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बीएचयू: क्या दबाव के चलते फिरोज़ ख़ान कर रहे हैं संकाय बदलने की तैयारी?

बीते 29 नवंबर को नियुक्ति विवाद के बीच फ़िरोज़ ख़ान ने बीएचयू के आयुर्वेद विभाग में इंटरव्यू दिया और वहां उनका चयन भी हो गया है। इसके बाद अब बुधवार यानी 4 दिसंबर को फ़िरोज़ का कला संकाय के संस्कृत विभाग में भी इंटरव्यू है।
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गंगा-जमुनी तहज़ीब की पर्यावाची काशी के बनारस हिन्दू विश्वविद्याल (बीएचयू) के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नवनियुक्त प्रोफेसर डॉक्टर फ़िरोज़  ख़ान एक बार फिर सुर्खियों में हैं। दरअसल बीते 29 नवंबर को नियुक्ति विवाद के बीच फ़िरोज़ ख़ान ने बीएचयू के आयुर्वेद विभाग में इंटरव्यू दिया और वहां उनका चयन भी हो गया है। इसके बाद अब बुधवार यानी 4 दिसंबर को फ़िरोज़ का कला संकाय के संस्कृत विभाग में भी इंटरव्यू है। जाहिर है एक संकाय में नियुक्ति के बाद भी अलग-अलग संकायों में इंटरव्यू देना उन पर दबाव को दर्शाता है।

गौरतलब है कि फिरोज़ ख़ान बीएचयू में नियुक्ति के बाद संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में छात्रों के विरोध के चलते एक भी क्लास नहीं ले पाए हैं। विरोध कर रहे छात्रों का अब भी कहना है कि वो संकाय में फ़िरोज़  ख़ान को नहीं आने देंगे। ऐसे में बीएचयू से जुड़े कई लोगों का मानना है कि फ़िरोज़ ख़ान पर दबाव बनाया गया है जिसके चलते उन्होंने इंटरव्यू दिया है। हालांकि प्रशासन का कहना है कि किसी भी व्यक्ति एक विभाग में नियुक्ति होने के बाद भी दूसरे विभाग में आवेदन करने के लिए स्वतंत्र है।

इस संबंध में बीएचयू के जनसंचार विभाग का कहना है कि फ़िरोज़ ने संस्कृति विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्ति से पहले ही पहले ही आयुर्वेद और कला संकाय में आवेदन किया था। इंटरव्यू देने या न देने या चयन होने पर ज्वाइन करना या न करना यह उनका अधिकार है।

विश्वविद्यालय प्रशासन का तर्क वाजिब है कि कोई किसी भी विभाग में इंटरव्यू दे सकता है लेकिन फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति पर हुए विवाद के बाद क्या ये सामान्य स्थिति है? क्या अपनी मर्ज़ी से फ़िरोज़ ख़ान दूसरे विभागों में इंटरव्यू दे रहे हैं? इस सवाल का जवाब शायद फ़िरोज़ ख़ान ख़ुद भी नहीं देना चाहते हैं। तभी तो उनके बनारस में होने के बावजूद किसी को नहीं पता कि वो कहां हैं। फिलहाल विश्वविद्यालय प्रशासन कुछ कहने की स्थिति में नहीं है और न ही मज़हब के नाम पर हो रहे बहिष्कार को रोक पाने में ही समर्थ है।

वहीं दूसरी ओर संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के कई छात्र अब भी इस बात पर अड़े हुए हैं वो फ़िरोज़ को संकाय के भीतर नहीं जाने देंगे। विरोध का नेतृत्व कर रहे छात्र चक्रपाणि ओझा ने नयूज़क्लिक को बाताया कि महामना मालवीय जी ने इस संकाय को सनातन धर्म के मूल्यों के हिसाब से बनाया था। किसी भी गैर हिंदू को यहां पठन-पाठन का आदेश नहीं है। फिरोज़ ख़ान खुद ही यहां आकर असहज महसूस करेंगे। हम लोगों का विरोध तब तक नहीं थमेगा जब तक कि फ़िरोज़ ख़ान को किसी और डिपार्टमेंट में नहीं भेज दिया जाता है। 10 दिसंबर से परीक्षा है और अगर फ़िरोज़ ख़ान पर कोई फ़ैसला नहीं होता है तो परीक्षा नहीं होने देंगे।

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बता दें कि हाल ही में को बीएचयू के पूर्व शिक्षकों और संस्कृत के कुछ विद्वानों ने भी फ़िरोज़  ख़ान की नियुक्ति पर आपत्ति दर्ज कराई थी। बीएचयू के पूर्व अध्यापकों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर फ़िरोज़  ख़ान की नियुक्ति प्रक्रिया को गलत बताया था। ऐसे में इस नियुक्ति का समर्थन करने वाले शिक्षकों का कहना है कि शायद फ़िरोज़ ख़ान खुद ही अब कोई दूसरा रास्ता निकालना चाहते हैं। क्योंकि छात्र भावनात्मक मुद्दा उठा रहे हैं, इसलिए प्रशासन भी सख्ती नहीं दिखा रहा हालांकि प्रशासन साफ तौर पर पहले ही कह चुका है कि फिरोज़ ख़ान की नियुक्ति नियमों के अनुरुप हुई है और इसे रद्द नहीं किया जाएगा।

इस संबंध में बीएचयू के छात्र अनुपम का कहना है, 'प्रशासन कोई ऐसा रास्ता तलाश रहा है जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे यानी फिरोज़ ख़ान को इसी विश्वविद्यालय में किसी और संकाय में नियुक्त कर दिया जाए। क्योंकि कोई व्यक्ति ख़ास धर्म के कारण उस संकाय में नहीं पढ़ा पाएगा यह ठीक नहीं है'।

बीएचयू की छात्रा आकांक्षा के अनुसार, 'प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ ख़ान के समर्थन में कई लोग खड़े हैं। इसलिए प्रशासन कुछ वैकल्पिक रास्ता देख रहा है जहां कोई विवाद ना हो। आयुर्वेद में उनका चयन हुआ है और वहां भी टॉप पर है। ऐसे में संभव है कि वहीं ज्वाइन कर ले।''

इस पूरे विवाद पर फ़िरोज़ ख़ान को नागरिक समाज से लेकर विभिन्न छात्र संगठनों, शिक्षकों और राष्ट्रीय स्वयं संघ का भी सामर्थन मिला। बीएचयू के छात्रों ने उनके समर्थन और स्वागत में मार्च भी निकाला। लेकिन इन सब के बावजूद फ़िरोज़ ख़ान बीएचयू नहीं लौटे। कुछ लोगों का कहना है कि शायद फ़िरोज़ ख़ान डर गए हैं उनको किसी से डरना नहीं चाहिए था और उन्हें क्लास लेने जाना चाहिए था।

बीएचयू के छात्र विकास सिंह कहते हैं, ''फ़िरोज़ ख़ान कहां हैं किसी को नहीं पता। शायद वह कुछ ज़्यादा ही डरे हुए हैं। जितने लोग उनका विरोध कर रहे हैं उनसे ज़्यादा लोग उनके समर्थन में हैं। यूनिवर्सिटी प्रशासन भी उनके ख़िलाफ़ नहीं जा सकता है। आयुर्वेद में जाकर इंटरव्यू देना उनके डर को ही दिखाता है। उनका डरना विरोध करने वालों को शक्ति देता है।''

गौरतलब है कि इस विवाद पर बीएचयू के चांसलर जस्टिस गिरधर मालवीय ने कहा है कि छात्रों ने जो मुद्दा उठाया है वो पूरी तरह से गलत है। उन्होने कहा है कि अगर बीएचयू के संस्थापक आज जिंदा होते तो इस नियुक्ति का जरूर समर्थन करते।

छात्रों के विरोध पर सवाल उठाते हुए जस्टिस मालवीय ने कहा, 'योग्यता का सम्मान किया जाना चाहिए।' उन्होने कहा कि छात्र किस आधार पर फ़िरोज़  ख़ान का विरोध कर रहे हैं यह समझ से परे है। पहली बात तो यह है कि फ़िरोज़  ख़ान को कर्मकांड पढ़ाने के लिए नहीं बल्कि साहित्य पढ़ाने के लिए रखा गया है। दूसरा यह कि यदि कर्मकांड के लिए भी नियुक्ति हुई है तो छात्रों को विरोध करने के बजाय पढ़ना चाहिए।'

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