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विधानसभा चुनाव 2022: पहली बार चुनावी मैदान से विधानसभा का सफ़र तय करने वाली महिलाएं

महिला सशक्तिकरण के नारों और वादों से इतर महिलाओं को वास्तव में सशक्त करने के लिए राजनीति में महिलाओं को अधिक भागीदार बनाना होगा। तभी उनके मुद्दे सदन में जगह बना पाएंगे और चर्चा का विषय बन पाएंगे।
women in elections

हमेशा से महिलाओं का देश की राजनीति में अहम योगदान रहा है। वे समय-समय पर चुनाव जीतने और जिताने का पूरा माद्दा रखती हैं। हालांकि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें उम्मीदवार के तौर पर कभी सही प्रतिनित्व नहीं मिलता। हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। इन चुनावों में राजनीतिक दलों ने देश की आधी आबादी यानी महिलाओं के लिए अपने-अपने घोषणा पत्रों में कई वायदे किए तो वहीं महिलाओं को लुभाने के लिेए कई कैंपेन भी चलाए गए। लेकिन बात अगर महिलाओं को सीट देने की हो लगभग सभी पार्टियां कंजूसी ही करती नज़र आईं।

बात अगर इस बार 2022 के विधानसभा चुनाव में जीतने वाली महिलाओं की संख्या की करें तो उत्तर प्रदेश में ये सबसे अधिक 47 है, लेकिन ये पिछली बार की तुलना में कम है। वहीं पंजाब में 13 महिलाएं जीत कर विधानसभा पहुंची हैं। गोवा विधानसभा चुनाव में तीन महिला उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है, जबकि पिछली बार दो महिलाएं जीती थीं। तो वहीं मणिपुर विधानसभा के लिए 2022 के चुनावों में पांच महिलाएं चुनी गई हैं, जो राज्य के चुनावी इतिहास में अब तक का सबसे अधिक है।

आइए जानते हैं उन महिलाओं के बारे में जो पहली बार चुनावी मैदान से विधानसभा का सफर तय करने में कामयाब रहीं..........

जीवनजोत कौर

नवजोत सिंह सिद्धू और शिरोमणि अकाली दल के विक्रम सिंह मजीठिया जैसे दो दिग्गज नेता को हराकर आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार जीवनजोत कौर रातों-रात राजनीति के गलियारों में चर्चा का विषय बन गई हैं। जीवनजोत एक गैर-राजनीतिक परिवार से आती हैं और बीते दो दशकों से सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं। अमृतसर और आस-पास के इलाकों में उन्हें ‘पैड वुमन’ के नाम से जाना जाता है। यहां वह जेल में बंद महिला कैदियों को सैनिटरी पैड मुहैया कराने का काम करती हैं। उन्होंने 'इकोशी' नाम का एक प्रोजेक्ट भी चलाया है जिसके तहत वे रीयूज़ेबल सैनिटरी पैड को बढ़ावा देती है। इसके अलावा वे नशे से ग्रस्त बच्चों को सुधारने और पीड़ित परिवारों की काउंसलिंग करने पर काम भी करती हैं।

जीवनजोत आम आदमी पार्टी के साथ शुरू से ही वॉलेंटियर को तौर पर जुड़ी थीं। उन्हें कुछ समय पहले आप की तरफ से पंजाब का स्पोक्सपर्सन भी नियुक्त किया था। इसके अलावा वह आप की महिला विंग की प्रधान भी हैं। उन्होंने अमृतसर पूर्व सीट से पहली बार चुनाव लड़ा और तमाम दिग्गजों को पटखनी दी।

सविता कपूर

देहरादून जिले से इस बार इतिहास रचते हुए सविता कपूर ने शानदार जीत हासिल की है। ये यहां के लिए पहला मौका है जब आजादी के बाद कोई महिला विधायक चुनी गई हो। सविता को देहरादून कैंट सीट से बीजेपी ने टिकट दिया था। वो पूर्व विधायक स्वर्गीय हरबंस कपूर की पत्नी हैं। बीते साल दिसंबर 2021 में हरबंस कपूर का निधन हो गया था, जिसके बाद इस सीट से बीजेपी ने उनकी पत्नी सविता कपूर पर भरोसा जताया था और टिकट दिया था।

देहरादून के अतीत को देखें तो साल 1952 से अब तक दून में 76 महिला प्रत्याशी विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। जिले में वर्ष 1977 में पहली बार किसी महिला ने चुनावी मैदान में उतरने का साहस दिखाया था। तब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राजकुमारी ने चुनाव लड़ा था मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनाव में देहरादून जिले की चकराता सीट से मधु चौहान बतौर निर्दलीय मैदान में उतरी थी, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2012 और 2017 के चुनावों में भी कोई महिला यहां से जीत नहीं दर्ज कर पाई। लेकिन 2022 में इतिहास बना और सविता कपूर ने रिकॉर्ड बनाते हुए जीत हासिल की।

बेबी रानी मौर्य

उत्तराखंड के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर उत्तर प्रदेश के आगरा ग्रामीण से चुनाव लड़ने वाली बेबी रानी मौर्य इस वक्त सुर्खियों में हैं। उन्होंने बसपा की किरण प्रभा केशरी को आधे से अधिक 76,608 मतों से शिकस्त दी है। वो इससे पहले मेयर और महिला आयोग की अध्यक्ष समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुकी हैं, हालांकि विवादित बयान भी कई बार चर्चा का विषय रहे हैं लेकिन इस बार गवर्नर के पद के बाद विधायक का पद खासा ध्यान आकर्षित कर रहा है। माना जा रहा है कि उन्हें उप मुख्यमंत्री या विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है।

वैसे बेबी का बीजेपी से जुड़ाव पुराना है और यही वजह है कि बीजेपी ने आगरा ग्रामीण की सुरक्षित सीट से उन्हें उतारने के साथ ही उनके नाम के पीछे जाटव लगाने की रणनीति अपनाई। पार्टी का इसके पीछे मक़सद साफ़ था कि लोगों में ये संदेश जाए कि वे दलित हैं ताकि इलाके के दलित वोटों को साधा जा सके। ऐसे में बेबी रानी मौर्य की जीत को अप्रत्याशित कहा जा सकता है।

इरेंगबाम नलिनी देवी

मणिपुर में इरेंगबाम नलिनी देवी ने नेशनल पीपुल्स पार्टी की टिकट पर ओइनम विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर शानदार जीत हासिल की है। उन्होंने बीजेपी से अपने प्रतिद्वंदी लैशराम राधाकिशोर सिंह को कांटे की टक्कर देते हुए 442 वोटों से जीत हासिल की। 2022 के विधानसभा चुनाव में इरेंगबाम नलिनी देवी ने कुल 10,808 वोट हासिल किए हैं, जबकि बीजेपी के उम्मीदवार को 10,366 मतों पर हार का सामना करना पड़ा।

61 वर्षीय इरेंगबाम नलिनी देवी असल में एक गृहिणी हैं। उन्होंने बीजेपी के गढ़ में उसे मात देने के लिए लोकल मुद्दों पर अपनी पार्टी के सदस्यों के साथ जबरदस्त कैंपेन किया था, इसकी खूब चर्चा भी हुई थी और शायद यही वजह है कि वो शानदार जीत हासिल करने में कामयाब रहीं।

डॉ. पल्लवी पटेल

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने इस बार कौशांबी की सिराथू सीट से प्रदेश के दिग्गज नेता और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ डॉ. पल्लवी पटेल को मैदान में उतारा था। वह पहली बार चुनाव लड़ रहीं थीं। पल्लवी ने केशव प्रसाद मौर्य को 7337 मतों से हराकर एक अच्छी जीत हासिल की।

डॉ. पल्लवी पटेल बायो-टेक्नोलॉजी में स्नातक हैं। वे अपना दल पार्टी के संस्थापक स्वर्गीय सोनेलाल पटेल की बेटी हैं और अनुप्रिया पटेल की बड़ी बहन। पल्लवी पटेल फिलहाल अपना दल (कमेरावादी) की उपाध्यक्ष हैं और उनकी छोटी बहन अनुप्रिया पटेल अपना दल (एस) से नेता हैं जो बीजेपी के साथ गठबंधन में शामिल है। पल्लवी की जीत इसलिए खास है कि उनका उम्मीदवारी से लेकर प्रचार महज 14 दिन का रहा और वे लोगों से बिना लाग लपेट के जमीनी मुद्दों पर बातचीत करती दिखीं।

सगोलशेम केबी देवी

मणिपुर की नौरिया पखंगलक्पा सीट से सगोलशेम इस बार चुनावी मैदान में उतरीं और उन्होंने अपने विरोधी नेशनल पीपुल्स पार्टी के सोइबम सुभाषचंद्र सिंह को 531 वोटों से हरा दिया। बीजेपी में शामिल हुई 32 वर्ष की सगोलशेम मात्र 10वीं कक्षा तक पढ़ी हुई हैं। वो पेशे से उद्यमी हैं और अपने सामाजिक कार्यों के लिए जानी जाती हैं।

सगोलशेम अपने इलाके में एक मज़बूत महिला के तौर पर पहचान रखती हैं और कुल 6.4 करोड़ रुपए की संपत्ति की मालकिन हैं। इस बार के चुनाव में सगोलशेम ने 10,668 वोट हासिल किए हैं। सगोलशेम के प्रतिद्वंदी सोइबम साल 2017 में इसी सीट पर बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े थे और विजेता भी रहे थे। इस साल के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने पार्टी बदल ली थी।

महाराजी प्रजापति

उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण सीट अमेठी से चुनाव जीतने वाली महाराजी प्रजापति समाजवादी पार्टी के सिंबल पर पहली बार चुनाव लड़ीं और उन्होंने बीजेपी के डॉ. संजय सिंह को 18,096 वोटों से हरा दिया। महाराजी प्रजापति एक गृहणी हैं और बहुत ही कम बोलती हैं। अक्सर उन्हें जनसभाओं में अपनी दो बेटियों के साथ भावुक होते देखा गया।

महाराजी गायत्री प्रजापति की पत्नी हैं और सपा शीर्ष नेतृत्व की करीबी मानी जाती हैं। गायत्री प्रजापति भी सपा के संस्थापक रहे मुलायम सिंह और शिवपाल यादव के नज़दीकी माने जाते हैं। गायत्री फिलहाल कथित बलात्कार के मामले में जेल में बंद हैं। साथ ही उन पर कई भ्रष्टाचार के आरोप भी लग चुके हैं। ऐसे में महाराजी की जीत की वजह सहानुभूति वोट भी बताया जा रहा है।

नरेंद्र कौर भराज

पंजाब की राजनीति में ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी ने संगरूर विधानसभा क्षेत्र से अपनी पोलिंग एजेंट नरेंद्र कौर भराज को चुनावी मैदान में उतारा। नरेंद्र कौर भराज पेशे से किसान हैं और समाज के लिए कुछ करने का जज़्बा रखती हैं। जानकारी के मुताबिक उनकी चल-अचल संपत्ति महज़ 24,000 है।

संगरूर से नरेंद्र कौर ने विजय इंदर सिंगला को हराया जो कांग्रेस पार्टी से अब तक विधायक थे और पार्टी के दिग्गज नेताओं में उनकी गिनती होती है। नरेंद्र कौर क़ानून की पढ़ाई कर रहीं और साल 2014 से आम आदमी के साथ एक कार्यकर्ता के तौर पर जुड़ी हैं। वो स्थानीय लोगों के बीच अपने सामाजिक कामों को लेकर खासी लोकप्रिय भी हैं।

गौरतलब है कि महिला सशक्तिकरण के नारों और वादों से इतर महिलाओं को वास्तव में सशक्त करने के लिए राजनीति में महिलाओं को अधिक भागीदार बनाना होगा। तभी उनके मुद्दे सदन में जगह बना पाएंगे और चर्चा का विषय बन पाएंगे। महिलाएं सिर्फ सरकारी नीतियों की लाभार्थी बन अपना अस्तित्व नहीं मज़बूत कर सकतीं, उन्हें नीति निर्माता भी बनना होगा। तभी बदलाव मुमकिन है।

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