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बनारस को धार्मिक उन्माद की आग में झोंकने का घातक खेल है "अज़ान बनाम हनुमान चालीसा" पॉलिटिक्स

हनुमान चालीसा एक धार्मिक पाठ है। इसे किसी को जवाब देने के लिए नहीं, मन और आत्मा की शांति के लिए पढ़ा जाता है। अब इसका इस्तेमाल नफ़रती राजनीति के लिए किया जा रहा है। दिक्कत यह है कि बहुत से पढ़े-लिखे लोगों ने अपने दिल-ओ-दिमाग़ के खिड़की और दरवाजों को बंद कर लिया है।
azaan vs hanuman chalisa
अज़ान बनाम हनुमान चालीसा पालिटिक्स के विरोध में सद्भावना सभा

दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी बनारस में धर्मिक उन्माद का नया दौर शुरू हो गया है। यह दौर है "अजान बनाम हनुमान चालीसा" पालिटिक्स का। इस घातक खेल की जद में सिर्फ बनारस ही नहीं, समूचा पूरा भारत है। समाजवादी नेता से भाजपाई बने बनारस के सुधीर सिंह ने कुछ रोज पहले यह कहते हुए अपने मकान पर एक बड़ा सा भोपू टांग दिया कि अजान के समय वह हनुमान चालीसा का पाठ बजाएंगे। सुधीर सिंह बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद को मुक्त कराने के लिए मुहिम चला रहे हैं। ज्ञानवापी मस्जिद के एक मामले में वह बादी भी हैं। कहते हैं, "बनारस के 101 मंदिरों में पांचों वक्त हनुमान चालीसा का पाठ होगा। हमने अपने घर की छत पर भोपू लगाकर हनुमान चालीसा पाठ शुरू कर दिया है। जिस वक्त अजान होगा, उसी वक्त हनुमान चालीसा भी बजेगा।"

बनारस में अजान बनाम हनुमान चालीसा पालिटिक्स तभी शुरू हो गई थी जब कर्नाटक और महाराष्ट्र में मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर पकड़ रही थी। कथित भाजपा नेता सुधीर सिंह पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में संकटमोचन मंदिर के पास स्थित साकेत नगर कॉलोनी में रहते हैं। वह अपने फेसबुक प्रोफाइल में भाजपा कार्यकर्ता के साथ माफिया विरोधी मंच के अलावा ‘श्री काशी विश्वनाथ मुक्ति आंदोलन’ का अध्यक्ष होने का दावा करते हैं।

imageबनारस में भाजपा नेता सुधीर सिंह के मकान छत पर लगा लाउडस्पीकर

सुधीर सिंह ने 12 अप्रैल 2022 को अपने फेसबुक पेज पर मकान की छत पर लगे भोपू से हनुमान चालीसा बजाते हुए एक वीडियो डाला। वीडियो में भोपू के साथ वह खुद भी हनुमान चालीसा गुनगुनाते नजर आ रहे हैं। कुछ ही देर में इनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। अखबारों की सुर्खियां बन गया। सुधीर दावा करते हैं, "श्री काशी मुक्ति आंदोलन संगठन की बैठक में लाउडस्पीकर से दिन में पांच बार हनुमान चालीसा बजाने का निर्णय लिया गया है। पहले हम सुबह संस्कृत भजनों के साथ उठते थे और अब जागते-सोते सिर्फ अजान सुनाई दे रही होती है। हमारे यह समझ में ही नहीं आ रहा कि यह काशी है या फिर काबा है। हम चाहते हैं कि सुबह-ए-बनारस की शुरुआत सुप्रभात और हनुमान चालीसा के साथ हो, ताकि काशी सिर्फ काशी बनी रहे, काबा में न बदल जाए। हमारी संस्था की योजना है कि बनारस के 101 मंदिरों में पांचों वक्त अजान के समय चालीसा पाठ बजाया जाए।"

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"शहर में सद्भाव बनाए रखने की जिम्मेदारी सिर्फ हिन्दुओं की नहीं है। हमारे हनुमान चालीसा बजाने का किसी ने विरोध नहीं किया है। चाहे वो हिन्दू हो या फिर मुसलमान। हम तो बस यही चाहते हैं कि गुमराह युवाओं के मन में हिन्दू धर्म के प्रति आस्था जागृत हो। बनारस में हमारी मुहिम असर दिखा  रही है। शहर की मस्जिदों से होने वाली अजान अब काफी धीमी हो गई है। हमने पहले ही आपत्ति दर्ज कराई थी कि अजान धीमी करिए, जिससे हमें तकलीफ न होने पाए।"

सुधीर सिंह बनारस के ऐसे शख्स हैं जो आए दिन कोई न कोई बितंडा जरूर खड़ा कर देते हैं। साल 2000 में वह उस वक्त अखबारी सुर्खियां बन गए थे जब उन्होंने ऐलान किया कि बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर से शिवलिंग और पार्वती की मूर्ति को मुक्त कराने के लिए वह आंदोलन चलाएंगे। इनकी डिमांड है कि मुस्लिम समुदाय के लोग ज्ञानवापी मस्जिद को कहीं और ले जाएं। हमें वहां पूजा-पाठ करने दें। दो साल पहले उन्हें उस वक्त गिरफ्तार किया गया था जब संकटमोचन मंदिर से विश्वनाथ मंदिर तक उन्होंने दंडवत यात्रा का एलान किया था। बनारस के पुलिस आयुक्त ए.सतीश गणेश कहते हैं, "हर किसी को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए हिदायत दी गई है। बनारस में कोई नई परंपरा शुरू करने की अनुमति कतई नहीं दी जाएगी। कानून तोड़ने वालों पर सख्त एक्शन होगा।"

संकटमोचन मंदिर के महंत आहत

‘अजान बनाम हनुमान चालीसा’ पॉलिटिक्स को बनारस में इसलिए हवा मिल रही है क्योंकि कि इसके रचयिता तुलसीदास हैं। उन्होंने बनारस में ही हनुमान चालीसा रचना की थी। साथ ही रामायण और विनय पत्रिका की भी। बनारस में तुलसी मंदिर है और घाट भी। तुलसीदास के समय का प्रसिद्ध अखाड़ा भी यहीं है। और तो और, वह विश्व प्रसिद्ध संकटमोटन मंदिर भी बनारस में ही है जिसके विग्रह को खुद तुलसीदास ने अपने हाथों से बनाया था। यहां हर साल आयोजित होने वाले शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में देश-दुनिया के तमाम सिद्धहस्त कलाकार जुटते हैं।

अजान और हनुमान चालीसा को लेकर वितंडा खड़ा किए जाने से संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र काफी आहत हैं। वह कहते हैं, "हनुमानजी को राजनीति से अलग रखना चाहिए। गोस्वामी तुलसीदास ने मुगलकाल में हनुमान चालीसा की रचना की थी। उस समय किसी को कोई आपत्ति नहीं थी और अब इसे सियासी औजार बनाया जा रहा है। अगर किसी को दिक्कत है तो पुलिस थाने में जाए या फिर कोर्ट में। हनुमानजी के नाम पर बितंडा खड़ा करने की जरूरत नहीं है। ये देश कानून और संविधान से चलता है। जिस तरह हर धर्म का अपना नियम है और विधान है, उसी तरह हनुमान चालीसा का भी नियम है। इसका पाठ तभी फलीभूत होगा जब किसी मंदिर अथवा विग्रह के सम्मुख खड़ा होकर कम से कम सौ बार पाठ किया जाए। आखिर इसे सिर्फ पांच बार ही क्यों पढ़ा जाए?"  

प्रो.मिश्र ‘न्यूजक्लिक’ से कहते हैं, "हनुमान चालीसा को किसी सियासत का एजेंडा बनाया जाना ठीक नहीं है। यह निहायत पवित्र और धार्मिक पाठ है। किसी को जवाब देने के लिए नहीं, इसे मन और आत्मा की शांति के लिए पढ़ा जाता है। अब इसका इस्तेमाल नफरती राजनीति के लिए की जा रही है। दिक्कत यह है कि बहुत से पढ़े-लिखे लोगों ने अपने दिल-ओ-दिमाग के खिड़की और दरवाजों को बंद कर लिया है। बनारस ऐसा शहर है जहां उन्मादियों के लिए कोई जगह नहीं है। अजान बनाम हनुमान चालीसा का कोई मतलब नहीं। भारत में हर किसी को अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ की आजादी है।"

ज्ञानवापी मस्जिद की देख-रेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतज़ामिया मसाजिद के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन कहते हैं, "कुछ लोगों के उन्मादी कृत्य से बनारस शहर के अमनपसंद लोगों की चिताएं बढ़ रही हैं। काशी में सालों से अजान हो रहा है। कभी किसी को परेशानी नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच अजान नहीं देने का निर्देश दिया था, जिसका विधिवत पालन किया जा रहा है। अजान भी उन्हीं मस्जिदों किया जाता है जहां पुलिस-प्रशासन की अनुमति होती है। रही बात विरोध की तो मुस्लिम समुदाय को भोपू के जरिए हनुमान चलीसा बजाने पर कोई एतराज नहीं है। शहर की फिजां चाहे जो भी खराब कर रहा हो, उस पर कड़ा एक्शन होना चाहिए। अगर हिन्दू समुदाय के प्रबुद्ध लोग इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं तो यह बहुत अच्छी बात है। तहे दिल से हम उन्हें मुबारकबाद देते हैं।"

चालीसा और महंगाई की रार

बनारस में सियासत का लाउडस्पीकर फिलहाल फुल वॉल्यूम में बज रहा है। भाजपा के कुछ समर्थक एक तरफ अपने घरों पर लाउडस्पीकर लगाकर हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे है तो दूसरी ओर, सपाई लाउडस्पीकर से महंगाई का पाठ कर रहे हैं। भाजपा नेता सुधीर सिंह को जवाब देने के लिए सपा नेता रविकांत विश्वकर्मा अपने घर की छत पर भोपू बांधकर चर्चित फिल्मी गाना" महंगाई डायन" बजा रहे हैं। रविकांत सपा के पूर्व पार्षद रहे हैं। वह वह कहते हैं, "अजान और आरती के समय हम महंगाई डायन वाला गाना नहीं बजाएंगे, क्योंकि हमारी आस्था सभी धर्मों में है। हनुमान चालीसा का पाठ आस्था का विषय है,  सियासत का नहीं। कोई नई परंपरा शुरू करने का नहीं है। हमें लगता है कि इसे बजाकर देश से बढ़ती महंगाई से बेहाल जनता का ध्यान भटकाया जा रहा है। लगातार महंगाई के कारण लोगों के घरों का बजट बिगड़ गया है। भाजपा को वोट देने वाले इस पार्टी के नेताओं को लानत-मलानत भेज रहे हैं और ताने भी मार रहे हैं। तेल की कीमतों में तेजी के कारण इन दिनों माल भाड़ा बढ़ने से हर चीज महंगी होती जा रही हैं। हम चाहते हैं जनता की मुश्किलें कम हों और बनारस में अमन-चैन कायम रहे।"

बनारस में अजान बनाम हनुमान चालीसा पाठ का बितंडा खड़ा करने वालों को समझाने के लिए इस विवाद में भगत सिंह यूथ फ्रंट भी कूद गया है। इस संगठन ने 16 अप्रैल 2022 को ईश्वर अल्लाह तेरो नाम-सबको सन्मति दे भगवान...की धुन बजाई। भगत सिंह यूथ फ्रंट के बैनरतले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सिगरा स्थित भारत माता मंदिर में रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान की धुन बजाकर एकता-अखंडता का संदेश प्रसारित किया। संगठन के अध्यक्ष हरीश मिश्रा उर्फ बनारस वाले मिश्रा कहते हैं, "हमारा संगठन शांति बनारस में अमन चाहता है। हम जनता में सद्भाव जगाने की कोशिश कर रहे हैं। बनारस को बना हुआ रस के रूप में देखते हैं। ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम...की धुन बनारस के सभी प्रमुख चौराहों पर बजाया जाएगा। हमें उम्मीद है कि शहर के अमनपसंद लोग हमारे मुहिम का समर्थन करेंगे।" इस कार्यक्रम में आबिद शेख, आशीष केसरी, अब्बास अली, कुंवर यादव, देवी प्रसाद यादव, प्रमोद कुमार, संदीप भारती, ऋषि श्रीवास्तव, रंजीत सेठ आदि प्रमुख लोग शामिल थे।

धर्म की लंपटगीरी

विश्वानाथ मंदिर के महंत राजेंद्र तिवारी को इस बात का रंज है कि चंद स्वार्थी लोग अजान बनाम हनुमान चालासा पालिटिक्स को हवा दे रहे हैं। वह कहते हैं, "हनुमान के बल का प्रयोग इस तरह से किया जा रहा है कि मानवता ही शर्मशार हो जाए। जो लोग धर्म के ठेकेदार बन रहे हैं और उन्हें अपने अराध्य की बहुत ज्यादा चिंता है तो वो मंदिरों में बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। दिक्कत यह है कि नफरत की खेती करने वाले लोग मस्जिदों में बैठकर हनुमान चालीसा पाठ करने पर आमादा है। हनुमान कोई मामूली देवता नहीं हैं। वह दुष्टों की मानसिकता को पहले ही पहचान लेते हैं। कालनेमी ने भी हनुमान को भ्रम में डालने का प्रयास किया था। हनुमानजी उसके कुचक्र को समझ गए और उसका वध कर दिया। जो लोग भगवान को भजने के बजाय भजाने में जुटे हैं उनका पर्दाफाश हनुमानजी ही करेंगे। असुर कालनेमी की तरह ही फिरकापरस्ती की सियासत करने वालों को वही दंड देंगे। हनुमान सबके साथ हैं। वह रुद्र हैं, शिव हैं और किसी जीव के साथ मतभेद नहीं करते। इनके सर्वनाश का गड्ढा भी हनुमानजी ही खोदेंगे। जब तक ये सत्ता में रहेंगे राष्ट्र अधोपतन की ओर अग्रसर होता रहेगा।"

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार अजान बनाम हनुमान चालीसा पालिटिक्स को धर्म की लंपटगीरी का करार देते हैं। वह कहते हैं, "हिन्दूवादी संगठन का यह सांप्रदायिक एजेंडा है, जिसे वह धीरे-धीरे आगे बढ़ाते जा रहे हैं। इसके पीछे उनके कई छिछले मकसद हैं। सांप्रदायिक नफरत फैलाने का मकसद यह है कि लोग महंगे डीजल-पेट्रोल और भीषण आर्थिक मंदी के मुद्दे को भुला दें। इन्हें पता है कि जनता का ध्यान भटकाने के लिए धार्मिक उन्माद से बड़ा कोई बितंडा नहीं हो सकता। अफसोस तो यह है कि पढ़े-लिखे समझदार लोग भी सांप्रदायिक रौ में बहते जा रहे हैं। लगता है उन्होंने भी अपनी तर्क शक्ति को गिरबी रख दिया है। बनारसियों को आत्मघाती एजेंडे में फंसाने की साजिश चल रही है। अजान कोई कुरान का हिस्सा नहीं। अजान एक तरह का अलार्म है। वह कोई धार्मिक पाठ नहीं है। वो अजान और नमाज के फर्क को नहीं समझ पा रहे हैं।"

प्रदीप कहते हैं, " हनुमान चालीसा एक धार्मिक पाठ है। इसे किसी को जवाब देने के लिए नहीं, मन और आत्मा की शांति के लिए पढ़ा जाता है। अब इसका इस्तेमाल नफरती राजनीति के लिए की जा रही है। दिक्कत यह है कि बहुत से पढ़े-लिखे लोगों ने अपने दिल-ओ-दिमाग के खिड़की और दरवाजों को बंद कर लिया है। कोई समझदार धर्म गुरु कभी इसके पक्ष में नहीं खड़ा होगा। चिंता की बात यह है कि अपने आराध्य़ की विशेष उपासना के दिन शोभायात्रा निकलाकर किसी दूसरे की इबादतगाह पर पहुंचकर भीड़ को हमलावर बना देना देश और समाज के लिए बेहद खतरनाक व आत्मघाती संकेत है।"

ऐसी भक्ति पहले क्यों नहीं जागी?

काशी के जाने-माने विचारक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ यह सवाल खड़ा करते हैं कि जो लोग इन दिनों हनुमानजी की भक्ति के नाम पर बितंडा खड़ा कर रहे हैं उनकी भक्ति पहले क्यों नहीं जागी थी? अजान को सालों से हो रही है, फिर ऐसी भक्ति पहले क्यों नहीं दिखाई। यह आस्था नहीं, पागलपन है। अगर आज अजान बंद हो जाएगी तो क्या वो हनुमान चालीसा का पाठ भी बंद कर देंगे?  हिन्दू धर्म के किसी ग्रंथ में यह नहीं लिखा है कि पांच वक्त हनुमान चालीसा पढ़ी जाए। आप चालीसा का पाठ कीजिए, लेकिन इसे सियासी हथियार न बनाइए।"

वरिष्ठ पत्रकार पवन मौर्य को इस बात की चिंता है कि बनारस में इन दिनों हर गली, हर गांव, हर मोड़ पर घृणा के राक्षस ठहाके लगा रहे हैं और उसके सामने प्यार और भाईचारे की राजनीति और संस्कृति लाचार नज़र आ रही है। वह कहते हैं, "एहसास होता है कि नफरत के रावण को हराने के लिए अब कोई राम आएगा ही नहीं। नफरत की राजनीति चरम पर है। इसी का नतीजा है "अजान बनाम हनुमान चालीसा" पालिटिक्स। बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की कोख से जन्म लेने वाले काशीवासी घृणा के इस तूफान में बह रहे हैं और निशाना बनाए जा रहे हैं निर्दोष नागरिक। दरिंदों की इस भीड़ को उकसाने वाले संतुष्ट हैं कि भीड़ 'दूसरों' को निशाना बना रही है।"

पवन कहते हैं, "सिर्फ बनारस ही नहीं, समूचा देश इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। खतरे में सिर्फ मुसलमान, पिछड़े और दलित ही नहीं, समूचा देश और उसका भविष्य है। आजादी के जिन शूरवीरों ने अपने खून से देश को सींचा था और एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की बुनियाद रखी थी, आज उसी गणराज्य की जड़ों में घृणा और नफरत का तेजाब डाला जा रहा है। जमाना जानता है कि अंधेरे की कोख से ही सूरज जन्म लेता है और मिनटों में अंधेरे के नामो-निशान को मिटा देता है। बनारसियत को जिंदा रखने के लिए इस शहर की आत्मा को लौटाना होगा। प्रेम और मुहब्बत की आत्मा और बुद्ध, अशोक, कबीर और रविदास की आत्मा।"

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