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ज़्यादातर राज्यों में एक कार्यकाल के बाद गिरता है बीजेपी का वोट शेयर

हालांकि 'डबल इंजन' वाली सरकारों को फ़ायदेमंद बताकर प्रचारित किया जाता है, मगर आंकड़े कुछ और ही बताते हैं।
Modi
वाराणसी, 04 मार्च (एएनआई): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को वाराणसी में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सातवें और आखिरी चरण में पार्टी के उम्मीदवार के समर्थन में रोड शो करते हुए।

सत्ताधारी भाजपा के सामने एक समस्या है जिससे वह जूझ रही है - और लगता है वह इससे अनभिज्ञ भी है। या कम से कम वे दिखावा कर रहें कि यहां वह समस्या नहीं है। 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से राज्य विधानसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि बड़े राज्यों में, जहां भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सरकार बनाई, उसके बाद के विधानसभा चुनाव में उसका वोट शेयर गिरा है। ऐसा छह प्रमुख राज्यों में हुआ जबकि चार अन्य में इसके वोट शेयर में वृद्धि हुई।

यह इंगित करता है कि भाजपा के सत्ता में होने से - और जैसा कि माना जाता है कि केंद्र सरकार में होने से उसे लाभ मिलता है – यह धारणा मतदाताओं के गले नहीं उतरती है। पार्टी जो वादे करती है उसे पूरा करने में असमर्थ है या उन प्रमुख मुद्दों से निपटने में असमर्थ है जिनके बारे में लोग चिंतित हैं, या पार्टी की प्राथमिकताएं जो लोग चाहते हैं उससे काफी अलग हैं। शायद, ये सब मिलकर एक कारण बनता है जिसकी वजह से सरकार का बहुचर्चित 'डबल इंजन' मॉडल विफल हो गया नज़र आता है।

जिन राज्यों में वोट शेयर गिरा है

छह राज्य जहां बीजेपी का वोट शेयर विधानसभा चुनावों में लगातार गिरा है: वे हैं, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र। [नीचे चार्ट देखें]

इन सभी राज्यों में, 2014 में केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद दूसरा चुनाव हुआ है। छत्तीसगढ़, राजस्थान और एमपी में विपक्षी दल - कांग्रेस - मौजूदा भाजपा की हार के बाद सत्ता में आई। इसलिए, कम वोट शेयर में परिलक्षित होता लोगों का मोहभंग चुनौती देने की तुलना में कम सीटों पाने का कारण बना।

मध्य प्रदेश में भाजपा करीब 18 महीने बाद कांग्रेस विधायकों के एक वर्ग को तोड़ने और कांग्रेस की सरकार गिराने में सफल रही। लेकिन चुनावी फैसला 2018 में उनके खिलाफ था। 

महाराष्ट्र और बिहार में बीजेपी ने गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था। दोनों ही मामलों में पिछले चुनाव में भी यानी 2014 और 2015 में भी वही गठबंधन था। बिहार में, जनता दल (यूनाइटेड) के साथ यह गठबंधन टूट गया था लेकिन बाद में वापस गठबंधन बना और सत्ता में वापस आ गए। लेकिन बीजेपी को 2015 में जीती गई सीटों की तुलना में 2020 में कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे शायद उनका वोट शेयर कम हो गया। लेकिन यह सिर्फ एक सांख्यिकीय जिज्ञासा नहीं है - उन्होंने अपनी ताकत के आत्म-मूल्यांकन के आधार पर उन शर्तों पर गठबंधन किया था।

महाराष्ट्र में, चुनाव परिणाम आने के बाद शिवसेना के साथ उनका लंबे समय तक चलाने वाला गठबंधन टूट गया, और इसलिए, वे अब विपक्षी बेंच पर बैठे हैं।

इन राज्यों में भाजपा के पतन के पीछे एकमात्र सामान्य कारक यह है: कि न केवल चुनावी अभियानों के लिए बल्कि शासन के मामले में भी तथाकथित मोदी जादू पर निर्भरता बढ़ी है। इसका अर्थ है केंद्र सरकार की पहल पर निर्भरता, हिंदुत्व की राजनीति पर जोर, दिल्ली की दृष्टि के अधीन रहते राज्य की संघीय स्वायत्तता का दावा करने में असमर्थता। 

यह तर्क दिया जा सकता है कि अगर मोदी की नीतियां केंद्र में इतनी सफलतापूर्वक काम कर रही थीं - आखिरकार बीजेपी ने 2019 के आम चुनावों में दूसरी और भी बड़ी जीत हासिल की थी - तो वे राज्य के स्तर पर काम क्यों नहीं कर रही हैं? इसका उत्तर कई राज्यों में भाजपा की अस्वीकृति के तथ्य में निहित है। जाहिर है, महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की आय, मजदूरी, औद्योगिक ठहराव, भूमि हड़पने आदि सहित लोगों के सबसे करीबी मुद्दे अनसुलझे हुए हैं और वास्तव में और भी गंभीर होते जा रहे हैं। लोग महसूस कर रहे हैं कि मोदी के आने और राज्य चुनावों के समय बड़ी रैलियों को संबोधित करने का मतलब यह नहीं है कि ऐसे मुद्दों को स्थानीय सरकार द्वारा हल किया जाएगा।

जिन राज्यों में बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा

जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, असम, गुजरात, हरियाणा और झारखंड ऐसे चार राज्य हैं जहां दूसरे चुनाव में मौजूदा भाजपा का वोट शेयर बढ़ा है।

झारखंड में वोट शेयर बढ़ने के बावजूद भाजपा को बहुमत नहीं मिल सका और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन ने सरकार बनाई। ऐसा सीधे मुकाबले में हुआ है। हरियाणा में, भाजपा की सीटें 47 से घटकर 40 हो गईं, लेकिन एक क्षेत्रीय पार्टी (इंडियन नेशनल लोक दल) के पतन के कारण भाजपा, कांग्रेस और इनेलो के एक हिस्से के वोटों में वृद्धि हुई। परिणाम घोषित होने के बाद भाजपा ने अलग हुई जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई।

गुजरात में, भाजपा की सीटें निवर्तमान विधानसभा में 115 से घटकर 2017 के विधानसभा चुनावों में 99 हो गईं थी। लेकिन इसके वोट शेयर में करीब 1 प्रतिशत का इजाफा हुआ। यह मुख्य रूप से कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले का नतीजा था जिसने अपनी कमजोर नींव के चलते भी एक मजबूत लड़ाई लड़ी लेकिन असफल रही।

यह केवल असम ही था जहां 2021 के चुनावों में भाजपा ने एक निर्णायक जीत हासिल की है, जिससे उसके वोट शेयर में लगभग तीन प्रतिशत की वृद्धि हुई। इन दोनों राज्यों में जो बात समान है, वह है भाजपा द्वारा हिंदुत्व के ध्रुवीकरण के एजेंडे पर भारी निर्भरता। गुजरात में यह 2002 के सांप्रदायिक नरसंहार के बाद मोदी के उदय से निकला है, जिसने अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को घेटोज़ में रहने पर मजबूर कर उन्हे हाशिए पर डाल दिया। गुजरात पर भी मोदी सरकार का खासा ध्यान गया है। असम में भी, भाजपा ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के मुद्दे और विदेशी हथकंडे का इस्तेमाल समाज का ध्रुवीकरण करने और चुनावी लाभ हासिल करने के लिए किया है।

यूपी और उत्तराखंड में क्या होगा?

ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश, जहां 7 मार्च को मतदान समाप्त होगा, वह दो ध्रुवों के बीच बंटा है - भाजपा ने बड़े पैमाने पर हिंदुत्व के एजेंडे को आधार बनाया, हालांकि उसे मोदी सरकार की कुछ नीतियों जैसे कि मुफ्त खाद्यान्न वितरण से भी फायदा हो सकता है। यह योजना 2020 में कोविड महामारी के बाद शुरू हुई थी।

विपक्ष ने मुख्य रूप से मूल्य वृद्धि, बेरोजगारी, किसानों के संघर्ष और अपने वादों को पूरा करने में भाजपा की विफलता पर ध्यान केंद्रित किया है। इसने समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले एक वापस उभरते गठबंधन को जन्म दिया है जो नवगठित जाति समीकरणों से भी लाभान्वित होता दिख रहा है।

अगर मतदाताओं के मन में सपा के नेतृत्व वाला गठबंधन भाजपा के लिए एकमात्र चुनौती के रूप में उभरने में सफल रहा, तो भाजपा को हार का सामना करना पड़ेगा। जो भी नतीजे हों, लेकिन एक बात तो तय है कि उसका वोट शेयर 2017 में हासिल किए गए उल्लेखनीय 42 प्रतिशत से नीचे जाने की संभावना है।

उत्तराखंड में, भाजपा फिर से एक कठिन लड़ाई लड़ रही है, राज्य की राजनीति में सांप्रदायिक मुद्दों को डालने की कोशिश कर रही है ताकि उसकी जीत का मार्ग प्रशस्त हो सके। लेकिन, अन्य राज्यों की तरह, इसकी उदासीन नीतियों से असंतोष और इसे पूरा करने में असमर्थता ने इसे कांटे की टक्कर में खींच लिया है। इन सभी सीटों पर 10 मार्च को विजेताओं की घोषणा होगी।

अंग्रेजी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:- 

In Most States, BJP Votes Drop After a Term in Office

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