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भाजपा-आरएसएस हर स्थानीय टकराव को हिन्दू-अल्पसंख्यक विवाद में बदलना चाहते हैं : हिरेन गोहेन

न्यूज़क्लिक को दिए एक साक्षात्कार में, जाने-माने सामाजिक वैज्ञानिक और असम की प्रमुख आवाज़ डॉ. हिरेन गोहेन परिसीमन मसौदे, असमिया राष्ट्रवाद, आरएसएस के एजेंडे और सीएए विरोधी आंदोलन के बारे में बात कर रहे हैं।
Hiren Gohain
फ़ोटो साभार : Al Jazeera

यह हक़ीक़त है कि, असम में परिसीमन के ताज़ा मुद्दे ने व्यापक असंतोष और विरोध को जन्म दिया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर विभाजनकारी राजनीतिक रणनीति का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया जा रहा है - जिसे कथित तौर पर एआईयूडीएफ के बदरुद्दीन अजमल ने बढ़ावा दिया है। इस संदर्भ में, जाने-माने सामाजिक वैज्ञानिक और असम की प्रमुख आवाज डॉ. हिरेन गोहेन को न केवल सीएम बल्कि उनके कैबिनेट सहयोगी पीयूष हजारिका ने भी निशाना बनाया है। हाल ही में एक साक्षात्कार में, सीएम ने कहा था कि असम के लोगों को गोहेन पर ध्यान नहीं देना चाहिए, यदि वे सफेद कहते हैं, तो लोगों को इसे काला समझना चाहिए।

उपजे हालात की बेहतर समझ हासिल करने के प्रयास में, न्यूज़क्लिक ने गुवाहाटी में गोहेन से उनके निवास स्थान पर बात की और परिसीमन मसौदे के विभिन्न पहलुओं, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) की स्थिति, भाजपा-आरएसएस एजेंडा और असम आंदोलन के संबंध में चर्चा की। पेश हैं संपादित अंश:

संदीपन तालुकदार: परिसीमन मसौदे के प्रकाशन के बाद, गोगोई के इर्द-गिर्द राजनीतिक विवाद पैदा हो गया, जिसके समान नागरिक संहिता के खिलाफ बदरुद्दीन अजमल की अस्पष्ट टिप्पणियाँ भी विवाद का कारण बनी उसी दिन, हिमंत बिस्वा सरमा ने पूर्वी बंगाल मूल के मुसलमानों का जिक्र करते हुए 'मिया' समुदाय के बारे में टिप्पणी की थी। क्या आपको लगता है कि वे दोनों समान रूप से सांप्रदायिक हैं?

हिरेन गोहेन: ऐसा लगता है कि वे दोनों पहले से तय व्यंग और उस पर प्रतिक्रिया के कुछ नुक्ता-चीनी में लगे हुए हैं। वे बहुत चतुर राजनेता हैं और उनकी राजनीति किसी भी विचारधारा या किसी गंभीर राजनीतिक चिंता से परे है। यदि बेहद शर्मनाक अर्थों में इसे परिभाषित किया जाए तो यह केवल सत्ता का खेल है। और इसलिए, चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए, वे दोनों इस तरह की हाजिर-जवाबी में लगे हुए दिखते हैं, जिसे अक्सर सांप्रदायिक रंग में रंग दिया जाता है।

ऐसा लगता है कि सरमा, मिया या आप्रवासी मुसलमानों के खिलाफ एक तरह की जानलेवा बयानबाजी कर रहे हैं। दूसरी ओर, अजमल, हालांकि सीधे तौर पर असमिया लोगों पर हमला नहीं कर रहे हैं, उन्होंने बार-बार हिंदुओं का अपमान किया है और समय-समय पर असमिया लोगों को अपमानित भी किया है। इसलिए, ऐसा लगता है कि यह विचार दोनों खेमों में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने का है, हालांकि सीधे तौर पर ऐसा नहीं दिखता है। ऐसा लगता है कि वे यही खेल खेल रहे हैं। उनकी तात्कालिक चिंता केवल राजनीतिक सत्ता बरकरार रखने की है, और कुछ नहीं। और ये (टिप्पणियाँ) सिर्फ ज़मीन पर झाग की तरह हैं।

एसटी: कांग्रेस एआईयूडीएफ और अजमल के खिलाफ अधिक मुखर होकर प्रतिक्रिया दे रही है, शायद उसकी नजर धुबरी लोकसभा सीट पर है (कई लोगों का मानना है कि अजमल की स्थिति कमजोर हो गई है) और वह मुस्लिम वोटों पर भरोसा कर रही है। इसके अलावा, अब तक तीन एफआईआर दर्ज की गई हैं - नागांव में एक अल्पसंख्यक संगठन (संघ्यालोघु संग्राम परिषद) द्वारा, दिसपुर में अजीत भुइयां द्वारा और लतासिल में सीपीआई (एम) द्वारा। केवल सीपीआई (एम) की एफआईआर हिमंत और अजमल के खिलाफ है, अन्य दो केवल हिमंत के खिलाफ हैं। आप कांग्रेस की स्थिति को कैसे देखते हैं?

एचजी: मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस ने अपने रुख से पनपने वाले परिणामों के बारे में गहराई से विचार किया है। संभव है कि उन्हें अजमल से धुबरी निर्वाचन क्षेत्र छीनने की उम्मीद हो, लेकिन उन्होंने इस पर ज्यादा विचार नहीं किया है। जैसा कि हम पहले से ही जानते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के बीच कांग्रेस की अपील अभी भी काफी मजबूत है, हालांकि कुछ इलाकों में अजमल को व्यापक समर्थन हासिल है। मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस ने इस मामले पर बहुत गहराई से विचार किया है, और अजीत भुइयां और सांख्यलाघू संग्राम परिषद (एसएसपी) के बारे में भी यही कहा जा सकता है।

ऐसा नहीं है कि भुइयां अजमल के ख़िलाफ़ नहीं हैं; वह कई बार उनके खिलाफ बोल चुके हैं। और एसएसपी अजमल के अनुयायी हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं - मैं वास्तव में नहीं जानता। नागांव में, ऐसे बड़े तबके हैं जहां अजमल कोई कारक नहीं है। क्योंकि, जैसा कि आप जानते हैं, जमीयत उलमा ए हिंद (असम में) के एक गुट का नेतृत्व अजमल और दूसरे का नेतृत्व अरशद मदनी करते हैं। जमीयत के महासचिव कासिमी नगांव जिले से हैं और वे अजमल से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं। 

एसटी: आसु (AASU), जिसने असम आंदोलन का नेतृत्व किया था। इसका मुख्य बिंदु असम समझौते को लागू करवाना है। उन्होंने हमेशा स्वदेशी लोगों की रक्षा को एक ढाल के रूप में इस्तेमाल किया है और समझौते के अनुच्छेद 6 की वकालत की है। वे स्पष्ट रूप से भाजपा का समर्थन कर रहे हैं, कम से कम परिसीमन मसौदे पर तो उनका समर्थन है। क्या यह असमिया राष्ट्रवाद के भाजपा-आरएसएस के हिंदू राष्ट्रवाद में विलय का संकेत देता है?

एचजी: मैं कहूंगा कि सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) विरोधी आंदोलन पर अपना जोर कम करके या उसे कमजोर करके, उन्होंने (एएएसयू) पहले ही भाजपा सरकार और आरएसएस के एजेंडे को बड़े समर्थन का संकेत दे दिया था। यहां तक कि उनके दीर्घकालिक सलाहकार बसंत डेका भी इससे निराश हैं। उन्होंने एएएसयू के समुज्जल भट्टाचार्य और उनके अनुयायियों पर असम में सीधे तौर पर आरएसएस के एजेंडे को लागू करने का आरोप लगाया है। इसलिए, मुझे नहीं लगता कि यह बाद का विचार है, यह उनके पहले के रुख में भी निहित था। अब यह खुलकर सामने आ गया है। 

एसटी: आपने असम आंदोलन को करीब से देखा और अपने आलोचनात्मक रुख के कारण हिंसक हमलों का सामना भी किया। हालाँकि, असमिया राष्ट्रवाद केवल असम आंदोलन द्वारा परिभाषित नहीं है। भाजपा-आरएसएस ने इसे अपने हिंदू राष्ट्रवाद से जोड़ने का प्रयास किया है। सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान, यह अप्रवासी या मुस्लिम विरोधी भावना के बजाय ज्यादातर असमिया राष्ट्रवाद था। क्या आप असमिया राष्ट्रवाद को चौराहे पर देखते हैं, जिसमें एएएसयू भाजपा के पक्ष में है और एजीपी (असम गण परिषद) पहले से ही उनके पाले में है?

एचजी: मुझे लगता है कि आपने बात को काफी मजबूती से और कुछ सटीकता के साथ रखा है। लेकिन मैं कहूंगा कि एएएसयू नेतृत्व एक ऐसे जादुई दायरे में प्रवेश कर गया है, जहां से उनका लौटना कठिन है। उनके लिए आरएसएस के एजेंडे के प्रति अपने झुकाव की निंदा करना बहुत मुश्किल होगा, हालांकि उन्होंने स्पष्ट रूप से ऐसा कभी नहीं कहा।

आपने कहा कि असम आंदोलन केवल आप्रवासी मुस्लिम प्रश्न पर आधारित नहीं था, बल्कि मैं आपसे यह याद करने के लिए कहूंगा कि शुरुआत से ही, उन्हें 'दुश्मन' या अवैध घुसपैठियों आदि के रूप में पहचाना गया था। आरएसएस ने असम आंदोलन में प्रवेश किया या घुसपैठ की और इसे एक अलग और हानिकारक मोड़ दे दिया। पहले का अस्पष्ट आदर्शवाद अब एक बहुत ही सटीक और खतरनाक रास्ते, एक खतरनाक आकार और एक खतरनाक रूप में बदल गया है।

हमें ऐसे कई लोग मिले जो सीएए विरोधी आंदोलन में शामिल होने वाले अप्रवासियों के प्रति सहानुभूति रखते थे। हाँ, यह किसी घुसपैठिया या आप्रवासी विरोधी भावना के बजाय असमिया राष्ट्रवाद था। और हमारी आशा थी कि आंदोलन के सकारात्मक तत्वों का अभी भी कुछ इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन आसू (AASU) ने अब खुले तौर पर खुद को इस बड़े लक्ष्य से अलग कर लिया है और वह संघ (RSS) और बीजेपी की तरह केवल अप्रवासी मुसलमानों को लेकर चिंतित है। वे अब अपना असली रंग दिखा रहे हैं। जैसा कि मैंने कहा, यहां तक कि एएएसयू के दीर्घकालिक सलाहकार, विश्वासपात्र बसंत डेका ने भी इसके खिलाफ बात की है।

इसलिए, मुझे लगता है कि असमिया जनमानस में आरएसएस की लंबी यात्रा एक तरह के अंतिम चरण में प्रवेश कर रही है जब वे असमिया राष्ट्रवाद को पूरी तरह से हिंदू राष्ट्रवाद के रूप में बदल सकते हैं। और यही बीजेपी-आरएसएस का एजेंडा है। वे हर स्थानीय संघर्ष को हिंदू बनाम अल्पसंख्यक के व्यापक पैटर्न में बदलना चाहते हैं। मेरा मानना है कि मणिपुर में भी ऐसा हो रहा है। वे इस तरह का खेल खेल रहे हैं और यह एक रणनीतिक खेल है और मुझे लगता है कि एएएसयू इसमें असहाय रूप से उलझा हुआ है।

एसटी: क्या आप मानते हैं कि असमिया राष्ट्रवाद की अवधारणा, अब आरएसएस की चाहत भरी दिशा के अनुरूप ढलने की संभावना है?

एचजी: नहीं, नहीं। कुछ अन्य लोग अभी भी इसे अपना सकते हैं, लेकिन आसू इस रास्ते से हट गया है और उसे अब असमिया राष्ट्रवाद की ज्यादा चिंता नहीं है। आसू शुरू से ही राष्ट्रीय सुरक्षा के अन्य पहलुओं जैसे विकास आदि की अनदेखी करता रहा है। उन्होंने अपना पूरा ध्यान घुसपैठियों और आप्रवासियों पर केन्द्रित कर दिया है। इससे पता चलता है कि राष्ट्रवाद के उनके विचार का एक विशेष चरित्र है।

एसटी: हिमंत बिस्वा सरमा और पीयूष हजारिका ने आपके बारे में टिप्पणियाँ की हैं। सरमा ने कहा कि डॉ. गोहेन अपनी राजनीतिक स्थिति बदलते रहते हैं। आप असम आन्दोलन के कट्टर विरोधी थे। फिर भी, एनआरसी और सीएए के दौरान, आपने एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) का समर्थन किया। कुछ लोगों का दावा है कि डॉ. गोहेन अपने पिछले स्टेंड से पीछे हट गए हैं। आपकी टिप्पणियाँ?

एचजी: यह एक तथ्य है, जब मैने (असम) आंदोलन में देखा कि आंदोलन में छिपे आरएसएस तत्व बर्बरता कर रहे हैं तो मैं हैरान था और मैंने उस पर हिंसक प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, तो बाद में मैं आंदोलन में भाग लेने वाले उन आम लोगों के संपर्क में आया जो इसका हिस्सा थे। और मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरा दृष्टिकोण पूरा नहीं था; कुछ मायनों में, यह आंशिक दृष्टिकोण था, हालाँकि गलत नहीं था।

उन्होंने जो फासीवादी बर्बरता की और जो असहिष्णुता दिखाई वह बिल्कुल भी स्वीकार नहीं थी। लेकिन आम लोग किसी और चीज़ से प्रेरित थे। उनकी भावना थी कि असम को बचाना है; वे बहुत स्पष्ट रूप से नहीं सोचते हैं और उन्हें अक्सर गुमराह किया जाता है। लेकिन उन्हें लगता है कि असम को केंद्र से कम फायदा मिला है। इसलिए, वे आशा के साथ इस आंदोलन में शामिल हुए और उनका मानना था कि यह असम के जीवन में एक नया अध्याय खोलेगा, जहां प्रवासी मुसलमानों को भगाना केवल उसका एक छोटा हिस्सा होगा।

लेकिन लोगों को धोखा दिया गया, उन्हें यह एहसास नहीं हुआ कि जहां तक नेतृत्व का सवाल है, घुसपैठ ही एकमात्र मुद्दा था। सारे नेता तो नहीं लेकिन कुछ ताकतवर नेताओं का यही मुद्दा था। और उन्होंने ही सत्ता पर कब्ज़ा किया। यहाँ तक कि प्रफुल्ल महंत ने भी अपना मन थोड़ा बदल लिया, वे भी किसी समय आप्रवासी वोटों पर निर्भर हो गये थे।

इसलिए, इन सभी कारकों पर विचार करते हुए, मेरा मानना ​​है कि किसी को असमिया लोगों की देशभक्ति की भावनाओं को कम करके नहीं आंकना चाहिए, बल्कि मुसलमानों को दानव बनाने और समाज को विभाजित करने के आरएसएस के एजेंडे की निंदा करनी चाहिए और उसके खिलाफ काम करना चाहिए।

एसटी: आप परिसीमन मसौदे को कैसे देखते हैं?

एचजी: मेरे पास इसके संबंध में कुछ सवाल हैं, हालांकि मैंने इसका बारीकी से अध्ययन नहीं किया है। पूरे असम में, लगभग हर इलाके में, परिसीमन के खिलाफ असंतोष और विरोध है। क्यों? कोई तो कारण होगा, और यह बात सामने आई है कि परिसीमन पूरी तरह से यांत्रिक और मनमाना लगता है, जैसे किसी हिस्से को यहीं समाप्त कर दूसरे हिस्से में जोड़ देना- निर्वाचन क्षेत्र का पूरा चरित्र ही बदल देना। परिसीमन का मतलब इस तरह की बात नहीं हो सकती, निर्वाचन क्षेत्रों को नए सिरे से तय करना, जैसे कि उन्होंने पूरी चीज़ शुरू से ही शुरू कर दी हो। यह संभव नहीं है क्योंकि एक बार जब कुछ चीजें आकार ले लेती हैं, तो आप उन्हें मनमाने ढंग से नहीं बदल सकते हैं। आप छोटे-मोटे बदलाव कर सकते हैं, यहां कुछ जोड़ सकते हैं, या वहां कुछ छोड़ सकते हैं। मनमाने ढंग से एक हिस्से को दूसरे हिस्से में जोड़ना, पूरी तरह से नए निर्वाचन क्षेत्र बनाना और कभी-कभी पुराने निर्वाचन क्षेत्रों को हटा देना अनैतिक और गैरकानूनी है। तो, इसलिए यह बहुत यांत्रिक और खतरनाक लगता है। यह संभव है, और वास्तव में लगता है कि, इस बात की 99 प्रतिशत संभावना है कि यह सब कुछ भाजपा की भविष्य की सफलता को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

जब वे कहते हैं कि वे मूल निवासियों की रक्षा करने जा रहे हैं तो उनका यही मतलब है। मूलनिवासी से उनका मतलब हिंदू है और हिंदू से उनका मतलब बीजेपी है। इसलिए, मुझे लगता है कि सरकार के साथ समिति की कुछ गुप्त समझ या सांठगांठ थी।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

BJP-RSS Want to Turn Every Local Conflict Into a Broad Pattern of Hindus Vs Minorities: Hiren Gohain

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