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अतीक-अशरफ हत्याकांड: कौन देगा इन सवालों के जवाब

पुलिक की कहानी पर लोगों को बहुत अधिक विश्वास नहीं है। कुछ सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब अभी तक नहीं मिले हैं।
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फ़ोटो साभार: PTI

अपराध की दुनिया से राजनीति में आये पूर्व सांसद-विधायक अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस हिरासत में हुई हत्या पर उठ रहे सवालों पर अभी तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया जा सका है। प्रयागराज में 15 अप्रैल की रात अतीक और उसके भाई अशरफ की हुई हत्या को लेकर अब तक जो भी बातें सामने आई हैं उन पर लोगों को विश्वास नहीं है।

मीडिया उमेश पाल हत्या कांड के बाद से अतीक पर निगाह रखे हुए था। उसका गुजरात की साबरमती जेल से यूपी के प्रयागराज आना और यहाँ तक उसकी हत्या तक मीडिया के कैमरों में क़ैद है।

मीडिया के वीडियो में यह स्पष्ट देखा जा सकता है कि साबरमती जेल से प्रयागराज तक अतीक की पहली यात्रा के दौरान सख्त सुरक्षा का इंतजाम था। लेकिन हत्या की रात पुलिस द्वारा सुरक्षा इंतजाम वैसा नहीं था।

साबरमती जेल से प्रयागराज यात्रा के दौरान बुलेटप्रूफ जैकेट पहने पुलिसकर्मी वज्र वाहन में अतीक को लेकर आये थे। जबकि बताया जा रहा है कि उमेश पाल हत्या की रिमांड के दौरान अतीक और अशरफ दोनों को एक हथकड़ी में बांधकर पुलिस द्वारा जीप में इधर-उधर घुमाया गया।

इसी दौरान जब पुलिस अतीक और उसके भाई को देर रात मोती लाल नेहरु अस्पताल मेडिकल जाँच के लिए लेकर पहुची थी। जहाँ पत्रकार बनकर आये हमलावरों - बांदा के लवलेश तिवारी (22), हमीरपुर के मोहित उर्फ सनी (23) और कासगंज के अरुण मौर्य (18) - ने अतीक और अशरफ की पुलिस की मौजूदगी में हत्या कर दी।

प्रयागराज अस्पताल के बाहर, क़रीब 15-20 राउंड गोली चलाने और हत्या की वारदात अंजाम देने बाद, इन हत्यारों ने मीडिया के सामने ही “जय श्री राम” के नारे लगते हुए आत्मसमर्पण कर दिया। बताया जा रहा है की उत्तर प्रदेश की एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस उस वक़्त तक हत्यारों को नहीं पकड़ सकी जब तक उन्होंने स्वयं आत्मसमर्पण करने की घोषणा नहीं की थी।

अब पुलिस द्वारा एक टीम बनाकर अतीक-अशरफ हत्याकांड की जाँच की जा रही है। हालाँकि इस टीम को अपना विश्वसनीयता बनाये रखने के उन सभी सवालों के जवाब देना होंगे जो इस हत्याकांड के बाद उठ रहे हैं।

तीन सदस्यीय टीम

गुणात्मक जांच और समयबद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए पर्यवेक्षकों की तीन सदस्यीय टीम (सिट) भी गठित की गई है। इस टीम का नेतृत्व प्रयागराज के अपर पुलिस महानिदेशक कर रहे हैं। टीम के अन्य दो सदस्य प्रयागराज के पुलिस आयुक्त और फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला, लखनऊ के निदेशक हैं। ऐसा एक बयान में बताया गया है।

एफआईआर के अनुसार, तीनों शूटरों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने अपराध की दुनिया में अपना नाम बनाने के लिए अतीक और उसके भाई की हत्या की है। पुलिस को आरोपियों ने बताया कि वे अतीक के गैंग का सफाया कर अपराध की दुनिया में अपनी पहचान बनाना चाहते थे।

हालाँकि हत्या के पीछे का सच तो जाँच के बाद ही सामने आएगा। क्योंकि अभी तक सुनाई गई कहानी पर लोगो को बहुत अधिक विश्वास नहीं है। कुछ सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब का इंतज़ार किया जा रहा ताकि अतीक-अशरफ हत्याकांड के पीछे का मक़सद समझा जा सके और यह मालूम हो की इस वारदात की पीछे मास्टर माइंड कौन है?

कुछ सवाल

इतने बड़े अपराध को बिना सोची-समझी योजना के अंजाम नहीं दिया जा सकता। तीन हमलावरों की इस टीम को एक साथ लाने वाला “सरगना” कौन है? किसने हमलावरों को “प्रेरणा और तार्किक” समर्थन दिया?

अतीक और अशरफ की हत्याओं के पीछे असली मकसद क्या है? हमलावरों अगर अपराध की दुनिया में बड़ा नाम बनाना चाहते थे, तो वे वारदात अंजाम देने के बाद भाग क्यों नहीं गए?

जब लवलेश तिवारी, मोहित उर्फ सनी और अरुण मौर्य ने अतीक और अशरफ को निशाना बनाया, तो उन्होंने पुलिस को क्यों बख्शा? क्या इसलिए कि वे जानते थे कि बदले की कार्रवाई में उन्हें नहीं मारा जाएगा? इन हमलावरों को पुलिसकर्मियों के बारे में इतना विश्वास कैसे मिला?

तीनो हमलावरों के पास “अत्याधुनिक हथियार” कहां से आए? वह भी एक नहीं, बल्कि चार हथियार।

अगर पत्रकार बनकर तीन लोग दो दिनों से अतीक पर नज़र रख रहे थे, तो यूपी पुलिस या स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) और ख़ुफ़िया विभाग को इस जानकारी क्यों नहीं मिली ?

क्या इतनी देर रात अतीक और अशरफ को मेडिकल जांच के लिए ले जाना जरूरी था? उन्हें दिन में क्यों नहीं ले जाया गया जब रौशनी काफी बेहतर थी ? या फिर मेडिकल जांच टीम को ही वहां क्यों नहीं बुलाया गया जहां उन्हें हिरासत में रखा जा रहा था।

तीनों हमलावरों को यह खुफिया जानकारी कैसे मिली कि अतीक और अशरफ को अस्पताल लाया जा रहा है? क्या उन्हें सिस्टम से किसी ने सुचना दी थी?

घटनास्थल पर मौजूद लगभग 18-20 पुलिसकर्मियों की एक मजबूत टुकड़ी मौजूद थी। लेकिन पुलिसकर्मियों ने हमलावरों को बेअसर करने के लिए अपने आग्नेयास्त्रों (फायर आर्म्स) का इस्तेमाल क्यों नहीं किया?

अतीक और अशरफ को अस्पताल ले जा रहे पुलिसवाले बुलेटप्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहने हुए थे?

अभी तक ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला है जिससे पता चले कि तीनों हमलावर पुराने परिचित थे, फिर इतने हाई-प्रोफाइल हत्याओं के लिए वे एक साथ कैसे आए?

यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके ऊपर अतीक और अशरफ की हत्या के बाद से चर्चा हो रही है। हत्या को क़रीब एक सप्ताह हो रहा है लेकिन अभी भी इन प्रश्नों का जवाब नहीं मिला है। सब की नज़रें जाँच टीम की रिपोर्ट पर लगी हैं। पुलिस को अपना इक़बाल और साख बचने के लिए अतीक और अशरफ की हत्या पर उठ रहे सवालों को जवाब देना होगा।

सरकार के दावे धराशायी

ऐसे समय में जब योगी आदित्यनाथ सरकार दिन रात अपनी "कानून एवं व्यवस्था" के क़सीदे पढ़ रही है, पुलिस हिरासत में अतीक और अशरफ की हत्या ने सरकार के दावों को धराशायी कर दिया है। क़रीब 50 दिन के अंदर 24 फरवरी से 15 अप्रैल के बीच, अपराधियों ने "कानून एवं व्यवस्था" को दो बड़ी चुनौती दी है।

प्रदेश पुलिस के इक़बाल दाँव पर है। क्यूँकि न उमेश पाल, (राजूपाल हत्या, 2005) के मुख्य गवाह को अतीक के कथित गैंग से बचाया जा सका। इसके अलावा अतीक व अशरफ की पुलिस हिरासत में हत्या हो गई। उमेश, अतीक और अशरफ तीनों की हत्या, पुलिस सुरक्षा के बीच हुई है। ऐसे में पुलिस और "कानून एवं व्यवस्था" पर सवाल उठना स्वभाविक है।

न्यायिक आयोग

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार, जिसको अतीक और उसके भाई अशरफ को पुलिस की सुरक्षा में मारे जाने के तरीके के लिए विपक्षी दलों से आलोचना का सामना करना पड़ा, ने इस घटना की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन भी किया है ।

आयोग की अध्यक्षता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरविंद कुमार त्रिपाठी करेंगे। सेवानिवृत्त जिला अदालत के न्यायाधीश बृजेश कुमार सोनी और यूपी के पूर्व डीजीपी सुबेश कुमार सिंह दो अन्य सदस्य होंगे।

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