिला परिषद चुनाव की वजह से सभी होटल भाजपा के विधायकों और कार्यकर्ताओं से भरे हुए हैं। उन्हें कुछ आधिकारिक काम के लिए हाफलोंग जाना था और जिला परिषद चुनाव असम के मीडिया में चर्चा का एक गर्म विषय भी नहीं है जो आमतौर पर ऐसे जिला परिषद चुनावों के मामले में होता है।

दीमा हसाओ उत्तरी कछार हिल्स स्वायत्त परिषद (एनसीएचएसी) के अंतर्गत आता है, जिसका जिले पर आंशिक विधायी और कार्यकारी क्षेत्राधिकार है परिषद में समान संख्या में निर्वाचन क्षेत्रों (स्वायत्त परिषद निर्वाचन क्षेत्रों) से 28 निर्वाचित सदस्य (स्वायत्त परिषद या एमएसी के सदस्य) शामिल होते हैं। परिषद पांच साल के कार्यकाल के लिए एक सीईएम (उन 28 निर्वाचित एमएसी में से मुख्य कार्यकारी सदस्य) का चुनाव करती है। परिषद भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में निहित प्रावधानों के तहत बनाई गई है।

एनसीएचएसी के चुनाव अगले साल की शुरुआत में 8 जनवरी को होने हैं। इस बीच, जिले में एक अभूतपूर्व राजनीतिक उथल-पुथल देखी जा रही है जिसमें उम्मीदवारों ने कई जगहों पर अपने नाम वापस ले लिए हैं और छह निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवार निर्विरोध 'जीत' गए हैं। कांग्रेस ने चुनावी प्रक्रिया में भारी विसंगतियों और उनके उम्मीदवारों को दौड़ से हटने की धमकी देने का आरोप लगाया है।

इस वर्ष एनसीएचएसी चुनाव के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए, न्यूज़क्लिक ने इस वर्ष के चुनाव में शामिल कुछ लोगों से बात की जिनमें विपक्षी दल के सदस्य और स्वतंत्र उम्मीदवार शामिल थे।

डेनियल लैंगथासा पिछली बार हाफलोंग-1 निर्वाचन क्षेत्र से एनसीएचएसी के लिए चुने गए थे और उन्होंने इस बार भी उसी निर्वाचन क्षेत्र से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपनी उम्मीदवारी का पर्चा भरा था। पिछली बार जब वे जीते थे तो उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था लेकिन पिछले साल उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।

फ़ोन पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, लंगथासा ने कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी और राज्य सरकार का प्रभाव कई गुना बढ़ गया है और "उम्मीदवारों के बीच टिकटों के वितरण में इसका एक पहलू देखा गया है।"

“हमने इस बात के लिए एक आभासी लड़ाई देखी कि भाजपा का टिकट किसे मिलेगा जो अभूतपूर्व है। कुछ को छोड़कर, लगभग हर निर्वाचन क्षेत्र में लोगों के समूह सत्तारूढ़ दल से टिकट पाने के लिए ताकत दिखाने के लिए अपने नेताओं के पीछे लामबंद हुए। उन्होंने कहा कि यह सब नवंबर में शुरू हुआ था।''

लेकिन उनके मुताबिक बीजेपी की ओर से टिकट वितरण काफी अप्रत्याशित तरीके से किया गया. “कई सीटिंग एमएसी को दोबारा मौका नहीं दिया गया। उन्होंने कहा इसके अलावा, कई लोकप्रिय स्थानीय नेताओं को उम्मीदवारी से वंचित कर दिया गया और प्रमुख चेहरों को हटा दिया गया।” उदाहरण देते हुए उन्होंने आगे कहा, "निरंजन होजाई को उनकी पसंद के बजाय एक अलग निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवारी दी गई है।"

विशेष रूप से, उग्रवादी से राजनेता बने निरंजन होजाई, ज्वेल गोरलोसा और मोहेत होजाई को गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 1,000 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले में बरी र दिया था। उन्हें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत ने आतंकवादी संगठनों को हथियार खरीदने के लिए परिषद को दिए गए धन का इस्तेमाल करने के आरोप में दोषी ठहराया था। मोहेत होजाई एनसीएचएसी के पूर्व मुख्य कार्यकारी सदस्य (सीईएम) हैं जो परिषद में सर्वोच्च पद है। निरंजन होजाई और मोहेत होजाई दोनों अब भाजपा के सदस्य हैं। मोहेत होजाई हाल ही में सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हुए हैं और माईबांग पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे।

लंगथासा ने यह भी कहा कि असम सरकार की कैबिनेट मंत्री नंदिता गोरलोसा भी दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ रही हैं और वे भी उनकी पसंद के निर्वाचन क्षेत्रों से अलग हैं।

“वे स्थानीय भाजपा नेता जो अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं और उम्मीदवारी की उम्मीद कर रहे थे लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से नामांकन दाखिल करने से मना कर दिया गया था। लेकिन नाम वापसी के दिन, हमने उनमें से अधिकांश को पीछे हटते देखा। लैंग्थासा ने कहा कि इससे कई सवाल खड़े होते हैं।''

कांग्रेस ने उम्मीदवारों को जबरन नाम वापस लेने तथा मतदाताओं की संख्या में अप्राकृतिक वृद्धि का आरोप लगाया है

दूसरी ओर, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उनके छह उम्मीदवार 22 दिसंबर को नामों की जांच और नाम वापसी के दिन गायब थे।

कांग्रेस के जिला अध्यक्ष और एनसीएचएसी के पूर्व सीईएम समरजीत हाफलोंगबार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “इस बार पूरी प्रक्रिया अव्यवस्थित दिखाई दी। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 21 दिसंबर थी और अगला दिन जांच और नाम वापसी के लिए निर्धारित था। लेकिन, अजीब बात है कि वापसी के लिए कोई समय नहीं बताया गया था। 22 तारीख की रात को, हमने पाया कि हमारे छह उम्मीदवारों का पता नहीं चल सका और वे भी अंतिम पल में पीछे हट गए थे। माईबांग (क्षेत्र) के एक उम्मीदवार के रात 10 बजे के करीब नाम वापस लेने का रिकार्ड दर्ज किया गया। मैं रात 9.45 बजे तक उस उम्मीदवार के साथ था। वह माईबांग से हाफलोंग 15 मिनट में कैसे आ सकता है, जो 50 किलोमीटर दूर है?” माईबांग से हाफलोंग तक यात्रा करने में एक घंटे से अधिक समय लगता है और नाम वापसी की अर्ज़ी हाफलोंग में दाखिल की जाती है क्योंकि यह जिला मुख्यालय है।

अब तक, जिन छह निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस के उम्मीदवारों ने नाम वापस लिए हैं उनमें से छह में भाजपा के उम्मीदवार निर्विरोध 'जीत' गए हैं। हाफलोंगबार ने कहा, इसमें मोहेत होजाई भी शामिल है।

उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में "अप्राकृतिक वृद्धि" देखी है। “हमने 19,462 नए मतदाताओं के साथ मतदाता संख्या (एक निर्वाचन क्षेत्र में) में 16 प्रतिशत की भारी वृद्धि देखी। विशेष रूप से, पिछले चुनाव में 1123 नए मतदाताओं के साथ उसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या में लगभग 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। मतदाताओं की संख्या के लिहाज से यह स्वाभाविक वृद्धि है और 16 प्रतिशत की वृद्धि स्वाभाविक नहीं है। हमें हेरफेर का डर है और हम चुनाव के तुरंत बाद अदालत का दरवाजा खटखटाने की योजना बना रहे हैं।''

उन्होंने आगे कहा, “दिमा हसाओ में नए मतदाताओं को शामिल करने की सामान्य प्रक्रिया कड़ी है, जहां किसी भी नए आवेदक की जांच एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट, भूमि राजस्व अधिकारियों, ग्राम प्रधान और राजनीतिक दल के प्रतिनिधि की उपस्थिति में की जाती थी। इस बार, इसे उलट दिया गया है, और कोई नहीं जानता कि किसने आवेदन किया और किसने सत्यापन किया। हमने सुना है कि बीएलओ (ब्लॉक स्तर के अधिकारी) ने यह कार्य किया है। यदि यह सच है, तो पूरी प्रक्रिया संदिग्ध है, इसलिए हमने अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है।

कथित विसंगतियों के अलावा, समरजीत हाफलोंगबार ने भाजपा द्वारा अत्यधिक धन शक्ति के इस्तेमाल पर भी प्रकाश डाला। देबोलाल गोरलोसा पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए भाजपा के सीईएम हाफलोनबार ने कहा कि, “माहुर-टेमेंगलांग सड़क निर्माण में संपत्ति खोने वाले लोगों के लिए मुआवजे के रूप में लगभग 800 करोड़ रुपये दिए गए थे और इस पैसे में से 300 करोड़ रुपये देबोलाल गोरलोसा द्वारा निकाल लिए गए थे।” लाभार्थियों के बीच केवल 500 करोड़ रुपये वितरित किए गए थे।”

इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए, असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एपीसीसी) और दिमा हसाओ कांग्रेस प्रभारी अपूर्बा भट्टाचार्जी ने कहा कि, “नाम वापसी और जांच की पूरी प्रक्रिया बिल्कुल भी सही नहीं है। हमें लगा कि सेवानिवृत्त अधिकारी ने भाजपा कार्यकर्ता की तरह काम किया।

“कांग्रेस उम्मीदवारों द्वारा नाम वापस लेने का कोई इरादा नहीं है दरअसल उन्हें मजबूर किया गया है। हमारी पार्टी के कई उम्मीदवार पार्टी नेताओं के पास नहीं गए और उनके परिवारों को भी उनके बारे में कोई सुराग नहीं मिला लेकिन वे पीछे हट गए। क्या यह प्राकृतिक है? भट्टाचार्जी ने कहा कि हमें कोई डर नहीं है।''

“देबोलाल गोरलोसा के कार्यकाल के दौरान अनियंत्रित प्रशासन एक राजशाही की तरह था। हम लोकतंत्र को बहाल करने और हिल डिस्ट्रिक्ट में अकल्पनीय भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लड़ते हैं। भट्टाचार्य ने आरोप लगाया कि, पहाड़ी जिला संसाधन संपन्न है और गोरलोसा के माध्यम से, कई भाजपा नेता पैसे से लाभान्वित होते हैं।”

विपक्ष के तमाम आरोपों और सत्तारूढ़ भाजपा के मजबूत चुनाव अभियानों और प्रबंधन के साथ संविधान की छठी अनुसूची में निहित प्रावधानों के तहत यह पहाड़ी जिला 8 जनवरी को एक नई स्वायत्त परिषद के लिए मतदान करने जा रहा है।

मूल अंग्रेजी लेख को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Assam: How an Autonomous District Council Election Has Turned Into a Battlefield

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