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बीएचयू : आखिरकार फिरोज़ खान ने दिया इस्तीफ़ा, लेकिन सवाल अभी बाक़ी!

फिरोज़ खान ने संस्कृत विद्या धर्म संकाय से अपना इस्तीफ़ा दे दिया है और कला संकाय को ज्वाइन कर लिया है। फिरोज़ खान के इस इस्तीफे को छात्रों के विरोध से जोड़कर दबाव के तहत लिया फ़ैसला माना जा रहा है।
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Image courtesy: Siasat

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) एक बार फिर नवनियुक्त प्रोफेसर फिरोज़ ख़ान को लेकर सुर्खियों में है। प्राप्त जानकारी के अनुसार फिरोज़ खान ने संस्कृत विद्या धर्म संकाय से अपना इस्तीफा दे दिया है और आज मंगलवार, 10 दिसंबर से कला संकाय को ज्वाइन कर लिया है। अब वह बीएचयू के ही कला संकाय में अपनी सेवाएं देंगे। फिरोज़ खान के इस इस्तीफे को छात्रों के विरोध से जोड़कर दबाव के तहत लिया फैसला माना जा रहा है।

बता दें कि बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति के विरोध में आंदोलन को करीब महीने भर से ऊपर का समय हो चुका है। इसी कड़ी में सोमवार 9 दिसंबर को आंदोलित छात्रों ने बीएचयू प्रशासन को फिरोज़ ख़ान की नियुक्ति रद्द करने के लिए एक दिन का वक्त देेते हुए परीक्षा बहिष्कार समेत आमरण अनशन की चेतावनी भी दी थी।

इस दौरान आंदोलित छात्रों को समझाने पहुंचे चीफ प्रॉक्टर को भी छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा। साथ ही साहित्य, संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के एक दलित प्रोफेसर शांतिलाल सालवी पर हमले की खबर भी सामने आई। जिन पर कुछ छात्रों ने फिरोज़ खान का समर्थक बताते हुए हल्ला बोल दिया था।

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इस पूरे मामले के बाद बीएचयू प्रशासन ने परीक्षा को अगले आदेश तक टाल दिया था लेकिन संकाय प्रमुख द्वारा फिरोज़ खान के इस्तीफे की आधिकारिक घोषणा होते ही विरोध कर रहे छात्रों ने अपना धरना समाप्त कर दिया है। खान ने संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में पढ़ाने को लेकर उठे विवाद के बीच कला संकाय के संस्कृत विभाग और आयुर्वेद विभाग दोनों में साक्षात्कार दिया था। जिसके बाद दोनों विभागों में उनका चयन हो गया था। हालांकि बीएचयू का माहौल अभी भी तनावपूर्ण बना हुआ है।

गौरतलब है कि फिरोज़ खान का चयन 5 नवंबर को बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में हुआ था। जिसके बाद वह 7 नवंबर को विभाग में ज्वाइन करने गए लेकिन संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान के छात्र पहले से ही उनके विरोध में धरने पर बैठे थे। तब से लेकर अब तक यहां कोई क्लास नहीं हो पाई है।
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इस इस्तीफे के संबंध में कई लोगों की अलग-अलग राय भी सामने आई है। एक ओर फिरोज़ के समर्थकों का कहना है कि ये अच्छा नहीं हुआ और अब बनारस की गंगा-जमुनी संस्कृति पर हमेशा के लिए एक दाग लगा गया है। फिरोज़ खान ने भले ही डर के कारण इस्तीफा दे दिया हो लेकिन वास्तव में यह संविधान के मूल्यों की हार है। तो वहीं उनके विरोधियों ने इस इस्तीफे का स्वागत करते हुए महामना के मूल्यों की रक्षा का तर्क दिया है।

कई भाषाओं के जानकार और पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर आनंद शुक्ल इस संबंध में कहते हैं, ‘ये इस्तीफा गलत है और आज कुछ छात्रों के दबाव के आगे प्रोफसर खान ने हार मान ली लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि रसखान की कृष्ण भक्ति विश्व प्रसिद्ध है। रसखान पठान थे लेकिन उन्होंने अपने जीवन का लंबा समय मथुरा और वृंदावन में ही बिताया। उनके बारे में भी माना जाता है कि वे संस्कृत के विद्वान थे और उन्होंने भागवत का फारसी में अनुवाद भी किया था।'

बीएचयू के पूर्व छात्र और पेशे से पत्रकार पंकज श्रीवास्तव ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, 'हम समाज में शिक्षा के क्षेत्र में डर की जगह नहीं बनने दे सकते हैं। ये बहुत गलत हुआ है। माहात्मा गांधी ने भी भारत में दलितों और मुसलमानों के संस्कृत पढ़ने-पढ़ाने का पुरजोर समर्थन किया था। आज हम गांधी के विचारों को भुलाकर किस समाज की ओर बढ़ रहे हैं।'

फिरोज़ खान की नियुक्ति का समर्थन कर रहे छात्रों का कहना है कि प्रशासन ने विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके चलते उनका मनोबल बढ़ता गया और फिरोज़ खान के अंदर डर बैठ गया और इस डर का नतीज़ा ही यह इस्तीफा है। प्रशासन शायद कुछ छात्रों के दवाब में है जिसके कारण एक नया विकल्प संकाय परिवर्तन का सामने रखा गया है। छात्रों का सवाल है कि क्या यही समस्या का समाधान था और क्या हमारे संविधान में यही लिखा है?

संस्कृत विद्या धर्म सकांय के छात्र चक्रपाणी ओझा जो प्रोफेसर खान की नियुक्ति के विरोध का नेतृत्व कर रहे थे, उन्होंने न्यूज़क्लिक से बातचीत में प्रोफेसर फिरोज़ खान के इस्तीफे पर अभार जताते हुए, इसका स्वागत किया और धरना खत्म करने की पुष्टि भी की।

वहीं संकाय के ही एक अन्य छात्र ने इसे महामना के विचारों और मूल्यों की जीत करार देते हुए कहा, ‘हम प्रोफेसर खान का बीएचयू में स्वागत करते हैं। उन्होंने सही फैसला लिया है, जो सभी के हित में होने के साथ न्याय भी है।'

नाम ना छापने की शर्त पर बीएचयू के ही एक प्रोफेसर इस पूरे प्रकरण पर सवाल खड़े करते हुए कहा, 'भले ही प्रोफेसर खान ने आधिकारिक तौर पर कला संकाय के संस्कृत विभाग में अपने नियुक्ति को कारण बताते हुए इस्तीफा दिया है। लेकिन इस इस्तीफे ने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं, जो एक धर्म निर्पेक्ष राष्ट्र की दृष्टि से निश्चित ही सही नहीं है। हमें इस पर बहुत सोचने की जरूरत है।'

हालांकि फिरोज खान की नियुक्ति को बीएचयू के चांसलर जस्टिस गिरधर मालवीय और प्रशासन समेत कार्यकारिणी बैठक में भी सही ठहराया गया था। प्रोफेसर फिरोज़ खान को बीएचयू के कई विभागों के छात्रों के साथ-साथ राजनीतिक दलों और देश भर से लोगों का समर्थन मिला था। 20 नवंबर को बीएचयू के अन्य विभागों के छात्रों ने फिरोज खान के समर्थन में ‘वी आर विद यू फिरोज़ खान’, ‘संस्कृत किसी की जागीर नहीं’ जैसे पोस्टर्स के साथ मार्च भी निकाला था।

प्रोफेसर खान के समर्थन में उतरे छात्रों का कहना था कि इस देश में सबसे बड़ी किताब संविधान की है और वो किसी भी आधार पर किसी के साथ भेदभाव की इजाज़त नहीं देती। महामना के मूल्यों के नाम पर कुछ छात्र इस गलत तरीके से पेश कर रहे हैं। महामना ने ऐसे समाज की कल्पना की जहां हर धर्म के लोग शिक्षा ग्रहण कर सकें।

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